बिहार चुनाव में हर घर में बिजली और शौचालय को लेकर सरकार का दावा, जानिए ज़मीनी हकीक़त
बिहार चुनाव में हर घर में बिजली की सच्चाई
बिहार विधानसभा चुनाव का डंका बज चुका है और बिहार की नीतीश सरकार का कहना है, कि उन्होंने पिछले चुनाव सब में अपने किए गए वादों को पूरा किया है। सरकार द्वारा किए जा रहे इन दावों की सत्यता की जांच के लिए विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों और वहां मौजूद झुग्गी बस्तियों का दौरा किया गया।
बाजार समिति, पटना
पटना के बाजार समिति की झुग्गी बस्ती का दौरा करने पर पता चला कि सरकार द्वारा किए जा रहे हैं बड़े-बड़े दावे यहां झूठे नजर आते हैं। इस इलाके के वार्ड पार्षद सतीश गुप्ता है।
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बिहार चुनाव में हर घर में शौचालय का सच
भारत सरकार के द्वारा 2 अक्टूबर 2014 को ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की शुरुआत की गई थी। योजना का उद्देश्य था शौचालयों का निर्माण तथा देश को खुले में शौच से मुक्त कराना।
2 अक्टूबर 2019 यह घोषणा की गई कि भारत खुले में शौच (ODF) से मुक्त हो चुका है। इन झुग्गी बस्तियों का जब दौरा किया गया तब पता चला कि यहां प्राइवेट शौचालय है और उनकी स्थिति बेहद ही घटिया है।
यहां तक बस्ती के सभी लोगों को इस शौचालय का उपयोग करने के लिए 5 रुपये का भुगतान करना होता है। ऐसे में इस बात की ओर गौर किया जाना चाहिए कि जिन लोगों के पास खाने को एक वक्त की रोटी नहीं है वह शौचालय के लिए 5-5 रुपए कहां से लाये।
वही इलाके में साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं दिखी। लोगों का कहना है कि वह एक बार सिर्फ शाम के समय यहाँ सफाई की जाती है, वही क्षेत्र में कूड़ा फेंकने की भी कोई व्यवस्था नहीं दिखाई दी।
लॉकडाउन में राशन वितरण
बिहार सरकार द्वारा दावा किया गया था कि राशन कार्ड धारी प्रति परिवार 1000 रुपए की राशि दी जाएगी लेकिन लोगों को पैसे तो दूर यहां राशन तक मुहैया नहीं करवाया जाता।
लोगों से बातचीत करने पर पता चला है कि वहां आधे से ज्यादा लोगों के पास तो राशन कार्ड ही नहीं है, जिनके पास है उन्हें राशन दिया नहीं जाता।
एक या दो परिवार होगा जिन्हें राशन मिला होगा। कई परिवार तो ऐसे थे जिन्हें राशन कार्ड की कोई जानकारी ही नहीं थी।
कई लोगों ने तो यह भी बताया कि उन्हें विधवा और बुजुर्ग पेंशन तक नहीं मिलता। ऐसे में यह सवाल उठता है, कि सरकार द्वारा लाए जा रहे बड़े-बड़े आर्थिक पैकेज और यह दावे क्यों ज़मीनी स्तर पर आकर हवा हो जाते हैं।
बारिश और जल जमाव
बारिश के समय क्षेत्र की स्थिति और दयनीय हो जाती है पूरा इलाक़ा नाले में तब्दील हो जाता है तथा लोगों के घर डूब जाते हैं, जिस वजह से उन्हें पुल का आसरा लेना पड़ता है।
बिहार के पटना में चितकौड़ा पुल के नीचे और रेलवे ट्रैक के दूसरी ओर झुग्गी बस्तियों का दौरा किया गया। क्षेत्र के वार्ड पार्षद सुनील यादव है।
इन झुग्गी बस्तियों में रहने वाले ज्यादातर लोग या तो कूड़ा बिन कर अपना गुजारा करते हैं या तो भीख मांग कर। लेकिन कोरोनाकाल में इनका यह काम बिल्कुल बंद हो चुका है।
सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं लाई जाती हैं कभी इंदिरा आवास योजना तो कभी अटल आवास योजना इन योजनाओं में दावा किया जाता है कि लोगों को घर दिया जाएगा लेकिन इन झुग्गी बस्तियों में तो दावों के उलट तस्वीर नजर आती है।
यह लोग त्रिपाल-लक्कड़ आदि से छोटी-छोटी झुग्गियां बनाकर निवास कर रहे हैं।
मास्क और सेनेटाइजर की पहुंच नही
कोरोना को लेकर बिहार की हालत किसी से छुपी नहीं है। राज्य में कुल मामलों की संख्या 1,85,707 हो चुकी है। ऐसे में इस चीज पर गौर किया जाना चाहिए कि सरकार कोरोना संकट से बचाव के लिए लोगों को कौन-सी सुविधाएं मुहैया करवा रही है।
चितकौड़ा पुल के नीचे मौजूद लोगों से बात करने पर पता चला कि वहां सरकार द्वारा मास्क और सैनिटाइजर का वितरण नहीं करवाया गया है।
इन गरीब लोगों के लिए मास्क व सैनिटाइजर खरीदना संभव नहीं है। लोगों का कहना है कि जहां खाने के पैसे नहीं है वहां यह मास्क कहां से खरी देंगे।
स्वच्छ्ता मिशन और इसकी सत्यता
सरकार द्वारा स्वच्छ भारत की संकल्पना लाई जाती है जिसे लेकर बड़े-बड़े भाषण दिए जाते हैं। लेकिन इन बस्तियों को देखकर यह साफ हो जाता है कि यह दावे कितने झूठे हैं, यहां की सड़के गंदगी से सनी हुई है। लोग इन परिस्थितियों में अपना जीवन बसर करने को मजबूर हैं।
स्वच्छ पेयजल
यहां लोगों के पास पानी का कोई स्रोत नहीं है और खाना बनाने के लिए पानी भी बाथरुम से भरते हैं।
ऐसा पानी पीने से लोगों में कई बीमारियों का खतरा ज्यादा हो जाता है। लेकिन फिर भी वे इस पानी को पीने में मजबूर हैं।
लोगों के मन में सरकार को लेकर गुस्सा साफ तौर पर देखा जा सकता है। कुछ लोगों का यहां तक कहना है कि वह आने वाले बिहार चुनावों में वोट नहीं देंगे।
वे कहते हैं कि चुनावों के समय तो 10-10 लोग वोट मांगने के लिए उनके पास आ जाते हैं, लेकिन जब सुविधाएँ प्रदान करनी होती है तो कोई उनकी खोज खबर लेने नहीं आता।
बांकीपुर विधानसभा
बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र का अंटाघाट इलाक़ा जो कि बांकीपुर क्लब के दूसरी ओर में स्थित है, यह इलाक़ा भाजपा विधायक नितिन नवीन के अंतर्गत आता है।
इलाके की वार्ड काउंसलर भारती देवी है जिनका घर इसी इलाके के करीब है। इलाके के लोगों का कहना है कि विधायक तो दूर की बात यहां वार्ड काउंसलर तक कभी इस जगह का दौरा करने नहीं आई।
राशन की पहुंच के दावे के फैक्ट चेक
इलाके में लोगों से राशन की उपलब्धता को लेकर जब सवाल किए गए तो उनमें से कई लोगों ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान कोई राशन नहीं दिया गया और जिन लोगों ने कहा कि उन्हें राशन दिया गया है उन्होंने बताया कि वे राशन खाने लायक ही नहीं था।
वहीं इन लोगों की झुग्गियों को तोड़ा जा रहा है इनके पास ऐसी कोई जगह नहीं जहां वे रह सके। उनका एकमात्र सहारा यह झुग्गियां है जिन्हें अब नष्ट किया जा रहा है।
बिहार चुनाव की डिजटल भारत की संकल्पना और हकीकत
नेताओं द्वारा बड़े भाषण दिए जाते हैं कि भारत को डिजिटल भारत में तब्दील किया जाएगा।
लॉकडाउन में बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे और ऑनलाइन क्लास लेने के लिए उनके माता-पिता इतने महंगे फोन नही खरीद सकते।
इससे यह सवाल उठता है कि इस स्थिति में भारत डिजिटल भारत में कैसे तब्दील किया जा सकता है।
बिहार चुनाव में दावे स्मार्ट सिटी और पेरिस के सपने
सरकारी दावा करती है कि बिहार को स्मार्ट सिटी और पेरिस जैसा बनाया जाएगा। लेकिन इन झुग्गियों को देखने के बाद बिहार के विकास का दोहरा चेहरा सामने आता है।
यहां लोग झुग्गियों में निवास कर रहे हैं जब बारिश होती है तो यह पूरा इलाक़ा पानी में भर जाता है। छते टपकती हैं तथा सड़के तो कीचड़ से सन जाती हैं।
इन सभी झुग्गी बस्तियों में राशन की पहुंच नहीं है और जिन चंद लोगों को राशन मिलता है वह राशन खाने लायक नहीं होता क्योंकि इनमें ईट-मिट्टी चुरा तथा कीड़े लगे हुए चावल मिले हुए होते हैं।
शौचालय के लिए भी बस्ती के लोगों ने आपस में पैसे मिलाकर इसकी व्यवस्था की। यहां निजी संस्था तो मदद कर भी देते हैं लेकिन सरकार की तरफ से कोई मदद यहां नहीं पहुँचाई जाती
कोरोना महामारी की वजह से भारत विश्व में दूसरे नंबर पर आ चुका है लेकिन फिर भी लोगों के स्वास्थ्य को देखते हुए सरकार द्वारा किसी प्रकार का कदम नहीं उठाया जाता।
इन लोगों को ना तो मास्क मुहैया कराए जाते हैं ना ही सैनिटाइजर और इन सब को खरीदने के लिए लोगों के पास पैसे भी नहीं है।
ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि भारत आखिर किस ओर जा रहा है। क्यों सरकारों के भाषण में है यह विकास नजर आता है लेकिन जमीनी स्तर पर यह सब झूठे नजर आते हैं।