बिहार में कोशी नदी के तटबंध का विस्तारीकरण सिर्फ कुछ लोगो के लिए ही लाभदायक
कोसी नदी के तटबंध का विस्तारीकरण
कोसी नदी को ‘बिहार का अभिशाप’ कहा जाता है। इस कारण है, इसमें आने वाली बाढ जो बिहार में बहुत तबाही मचाती है। हाल ही में बिहार में आयी बाढ़ ने कितनी तबाही मचाई इसकी तस्वीर हम सब ने देखी थी। कोसी के बाढ़ से तबाही नई बात नहीं है, सदियों से ऐसा होते आ रहा है, लेकिन किसी भी सरकार ने इसका कोई स्थाई समाधान नहीं निकालना चाहा।
लेकिन वह कहते है ना नेताओं को लोगो की परेशानी चुनाव के वक्त जरूर दिखती है। ऐसा ही कुछ बिहार में हुआ। यहां बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के महज 15 दिन पहले यानी 10 सितंबर को बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने मधुबनी जिले के बैद्यनाथपुर में विस्तारित सिकरहट्टा-मझारी निम्न तटबंध को परसौनी से महिषा तक 4.60 किलोमीटर और आगे बनाने के कार्य का शिलान्यास किया।
जल संसाधन मंत्री के अनुसार इस कार्य से 56 गांवों की बड़ी आबादी को बाढ़ राहत से राहत मिलेगी। इन दोनों स्थानों पर कोसी और उसकी सहायक नदियों पर बने तटबंधों की लंबाई में अब 10 किलोमीटर का और इज़ाफ़ा हो जाएगा। और इससे कई गांव के लोग बाढ़ से बच सकेंगे। तटबंध के विस्तारीकरण की योजना की बात करे तो इससे सिर्फ कुछ गांवों को ही बाढ़ से राहत मिलेगी। क्यों की तटबंध के विस्तार के बाद इसके अंदर काफी गांव रह जाएंगे और बाढ़ की स्थित में इन गांवों की हालत और खराब होती जाएगी।
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इन गावों के कई लोगो का घर पहले ही नदी के बहाव में समा चुका है और वो लोग अब जंगल में घर बसाने या किसी और के घरों में रहने को मज़बूर हैं। विस्थापितों ने बात करते हुए इस बारे में बताया कि जब तटबंध के विस्तारीकरण का कार्य जब हो रहा था।
तब हम लोग मंत्री और विधायक जी से मिलकर अपनी परेशानी बताई थी लेकिन वे सिर्फ आश्वासन देकर चले गए। कोसी नदी की क्षेत्र में आने वाली गांवो की बात करे तो इनमें सुपौल, सहरसा, मधुबनी और दरभंगा जिले के आधा दर्जन से अधिक विधानसभा क्षेत्र आते हैं और बाढ़-कटान, राहत कार्य, तटबंध और तटबंधों के सुरक्षा कार्य इन विधानसभा क्षेत्रों की राजनीति को प्रभावित करते हैं।
कोसी के वजह से विस्थापित हो चुके है हजारों लोग
कोसी नदी के बाढ़ के वजह से बिहार की स्थिति देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी खराब है। नए बनाए जा रहे तटबंधों की बात करे तो इसके अंदर फंसे गांवों की स्थिति आर्थिक-सामाजिक रूप बहुत कमजोर हो चुकी है। इन गांवों को कई विधानसभा क्षेत्रों में बांट दिया है, जिसकी वजह से उनकी आवाज राजनीतिक रूप से भी कमजोर हो गई हैं।अब वे किसी भी विधानसभा में जीत-हार को निर्णायक रूप में प्रभावित करने की क्षमता में नहीं रह गए हैं। यही कारण है कि चुनाव लड़ने वाले नेता अब उनकी ज्यादा परवाह नहीं करते।
सरकार के फैसले जमीनी हकीकत से काफी दूर
नदी तो प्राकृतिक रूप से बहती है। हम इंसानों ने है सड़क, पुल-पुलियों के जरिये कोसी नदी की धारा का रुख में बार-बार बदलाव करने पर मजबूर किया है। जिसकी वजह से नदी का अपनी सहायक नदियों से प्राकृतिक रूप से मिलने की प्रक्रिया में भी बाधा आई है। लेकिन आज इस बात की चिंता नदी विशेषज्ञों और समझदार ग्रामीणों के अलावा अब बहुत कम लोगों को रह गई हैं। सरकार चुनाव से पहले लोकलुभावन वादे बिना जमीनी हकीकत जाने कर देती है और फिर सालो इसकी वजह से आम आदमी परेशानियां झेलता रह जाता हैं।