राम मंदिर तो बनवा लीजियेगा लेकिन राम की मर्यादा कब सीखियेगा?
राम और कृष्ण दो ऐसे पौराणिक चरित्र रहे हैं जो अपने बहुत सारे अंतर्विरोधों के बावजूद भारतीय जनमानस में गहराई तक व्याप्त हैं। अकेले राम के जीवन पर जाने कितने महाकाव्य, कथाएँ और फिल्में मिल जाएगी, क्या उत्तर क्या दक्षिण हर जगह उनकी स्वीकार्यता है। आखिर इसके पीछे कुछ तो वजह होगी। राम किसी के लिए मिथक है किसी के लिए भगवान लेकिन उनके चरित्र में कुछ तो है जो वो जनमानस में अब भी मौजूद है, जिन पर जाने कितने कवियों- लेखकों ने अपनी लेखनी चलाई।
लेकिन बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा एक विचारधारा और पार्टी सत्ता के लिए राम की छवि को नुकसान पहुंचा रही है। राम जाने जाते हैं संयम, त्याग, विनयशीलता, पित्रभक्ति, आदर्श भाई के रूप में और आज उनकी क्या छवि प्रस्तुत की जा रही है? जो राम कई दिनों तक समुद्र की पूजा करने के बाद कोई उपाय न देख कर धनुष उठाते हैं, जिस सौतेली माँ के कारण वन जाते हैं उससे सबसे पहले वन जाते समय मिलने जाते हैं। जब थोड़ी सी संपत्ति के लिए भाइयों-भाइयों में खून खराबा देखता हूँ तो राम का राजगद्दी त्याग उनके हृदय की विशालता का अनुमान देता है।
एक राम थे जिन्होंने मिला हुआ राजपाट हंसते-हंसते त्याग दिया और वन गए, श्रम किया, कुटिया बनाई, कंदमूल फल खाए दूसरे तरफ उनके नाम पर सरकार बनाने वाले लोग विधायक खरीदने से लेकर हत्या तक करा देते हैं, आज के नेताओं का दलितों और आदिवासियों के साथ फर्जी खाना खाने का ढोंग देखिए दूसरी तरफ राम और शबरी का स्वाभाविक प्रेम देखिए कील-किरात, निषाद उनके मित्र, केवट उनके भरत के समान प्रिय भाई थे और ये मित्रता सत्ता प्राप्ति का गठबंधन नहीं था इसका आधार प्रेम था। जो व्यक्ति एक तीर से समुंदर सुखा सकता था, जिसके पास हनुमान जैसा भक्त था जिसने पूरी लंका अकेले जला दी उसे कील, किरात, सुग्रीव, और वन में निवास करने वाले लोगों से मित्रता की क्या जरूरत थी?
इसके पीछे सबको साथ लेकर चलने का भाव ही प्रधान था। जब कृष्ण कौरवों के यहाँ आते हैं तो वो दुर्योधन के 56 भोग के बदले दासी पुत्र विदुर के यहाँ खाना खाते हैं क्योंकि वो प्रेम के भूखे थे धन और ऐश्वर्य के नहीं। रावण जब मर रहा था राम ने लक्ष्मण को रावण के पास आशीर्वाद लेने भेजा था अपने सबसे बड़े शत्रु का इतना सम्मान किस चरित्र में आपको मिलेगा? सीता विवाह प्रसंग में जब लक्ष्मण परशुराम के प्रति उत्तेजित होते हैं तो राम उन्हें संयत करने की कोशिश करते रहते हैं। निःसन्देह राम के चरित्र में कुछ धब्बे भी है ये उस युग की सीमा है। आज उनके तथाकथित अनुयायी क्या कर रहे वो बलात्कार और हत्या करके जय श्री राम का नारा लगा रहे, उनका नाम खंजर से लिख रहे और अपने को असली हिन्दू समझ रहे।मैं अवध क्षेत्र से हूँ वहाँ लोग कुछ समय पहले तक मिलने पर जय राम बोलते थे ये एक सम्बोधन था पर अब वो जय श्रीराम हो गया है। ये केवल मात्रा का अंतर नहीं है राम की लोक में छवि का अंतर है।
जब आप राम नवमी में हाथ में तलवार और त्रिशूल लेकर जय श्रीराम का हुंकार भरते हैं उस समय आपकी आस्था राम में नहीं एक पार्टी में ज्यादा दिखती है। राम के जीवन के सारे मार्मिक प्रसंग की तस्वीरें सिरे से गायब है। मुझे तो सीता के पैर से कांटे निकालते राम, गिलहरी को स्पर्श करते राम, सीता के लिए वन-वन रोते राम, कैकई से चित्रकूट में संवाद करते राम, बचपन के खेल में भाइयों से हार जाने वाले राम अधिक प्रिय हैं। लेकिन अब उनके हाथ में केवल धनुष पकड़ा दिया गया है जबकि धनुष तो वो एकदम आखिरी में हाथ में लेते थे जब कोई विकल्प नहीं बचता था।
राम के नाम पर वही लोग ज्यादा हुंकार भरते हैं जिन्हें कुर्सी चाहिए या जिन्हें उनके नाम पर व्यापार करना है। भगवा कभी त्याग का रंग था आज भोग का रंग है इसीलिए कई सारे योगी मठ छोड़कर राजधानी पहुँच रहे हैं। राम, तिरंगा, भारत माता की जय इन प्रतीकों का पिछले कुछ वर्षों में बहुत निकृष्ट कार्यों के लिए इस्तेमाल हुआ है। हत्यारे और रेपिस्ट के समर्थन में जय श्री राम बोलने वाले रामभक्त कैसे हो सकते हैं? और हाँ जो लोग ये समझते हैं कि समाज में राम और हिंदुओं का अस्तित्व किसी पार्टी और नेता की वजह से है उनसे मुझे सहानुभूति है उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूँ ।
(- अभिषेक सिंह स्वतंत्र लेखक हैं और ELFU के शोधार्थी भी हैं.)