ऑनलाइन क्लास डिजिटल भेदभाव को बढ़ावा देता है: दिल्ली हाईकोर्ट
स्कूल मुहैया कराये ऑनलाइन क्लास के उपकरण
दिल्ली उच्च न्यालय ने कल यानी शुक्रवार को निजी एवं सरकारी स्कूलों को निर्देश दिया कि वे गरीब बच्चों को ऑनलाइन क्लास के लिए उपकरण और इंटरनेट पैकेज मुहैया कराएं। जैसा कि सबको पता ही है कि कोरोना काल में प्राइवेट स्कूलों की क्लास अब ऑनलाइन हो गई हैं। यही वजह है कि EWS कैटेगरी के छात्रों के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों को लैपटॉप या मोबाइल की सुविधा उपलब्ध कराने का आदेश दिया है।
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अदालत के निर्देश
अदालत ने कहा कि ऐसी सुविधाओं की कमी बच्चों को मूलभूत शिक्षा प्राप्त करने से रोकती है। न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संजीव नरुला की पीठ ने क़हा कि गैर वित्तपोषित निजी स्कूल, शिक्षा के अधिकार कानून-2009 के तहत उपकरण और इंटरनेट पैकेज खरीदने पर आई तर्कसंगत लागत की प्रतिपूर्ति राज्य से प्राप्त करने के योग्य हैं, भले ही राज्य यह सुविधा उसके छात्रों को मुहैया नहीं कराती है।’’ पीठ ने गरीब और वंचित विद्यार्थियों की पहचान करने और उपकरणों की आपूर्ति करने की सुचारु प्रक्रिया के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश दिया।
इंटरनेट की सुविधा नहीं
जैसा कि भारत मे कोरोना वायरस की वजह से भारत में स्कूल बंद हैं और ज्यादातर स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है। लेकिन समस्या ये आ रही है कि भारत में सभी परिवारों की इंटरनेट तक पहुंच नहीं है। वहीं कई अभिभावक आर्थिक स्थितियों की वजह से अपने बच्चों को स्मार्टफोन या लैप टॉप उपलब्ध नहीं करा सकते। इसी वजह से पीठ ने गरीब और वंचित विद्यार्थियों की पहचान करने और उपकरणों की आपूर्ति करने की सुचारु प्रक्रिया के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन करने का निर्देश दिया। समिति में केंद्र के शिक्षा सचिव या उनके प्रतिनिधि, दिल्ली सरकार के शिक्षा सचिव या प्रतिनिधि और निजी स्कूलों का प्रतिनिधि शामिल होंगे।
अदालत ने यह भी क़हा कि समिति गरीब और वंचित विद्यार्थियों को दिए जाने वाले उपकरण और इंटरनेट पैकेज के मानक की पहचान करने के लिए मानक परिचालन प्रकिया (एचओपी) भी बनाएगी। पीठ ने कहा कि इससे सभी गरीब और वंचित विद्यार्थियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण और इंटरनेट पैकेज में एकरूपता सुनिश्चित हो सकेगी। यह फैसला अदालत ने गैर सरकारी संगठन ‘जस्टिस फॉर ऑल’ की जनहित याचिका पर सुनाया। संगठन ने अधिवक्ता खगेश झा के जरिये दाखिल याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकार को गरीब बच्चों को मोबाइल फोन, लैपटॉप या टैबलेट मुहैया कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया था ताकि वे भी कोविड-19 लॉकडॉउन की वजह से चल रही ऑनलाइन कक्षाओं का लाभ ले सके।
कहां से शुरू हुई याचिका?
हाल ही में अभिभावक मंच ने सरकार से मांग की थी कि वह ऑनलाइन क्लास के लिए गरीब छात्रों को मोबाइल सुविधा दे और सभी अभिभावकों के पास बच्चों की ऑनलाइन कक्षाओं के लिए नए मोबाइल खरीदने व हर महीने के न्यूनतम डेटा प्लान की रकम को फीस का हिस्सा मानकर उतनी रकम की कुल फीस से कटौती की जाए। मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा का कहना है कि ऑनलाइन कक्षाओं के लिए गरीब छात्रों को भारी दिक्कत झेलनी पड़ रही है। हिमाचल प्रदेश स्टेट कोऑपरेटिव बैंक से हजारों अभिभावको व छात्रों ने ऑनलाइन कक्षाओं के लिए कर्ज तक लिए है।
जहां हर रोज़ ऑनलाइन क्लासेस के लिए कम से कम दो जीबी डेटा की जरूरत पड़ती है। इसके लिए मोबाइल कंपनियों का न्यूनतम डेटा प्लान 600 रुपए का है। यह अभिभावकों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ है। इस तरह अभिभावकों पर भारी आर्थिक दबाव है।
और क्या अन्य आदेश दिए अदालत
-गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा कि फीस तय करने की सरकार के पास पूर्ण सत्ता है, सरकार अदालत को बीच में क्यों ला रही है। 25 फीसदी फीस घटाने के फैसले को स्कूल संचालकों के मानने से इनकार करने के बाद सरकार ने हाईकोर्ट में अर्जी लगाई थी।
– दिल्ली सरकार ने आदेश जारी किया है की दिल्ली में पांच अक्तूबर तक सभी स्कूल बंद रहेंगे। इससे पहले 31 सितंबर तक स्कूल बंद रखने के आदेश थे।
– दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि छात्रों के पैरेंट्स से “वर्तमान लॉकडाउन की पेंडेंसी के दौरान” वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क नहीं लिया जा सकता है, जब तक कि स्कूलों को फिर से खोला नहीं जाए। एक निजी स्कूल के पैरेंट्स द्वारा स्थानांतरित याचिका पर सुनवाई करते हुए 25 अगस्त के आदेश में न्यायमूर्ति जयंत नाथ ने अपनी राय व्यक्त किया था। याचिका में कहा गया था कि प्राइवेट स्कूल संघ ने जुलाई से ट्यूशन फीस के साथ वार्षिक और विकास शुल्क लेना शुरू कर दिया था