बिहार चुनाव में चंद्रशेखर आजाद के आ जाने से बसपा की मुश्किलें बढ़ गयी
बिहार विधानसभा चुनाव में सभी नेताओं के बीच होड़
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सभी नेताओं के बीच होड़ लगी हुई है। चुनाव तीन चरणों में होने वाला है और चुनाव की तारीख समीप आने वाली है। ऐसे में बहुजन समाज पार्टी के दिक्कतों को बढ़ाने के लिए एक नेता काफी उभर के नजर आ रहा है।
जिस प्रकार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान सुर्खियों में है। उसी प्रकार एक अन्य दलित नेता अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहा है। वह हेलीकॉप्टर से राज्य के चक्कर काट रहा हैं और भीड़ को अपनी और आकर्षित करने की कोशिश कर रहा हैं।
वो पहली बार अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश के बाहर अपनी जड़ें जमाने की कोशिश में लगे हुए हैं। उनकी राजनीतिक संगठन आजाद समाज पार्टी को पिछले हफ्ते ही निर्वाचन आयोग में पंजीकृत किया है।
2015 में भीम आर्मी की स्थापना के बाद से चंद्रशेखर आजाद दलित अधिकारियों की रक्षा के लिए टकराव का रास्ता अपनाते रहे हैं और कई बार जेल भी जा चुके हैं। अन्य राजनीतिक नेताओं की लड़ाई के मुकाबले उनकी सक्रियता लोगों को पसंद आ रही है। केरल महाराष्ट्र, कर्नाटक और भारत के अन्य उत्सवों और विरोध प्रदर्शन को लेकर उत्साह नजर आता है।
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बिहार में जमने लगे हैं चंद्रशेखर
ख़बरों के मुताबिक, ऐसा बिल्क़ुल नहीं है कि बिहार में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी और आजाद समाज पार्टी (एएसपी) के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद और कुछ अन्य छोटे दलों के साथ किये गए गठबंधन, प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक एलायंस, पर पैसा लगा रहा है।
आजाद समाज पार्टी (एएसपी) के नेताओं ने बताया है कि आजाद की तरफ से उतारे गए 30 उम्मीदवारों में से कम से कम 10 के पास जीत का ‘अच्छा मौका’ है। आजाद समाज पार्टी बिहार के चुनावी दंगल में असंगत तो लग सकती है, लेकिन यहां मिली मामूली सफलता भी पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में उसकी राजनीतिक संभावनाओं को बढ़ाने वाली साबित हो सकती है।
आपको बता दें, आज़ाद समाज पार्टी (एएसपी) के लक्ष्य अपने ग्रह राज्य से हट कर भी सीटें पाना है। इसी कारण से उन्होंने बिहार चुनाव में अपने कदम आगे बढ़ाये है। एएसपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अगर पार्टी बिहार में दो सीटें भी जीतती है तो इसका उद्देश्य पूरा हो जाएगा। इरादा यूपी में एक संदेश पहुंचाना है कि आजाद राज्य के बाहर भी एक संजीदा राजनीतिक दावेदार हैं।
बसपा की बढ़ी मुश्किलें
चन्द्रशेखर आज़ाद के चुनाव में इतना बढ़-चढ़ कर सक्रिय होने के कारण अन्य पार्टियों कै मुश्किलें बढ़ गई है लेकिन दलित समुदाये को प्रभावित करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुश्किलें कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है।
आपको बता दें, बीते कुछ सालों में बसपा का प्रभाव काम होता जा रहा है। आपको बता दें, चुनाव में दलितों एवं ब्राह्मणों, मुस्लमानों और अन्य बिछड़े वर्ग के समर्थन से 30% मतों के साथ बहुमत हासिल किया था। 2007 के बाद से बहुजन समाज पार्टी का वोट शेयर गिरता जा रहा है – 2012 में यह आकड़ा 26% था और 2017 में 22% ही रह गया। पिछले दो लोकसभा चुनावों में बसपा का वोट शेयर 20% के आसपास ही रह गया है।
चन्द्रशेखर आजाद के सहयोगियों ने बताया है कि अगर एएसपी बिहार में अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन करती है, और एक-दो सीटों पर भी जीत हासिल कर लेती है तो यह 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बसपा से उनकी पार्टी की ओर ‘बड़े पैमाने पर दलबदल’ को बढ़ावा देगा। बसपा के तमाम नेता इससे सहमत नजर आते हैं।