एकलौते आयुर्वेदिक कॉलेज के अस्तित्व पर खतरा, बंद हो सकती है कई विषयों की पढ़ाई

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पटना के एकमात्र आयुर्वेदिक कॉलेज, राजकीय आयुर्वेद कॉलेज (कदमकुआं) की मान्यता खतरे में है अभी कुछ दिनों पहले ही नेशनल काउंसिल ऑफ इंडियन सिस्टम ऑफ़ मेडिसिन (NCISM) की टीम ने कॉलेज का दौरा किया था. अपनी रिपोर्ट में टीम ने कॉलेज में शिक्षक, लाइब्रेरी, हॉस्टल सहित अन्य कमियों को पूरा करने के लिए तीन महीनों का समय दिया था, जो मई में समाप्त होने वाली है. बिहार में आयुर्वेदिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनायें शुरू की हुई हैं. लेकिन ऐसे में एकमात्र आयुर्वेदिक कॉलेज के अस्तित्व पर ही खतरा चिंताजनक है.

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हमने इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए कॉलेज प्राचार्य, डॉ संपूर्णा नंद तिवारी से बात की तो उन्होंने कहा

आप हमसे नही सरकार से पूछिए.ये कॉलेज हमारा नहीं है. कॉलेज सरकार का है. कॉलेज में शिक्षकों को बहाल करने को लेकर हमने सरकार को लिखा है. अब इसपर सरकार जो भी कदम उठाये वो सरकार की मर्ज़ी है. आप जाइए और अपना सवाल सरकार से कीजिये.  

कदमकुआं स्थित राजकीय आयुर्वेद कॉलेज बिहार का पहला कॉलेज है जहां पीजी के सभी 14 विषयों की पढाई शुरू हुई थी. भारतीय चिकित्सीय पद्धति राष्ट्रीय आयोग, नई दिल्ली ने कॉलेज को इसकी स्वीकृति दी थी. बता दें कि शरीर क्रिया विषय की 07 सीटों के लिए, प्रसूति व स्त्री रोग विषय की 06 सीटों, बाल रोग की 06 सीटों,स्वस्थ्वृत की 06 सीटों, शल्य तंत्र की 07  और पंचकर्म विषय की 06 सीटों के लिए पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स की स्वीकृति दी गई है.

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नए विषयों की स्वीकृति मिलने से अब इस आयुर्वेदिक कॉलेज में सर्जरी के स्पेशलिस्ट डॉक्टर  भी तैयार होंगे. ये डॉक्टर सर्जरी भी कर सकेंगे. वहीं, पंचकर्म में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के तैयार होने से इस क्षेत्र में विशेषज्ञों की कमी को कुछ हद तक पूरा किया जा सकेगा. बता दें कि कॉलेज में पहले से चल रहे आठ पीजी पाठ्यक्रमों में छह-छह सीटें हैं. वहीं, यूजी पाठ्यक्रम में कुल 125 सीटें हैं.

मेडिकल कॉलेज में 60 सीटों पर प्रति विषय दो शिक्षकों की आवश्यकता होती है . इनमे एक प्रोफेसर या रीडर और एक लेक्चरर रैंक के होते हैं. ऐसे में यहां  प्रति विषय चार शिक्षकों की आवश्यकता होती है. राजकीय आयुर्वेद कॉलेज में न्यूनतम 102 शिक्षकों की आवश्यकता है, लेकिन अभी महज 66 कार्यरत है. यानी यहां पर 36 नियुक्तियां अभी भी रिक्त हैं. ये परिस्थिति के स्वास्थ्य विभाग के हर सेक्शन की बनी हुई है. अंग्रेज़ी इलाज में भी डॉक्टर और शिक्षकों की कमी देखने को मिल रही है.

अभी दो महीने पहले ही पीजी के सभी 14 सब्जेक्ट में पढ़ाई शुरू हुई थी लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण इनमें से सात विषयों की पढाई बंद होने की आशंका है, क्योंकि इनके लिए स्वीकृत पद से आधे से कम शिक्षक हैं. इसमें काय चिकित्सा, शरीर रचना विज्ञान, रोग निदान बाल रोग, स्त्री रोग एवं प्रसूति, स्वास्थ्य वृत्त और पंचकर्म शामिल हैं.

सात विषयों की पढ़ाई बंद होने की आशंका को लेकर जब हमने छात्रों से बात कि तो उनमे से ज्यादातर छात्रों को इसबारे में जानकारी भी नहीं थी. इसी क्रम में हमे पीजी के आखिरी साल के छात्र ने नाम न लिखने के शर्त पर बताया कि

कॉलेज में दिक्क़तें तो बहुत हैं. जैसे आप देख ही रहे होंगे कि यहां का कैंपस बहुत छोटा है. साथ ही स्टूडेंट्स को क्लास के बाद बैठने के लिए कोई कॉमन रूम नही है. लड़कियों के लिए तो कॉमन रूम है पर उसमें जगह भी काफ़ी कम है और हमारे लिए तो वो भी नहीं है. हमें क्लास के बाद कॉरिडोर में इधर से उधर घूमते रहना पड़ता हैं.

आगे हमने जब उनसे पूछा की क्या आपकों पता है कि आपके कॉलेज में पीजी के कुछ विषयों की पढ़ाई बंद होने की आशंका है क्या आप लोगों ने इस बारे में कॉलेज प्रशासन से बात की है तो उनका कहना था

हमने पिछले हफ्ते प्रिंसिपल से बात की तो उन्होंने कहा था की हमने प्रक्रिया शुरू कर दी है. शिक्षकों की कमी की वजह से हम लोग अच्छे से पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं. जिस गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बारे में हम सोच कर आये थे वो शिक्षा से हम वंचित ही हैं. लेकिन प्रशासन को इससे फर्क नहीं पड़ता है. हमलोग डॉक्टर तो बन जायेंगे लेकिन बिना अच्छे मार्गदर्शन के.

राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज में लड़कों के लिए दो और लड़कियों के लिए एक हॉस्टल है. जिसमें बेडो की संख्या पर्याप्त नहीं है. यहां 154 बेड है लेकिन छात्रों की संख्या 691 है. ऐसे में बाकी के छात्रों को बाहर रूम लेकर रहना पड़ता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ग्लोबल आयुर्वेदा फेस्टिवल में आयुर्वेद के कई लाभ को गिना रहे थे. लेकिन बिहार के आयुर्वेदिक स्वास्थ्य की स्थिति की तस्वीर ये बता रही है कि आयुर्वेदिक स्वास्थ्य व्यवस्था कितनी पिछड़ रही है.  

(इस आर्टिकल में तस्वीरों की कमी है. क्योंकि प्राचार्य ने डेमोक्रेटिक चरखा की टीम को कॉलेज की किसी भी तरह की तस्वीर लेने से साफ़ मना कर दिया था.)