बिहार: मुज़फ़्फ़रपुर में लीची की खेती हो रही है बेकार और सरकार मदद को तैयार नहीं
मुज़फ़्फ़रपुर में लीची की खेती को मौसम की मार
पूरे देशभर में केंद्र द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों को लेकर आंदोलन जारी है। लगातार किसान और सरकार की बातें विफल होती जा रही है। एक तरफ जहां किसानों की मांग है कि तीनों कृषि कानूनों को रद्द कर एमएसपी का रास्ता अख्तियार हो। वहीं सरकार कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए अपने कदम पीछे खींचने को तैयार नहीं हैं।
किसान आंदोलन में जुटे किसान मुख्यत पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिम उत्तर प्रदेश से हैं। लेकिन इनमें बिहार के किसानों की भागीदारी बिल्कुल नहीं के बराबर है। एमएसपी की इस लड़ाई के बीच अब बिहार के किसानों पर कृषि संकट मंडरा रहा है। दरअसल बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में जहां लीची की सबसे अधिक खेती की जाती है वहां मौसम की मार की वजह से लीची की उपज कम है।
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर, वैशाली, पूर्वी चंपारण तथा समस्तीपुर जिले में लीची का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। जानकारी के मुताबिक लीची के उत्पादन, पैकेजिंग और वितरण में करीब 45,000 लीची किसान, मजदूर और व्यापारी शामिल है। लेकिन देशव्यापी लॉकडाउन और प्राकृतिक आपदा ने जहां एक तरफ इन लोगों की आजीविका को प्रभावित किया।
वहीं अब मौसम की प्रतिकूल स्थिति ने किसानों को असहाय छोड़ दिया है। इस संबंध में धर्मेंद्र साहनी नाम के किसान कहते हैं कि, “पिछले साल हमें तालाबंदी और प्राकृतिक आपदा का सामना सामना करना पड़ा जिससे फसल खराब हो गई।”
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कई इलाकों में लीची की फसल पर कम बौर
इसके अलावा हर साल के मुकाबले इस साल लीची की फसलों में कम बौर है। इस वर्ष किसानों को उम्मीद थी कि फसल उत्पादन ज्यादा होगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसलिए किसानों को यह डर सता रहा है कि इस स्थिति में वह इतने नुकसान की भरपाई कैसे करेंगे? वही मौसम के अन्य परेशानी जैसे की आंधी, तूफान तथा ओले पड़ने के बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है। अगर यह परेशानी किसानों के सामने आई तो वह पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे।
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लेकिन इस परेशानी से निकलने के लिए उन्हें अपनी आवाज उठाने का कोई विकल्प नजर नहीं आता क्योंकि किसान आंदोलन में जुटे किसान मुख्यत पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। हालांकि बिहार में भी कुछ प्रतीकात्मक विरोध हुए हैं लेकिन बिहार में विरोध प्रदर्शन न के बराबर है।
किसान आंदोलन में जुटे किसान को इस बात का डर है कि इन कानूनों की वजह से एपीएमसी मंडिया खत्म हो जाएंगी। लेकिन बिहार में 15 साल पहले ही इसे खत्म किया जा चुका है। दरअसल साल 2006 में बिहार में APMC अधिनियम को खत्म कर दिया गया था। लेकिन अभी बिहार के किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य, उपज की कीमतों जैसी कई तरह की परेशानियों को झेल रहे हैं।
किसानों की मांग है कि सरकार उन्हें लीची के क्षतिग्रस्त फसलों के लिए कुछ सब्सिडी या मुआवजा राशि प्रदान करें जिससे वह इस स्थिति से बाहर आ सके।