शिक्षा किसी भी देश या समाज का आधारभूत ढाचा होता है। शिक्षा केवल मनुष्य के विचारों को ही नहीं वरन उसकी संपूर्ण जीवन शैली में परिवर्तन ला देती है। आज हम शिक्षा पर इसलिए गौर फरमा रहे है कि आज देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले का पुण्यतिथि है।

वह एक ऐसी प्रथम महिला थी जो शिक्षा के महत्व को जाना, समस्या और महिलाओं के आजादी के नये दरवाजे खोलकर उनमें नई चेतना का सृजन किया। उन्होंने यह उपलब्धि तब हासिल की जब महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करने पर प्रतिबंध था। उस समय सावित्रीबाई फुले के पति ज्योतिराव फुले ने उनका पूरा साथ दिया उनके शिक्षा ग्रहण करने में जिस कारण लोग उनकी आलोचना भी करते थे।
फुले ने महिलाओं को शिक्षित करने के लिए कुल 18 स्कूल खोले
जब सावित्रीबाई फुले शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल जाती थी तो लोग उन्हें रास्ते पर पत्थर मारते थे। परंतु पति का साथ मिल जाने के कारण वह अपने कदम आगे बढ़ाते गई। उन्होंने 1848 में पुणे में लड़कियों को शिक्षित तथा आगे बढ़ाने के लिए स्कूल खोला, जिस देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। इस प्रकार वह कुल 18 स्कूल खोले। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके योगदान को सम्मानित भी किया।
इस स्कूल में सावित्रीबाई फुले प्रधानाध्यापक के पद पर थी। वह स्कूल में अन्य लड़कियों को शिक्षित किया करती थी। परंतु उस समय सावित्रीबाई को जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा। वह जब स्कूल पढाने के लिए निकलती थी तो रास्ते में अन्य महिलाओं द्वारा उन पर गोबर, पत्थर फेंका जाता था। जिस कारण उन्हें दो जोड़ी कपड़े लेकर जाना पड़ता था। वहाँ की महिलाओं को ऐसा लगता था कि लड़कियों को पढाकर सावित्रीबाई धर्म विरूद्ध काम कर रही है।
बाल – विवाह, विधवा विवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियों के खिलाफ़ खड़ी होने वाली सावित्रीबाई
सावित्रीबाई महिलाओं के लिए अनेक तरह से सहायता भी की। वह गर्भवती महिलाओं के लिए एक आश्रय गृह भी खोला जहाँ वो अपना बच्चे को जन्म दे सकती थी। आपको बता दें कि वह बाल – विवाह, विधवा विवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियों के लिए आवाज उठाई और जीवन पर्यन्त उसके लिए लड़ती रहीं।
भारत की पहली फेमिनिस्ट आइकॉन सावित्रीबाई
सावित्रीबाई फुले को हमारे देश भारत की पहली फेमिनिस्ट आइकॉन के साथ ही पहली महिला शिक्षिका के तौर पर भी जाना जाता है। बता दें जब सावित्रीबाई उनके पति ज्योतिबा राव फुले ने प्रथम कन्या विद्यालय खोला था तब वहां सावित्रीबाई फुले ने अध्यापक की भूमिका निभाई थी।उन्होंने हमेशा ही लड़कियों के लिए शिक्षा को जरूरी पहले रखा वो भी ऐसे समय में जब स्त्रियों के शिक्षा पर कठोर पाबंदी थी।
जातिवाद और पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था को ललकारते हुए ये पहली महिला थी जिसने बालिका शिक्षा को समाज के लिए भी आवश्यक बताया था। महान समाज सुधारक सावित्रीबाई ने जातिगत भेदभाव, अत्याचार और बाल विवाह जैसी फैली कुरीतियों के खिलाफ ही न केवल शिक्षा और सामाजिक कामों के ज़रिये जागरूकता पैदा की थी बल्कि कविताएं लिखकर खुद को बतौर कवयित्री भी स्थापित किया था।