हम बैठे हुए थे अपने खेत में ही और मेरे आंख के सामने उधर बिजली मिस्त्री ट्रांसफ़र्मर से उतरा और उधर बिजली का तार गिरा हमारे खेत की तरफ़. हम उसको आवाज़ दिए लेकिन मिस्त्री भाग गया और मेरे सामने पूरी की पूरी फ़सल बर्बाद हो गयी. अब पूरी फ़सल जल चुकी है ना ही मुआवज़ा मिला ना किसी तरह की मदद. खाने के लिए अब कुछ बचा हुआ नहीं है.
ये कहानी है शिवदेव साहू की. शिवदेव साहू बेगूसराय के तेतरी पंचायत के मोहनपुर गांव में रहते हैं. शिवदेव साहू और उनका पूरा परिवार किसानी पर ही निर्भर करता है. ऐसे में शिवदेव साहू की खड़ी फ़सल जल चुकी है. अभी उनके परिवार में 9 सदस्य हैं जो सिर्फ़ किसानी पर ही आश्रित हैं.

ये कहानी सिर्फ़ शिवदेव साहू की ही नहीं है बल्कि मोहनपुर गांव के ही विनोद तांती की भी है. विनोद तांती के खेत में भी उसी दिन आग लगी थी. विनोद तांती का ढाई (2.5) बीघा खेत में लगा गेहूं जल चुका है लेकिन इन्हें भी किसी तरह का मुआवज़ा नहीं मिला है.
विनोद तांती और शिवदेव साहू ने मिलकर अंचल अधिकारी (Circle Officer), डंडारी को आवेदन भी दिया लेकिन आजतक उस आवेदन पर कोई करवाई नहीं हुई. विनोद तांती के अनुसार,
हम जब गए अंचल अधिकारी के पास आवेदन देने के लिए तो उन्होंने साफ़ तौर से कह दिया कि किसी भी तरह के मुआवज़े का प्रावधान नहीं है, आपको मुआवज़ा नहीं मिलेगा. जब हमलोग उनको कहे कि मुआवज़ा तो मिलना चाहिए तो उन्होंने कहा कि तुम ढेर रंगदारी बतियाता (बोलता) है. यहीं प्रखंड दफ़्तर में ही समझा देंगे तुमको. उसके बाद आजतक हमें किसी भी तरह का मुआवज़ा नहीं मिला है.
विनोद तांती ने अंचल अधिकारी को दिया गया आवेदन भी डेमोक्रेटिक चरखा से साझा किया.


लक्ष्मी देवी, जो एक महिला किसान हैं, वो हमसे बात करते हुए रो पड़ी. उन्होंने बताया कि
22 कट्ठा खेत में आग लगा. हमारा बेटा भागते हुए आया और हमारे सामने पूरी फ़सल जल कर ख़ाक हो गयी. अब हम क्या करें? अधिकारी साहब उस समय आये भी थे, दमकल की गाड़ी आई थी आग बुझाने के लिए. अधिकारी साहब ने देखा कि फ़सल पूरे तरीके से बर्बाद हो गयी है लेकिन अब वो किसी भी तरह का मुआवज़ा नहीं दे रही हैं. हम ग़रीब लोग किसी तरह दो वक़्त खाते हैं ऐसे में पूरी फ़सल जल गयी है. कुछ समझ नहीं आ रहा क्या करें.



नियम के अनुसार अगर किसी भी किसान की फ़सल जल जाती है तो उसका उचित मुआवज़ा सरकार की ओर से दिया जाता है. बिहार में फ़सल जलने पर दिया जाने वाला मुआवज़ा फिक्स नहीं है. उत्तर प्रदेश में फ़सल जलने पर दिए जाने वाले मुआवज़े की रकम तय की हुई है. उत्तर प्रदेश की किसान योजना के अंतर्गत पांच एकड़ से अधिक जोत पर सहायता राशि 50 हजार, ढाई एकड़ की जोत पर सहायता राशि 30 हजार और पांच एकड़ की जोत पर सहायता राशि 40 हजार रुपये दिए जाने का प्रावधान है. लेकिन बिहार में ये पूरा तरीका अलग है. खेत में आग लगने के बाद अंचल अधिकारी एक रिपोर्ट तैयार करते हैं जिसके आधार पर ये आंकलन किया जाता है कि नुकसान कितना ज़्यादा हुआ है और फिर उसी हिसाब से मुआवज़े की राशि तय की जाती है. अगर फ़सल में आग बिजली के तार टूटने से लगती है तो मुआवज़े की राशि का भुगतान विद्युत् विभाग को करना होता है. ये फ़ैसला अंचल अधिकारी के हाथ में ही रहता है. इस प्रक्रिया के कारण विनोद तांती जैसे अनेकों किसान ऐसे हैं जिन्हें समय पर मुआवज़ा नहीं मिलता है.

जब डेमोक्रेटिक चरखा ने डंडारी प्रखंड के अंचल अधिकारी से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि
ऐसा नहीं है कि उनको मुआवज़ा नहीं मिलेगा. मुआवज़ा तो मिलना ही है लेकिन रिपोर्ट बनाने में थोड़ा ज़्यादा समय लग गया है. हमलोग जल्द ही रिपोर्ट बना लेंगे आप किसानों को प्रखंड ऑफिस भेज दीजियेगा उनको मुआवज़ा मिल जाएगा.
अफ़सरशाही में लेट लतीफ़ी और बिहार में किसानों को फ़सल जलने पर मिलने वाले मुआवज़े की कहानी सिर्फ़ विनोद तांती, शिवदेव या लक्ष्मी देवी की नहीं है. 5 अप्रैल को बिहार के बक्सर जिले में दो अलग-अलग जगहों पर खेत में आग लग गयी. खेत में आग लगने के बाद नुकसान का आंकलन जो सरकारी अधिकारियों द्वारा किया गया है वो ढाई सौ बीघे की फ़सल जल चुकी है. ये घटना बक्सर के ब्रह्मपुर प्रखंड के हरनातपुर और महुवारा पंचायत की घटना है. भूसा बनाने की मशीन (क्रशर) से निकली चिंगारी के कारण खेत में आग लग गयी थी और देखते ही देखते ये आग कई खेतों में फैल गयी. इस वजह से लगभग 100 एकड़ में फैली गेहूं की फ़सल जल चुकी है. ब्रह्मपुर प्रखंड की अंचल अधिकारी प्रियंका कुमारी ने डेमोक्रेटिक चरखा से बातचीत के दौरान बताया कि
जिस समय आग की घटना हुई थी उस समय सूचना मिलने पर मैं तुरंत पहुंची. रिपोर्ट तैयार की जा रही है, थोड़ा समय लगेगा लेकिन रिपोर्ट जल्द ही बन जायेगी. मेरे रहते में किसानों को उनका उचित मुआवज़ा ज़रूर मिलेगा.
दूसरा मामला बक्सर के ही खनिता गांव का है. वहां भी क्रशर से निकली चिंगारी के कारण आग लग गयी थी. आग इतनी ज़्यादा बढ़ गयी कि ये आग खनिता गांव से बढ़कर पसहरा गांव तक पहुंच गयी. इस आग में दो ग्रामीणों के घर भी जल चुके हैं. यहां के अंचल अधिकारी रजनीकांत से डेमोक्रेटिक चरखा से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.
आग लगने की घटना समस्तीपुर के परशुरामपुर गांव में 7 अप्रैल को हुई थी. वहां भी आग लगने की वजह बिजली के तारों से शॉर्ट सर्किट है. परशुरामपुर गांव के स्थानीय निवासी छोटू कुमार, जिनकी फ़सल भी जल गयी थी, उन्होंने डेमोक्रेटिक चरखा को बताया कि
ना ही आग बुझाने के लिए स्थानीय प्रशासन की मदद मिली, गांव वालों ने मिलकर आग बुझाई है और अभी तक मुआवज़े का भी कुछ पता नहीं चल पा रहा है. ऐसे में अब समझ नहीं आ रहा क्या करें क्योंकि हमारी पूरी कमाई जल चुकी है. अब क्या खायेंगे और अगली फ़सल में पैसे कहां से लगायेंगे.