जलवायु पर‍िवर्तन: हीट वेव की वजह से आम और लीची की तबाह होती फसल

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पिछली बार आम का व्यवसाय अच्छा नहीं हुआ था। तो इस बार उम्मीद थी कि अच्छा होगा। अमूमन एक साल छोड़कर दूसरे साल आम का अच्छा उपज होता है। इसलिए एक साल घाटा में रहकर दूसरे साल दूगुना लाभ कमा कर पिछले साल का भी घाटा बर्दाश्त कर लेते हैं। लेकिन इस बार भी फायदा ना के बराबर हुआ। पिछले साल का घाटा भी सर पर है लेकिन महाजन को पूरा रुपया देना पड़ेगा।

धीमी आवाज में सुपौल जिला के बिना बभनगामा गांव के मोहम्मद जैबार बताते है। जैबार लगभग बभनगामा गांव के 5 बीघा से ज्यादा बगीचे को आम के मौसम में खरीदते हैं।

मार्च महीने में खूब मंजर आया था। लेकिन ना जाने अचानक क्‍या हुआ सब खत्‍म हो गया। ज‍िन बागों में आम बचे हैं, उन्‍हें कीटों से बचाने के ल‍िए लगभग लाख का कीटनाशक छिड़क चुका हूं, लेकिन लगता नहीं कि लागत भी न‍िकल पाएगी। कीटों ने सब खराब कर रखा है।

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आगे जैबार बताते है।

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(मोहम्मद जैबार)

बिहार में फलों के उत्पादन का 50 प्रतिशत हिस्सा आम का है। इसका उत्पादन एक लाख हेक्टेयर में है और वार्षिक उत्पादन 1.5 मिलियन मीट्रिक टन है। आम के उत्पादन में बिहार का पूरे देश में चौथा स्थान है और देश के कुल उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत है। वहीं बिहार देश में कुल लीची का आधे से अधिक उत्पादन करता है। लेकिन इस साल मार्च और अप्रैल में हीटवेव के जल्दी आने से आम और लीची की फसल अत्यधिक प्रभावित हुई है क्योंकि किसानों ने उत्पादन में गिरावट और फलों पर कीटों के हमले की सूचना दी है। कई सरकारी अधिकारी और  कृषि वैज्ञानिक भी आम और लीची की फसल पर गर्मी के असर को स्वीकार करते हैं।


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गर्मी की वजह से काम नहीं कर रहे कीटनाशक

सबसे ज्यादा परेशान कीट कर रहा है। शुरुआत में ‘बोरेक्स’ दवाई का उपयोग करते थे। 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से बने घोल का छिड़काव करके। लेकिन अब इस दवाई से कीट से कोई फर्क नहीं पड़ता। नए-नए कंपनी का उपयोग करने के बावजूद भी कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। कीटों की परेशानी भी साल दर साल बढ़ रही है। इसकी वजह से काफी नुकसान हो रहा है।”

सहरसा के  बनगांव गांव के उमा ठाकुर बताते है।

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आम व्यवसाई बबलू झा 3 बीघा बगीचे को बटियादारी कृषि के तहत करते हैं। वो बताते हैं कि, “आठ बार छ‍िड़काव करा चुके हैं। इसके बाद भी कीटों का प्रकोप कम नहीं हो रहा है। समझ नहीं पा रहे हैं कि कमी कहां है। ऐसा लगता है कि हम जिन कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, वे भीषण गर्मी के दौरान बढ़ते तापमान से बेकार हो गए हैं।”

सुपौल जिला की लक्ष्मीनिया गांव की किसान जिस दुकानदार से कीटनाशक दवाई खरीदते हैं। वह दुकानदार  अनुज झा बताते हैं कि, “पहले कीटनाशक का उपयोग बहुत कम होता था अभी स्थिति यह है कि RSM और एम्बूए जैसी मंहगी कंपनी कीटनाशक दवाई बना रही है और किसान खरीद रहे हैं। सच यह भी है कि ज्‍यादा तापमान पर दवाइयां काम नहीं करतीं हैं।”

लीची व्यापारियों की भी यही हालत

विश्व स्तर पर लीची उत्पादन के आंकड़े की बात करें तो  भारत चीन के बाद सबसे अधिक मात्रा में लीची का उत्पादन करता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च के मुताबिक देश भर में करीब 83,000 हेक्टेयर में लीची की खेती होती है। बिहार में 35,000 हेक्टेयर में फैले लीची के बाग हैं। लेकिन समय के साथ लीची व्यापारियों की संख्या में धीरे-धीरे कमी आ रही है।

मुजफ्फरपुर के लीची का नैहर कही जाने वाली कांटी के सहबाजपुर के कारोबारी शिवनाथ शाह बताते हैं कि

जलवायु परिवर्तन से लीची में लगे कम फल किसानों की मुश्किल को बढ़ा रहे है। अधिकांश लीची के बगीचे में मंजर की जगह नए लाल पत्ते आ गए है वहीं अत्यधिक गर्मी पड़ने की वजह से लीची के फलों पर काले धब्बे पड़ गए और सड़न पैदा हो गई। मेरे बाग में लगभग 200 से अधिक पेड़ बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

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व्यापारी और किसान दवाओं के छिड़काव और बगीचों की सिंचाई कर बची-खुची फसल को बचाने का प्रयास किए लेकिन गर्मी और अधिक तापमान की वजह से सब असफल रहा। मुजफ्फरपुर के बोचहा प्रखंड के नामी किसान नेता हरदयाल शर्मा बताते हैं कि, “चमकी बुखार की वजह से एक तो पहले ही लीची बदनाम हो चुकी है। इसलिए नुकसान का सिलसिला ला चालू ही था कि इस साल अच्छे मुनाफे की उम्मीद थी लेकिन हिट वेब ने हम किसानों के उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। इस साल न केवल लीची का उत्पादन घटा है, बल्कि लीची के फल का आकार भी बहुत छोटा है।”

आंकड़े क्या बताते हैं?

हैदराबाद स्‍थ‍ित भारतीय कृष‍ि अनुसंधान परिषद (ICAR) का संस्‍थान केंद्रीय बारानी अनुसंधान संस्‍थान के रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में ही मार्च के महीने में सामान्‍य से लगभग 5 ड‍िग्री सेल्‍स‍ियस ज्‍यादा तापमान होने से आम के मंजर (बौर) को नुकसान हुआ है। बिहार के दरभंगा ज‍िले में फल का आकार छोटा रह जाने के मामले भी देखे गए। वहीं कृषि मंत्रालय के अग्रिम अनुमान के मुताबिक, इस साल (2021-22) 20,336 हजार मीट्रिक टन आम के उत्पादन का अनुमान है। प‍िछले साल (2020-21) 20,386 हजार मीट्रिक टन आम का उत्पादन हुआ था।

बदलते मौसम में खेती बड़ी चुनौती

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बिहार का जाना माना कृषि विश्वविद्यालय पूसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक शंकर झा बताते हैं कि, ” सिर्फ इस साल नहीं बल्कि प‍िछले दो तीन साल से ऐसा देखा जा रहा है कि मौसम के अचानक पर‍िवर्तित होने, तापमान के घटने बढ़ने की वजह से आम और लीची के फूल और फल को नुकसान हो रहा है। मौसम केन्द्र के मुताबिक 2022 का ही आंकड़ा देखें तो पाएंगे कि इस महीने में सबसे ज्यादा 146 बार हीट वेव और अत्यधिक हीट वेव का अनुभव किया गया।”

आने वाले वक्त में कृषि के लिए जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती है। कीटनाशकों के छिड़काव पर जारी सलाह का सख्ती से पालन करें। साथ ही पेड़ों को समय से पहले सिंचित किया जाए।” आगे शंकर झा बताते है।

भारत समेत दुनियाभर में क्यों बढ़ रही है गर्मी

बर्कले अर्थ के लीड साइंटिस्ट डॉ रॉबर्ट रोहडे ट्वीट के माध्यम से बताए थें कि

Dome C के रिमोट रिसर्च स्टेशन ने सामान्य से लगभग 40 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान रिकॉर्ड किया है। पिछले साल यह आंकड़ा 20 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था।” वहीं नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर के वैज्ञानिक वॉल्ट मेयर मीडिया को बताते हैं कि, “यह अप्रत्याशित स्थिति हैं कि आर्कटिक और अंटार्कटिक दोनों ध्रुव एक साथ पिघल रहे हैं। इसे आने वाले दिनों में अलग संकेत समझ सकते हैं, इसे अलार्मिंग स्थिति समझा जा सकता है।