बीते कुछ सालों में स्टार्ट-अप की क्षमता बढ़ी है. यह एक ट्रेंडिंग शब्द भी बना हुआ है. कई वर्षों से छोटे शहरों में भी स्टार्ट-अप ने अपना पैर पसारा है, इनमें से एक बिहार राज्य भी है. आंकड़ें बताते हैं कि राज्य में फिलहाल लगभग 115 स्टार्ट-अप का कारोबार चल रहा है, जिससे करीब 2 हज़ार लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है. वर्तमान में शिक्षा के क्षेत्र में भी सरकार द्वारा कौशल पर अधिक जोर दिया जा रहा है. आज बात इसी स्टार्ट-अप के ऊपर.
सबसे पहले तो जानते हैं कि स्टार्ट-अप है क्या? यह एक कंपनी या उद्यम है जिसका आरंभ साझेदारी या स्वतंत्र रूप से एक व्यवसाय के रूप में हुआ हो. इसका उद्देश्य है एक विशेष बाज़ार की खोज करना और मजबूत व्यापार मॉडल स्थापित करना.
बिहार राज्य में स्टार्ट-अप की जड़ें रातों रात मजबूत नहीं हुई हैं. बल्कि इसमें एक लंबा वक्त लगा है. जहां एक तरफ स्टार्ट-अप नीति 2017 ने इसमें महत्वपूर्ण योगदान निभाया है तो वहीं दूसरी तरफ बेरोजगारी ने भी अहम भूमिका निभाई है. वहीं नवीकरण की जरूरत महसूस हुई और तब जाकर कहीं स्टार्ट-अप का उद्गम हुआ. वरना बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में आलम यह है कि एक पारचून की दुकान की कमाई पर पिता और पुत्र दोनों अपने-अपने परिवार का खर्च वहन कर रहे होते हैं. स्टार्ट-अप ने कई लोगों को रोजगार प्रदान किया है. नवीकरण की
मालूम हो कि राज्य सरकार की ओर से स्टार्ट-अप पॉलिसी के तहत 10 साल के लिए तहत 10 लाख रुपये ब्याजरहित अनुदान की व्यवस्था की गई है. वहीं समय-समय पर स्टार्ट-अप संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए आईआईटी, बिहार उद्योग संघ, निफ्ट और एनआईटी जैसे शैक्षणिक संस्थानों ने भी कदम बढ़ाया है.
सामाजिक उद्यमी रंजन मिस्त्री जो खुद एक नौजवान है कहते हैं कि
भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले बिहार में पलायन का दर अधिक है. उन्होंने शिक्षा और रोजगार को इसका जिम्मेवार बताया. वहीं 2011 की जनगणना के बाद जो आंकड़ें सामने आए हैं वह रंजन मिस्त्री की बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं. इसके मुताबिक, वर्ष 2001 से 2011 के बीच 93 लाख लोग रोजगार की तलाश में बिहार से दूसरे राज्यों में गए. देश में पलायन करने वाली कुल आबादी का 13 प्रतिशत हिस्सा बिहार से आता है. इनके पलायन की सबसे बड़ी वजह रोजगार है.

रंजन आगे कहते हैं,
आज आप देखें तो किसी भी शहर चाहे दिल्ली हो या पंजाब अगर वहां कोई बिहारी है तो या तो वह बेहतर शिक्षा के लिए दूसरे शहर में रहने को मजबूर है या फिर रोजगार के लिए. हालांकि, स्टार्ट-अप संस्कृति के कारण अब बेरोजगारी जैसी समस्या से काबू पाने में मदद मिल रही है. लेकिन जब तक इसमें सरकार की ओर से पूर्ण सहयोग नहीं मिलता तब तक ये दूर का ढोल है.
वहीं जब हमने उनसे पूछा कि क्या स्टार्ट-अप के कारण बिजनेस कल्चर प्रभावित हो रहा है तो उन्होंने कहा कि स्टार्ट-अप भी एक तरह का बिजनेस ही है, बस इसमें नवीनीकरण का पुट है. वैसे अगर देखें तो स्टार्ट-अप का बिजनेस पर प्रभाव तो रहा है.
वहीं सहरसा के रहने वाले दिलखुश जो फिलहाल रोडबेज़ के फाउंडर और सीईओ हैं उन्होंने बताया कि बाज़ार में जो समस्या है, स्टार्ट-अप का जन्म उसे दूर करने के लिए होता है.
जैसे आप देखें तो ओला, जोमाटो जैसी तमाम कंपनियों ने हजारों लोगों की रोज़मर्रा की समस्या को दूर करने का काम किया है. स्टार्ट-अप मीन्स इनोवेशन, इनोवेशन मीन्स स्टार्ट-अप.
यहां आपको बता दें कि दिलखुश आर्य गो कैब के भी फाउंडर रह चुके हैं.

बहरहाल, स्टार्ट-अप नीति से भले ही यहां के लोगों का मनोबल बढ़ा हो लेकिन अभी भी बिहार में स्टार्ट-अप के लिए किसी उद्यमी को बहुत संघर्ष करना पड़ता है. राज्य सरकार और उद्यमियों के बीच टू-वे कम्युनिकेशन और साथ ही दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों की तुलना में बिहार को उचित मार्गदर्शन का अभाव ऐसे कई कारणों में से एक है जिसकी वजह से यहां स्टार्ट-अप बहुत तेजी से बढ़ नहीं पा रहा है.
बिहार में स्टार्टअप को लेकर सरकार ने कई नीतियां बनाई हुई हैं. मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के तहत उद्यमियों को 10 लाख की सहायता राशि देने का प्रावधान है. जिसमें से 5 लाख की राशि अनुदान के तौर पर हैं और बाकी के 5 लाख की राशि उद्यमियों को 84 किश्तों में लौटानी पड़ती है. लेकिन इसकी प्रक्रिया इतनी धीमी है कि उद्यमियों का काफ़ी समय राशि के इंतज़ार में ही बीत जाती है.
बिहार में उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए और क्या योजनायें चल रही हैं इसकी जानकारी के लिए डेमोक्रेटिक चरखा ने उद्योग विभाग के उपसचिव बिशेश्वर प्रसाद से बात की तो उन्होंने जानकारी दी कि उनका ट्रांसफर दूसरे विभाग में हो चुका है. इसके बाद डेमोक्रेटिक चरखा का संपर्क बिहार के उद्योग मंत्री शाहनवाज़ हुसैन से हुआ. उन्होंने बताया कि
हमारी सरकार का मुख्य मकसद है कि जितने अधिक युवाओं को लोग प्रोत्साहित कर सकें उतना बेहतर रहेगा. हमलोग उद्योग को बढ़ावा देने को लेकर अभी कॉन्क्लेव का भी आयोजन किये थे जिसमें कई नौजवानों को अपनी कंपनी की सीड फंडिंग (शुरुआत में होने वाला निवेश) मिली थी. हमारी ये सोच है कि बिहार को अगला स्टार्टअप कैपिटल बनाया जाए.