‘जात- Entrepreneur और गोत्र-ढीठ बिहार’ ये जातिवाद का गढ़ बिहार में सहरसा के दिलखुश कुमार का फेसबुक पर इंट्रो हैं. दिलखुश कुमार बिहार के सहरसा जिला स्थित राज्य का पहला डिजिटल गांव ‘बनगांव’ के निवासी हैं. दिलखुश आज कोसी क्षेत्र में किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. आजकल दिलखुश अपनी इस क्षेत्रीय पहचान को राज्य की पहचान बनाने के जद्दोजहद में जुड़े हुए हैं. जो पहले आर्यगो कैब सर्विस और अब RodBez को शिखर पर पहुंचा रहे हैं.

काम ढूंढने की तलाश में जद्दोजहद कर रहे दिलखुश 2016 में एक कार ख़रीदकर गांव वापस आ गए. फिर बिना किसी खास मैनेजमेंट और बिजनेस की डिग्री लिए विद्वानों की धरती बनगांव के दिलखुश कुमार गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर 2016 के दिन बाढ़ का दंश झेलने वाले कोसी इलाके के तीन प्रमुख जिले सहरसा, सुपौल और मधेपुरा में ‘आर्यागो कैब सर्विस‘ की शुरुआत की.
बनगांव निवासी बस चालक पवन खां के बेटे दिलखुश के पहले प्रयास यानी ‘आर्यागो कैब सर्विस’ के परिणामस्वरूप 2018 में वो प्रधानमंत्री मोदी के स्टार्टअप इंडिया के नजर में आएं. फिर 2018 में बिहार के जिन छह उद्यमी को नरेंद्र मोदी से रूबरू कराया गया था, उनमें दिलखुश भी शामिल थे. दिलखुश कुमार की पढ़ाई की बात की जाए तो उनकी तालीम सरकारी स्कूल में हुई, फिर वो थर्ड क्लास से मैट्रिक और बारहवीं में सेकेंड डिवीजन से पास की.
बिहार के टैक्सी इंडस्ट्री में अपने अनुभव से क्रांति लायी
हर साल बाढ़ का दंश झेलने वाले कोसी इलाकों में लोकल कैब सर्विस मुहैय्या कराने वाले दिलखुश 2022 के जून महीने में ‘RodBez’ के नाम से पूरे बिहार में सर्विस शुरू किया है जो चर्चा का विषय बना हुआ है. RodBez के नए आगाज पर दिलखुश कुमार बोलते हैं कि
व्यापार में जब भी कंपटीशन आता है तो फ़ायदा केवल उपभोक्ता को मिलता है. इससे बिहार में उद्योग क्रांति ज़रूर आएगी.
RodBez के लिए काम कर रहे रोशन झा बताते हैं कि
RodBez बिहार की सबसे बड़ी वन वे टैक्सी, टैक्सीपूल और कारपूल प्लेटफॉर्म है. जब आप एकतरफा यात्रा कर रहे हों तो अब दोतरफा या वापसी किराए का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है. बिहार में वन-वे कनेक्टिविटी ना होना यात्रियों के लिए एक बहुत बड़ा मुद्दा था हमारी टीम ने यह बीड़ा उठाया है. हम बिहार के हर रूट पर वन-वे कनेक्टिविटी बनाने पर काम कर रहे हैं. जल्द ही आपके रूट पर प्रति घंटा एक वनवे कनेक्टिविटी उपलब्ध होगी.
साथ ही आप अस्पताल या अन्य इमरजेंसी कार्य हेतु रोडवेज से पटना आते हैं तो पटना लोकल में एक दिन के लिए ई-बाइक मुफ़्त में उपलब्ध कराया जाएगा. बड़ी टैक्सी कंपनियां ओला और उबर की तुलना में हम अधिक सुविधाएं भी मुहैय्या करा रहे हैं और उनकी तुलना में फायदा भी कम कमा रहे हैं.

सुपौल जिला के बभंगामा पंचायत के मानस झा बताते हैं:-
गांव से गाड़ी करके आता था पहले, तो 6000 से 6500 के बराबर लगता था। इस बार सिर्फ 2700 रूपया लगा। मार्केट में पहले से ही तमाम तरह के नई-पुरानी, छोटी-बड़ी एजेंसियां ये सुविधा मुहैया कराती है लेकिन जो बात RodBez को सबसे खास बनाती है वो है “वन वे पेमेंट”, RodBez ने एक नए रेवोल्यूशन की शुरुआत की है.
दिलखुश डेमोक्रेटिक चरखा की टीम से बातचीत करते हुए बताते हैं
RodBez में 20-25 कर्मचारी अभी मुख्य रूप से रोडवेज के लिए काम कर रहे हैं वही डायरेक्ट और इनडायरेक्ट रूप से जोड़ा जाए तो रोडवेज में 4000 से ज़्यादा लोग शामिल हो चुके हैं. जिसमें ड्राइवर और गाड़ी के मालिक भी शामिल हैं, जिस में RodBez बिहार के 38 जिलों तक पहुंच चुका है. हमारा सपना बिहार के अंतिम गांव तक पहुंचने का है.”
वाकई कौन जानता था कि महज इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई करने वाला शख्स आज इतने लोगों के घर चलने का ज़रिया बन जाएगा.

अग्निपथ प्रोटेस्ट बिहार बंद के दौरान लोगों को RodBez आया काम
समस्तीपुर के अंशु महराज बताते हैं
पटना एयरपोर्ट से समस्तीपुर यानी घर आने का हमेशा 2500-2700 रु तक लगता था, इसबार 1856 रु लगा है, ये कमाल किया है रोडबेज ने. पहली बार किसी स्टॉर्टप की वजह से मेरा 1000 रु बचा है.
वही सुपौल जिला के बगही गांव के रहने वाले राजेश मिश्रा बताते हैं कि
जब अग्निपथ योजना के वरोध की वजह से पिछले तीन दिनों से रेल समेत तमाम यातायात सेवा प्रभावित था तब रोडवेज की वजह से सिर्फ ₹1600 रुपए में मुझे सहरसा पहुंचाया गया था. यह जानकर और भी अच्छा लगा कि यह कंपनी हमारे क्षेत्र के लड़का का है.”
वहीं सहरसा की रहने वाली नविता यादव बताती हैं कि
अग्निपथ के कारण हो रहे आंदोलन की चपेट में आकर 15 जून को हम और हमारे पति पटना में फंस गए थे. इंटरसिटी ट्रेन कैंसिल हो गई. ऐसे में RodBez का सहारा मिला तुरंत टैक्सी का मिल जाना और महज 2500 में पटना से सहरसा तक स्विफ्ट डिजायर से आना उस वक्त अकल्पनीय ही लगा.

शुरुआत में जब दिलखुश अपनी कंपनी की शुरुआत किए थें तो गांव के लोगों के द्वारा ‘बाप मर गइल अन्हारे में – बेटा के नाम पावरहाउस’ जैसे नारे गढ़े जाते थे. दिलखुश के पिता बस में ड्राइविंग करते थे, ऐसे में ड्राइवर के बेटा ने ओला, उबर के तर्ज पर कोसी के इलाके में कैब की शुरुआत करने का सपना देख लिया था, जिसे लोग मज़ाकिया लहज़े में लेने लगे थे. आज उनके गांव के लोगों को दिलखुश पर फ़क्र है.
बनगांव के प्रभाव झा पटना में रहकर पढ़ते हैं. वह बताते हैं कि
शुरुआत में उनकी कैब कंपनी किसी गरीब परिवार की गर्भवती महिला को अस्पताल पहुंचाना हो गर्भवती महिला को बेटी होने पर या दहेज की शादी करने वाले दूल्हे के लिए भी मुफ़्त सर्विस दे देते थें. यह ख़ूबी आज भी उनमें और उनके कामों में देखने को मिलती है, जो गांव से जुड़े लोगों में होनी चाहिए.
अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए दिलखुश कुमार बताते हैं कि
लगभग 10 वर्ष पूर्व सहरसा में जॉब मेला लगा था. वहां ₹2400 की नौकरी के लिए मैंने भी फॉर्म भरा था. इंटरव्यू पटना के एसपी वर्मा रोड में था. 10 से 15 लोग इंटरव्यू में आए थे. इंटरव्यू 3 साहब और 2 साहिबा मिलकर ले रही थी. इंटरव्यू में मुझे एक फोन को उठा कर उसकी कंपनी को नाम बताने को कहा गया. मुझे नहीं पता था तो मैंने कह दिया ‘सर मैं नहीं जानता हूं’ तब साहब का उत्तर आया ये Iphone है और ये Apple कंपनी का है. इसके बाद मेरी नौकरी तो नहीं लगी, वापस गांव आया और विरासत में मिली ड्राइवर के पेशा को भाग्य मानकर पिताजी के रास्ते पर ही निकल पड़ा था उस दिन….” कहानी सुनाते सुनाते दिलखुश कुमार भावुक हो जाते हैं.