आज है अशफाक उल्ला खान की जयंती,जिन्होंने देश के लिए हंसते-हंसते फांसी लगा लिया
अशफाक उल्ला खान
जिंदगी बाद–ए–फना तुझको मिलेगी ‘हसरत’ तेरा जीना तेरे मरने की बदौलत होगा”
यह पंक्तियां अशफाक उल्ला खान की है, जिसने हंसते-हंसते देश के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा और स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी का जन्मदिन आज ही के दिन यानी 22 अक्टूबर 1900 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। आज उनकी 120 वी जयंती है।
उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्लाह खान और उनकी माता का नाम मजहूर-उल-निसा था। अपने चार भाइयों में से वे सबसे छोटे थे। इन का पूरा परिवार सरकारी नौकरियों में कार्यरत थे। लेकिन इन सब से उलट अशफाक नौकरी नहीं बल्कि देश के लिए कुछ करना चाहते थे।
वह सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं थे बल्कि एक उम्दा शायर भी थे। इसके अलावा उन्हें घुड़सवारी, निशानेबाजी और तैराकी का भी खूब शौक था। अशफाक का उर्दू उपनाम ‘हसरत’ था। वह उर्दू के अलावा हिंदी और अंग्रेजी में आलेख और कविताएं लिखते थे। खान की रचना ‘कस ली है कमर अब तो कुछ करके दिखाएंगे, आजाद ही हो लेंगे या सर ही कटा देंगे।“ काफी चर्चित है।
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1927 में फैजाबाद में हुई अशफाक को फांसी
अशफाक ने 25 साल की उम्र में अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ ब्रिटिश सरकार के नाक के नीचे से उनका सरकारी खजाना लूट लिया। इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार को धूल चाटनी पड़ी। इसे काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश सरकार ने अपनी इस हार का बदला लेने के लिए अशफाक पर अभियोग चलाया तथा उन्हें 19 दिसंबर 1927 में फैजाबाद जेल में फांसी दे दिया गया।
जब अशफाक खान को फांसी के तख्ते पर ले जाया गया और उनकी बेड़ियां खोली गई, तो उन्होंने फांसी के फंदे को चूमते हुए कहा कि, “ किसी आदमी की हत्या से मेरे हाथ गंदे नहीं है, मेरे खिलाफ तय किए गए आरोप, नंगे झूठे है अल्लाह मुझे न्याय दे देंगे।“ अशफाक को फांसी दे दिया गया। लेकिन उनका नाम लोगों के जहन और हिंदुस्तान के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। उन्हीं की याद में उत्तर प्रदेश फैजाबाद जेल में अमर शहीद अशफाक उल्ला खान द्वार बनाया गया है।
उन की दोस्ती हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक
मौजूदा समय में जब लोग धर्म और जाति के नाम पर एक दूसरे को काटने के लिए तैयार रहते हैं। इस समय हमें अशफाक और बिस्मिल की दोस्ती को याद करना चाहिए जिनकी दोस्ती हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए एक मिसाल बन गई थी। अशफाक और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल काफी सच्चे दोस्त थे।
मैनपुरी षडयंत्र के मामले में दोनों की दोस्ती हुई और दोनों ही क्रांति की दुनिया में एक साथ होलिए। दोनों ही दोस्तों ने 8 अन्य लोगों समेत मिलकर काकोरी के पास की ट्रेन लूटी थी। जब भी अशफाक का नाम आता है तो उनके साथ बिस्मिल का नाम जुड़ जाता है।