आरटीआई के15 वर्ष पूरे, क्या आज आरटीआई अपने मकसद में कामयाब हुई?
आरटीआई के 15 साल पूरे, अब भी काफी बदलाव की है जरुरत
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है ,और हमारे देश में नागरिकों को बहुत तरह से अधिकार प्राप्त है जो कि हमारे जीवन स्तर को अच्छा बनाए रखने के लिए हमे दिए गए है। इनके साथ ही साथ बहुत से ऐसे क़ानून भी है जो ये सुनिश्चित करते है कि भारत की हर नागरिक को उनके अधिकार से जुड़ी जानकारियाँ मिल सके और आरटीआई उनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं।
हर साल 12 अक्टूबर को मनाया जाता है आरटीआई दिवस
इस महीने 12 अक्टूबर को सूचना के अधिकार के लागू हुए 15 वर्ष हो गए। इन 15 सालों में इस कानून से हमारे देश में काफी बदलाव देखने को मिला हैं। आज भी आए दिन इस क़ानून के वजह से कभी सरकार विवादों में रहती है, कभी किसी नए घोटाला की राज खुलती है, कभी जानकारी मांगने पर लोगो की जान तक जोखिम में चली जाती है।
यह क़ानून सरकार के कामकाज पर निगरानी रखने का एक महत्वपूर्ण जरिया हैं। शायद इसलिए ही जब कोई नई सरकार आती है, क़ानून में संशोधन करके या समय पर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति न करके या कई महत्वपूर्ण विभागों को इसके दायरे से बाहर रखकर इसे कमजोर करने की कोशिश करती करती रहती है।
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इस क़ानून के 15 वर्ष पूरे होने पर पारदर्शिता एवं भ्रष्टाचार की दिशा में काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (टीआईआई) ने एक रिपोर्ट जारी किया हैं। इस रिपोर्ट में सूचना के अधिकार से जुड़े कई बातों जैसे आवेदनों की संख्या, सरकार द्वारा दिए गए जवाब, इसकी कार्यप्रणाली, इसपर लगाए गए फाइन, केंद्र और राज्यों में आयोग में खाली पद आदि के बारे जानकारी दी गई है।
आरटीआई एक्ट के तहत सबसे ज्यादा आवेदन प्राप्त करने वाले बड़े राज्यों में पहले नंबर पर महाराष्ट्र , छोटे में हिमाचल और त्रिपुरा
टीआईआई की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2005-06 से लेकर 2019-20 तक केंद्र एवं राज्य सरकारों में कुल 3.33 करोड़ आरटीआई आवेदन दायर किए गए हैं। हालांकि ये आरटीआई आवेदनों की न्यूनतम संख्या है, क्योंकि इसमें उत्तर प्रदेश और तेलंगाना के आंकड़े शामिल नहीं है। इसके साथ ही इसमें कई राज्यों का अपडेटेड आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। न्यूनतम 3.33 करोड़ आवेदनों कि बात करे तो इनमें से सबसे ज्यादा आवेदन केंद्र सरकार को दिए गए है ।
आरटीआई एक्ट के तहत जन सूचना अधिकारी द्वारा सूचना देने से इनकार किए जाने पर क़ानून में ये व्यवस्था की बात करे तो साल 2005-06 से लेकर 2019-20 तक केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों में कुल 21.86 अपील एवं शिकायतें दायर की गई हैं। जिनमे सबसे ज्यादा तमिलनाडु सूचना आयोग में 461,812 अपील एवं शिकायतें दायर की गई हैं, इसके बाद केंद्रीय सूचना आयोग का स्थान हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद देश भर के सूचना आयोगों में 38 पद ख़ाली हैं
जुर्माने की बात करे तो सूचना आयोग आम तौर पर जुर्माना लगाने पर ढिलाई बरतते हैं, जिसके चलते सूचना देने से इनकार, गलत सूचना, देरी से सूचना देने जैसे मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है। सूचना आयोग की भर्ती मामले में में कोई परिवर्तन नहीं आया है। केंद्र और राज्य के सूचना आयोगों में कई महत्वपूर्ण पद खाली पड़े हुए हैं।
सूचना का अधिकार निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार के उन्मूलन का कारगर हथियार है, लेकिन शुरू के कुछ वर्ष के बाद इस क़ानून की धार को सभी सरकारों ने कम किया है, कोर्ट ने भी अपने फ़ैसलों में आरटीआई एक्ट को मजबूत करने के बजाय इस पर ब्रेक लगाने का काम किया है। अगर आरटीआई के पालन को लेकर जारी वैश्विक रैंकिंग में भारत का स्थान की बात करे तो उसने लगातार गिरावट दर्ज़ की जा रही हैं।