बिहार में बालू माफिया का बढ़ा दबदबा, सरकार को हो रहा करोड़ों का नुकसान

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आए दिन बालू माफियाओं के द्वारा टेंडर और खनन को लेकर हत्याएं आम हो चुकी हैं। नदियों से संबंधित मुद्दों पर काम करने वाले साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर एंड पीपल (SANDRP) के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2019 और नवंबर 2020 के बीच, भारत में अवैध नदी रेत खनन की घटनाओं/दुर्घटनाओं के कारण 193 मौतें हुई हैं। 

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बालू खनन के लिए खनन माफिया लोगों को 50 हजार रुपए प्रति कट्ठा के हिसाब से भुगतान करते हैं। 80 से 90 ट्रेलर बालू प्रति कट्ठा निकलता है। इसमें खनन माफिया खदान पर ट्रैक्टर मालिक से हजार रूपए प्रति ट्रेलर के हिसाब से बालू बेचता है, जबकि यही बालू लोगों को पहुंचाकर ट्रेलर मालिक 2500 से 3000 रूपए तक वसूलता है। गेड़ा, सुरसर नदी और लक्ष्मीनियां धार में सबसे ज्यादा अवैध रुप से सफेद बालू का खनन हो रहा है। अवैध खनन से होने वाली कमाई का एक हिस्सा  अधिकारियों को भी दिया जाता है। ताकि अधिकारी खदान पर कार्रवाई ना करें।

बालू खनन से जुड़े एक आदमी नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं 

सुपौल के बलवा गांव के रहने वाले सुरेंद्र रोज सफेद बालू के खनन में जाते है। सुरेंद्र को इस बात की जानकारी नहीं हैं कि वह सरकारी हैं या अवैध। सुरेंद्र बताते हैं कि

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70 से 80 सीएफटी बालू एक ट्रेलर पर भरा जाता है। जिसे 2500 से लेकर 3000 रूपए तक बेची जाती है। कभी-कभी हम लोगों को रात के समय भी खनन के लिए बुलाया जाता है। खनन आमतौर पर रात के समय जेसीबी एवं पोकलेन के माध्यम से किया जाता है। किसी प्राइवेट आदमी के साथ साथ कभी-कभी लोकल बालू सरकारी योजनाओं के लिए भी गिराया जाता है।

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सुपौल जिला के स्थानीय पत्रकार रंजीत ठाकुर डेमोक्रेटिक चरखा को बताते हैं

बिहार के सुपौल जिला के निर्मली प्रखंड के डगमारा, बसंतपुर प्रखंड के बलभद्रपुर एवं त्रिवेणीगंज प्रखंड का डपरखा स्थित खदान में सबसे अधिक सफेद बालू का अवैध खनन होता है। सिर्फ इन तीन खदानों से रोजाना प्रति खदान करीब 200 ट्रेलर बालू का अवैध खनन होता है। जिले के बाकी खदान की बात करें तो प्रति खदान रोजाना लगभग 25-30 ट्रेलर बालू  का खनन होता है। इन सारे अवैध कारोबार को रुपया से नापा जाए तो सुपौल जिला में प्रत्येक दिन लगभग 9 लाख का बालू का अवैध कारोबार होता है। मतलब हर माह ढाई से तीन करोड़ का अवैध कारोबार होता है। लेकिन प्रशासन और अधिकारियों की कार्रवाई नगन्य है।

कोसी के अलावा गंगा की कोख से अवैध सफेद बालू का खनन जारी है। पटना में जेपी सेतु के नीचे नावों पर मोटर की मदद से अंधाधुंध बालू अवैध तरीके से निकाला जा रहा है। जिससे एक तरफ तो नदी का पर्यावरण संतुलन खराब हो रहा है, तो दूसरी तरफ हर दिन बिहार सरकार के लाखों के राजस्व का नुकसान हो रहा है। 

राजधानी पटना में दीघा में जेपी सेतु के नीचे गंगा नदी से हर दिन करीब 500 नावों से अवैध तरीके से बालू निकाला रहा जा है। मतलब प्रति दिन 50 लाख रुपये से अधिक कीमत की बालू निकाल कर बेचा जाता है। पटना में भी कोशी क्षेत्र की तरह ही 1800 से 2000 की दर से एक ट्रैक्टर टॉली गंगा की सफेद बालू की बिक्री होती है‌। पूरे दिन नाव से बालू खनन कर गंगा के घाटों पर जमा किया जाता  हैं। फिर देर शाम या रांत में ट्रैक्टर आदि पर लोड कर बाजार में भेजा जाता है।

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पटना के स्थानीय वेब पोर्टल पत्रकार विमलेंदु सिंह बताते हैं।

वर्षों से, भारत की नदियों और नदी के किनारे की पारिस्थितिकी अप्रतिबंधित रेत खनन से बुरी तरह प्रभावित हुई है। नदी के किनारों पर रहने वाले जीवों के प्रवास को प्रभावित करने के साथ नदियों में खारे पानी को बढ़ाता है।


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भागलपुर विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर रुचि श्री अपने आर्टिकल में लिखती हैं

बिहार जल के मामले में समृद्ध समाज है। लेकिन जल के रखरखाव को लेकर परंपरागत ज्ञान से दूर होने की वजह से  बाढ़ के साथ जीने वाला समाज इसे समस्या के रूप में देखने लगा है।  एक तो बांध से नदियों को बांधने की प्रवृत्ति और दूसरा बालू का अत्यधिक खनन नदी के बहाव के मूल स्वभाव को प्रभावित किया हुआ है।

बिहार कोसी नवनिर्माण मंच विगत 15-20 सालों से कोसी वासियों और कोसी नदी पर काम कर रही है। कोसी नवनिर्माण मंच के अध्यक्ष महेंद्र यादव बताते हैं कि

कोसी सबसे ज्यादा गाद (बालू) छोड़ने वाली नदी है। इसलिए कोसी में बालू का खनन गलत नहीं है लेकिन एक ही जगह से जब बालू का खनन अत्यधिक मात्रा में होगा तो नदी का रूप और आकार दोनों बदल जाता है। इसका फल  बिहार सालों से बाढ़ के रूप में देखता आ रहा है। प्रशासन और अधिकारियों को इस पर नियंत्रण करना पड़ेगा। नहीं तो परिणाम और भी बुरा होगा।

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सुपौल जिला के डीएम कौशल कुमार बताते हैं कि, ”  प्रशासनिक सख्ती के बाद पहले की तुलना में इसमें कमी आई है। कहीं अगर बालू और मिट्‌टी का अवैध खनन हो रहा है तो जानकारी मिलने पर हम लोग कार्रवाई से नहीं चूकते हैं।”

पटना के खनन इंस्पेक्टर सुनील कुमार चौधरी इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं

आए दिन प्रशासन की टीम अपने संसाधनों से अवैध बालू खनन में लगी मशीन, ट्रैक्टर से लेकर अन्य संसाधनों को जब्त करती है। अपराधियों को गिरफ्तार भी किया जाता है। तभी तो अवैध खनन और अवैध खरीद-बिक्री करने वालों से हर माह औसतन एक करोड़ रुपये जुर्माना वसूला जाता है।

शाहपुर प्रखंड के दमोदरपुर पंचायत का जवइनिया गांव बक्सर-कोइलवर सुरक्षा तटबंध व गंगानदी के बीच अवस्थित है। आने वाले वक्त में शायद इस गांव की पहचान खत्म हो जाए।  इसकी वजह गंगा नदी में हो रहे लगातार कटाव एवं तटीय इलाकों में हो रहे सफेद बालू का खनन है। 

जवइनिया गांव की आबादी करीब दो हजार है। गांव कि बड़ी आबादी की आजीविका खेतीबारी व मजदूरी है। जवइनिया गांव के 25 वर्षीय छात्र विपुल बताते हैं

स्थानीय विधायक राहुल तिवारी द्वारा खनन को लेकर भोजपुर डीएम से भी बात की गई। इस सबके बावजूद गंगा की तलहटी से हजारों घन फीट तक सफेद बालू का खनन प्रत्येक दिन जारी है। सफेद बालू के खनन से तटीय इलाके में लगातार कटाव हो रहा है। इसी तरह सिलसिला रहा तो हमारा गांव खत्म हो जाएगा।

बिहार में बालू माफिया का काफी दबदबा है जिसकी वजह से वेब पोर्टल्स या नामी अख़बार भी इस मामले पर कुछ नहीं लिखते हैं। राजनैतिक दबाव की वजह से बिहार में माफिया पर कोई बड़ी कारवाई भी नहीं होती है।