सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए भवन, पानी और शौचालय की सुविधा भी नहीं

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    किसी भी राज्य के विकास में सबसे अहम जो चीजें होती हैं, उनमें शिक्षा व स्वास्थ्य का अहम रोल होता है। विकास व्यवस्था को देखने के लिए अगर स्कूलों पर नजर ली जाए तो सारे कहानी खुद ब खुद सामने आ जाएगी। बिहार में एक तरफ सरकार जहां शिक्षा में बदलाव को लेकर आमूलचूल परिवर्तन की बात कहती है, वहीं दूसरी तरफ राज्य में कई ऐसे स्कूल हैं। जिनके पास अपना कोई भवन नहीं है।

    शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार बिहार में प्राथमिक स्कूलों की संख्या 42 हजार 573 के करीब है। कुछ दिन पहले प्रमुख विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं द्वारा एक प्रेस कांफ्रेंस कर के यह जानकारी दी गयी थी कि इन स्कूलों में करीब 20 हजार 340 स्कूल ऐसे हैं, जिन्हें राजद के शासन में खोला गया था। उनका दावा था कि तब दलितों, पिछड़ी-अतिपिछड़ी एवं अल्पसंख्यक बस्तियों में प्रत्येक एक किमी पर प्राथमिक स्कूल खोले गए थे। गौर करने वाली बात यह कि इन स्कूलों में 12,619 स्कूलों के भवन राजद सरकार ने बनवाए थे। बाकी 7721 स्कूलों में मात्र 632 के भवन ही एनडीए शासन में बन पाए। अभी भी 7089 स्कूलों के पास भवन नहीं हैं। इसी तरह 19 हजार 604 प्राथमिक स्कूलों को मध्य विद्यालय में उत्क्रमित किया गया। वहीं दूसरी जानकारी के अनुसार सूबे में कुल स्कूलों की संख्या 72,663 स्कूल हैं, इनमें सरकारी प्राइमरी स्कूलों की संख्या 42,573 हैं, जबकि 25,587 अपर प्राइमरी स्कूल, 2286 सेकंड्री स्कूल और 2217 सीनियर सेकंड्री स्कूल हैं.

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    बिहार की राजधानी पटना के सबसे हाई-फ़ाई इलाकों में से एक है कंकडबाग का लोहियानगर। इस इलाके में सभी सुविधाएं मौजूद हैं। इसी लोहियानगर में रघुनाथपुर सरकारी विद्यालय है जहां पर एक स्कूल की बिल्डिंग में 5 सरकारी स्कूल संचालित किया जाता है। बच्चों के बैठने की जगह मौजूद नहीं है तो बच्चों की पढ़ाई बरामदे में ज़मीन पर बैठाकर होती है। एक कमरे में 3-4 कक्षाओं का संचालन किया जाता है। इन स्कूलों में जगह की कमी तो है ही साथ ही सभी बुनयादी ज़रूरतों की चीज़ भी नदारद है। इन स्कूल में एक भी शौचालय या पीने का पानी भी मौजूद नहीं है। छात्र-छात्राओं को बगल की मस्जिद से पीने का पानी लेने जाना पड़ता है। 

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    अपने भवन में स्कूलों के संचालन नहीं होने से शिक्षा पर तो असर पडा ही है, उन बच्चों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है जो यहां पर पढ़ते हैं।

    सड़क के किनारे, सामुदायिक भवन और किसी अन्य दूसरे स्कूलों के भवन में चलने वालों स्कूल की सबसे अधिक परेशानी मिड-डे-मिल के साथ ही टॉयलेट की होती है। सड़क के किनारे बने स्कूलों में किचन की कोई व्यवस्था नहीं हो पाती है जिससे इसका सीधा असर बच्चों के भोजन पर पडता है और उनको भोजन नहीं मिल पाता है। इसके साथ ही बच्चों को टॉयलेट में परेशानी होती है। टॉयलेट के लिए व आसपास के भवनों या फिर किसी के घर पर निर्भर रहना पडता है।

    मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति द्वारा फरवरी 2020 के आखिरी सप्ताह में संसद में पेश की गयी रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों के आधारभूत ढांचे पर चिंता जाहिर की गई है। रिपोर्ट के अनुसार अभी तक देश के केवल 56 फीसदी सरकारी स्कूलों में ही बिजली की व्यवस्था हो सकी है।

    इसी प्रकार से देश में 57 प्रतिशत से भी कम स्कूलों में खेल-कूद का मैदान है।

    सरकार शिक्षा को सुधारने या फिर शिक्षकों के स्तर को सुधारने , स्कूली शिक्षा को पटरी पर लाने का चाहे लाख दावा कर ले, लेकिन सरकार के दावों की हकीकत मुंगेर जिले में खुल जाती है। जिले के हवेली खड़गपुर ब्लॉक में स्थित इस स्कूल की अलग ही कहानी है।

    स्कूल के एचएम अजित कुमार कहते हैं,

    भवन नहीं होने से न केवल पढ़ाई बल्कि टीचरों के साथ बच्चों के सेहत पर असर पड़ रहा है। हालात ये है कि हर रोज संशय की हालत में टीचरों को पढ़ाना पड़ रहा है और उसी हाल में बच्चों को पढ़ना पड़ता है।  ये स्कूल दरअसल एक सामुदायिक भवन में ऑपरेट हो रहा है। केवल एक कमरा है, जिसमें पहली से 8वीं तक के बच्चों को एक साथ पढ़ाना पड़ता है। ये हमारी मजबूरी है। सारे क्लास के बच्चे एक साथ ही बैठ के पढ़ते हैं। क्योंकि हमारे पास रूम न होने की मजबूरी है। स्कूल में 90 से ज्यादा बच्चे हैं और 5 टीचर हैं। जिनमे एक महिला टीचर है। सबको एक साथ बैठना होता है। जब बच्चों को पढ़ने में  तकलीफ होती है तो मजबूरी में बरामदे में क्लास लगाना पड़ता है। 

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    मार्च 2021 में पटना हाईकोर्ट ने एक तीन सदस्या कमिटी गठित की थी। इसमें अर्चना सिन्हा शाही, अनुकृति जयपुरियार और अमृषा श्रीवास्तव की तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया था. इसका मकसद शौचालय के बुनियादी ढांचे की वास्तविकता जानना था।  समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इन स्कूलों में छात्राओं के लिए शौचालय और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे या तो थे ही नहीं, या फिर फंड की कमी और नियमित सफाईकर्मियों की कमी के कारण बहुत खराब स्थिति में थे। कोर्ट ने कहा कि

    पटना शहर स्मार्ट सिटी में शुमार है और यहां के गर्ल्स स्कूलो में शौचालय नहीं हैजहां शौचालय है तो साफ नहीं है

    ऐसी हालत को देखते हुए पटना हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया है कि वो इन स्थानों पर छात्राओं को सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए धन आवंटन और अन्य आवश्यक कार्रवाई के बारे में व्यक्तिगत क्षमता में जवाब दाखिल करने को कहा है।

    शिक्षा विभाग के आंकड़े देखें तो सिर्फ़ पटना जिला जिसका ज़्यादातर क्षेत्र शहरी है, वहां की स्थिति बहुत बदतर है। जिले के कुल 4,054 स्कूल में से 1,154 स्कूल में शौचालय नहीं है. इन 1154 स्कूल में से 557 यानी तकरीबन आधे स्कूल ऐसे हैं, जो सिर्फ लड़कियों के लिए है।

    ऐसे में जब सरकार के पास बच्चों को पढ़ाने के लिए मूलभूत सुविधा ही नहीं है तो उसमें सब पढ़ें सब बढ़ें का नारा और RTE कानून कितना उपयोगी साबित हो सकता है।