पिछले छह वर्षों में, बिहार के स्कूली शिक्षा में भारी गिरावट
बिहार स्कूली शिक्षा में गिरावट
बिहार में शिक्षा को लेकर स्कूल की उपलब्धता, गुणवत्ता और सभी के लिए समान अवसरों का होना हमेशा से सबके चिन्ता के विषय रहे हैं।विकास को लेकर प्रदेश सरकार भले ही दावे करती रही हो किन्तु शिक्षा को लेकर सरकार में ईमानदारी एवं प्रतिबद्धता का घोर अभाव है। एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट के इन्वेस्टिगेशन से पता चलता है कि पोल-बाउंड राज्य में स्कूली छात्रों की स्कूली शिक्षा में पिछले छह वर्षों में गिर गए हैं।आधे से अधिक प्राइमरी पास बच्चे कक्षा दो की किताबें भी पढ़ नहीं पाते हैं।
दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में,एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन की रिपोर्ट लगातार सामने आई हैं जिसमें बिहार के स्कूल में छात्र शिक्षा लेने में असफल हो रहे हैं जिसका कारण बिहार स्कूली शिक्षा में गिरावट है । बात अगर 2018 की रिपोर्ट की करें तो बिहार में कक्षा 5 में आधे से भी कम छात्र लगभग 41% ,कक्षा 2 के स्तर के पाठ पढ़ सकते है।
अगर हम 2018 की एएसईआर रिपोर्ट को देखें तो बिहार में दो में से एक छात्र में पढ़ने की क्षमता नहीं है और ये न केवल उनकी ग्रेड की बल्कि उनसे छोटी क्लासेस का भी पढ़ने में वे सक्षम नहीं हैं। 2012 में, यह आंकड़ा 3% अधिक था, 44.4% पर, 2014 में यह बढ़कर 48.1% हो गया, लेकिन फिर 2016 में यह घटकर 41.8 और 2018 में 41.2% हो गया।
बात अगर नीतीश कुमार सरकार की जाए तो उनके तहत बिहार ने 2010 से सरकारी स्कूलों में खेल के मैदान, पुस्तकालय, शौचालय और पीने के पानी जैसी सुविधाओं में उल्लेखनीय सुधार दिखाया है।
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तेजस्वी यादव ने बिहार की वास्तविक मुद्दों की अनदेखी के लिए साधा निशाना नीतीश सरकार पर
ग्रैंड अलायंस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने अपने चुनाव अभियान में बिहार की शिक्षा,कमाई, सिंचाई ,दवा के वास्तविक मुद्दों को अनदेखी के लिए नीतीश पर निशाना साधा कहा नीतीश सरकार असली मुद्दों पर चर्चा नहीं करते।
बिहार राज्य में शिक्षा के प्रति अपने योगदान को मजबूत करने के लिए नीतीश ने पिछले महीने घोषणा की कि वह अपनी सरकार की स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के लाभार्थियों के शिक्षा ऋण को माफ कर देंगे।साथ ही उन्होंने संविदा शिक्षकों के मूल वेतन में 15% बढ़ोतरी की भी घोषणा की।
नामांकन की संख्या के अनुपात में, शिक्षा की गुणवत्ता कम
हम आपको बता दें कि यह सत्य है की लड़कियों के नामांकन स्कूलों में बढ़ गए है जिसके दो महत्वपूर्ण प्रमुख कारण हो सकते हैं पहले तो गरीबी की वजह से कुछ लोग अपने बच्चों को स्कूल भेज देते है और दूसरा मुख्यमंत्री साइकिल योजना की वजह से स्कूलों में लड़कियों की अप्रत्याशित वृद्धि हो गयी है।
चौंकाने वाली बात यह है कि प्रदेश में जिस संख्या में नामांकन बढ़ा उसी अनुपात में शिक्षा की गुणवत्ता घटी हैं। सरकार कहती है कि आज बिहार में मात्र 3.5 प्रतिशत बच्चे ही विद्यालय से दूर है।
अगर रिपोर्ट की बात करें तो उसमें कहा गया है कि राज्य के स्कूलों में शिक्षकों के पढ़ाने और छात्रों के सीखने का स्तर अभी भी नीचे है शिक्षा में लगातार सुधार के प्रयासों के बावजूद अब भी इसमें कई प्रकार की कमियां मौजूद हैं। ऐसा लगता है कि शिक्षा को बेहतर बनाने की योजना जमीन से अधिक कागज पर ही सीमित है।