सारण: शराबकांड पर मुआवज़े की मांग कितनी जायज़?

कुछ दिनों पहले बिहार के सारण और सिवान में हुए शराबकांड में 100 से ज्यादा लोग मारे गए. इस अलावा जहरीली शराब पीने से बिहार के छपरा और बेगूसराय में भी लोगों की मृत्यु हुई है

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कुछ दिनों पहले बिहार के सारण और सिवान में हुए शराबकांड में 100 से ज्यादा लोग मारे गए. इस अलावा जहरीली शराब पीने से बिहार के छपरा और बेगूसराय में भी लोगों की मृत्यु हुई है. इस घटना के बाद एक तरफ सरकार अपने बचाव में कह रही है कि वह शराब का सिरे से विरोध करती है और दावा करती है कि शराबबंदी पूरी सख्ती के साथ बिहार में लागू है. तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष लगातार इस घटना को लेकर सरकार पर हमलावर बनी हुई है.

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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने तो सरकार पर यहां तक आरोप लगा दिया कि सरकार एसपी को बचा रही है क्योंकि यह धंधा पिछले 3 महीनों से चल रहा था. इस पूरे घटनाक्रम में एक सवाल जो बेहद तूल पकड़ता दिखाई दिया वह है- "विपक्ष द्वारा मुआवजे की मांग करना." 

विपक्ष लगातार मीडिया से लेकर विधानसभा तक हर जगह सरकार द्वारा मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की बात कर रहा है. जाहिर सी बात है ऐसे में यह सवाल उठना बेहद लाजमी है कि क्या सचमुच जहरीली शराब पीकर मरने वाले लोगों को मुआवजा दिया जाना चाहिए या नहीं?

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गोपालगंज के खजूरबन्नी वाले मामले में दिया गया था मुआवजा

सरकार एक तरफ भले ही कह रही हो कि जब बिहार में पूर्ण शराबबंदी है तो ऐसे में शराब पीकर मरने वाले लोगों को मुआवजा कैसे दिया जा सकता है. हालत तो ऐसी है कि जब विपक्ष ने विधानसभा में यह मुद्दा उठाया तो मुख्यमंत्री ने विपक्ष पर आग बबूला होकर जवाब देते हुए कहा "पियोगे तो मरोगे ही." 

जबकि खुद नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री होते हुए गोपालगंज के खजूरबन्नी में जहरीली शराब पीकर मरे 19 लोगों को मुआवजा दिया गया था. ऐसे में फिर मांग उठा रही है कि जब गोपालगंज वाले मामले में मुआवजा दिया गया तो फिर सारण और सिवान वाले मामले में क्यों नहीं? हालांकि बिहार सरकार अब तक जहरीली शराब पीकर मरने वाले लोगों को मुआवजा नहीं देने को लेकर तटस्थ है जबकि विपक्ष मरने वाले लोगों को 4-4 लाख रुपए देने की बात कह रहा है.

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मुआवजे को लेकर विपक्ष लगातार दे रहा धरना

सरकार की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के अलावा महागठबंधन में नीतीश सरकार की सहयोगी पार्टी भाकपा माले भी मुआवजे की मांग कर रही है. भाकपा माले के नेताओं द्वारा मुआवजे की मांग को लेकर पोस्टर और बैनर के साथ धरना दिया गया. इसके साथ ही सीपीआई माले के नेताओं ने 10-10 लाख रुपए पीड़ितों के परिजनों को देने की मांग की. वहीं दूसरी और भाजपा तो लगातार सरकार पर मुआवजे की मांग को लेकर दबाव बना रही है और शराबबंदी कानून को लेकर सरकार को फिर से समीक्षा करने को कह रही है. भाकपा माले ने तो सरकार से आरोपियों की संपत्ति जप्त कर सारण कांड के मृतक परिजनों को मुआवजा देने की भी मांग की है.

मुआवजे की मांग करना कितनी जायज!

मुआवजे की लगातार उठ रही मांग के बीच यह जानना बेहद जरूरी है कि क्या सरकार से मुआवजा लेना कानूनी रूप से जायज है? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमने वरिष्ठ अधिवक्ता विशाल कुमार सिंह जी से बात की.उन्होंने हमें बताया कि-

 "कानूनी रूप से मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है. बिहार मद्य निषेध अधिनियम 2022  स्पष्ट करता है कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी इसलिए शराब पीने से जो मौत हो रही है वह "वोलेन्टी नॉन फिट इंजुरिया" का मामला है. ऐसे में कोई भी व्यक्ति मुआवजा की सीधे तौर पर मांग नहीं कर सकता."

आखिर "वोलेन्टी नॉन फिट इंजुरिया" है क्या

"वोलेन्टी नॉन फिट इंजुरिया" एक सामान्य कानून सिद्धांत है जो यह बताता है कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर स्वयं को ऐसी स्थिति में रखता है जहां उसे किसी प्रकार की चोट या क्षति पहुंच सकती है, तो ऐसे में वह व्यक्ति इसके लिए खुद ही जिम्मेदार माना जाएगा. जब व्यक्ति को पता है कि उसके द्वारा किए गए कृत्य से कितना नुकसान हो सकता है और इसका क्या परिणाम होगा तो ऐसे में वह व्यक्ति अपनी क्षति के लिए मुआवजे की मांग नहीं कर सकता. इसे  "जोखिम की स्वैच्छिक धारणा" के नाम से भी जाना जाता है.

किन वजहों से नहीं मिल सकता मुआवजा

सरकार द्वारा मुआवजे की मांग को ठुकराने और मुआवजा नहीं देने के पीछे क्या-क्या कारण है, यह समझने के लिए हमने वरिष्ठ अधिवक्ता विशाल कुमार सिंह जी से बात की. उन्होंने हमें बताया कि- 

 "मुआवजे की मांग इसलिए भी नहीं की जा सकती क्योंकि यह सरकार की गलती के कारण घटित नहीं हुआ है. उदाहरण के लिए समझ सकते हैं जैसे कहीं पुल गिर गया, रोड खराब है या फिर नदी का जलस्तर बढ़ा है लेकिन इसके लिए किसी प्रकार की अग्रिम सूचना लोगों को नहीं दी गई है. तब ऐसे में सरकार की गलती है और इन स्थितियों में लोग सरकार से मुआवजे की मांग कर सकते हैं. दूसरी वजह यह भी है मुआवजे को लेकर जो-जो समितियां बनाई गईं हैं जैसे बिहार राज्य मुख्यमंत्री राहतकोष यानी "सीएम राहत फंड" में भी इस खास घटना को लेकर किसी प्रकार की मुआवजे की चर्चा नहीं की गई है."

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क्या नाबालिगों पर यह कानून उतनी ही सख्ती से होगा लागू

बिहार शराबकांड के मृतकों में कुछ बच्चे भी शामिल हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या नाबालिक बच्चों के लिए भी बिहार मद्य निषेध अधिनियम 2022 इतनी की सख्ती से लागू होता है? पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी लोकसभा में खड़े होकर इस प्रश्न को उठाया और बाल संरक्षण आयोग को भी इस मामले में जांच करने की मांग की. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या सच में बच्चों और नाबालिगों पर यह कानून उतनी ही सख्ती से लागू होता है? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमने एक बार फिर वरिष्ठ अधिवक्ता विशाल कुमार सिंह जी से बात की. उन्होंने हमें बताया कि- 

"बिहार मद्य निषेध अधिनियम जो कानून है वह किसी व्यक्ति पर नहीं बल्कि सामान्य रूप से लागू किया गया है. इस कानून में इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि किसी खास उम्र पर यह कानून कितनी सख्ती से लागू होगा. अब जुवेनाइल यानी बच्चों के केस में क्या होता है कि उसके लिए अलग जुवेनाइल प्रोटेक्शन एक्ट है और उसमें बहुत सारी गाइडलाइन दी गई है. इसके अलावा राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की ओर से भी इस मामले में कई गाइडलाइन लागू हैं. लेकिन फिर भी मैं आपको यह कहूंगा कि मुआवजे की मांग अधिकार के रूप में नहीं की जा सकती."

सरकार या आयोग चाहे तो दे सकती है मुआवजा

हमारे एक्सपर्ट और वरिष्ठ अधिवक्ता विशाल कुमार सिंह जी ने हमें बताया कि- 

"यदि सरकार या कोई आयोग जैसे मानवाधिकार या बाल संरक्षण आयोग चाहे तो मानवता के आधार पर मुआवजा दे सकती है. गोपालगंज के खजूरबन्नी में जहरीली शराब पीकर मरने वाले लोगों को भी इसी तर्ज पर मुआवजा दिया गया था. लेकिन आप सरकार से अपने अधिकार के तौर पर इसे देने की मांग नहीं कर सकते और ना ही इसे कोर्ट में चैलेंज कर सकते हैं. यह बहुत स्पष्ट है कि इस मामले में कोई केस भी नहीं बनता."

क्या कहता है संशोधित मद्य निषेध अधिनियम

बिहार मद्य निषेध अधिनियम के अनुसार पहले यदि कोई व्यक्ति पहली बार शराब पिए जाने का दोषी पाया गया तो उसे 1 साल से लेकर 10 साल तक की कैद हो सकती थी. लेकिन अब इसे संशोधित कर दिया गया है. वर्तमान प्रावधान के अनुसार यदि कोई व्यक्ति पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने का दोषी है तो वह 5000 रुपये का दंड भरकर मजिस्ट्रेट कोर्ट के द्वारा छोड़ा जा सकता है.

आखिर कैसे बन जाती है शराब जहरीली और यह क्यों है खतरनाक

यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर सामान्य शराब और जहरीली शराब में क्या अंतर है. दरअसल, सामान्य शराब में इथाइल अल्कोहल की मात्रा होती है जिसका सेवन शरीर के लिए उतना हानिकारक नहीं है. आमतौर पर शराब माफिया इसे ज्यादा नशीला बनाने के लिए इसे भट्टी पर गर्म करते हैं जिससे यह इथाइल अल्कोहल "मिथाइल अल्कोहल यानी मेथेनॉल" बदल जाता है जो शरीर के लिए काफी खतरनाक है. शराब किसी भी रूप में शरीर के लिए लाभप्रद नहीं है. इसका सेवन करने से लीवर और फेफड़ों से संबंधित बीमारी होने का खतरा काफी बढ़ जाता है. इसलिए बेहतर यही है कि स्वास्थ्य और कानून दोनों रूप से शराब से दूरी बनाकर रखी जाए.

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