बिहार विधानसभा चुनाव में प्रवासी मज़दूर का गुस्सा
देश में लाखों मजदूर ने हजारों किलोमीटर पैदल सफर किया
कोविड महामारी से बचाव के लिए जब मई महीने में देश्वयापी लॉक डाउन की घोषणा हुई थी, तब देश में सबसे ज्यादा परेशानी प्रवासी मजदूरों ने झेली थी। सारे ट्रेनें, बसो और सवारी वाहन बंद होने की वजह से लाखों मजदूर हजारों किलोमीटर पैदल सफर कर के अपने घरों तक पहुंचे थे। और इन प्रवासी मजदूरों में बड़ी संख्या में बिहार के मजदूर भी शामिल थे।
बिहार विधानसभा का चुनाव आते ही हर बार की तरह हर पार्टी के नेता नौकरियां देने के बात शुरू कर देते और इस बार भी यह वादा किया जा रहा हैं। लेकिन इस बार स्थिति हर बार से अलग हैै।
लॉकडाउन की वजह से हजारों किलोमीटर सफर तय करने का, नौकरी चले जाने से हताश मजदूरों अब भी दर्द से उबर नहीं पाए है, उन्हें अब नेताओ के विकास और नौकरी के वादे पर भरोना नहीं रहा ना ही वोट देने की ललक।
लॉकडाउन में लगभग 23.6 लाख प्रवासी मज़दूर बिहार के 32 जिलों में लौट आए
बिहार के ऐसे ही एक मजदूर की एक कहानी सामने रखी है, जिन्होंने लॉकडाउन में भारी परेशानी का सामना कर अपने घर पहुंचे थे। संदीप यादव, 32 वर्षीय प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्य बिहार में हो रहे चुनाव में शामिल नहीं होंगे वह अब फिर काम के सिलसिले में नोएडा वापस आ चुके है और यहां अपनी पत्नी और तीन बेटियों के साथ रह रहे हैं।
राजीव मूल रूप से बिहार के सुपौल के रहने वाले हैं। उनके मन में कोविड-19 लॉकडाउन के घाव अभी भी ताजा हैं। संदीप और रेखा, जो उस समय गर्भवती थीं, ने घर तक की तीन चौथाई यात्रा यानि की 900 किलोमीटर की दूरी ट्रक में पूरी की थी। संदीप से बिहार विधानसभा चुनाव में वोट देने के सवाल पर कहते है कि, मैं इतना असहाय महसूस करता हूं कि मैं किसी भी पार्टी को वोट नहीं देना चाहता।
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चुनाव में किए गए वादे सिर्फ राजनीति के लिए
नीतीश सरकार से नाराज संदीप राजद के 10 लाख नौकरियों के वादे को लेकर बहुत उत्साहित तो नहीं हैं। उनका कहना है कि, पहले नीतिश कुमार कह रहे थे कि कहां से आएंगी नौकरियां और अब नीतीश कुमार कह रहे हैं कि वे तेजस्वी यादव ने जो वादा किया है, उससे अधिक नौकरियां देंगे।
सच्चाई यही है कि चुनाव मेले की तरह है कुछ दिनों के बाद सबक पहले की तरह ही हो जाएगा। अगर हमारे क्षेत्र में कारखाना स्थापित हो जाएगा फिर मैं भी अगले विधानसभा चुनाव मतदान करूंगा।
लॉक डॉउन खुलने के बाद 20 फीसदी लोग वापस पलायन कर चुके
संदीप के गांव सपौल की बात करे तो इस विधानसभा सीट से एनडीए के उम्मीदवार हैं जेडीए के नेता विजेंद्र प्रसाद यादव। और वह इस सीट से साल 1990 से ही लगातार जीत रहे हैं। दूसरी ओर महागठबंधन ने कांग्रेस के मिन्नत रहमानी को अपना उम्मीदवार बनाया है।
यह जिला मिथिलांचल का एक हिस्सा है और मत्स्य क्षेत्र के नाम से जाना जाता रहा है, लेकिन संदीप के मुताबिक आज इसकी स्थिति बिल्कुल उलट है। बिहार में रोज़गार के अवसरों की कमी विधानसभा चुनावों में एक प्रमुख मुद्दा बनकर उभरी है। अब देखना यह है कि इसका चुनाव नतीजों पर कितना असर पड़ता है, और फिर नेताओं के कितने वादे पूरे होते है। संदीप की दर्द की की तरह बिहार के और लाखो लोगो का दर्द भी उनसे अलग नहीं है।