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बिहार की ‘मिठास’ मढ़ौरा मार्टन चॉकलेट फैक्ट्री आख़िर कब शुरू होगी?

बिहार में मीठा के बिना खाना अधूरा होता है, पर बिहार की मिठास कम करने में सरकार पूरी तरह से लगी है।देश भर में कुल 756 चीनी मिल हैं जिसमें से 250 चीनी मिल बंद पड़े हैं। बिहार की बात करें तो बिहार में कुल 29 चीनी मिल हैं।

ग्रामीण विकास तथा उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री के रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में 18 चीनी मिल बंद पड़े हैं।

मीठा खाना और मीठा बोलना किसे पसंद नहीं होता है। लेकिन यही मिठास बिहार के किसानों के लिए कड़वी होते जा रही है। बिहार में एक समय में 33 चीनी मिल हुआ करती थी और पूरे देश की 40% चीनी उत्पादन बिहार में होती थी। लेकिन आज के समय में इसकी संख्या घट कर ढाई से तीन प्रतिशत के बीच हो गयी है। इसकी वजह से गन्ना किसानों की स्थिति भी दयनीय हो चुकी है।

मढ़ौरा चीनी मिल जो बिहार का पहला और भारत का दूसरा चीनी मिल है , वो सन् 1888 ई° में बनना शुरू हुआ और 1904 में बन कर तैयार हो गया।

“ प्रधानमंत्री  मोदी जी भी मढ़ौरा  की धरती पर आकर बहुत बड़ा स्टेटमेंट दिए थे, इस बार हमारे कैंडिडेट राजीव प्रताप रूडी जी को जिताएं और हम मढ़ौरा चीनी मिल की मिठास को वापस लाएंगे, लेकिन मिठास वापस नहीं आया, इस प्रकार जितने भी वहां पर विधायक हो या सांसद हो, राजद हो या जदयू हो सभी पार्टी ने वहां आश्वाशन देने में कोई कमी नहीं की है” ये कहना है वीर आदित्या मानव क्रांति का जो जनांदोलन के संयोजक हैं।

मढ़ौरा बाज़ार में 4 फैक्ट्रियां थीं जिसमें से एक मढ़ौरा चीनी मिल,सारण इंजीनियरिंग फैक्ट्री,मार्टन चॉकलेट फैक्ट्री और वाइन फैक्ट्री थीं।  कहा जाता है की मढ़ौरा चीनी मिल की चीनी देश पर में काफ़ी प्रसिद्ध थी और चीनी के दाने शीशे की तरह चमकती थी, वहीं मार्टन चॉकलेट फैक्ट्री बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय थीं।

1997-1998  दशक के बीच सारी फैक्ट्रियां बंद हो गई। मढ़ौरा चीनी मिल में लगभग 1700 मज़दूर काम करते थे। सारण के करीब 20,000 परिवार मढ़ौरा चीनी मिल पर निर्भर थे। 20 वर्ष पूर्व ये सारे किसान परिवार काफ़ी खुशहाल जीवन बिता रहे थे, गन्ना इनकी नकदी फसल थी। मढ़ौरा मिल बंद होने के बाद इन किसानों की हालत काफ़ी नाज़ुक हो गई। वहीं 1700 मजदूरों की रोज़गार छीन गई।

2016 में नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ़िस यानी एनएसएसओ ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किसानों की औसत मासिक आय 6,426 रुपये है और सालाना 77,112 रुपये। ये आंकड़ा जुलाई 2012-जून 2013 के बीच का है।

नाबार्ड ने भी 2016-2017 की अपनी सर्वे रिपोर्ट में बताया कि किसानों की औसत मासिक आय 8,931 रुपये है। बिहार की 77% आबादी कृषि के क्षेत्र से जुडी हुई है। बिहार की जीडीपी में भी कृषि क्षेत्र का योगदान 18% का है. लेकिन इसके ग्रोथ में काफ़ी गिरावट देखने को मिल रही है। साल 2005-10 के बीच में ये ग्रोथ रेट 5.4% का था, उसके बाद ये घट कर 3.7% तक आया और अब ये 1-2% तक आ चुका है। बिहार में कृषि योग्य भूमि लगभग 53.95 लाख हेक्टेयर है, जिसमें गन्ने की खेती लगभग 2.70 लाख हेक्टेयर में होती है।

वहीं रिपोर्ट्स की मानें तो इस मिल के पास किसानों वा मज़दूरों का 20 करोड़ रुपए अभी भी बकाया है।

2007  में मढ़ौरा चीनी मिल पुनः शुरू करनी की बात की गई यहां तक कि भूमि पूजन भी हो गया लेकिन इसके बावजूद चीनी मिल की शुरुआत नहीं हुई।

2015 में जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब मढ़ौरा की धरती पर पहुंचे तो उन्होंने वहां के लोगों से वादा किया की वो मढ़ौरा की मिठास लोगों को वापस करेंगे।

रोज़गार की तलाश में बिहारवासी लगातार दूसरे राज्यों में पलायन करता हैं क्योंकि बिहार में रोज़गार की कमी थी जिसको मढ़ौरा चीनी मिल पूरा करता था।

लेकिन जबसे चीनी मिल बंद हुआ हैं तबसे रोज़गार की अवसर ज़्यादा कम हो गए, वहीं मज़दूरों और किसानों की आय का श्रोत खतम हो गया।

छपरा से पटना आए आंदोलनकारी कहते हैं की “बिहार में 90 के दशक के बाद जितने भी बंद उद्योग चाहे वो चीनी मिल हो, जुट मिल हो या पेपर मिल हो उनको पुनः स्थापित किया जाए, यही हमारी सरकार से मांग है” , “मढ़ौरा के चीनी मिल, मार्टन चॉकलेट फैक्ट्री और सारण इंजीनियरिंग फैक्ट्री को पुनः शुरू किया जाए”

लगातार सरकार लोगों से वादे ज़रूर करती है पर उन वादों को पूरा करता कोई भी नज़र नहीं आता। मज़दूरों और किसानों की करीब 20 करोड़ रुपए मिल के पास बकाया  है।

डेमोक्रेटिक चरखा की टीम जब मढ़ौरा के किसानों से बात करती है तो किसान अपनी मजबूरी और अपने बीते कल को याद करते हुए कहते हैं:-

जब चीनी मिल चालू थी उस समय हमारे घर में खुशहाली थी। हम अपनी बेटियों की शादी धूम-धाम से करते थे। गन्ने की खेती करते थे और हमेशा मुनाफ़ा में रहते थे। लेकिन एक आज समय है जब हम कर्ज़े में डूबे हैं और सरकार ने हमारी ओर से मुंह फेर लिया है। अब जाए तो जाए कहां?

अब सरकार से सवाल, बिहार में 18 चीनी मिल बंद हैं और सरकार इन्हें वापस से शुरू करने का प्रयास तक नहीं करती। अगर सरकार इन चीनी मिलों को वापस से शुरू करती है तो बिहार में रोज़गार के दरवाज़े खुल जाएंगे जिससे मज़दूरों को दूसरे राज्यों में पलायन नहीं करना पड़ेगा।                                                       

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