33 हज़ार वोल्ट का तार सुरक्षा के लिहाज़ से बहुत खतरनाक होता है. अगर इस तार की चपेट में मकान, पेड़ या व्यक्ति आ जाए तो उसका सुरक्षित बचना बहुत मुश्किल है. पटना के खगौल नगर पालिका के वार्ड संख्या 1 में 33 हज़ार वोल्ट का तार लोगों के घरों से सट कर जा रहा है.
इस क्षेत्र में साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड बिजली देती है. 1990 में लखनी बीघा टोला में 33 हज़ार वोल्ट का तार लोगों के घरों के पास से लगाया जा रहा था. उस वक्त वहां के स्थानीय लोगों ने विरोध किया लेकिन बिजली बोर्ड ने लोगों की बातें नहीं सुनी.
भारतीय विद्युत् नियमावली 1956 के अध्याय 80 में ओवरहेड वायर को लेकर नियम निर्धारित किए गए हैं. इसके अतिरिक्त सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 के अंतर्गत सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी बनाई गई. जिसने 2010 में नए नियम जारी किए जिसके अंतर्गत अब हर जिले में इलेक्ट्रिक सेफ्टी अफसर का पद सृजन किया गया है. साथ ही हर ओवरहेड वायर को कवर करना है उसके साथ ही पोल पर एक रेगुलेटर लगाना भी है. यह सब नियम अखिल भारतीय स्तर पर लागू हैं.
कई बार इस इलाके में लगी है 33 हज़ार वोल्ट के तार से आग
बीते कई सालों में कई बार तार में आग लगने से लोगों को काफ़ी परेशानी हुई है. लखनी बीघा टोला में रहने वाले अशोक कुमार का घर 2019 में जल गया जिसके वजह से उन्हें लगभग 2 लाख का नुकसान हुआ.
जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया "3 मई 2019 उस दिन बारिश और आंधी चल रही थी. तभी तार में आग लग गई और मेरे घर से तार सट गया जिसके वजह से मेरे घर में आग लग गई. जितने सामान था सब जल गया."
अशोक कुमार आगे बताते हैं "हमने बिजली ऑफिस में बात किया तो उन्होंने कहा हम कुछ नहीं कर सकते. हमने मजबूरी में हाईकोर्ट में केस भी किया. हमारा घर 1986 में बना था और 1990 में तार लगाया गया है. हमें किसी भी तरह की मुआवजा नहीं मिला. हर जगह हमने एप्लीकेशन दिए हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुआ है. हमारा लाखों का नुकसान हुआ है. हमें काफ़ी डर लगता है कि कब घर में आग लग जाए."
इस वार्ड में तकरीबन 800 के आस-पास घर हैं. बिजली की तार सारे घरों के पास से गुजरती है. ऐसा कई बार हुआ है कि बिजली के संपर्क में आने से जानवरों की मौत हुई है.
तार से गयी कई लोगों की जान
मोहल्ले में कैनल कनेक्शन के हाईटेंशन तार से शॉट सर्किट होने से पप्पू कुमार, छोटू कुमार तथा उनके पिता यमुना राय का पूरा शरीर झुलस गया और बाद में उनकी मौत हो गई. मौत के बाद परिवार वालों ने अपना घर छोड़ कर चले गए.
मोहल्ले ने मिल कर कई बार बिजली विभाग को चिट्ठी दिया लेकिन इसका कोई निदान नहीं हुआ.
लखनी बीघा में रहने वाले किशोर कुमार शर्मा से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया "देखिए सर, सेंट्रल का ऐसा ऑर्डर है कि ग्रामीण एरिया से हाई टेंशन नहीं जाना चाहिए. लेकिन यहां पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है और ये तार नंगा तार है."
अलग-अलग मुआवज़े का है नियम
बिजली से हुई दुर्घटना में मौत या घायल हुए लोगों के लिए मुआवज़े का प्रावधान बिहार राज्य विद्युत विनियामक आयोग द्वारा दिया गया है. अगर किसी व्यक्ति की मौत बिजली कंपनी की गलती से होती है तो बिजली कंपनी पीड़ित व्यक्ति के परिवार को 4 लाख रुपए मुआवज़े के रूप में देती है. वहीं अगर करेंट के वजह से व्यक्ति का 60% शरीर जल गया हो तब बिजली कंपनी 2 लाख रुपए मुआवज़े के रूप में देती है.
40% के नुकसान की स्थिति में मुआवजे की राशि 60 हज़ार होगी. करंट की वजह से हुई दुर्घटना में घायल व्यक्ति को हास्पिटल में भर्ती कराने के लिए 15 हज़ार और इलाज के लिए पांच हज़ार देने होंगे. हालांकि घायलों के इलाज के लिए मुआवज़े की राशि, अस्पताल में भर्ती होने की अवधि के अनुसार बढ़ भी सकती है.
मुआवज़े की राशि का भुगतान सिविल सर्जन द्वारा जारी डेथ सर्टिफिकेट के आधार पर किया जाता है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिपोर्ट के अनुसार बिजली के चपेट में आने से 2020 में 13446 और 2021 में 12529 मौतें हुई है.
सरकारी अधिकारी का कहना-"हम नहीं देखेंगे मामला"
किशोर कुमार आगे बताते हैं कि "हाईटेंशन अकसर हमारे घरों से सट जाता है और शॉट सर्किट हो जाता है. बिजली से जलने वाले उपकरण ख़राब हो जाते हैं ऐसे में इसका मुआवजा कौन देगा हमें? हर वक्त डर लगा रहता है की कब कोई धमाका हो जाए. हमारे घर में दरारें आ गई है. आख़िर विभाग और सरकार इस पर ध्यान क्यों नहीं देती."
बिहार स्टेट इलेक्ट्रिक सप्लाई वर्कर्स यूनियन के महासचिव भरत झा से जब हमने बात कि तो उन्होंने बताया कि "अगर तार पहले लगा है और उसके नीचे घर बना है तो ये गैर कानूनी है वहीं दूसरी तरफ़ अगर घर पहले बना है और तार बाद में तो ये सोचने वाली बात है. बिजली विभाग गैरजिम्मेदार होती जा रही है और सरकार भी इसपर कोई एक्शन लेते नज़र नहीं आती है."
इन सारे मुद्दों पर जब हमने साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड के डिप्टी सेक्रेटरी राजू रंजन दिवेदी से बात की तो उन्होंने पहले तो हमारी बात सुनी तो तुरंत कहा कि "इसका कंप्लेन हम नहीं देखेंगे."
जब हमने सर्कल ऑफिसर से बात की तो उन्होंने कहा की नहीं ये दानापुर का नंबर नहीं है और कहते हुए कॉल रख दिया.
सोचने वाली बात ये है कि किस तरह से बिजली विभाग अपने ज़िम्मेदारियों से पीछे हट रहा है. लोगों की जान जोख़िम में है. कई बार कार्यालय का घेराव भी किया गया लेकिन बिजली विभाग इस पर कोई एक्शन लेते नज़र नहीं आती है.