वैश्विक स्तर पर देखें तो तकरीबन 4000 डॉल्फिन में से अट्ठारह सौ डॉल्फिन बिहार में हैं। इनमें से 200 से अधिक इस अभ्यारण में, लेकिन पर्यटक 20 भी नहीं आ रहे हैं। सरकार की तमाम योजनाएं डॉल्फिन के संरक्षण की और पर्यटन की बेईमानी लग दिख रही है। ऐसे में बड़ा खतरा हैं कि अभ्यारण में मौजूद डॉल्फिन भी चीन की यांगजी नदी में रहने वाली बायजी डॉल्फिन की तरह विलुप्त ना हो जाए। केंद्र सरकार ने 18 मई 2010 को गंगा डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था।
पर्यटन का देश की जीडीपी में 6.23% और रोजगार देने में 8.78% योगदान है। केंद्रीय वन और पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने लगभग डेढ़ साल पहले वादा किया था कि वह भागलपुर के गंगा के किनारे वाच टावर बनाएंगे ताकि लोग परिवार के साथ गंगा डॉल्फिन देख सकें। पर यह धरातल पर नहीं उतर सका है।
भागलपुर के स्थानीय निवासी और शिक्षक विवेकानंद झा बताते है।
अरविंद मिश्रा कहते हैं कि, “अंधविश्वास के कारण डॉल्फिन की जान खतरे में है। जोड़ों के दर्द और काम शक्ति को बढ़ाने की दवा तैयार करने के लिए चोरी चुपके इसकी हत्या होती है। वहीं कई मछुआरे डॉल्फिन का शिकार इसलिए करते हैं कि डॉल्फिन के तेल से मछली पकड़ने का चारा बनाया जाता है। चारा मतलब डॉल्फिन के तेल को नदी में फैला दिया जाता है, जिसके खूश्बू से ‘बचवा’ मछलियां ऊपर आ जाती है। हालांकि इन सारे घटना की संख्या में पहले से कमी आई है।”
बहुत सी डॉल्फिन मछुआरों के कानूनी या गैर कानूनी जालों में फंस कर मर जाती हैं। जिसके लिए ना मछुआरे जागरूक हो रहे हैं ना ही सरकार को कोई परवाह है। गंगा प्रहरी स्पेयरहेड दीपक कुमार के मुताबिक बिहार में साल में आठ से नौ डॉल्फिन की मौत का कारण मछुआरे के द्वारा बिछाया जाल बनता है।

“बिहार में डॉल्फिन की सबसे अधिक मृत्यु मछुआरे के जाल में फंसकर होती है। प्रतिबंध के बाद भी मछुआरे गंगा में जाल डालते हैं और मछली के जगह डॉल्फिन जाल में फस कर मरती है।” रिवर डॉल्फिन के एक्सपर्ट प्रोफेसर सुनील चौधरी कहते है।
जाल हटाने के लिए कहने पर जान से मारने की मिलती है धमकी
गंगा संरक्षक के रूप में योगेंद्र मलाह पिछले 5 सालों से काम कर रहे हैं। योगेंद्र बताते हैं कि
कई बार मछुआरे के जाल उठाने पर जान से मारने की भी धमकी मिलती है। महादेवपुर घाट के तरफ कई बार मछुआरे और संरक्षक के बीच मारपीट की घटना भी हो चुकी है। सरकार के कड़े नियम के बावजूद ही जाल हट सकता है।
बिहार में पर्यटन विकास के लिए सरकार के द्वारा भागलपुर के सुल्तानगंज से अगुवानी घाट महासेतु पर डॉल्फिन ऑबर्वेटरी के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया है। प्रस्तावित योजना के मुताबिक हैंगिंग डॉल्फिन ऑब्जर्वेटरी में गाड़ियों की पार्किंग होगी। दर्शक सीढ़ियों से नीचे उतर कर गंगा नदी के करीब जाकर एक बड़े प्लेटफार्म से डॉल्फिन का खेल देख सकेंगे।
जलीय जीव पर रिसर्च कर रहे पीएचडी स्कॉलर राहुल बताते हैं कि
सरकार के पर्यटन विभाग के द्वारा विज्ञापन के पोस्टरों में जिस तरह से डॉल्फिन को उछलता हुआ दिखाया जाता है। असल में गंगेय डॉल्फिन समुद्र के डॉल्फिन की तरह जंप नहीं कर सकती है। यह एक स्तनधारी है और इसे सांस लेने के लिए पानी के ऊपर आना होता है। जो एक सेकेंड से भी कम समय के लिए पानी के ऊपर आती है और फिर अंदर चली जाती है। इसलिए पर्यटन विभाग में दिखाए जा रहे डॉल्फिन की फोटो समुद्री डॉल्फिन के हैं।

डॉल्फिन मित्र योगेंद्र बताते हैं कि
गंगा विहार के लिए नाव किराया की दर तय हो। ताकि पर्यटक चाहे तो उचित राशि खर्च कर घूम सकें। इस समय भागलपुर के बरारी से कहलगांव जाने के लिए नाविक 7 से 10 हजार तक मांगते हैं। इतनी बड़ी राशि लोग खर्च करना क्यों चाहेंगे?”
रिवर डॉल्फिन के एक्सपर्ट प्रोफेसर सुनील चौधरी बताते हैं कि
नेपाल जैसा छोटा देश डॉल्फिन को पर्यटन से जोड़ दिया है। भारत से भी लोग वहां जाकर हजारों रुपए खर्च का डॉल्फिन देखते हैं। सरकार चाहे तो विक्रमशिला अभ्यारण क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर दें तो डॉल्फिन भी सुरक्षित रहेगी और पर्यटन के जरिए इस क्षेत्र की आर्थिक स्थिति में भी बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। वहीं केंद्र सरकार की योजना के तहत गंगा में जल परिवहन योजना के अंतर्गत यदि बड़े जहाज चले तो गंगा की समय- समय पर ड्रेजिंग होगी साथ ही जहाजों के प्रोपेलर की तेज आवाज डॉल्फिन के लिए जानलेवा बन सकती हैं।

पर्यावरणविद् दीपक बताते हैं कि
सरकार चाहे तो यह इलाका इको टूरिज्म का केंद्र बन सकता है। डॉल्फिन के अलावा 90 तरह के जलीय जीव और पक्षियों की 265 प्रजातियां यहां आसानी से लोग देख सकेंगे। ठंडे मौसम में कई विदेशी पक्षियों का डेरा जहां जमा रहता है। पर्यटक केंद्र बनने से उनके शिकार में भी कमी होगी।
पर्यावरण प्राणी सर्वेक्षण विभाग के संयुक्त निदेशक गोपाल शर्मा बताते हैं कि
विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभ्यारण पर्यटकों के लिए सुलभ हो इसके लिए केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे प्रयासरत हैं। जल्द ही लोग डॉल्फिन को करीब से देख सकेंगे।