बिहार में उर्दू टीचर के 70 हज़ार पद खाली, क्या ये उर्दू भाषा को खत्म करने की कोशिश है?

सूबे में स्कूली शिक्षा में सुधार लाने के लिए सरकारी स्तर पर कवायद चल रही है। विभिन्न प्रयासों के बाद सरकार टीचरों की बहाली कर रही है लेकिन इनमें उर्दू टीचरों की बहाली बहुत पीछे छूट रही है। जानकारों की माने तो पूरी बिहार के विभिन्न स्कूलों में उर्दू शिक्षकों के करीब 70 हजार पदों की रिक्तियां हैं, जबकि तमाम कोशिशों के बाद भी केवल 14 हजार शिक्षकों की ही बहाली हो सकी है, जाहिर है इससे स्कूली बच्चों पर सीधा असर पड़ रहा है।

नियम की परवाह सरकार को नहीं है

सरकार के कार्यकलापों पर नजर डालें तो ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार इस बारे में कभी गंभीर नहीं रही। सरकारी बायलॉज के अनुसार यह नियम है कि किसी भी स्कूल में अगर एक भी उर्दू भाषी बच्चा होगा, तो वहां पर टीचर की नियुक्ति होगी। लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर हैं। वह कहते हैं, साल 2015 में उर्दू शिक्षकों की बहाली के लिए प्रक्रिया शुरू हुई। 2016 में कुछ शिक्षकों की नियुक्ति भी हुई लेकिन इसे नाकाफी ही कहा जाएगा।

करीब तीन साल पहले सरकारी स्तर पर यह कहा गया था कि बिहार में उर्दू टीईटी परीक्षा में 55 प्रतिशत अंक लाने वाले भी शिक्षक बन सकते हैं। तब इसके लिए शिक्षा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव आरके महाजन ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सचिव को पत्र लिख कर उर्दू शिक्षक अर्हता योग्यता के लिए निर्धारित 60 फीसदी प्राप्तांक में 5 प्रतिशत छूट देने की मांग की थी। बताया गया था कि केंद्र से अनुमति मिलने पर उर्दू शिक्षक बहाली में ऐसे अभ्यर्थियों को मौका मिल जाएगा, जो 55 प्रतिशत से अधिक और 60 प्रतिशत से कम अंक ला सके हैं।

पत्र में यह कहा गया था कि उर्दू भाषा को दूसरी राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। प्राइमरी स्कूलों में उर्दू शिक्षकों के लगभग 15 हजार पद रिक्त हैं। उर्दू स्पेशल टीईटी परीक्षा 2013 में काफी कम परीक्षार्थी उत्तीर्ण हो सके। इससे खाली पदों को नहीं भरा जा सका। 60% से कम अंक लाने पर उन्हें उत्तीर्ण नहीं घोषित किया जा सका।

उर्दू के प्रति सरकार का रवैया समझ से बाहर

उर्दू बांग्ला टीईटी संघ के प्रदेश अध्यक्ष मुफ्ती हसन रजा अमजदी कहते हैं, इस पूरे मसले पर सरकार के रवैया गजब का है। वह कहते हैं, 2013 में 27 हजार सीटों की बहाली के लिए ने विज्ञापन निकाला था। जिसमें 27 हजार उर्दू व 250 बांग्ला टीचरों की सीटें थीं। एग्जाम में करीब चार लाख परीक्षार्थी हिस्सा लिए। अक्तूबर 2013 एग्जाम का आयोजन हुआ। इसमें 28 प्रश्न गलत पूछे गए। पहला रिजल्ट भी इन गलत प्रश्नों पर ही जारी कर दिया गया।

मुफ्ती हसन रजा अमजदी कहते हैं, सरकार ने भी 28 गलत प्रश्नों को माना। इसके बाद संशोधित रिजल्ट निकला। एक्सपर्ट कमेटी ने भी इन प्रश्नों की गलती को स्वीकार किया। संशोधित रिजल्ट में 26 हजार परीक्षार्थी सफल घोषित हुए। सभी को उर्दू बांग्ला टीईटी का रिजल्ट जारी हुआ। नियुक्ति के लिए जिला व प्रखंड स्तर पर कार्य शुरू हुआ। इसी बीच मामला कोर्ट में चला गया। जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि गलत सवालों को निकाल कर रिजल्ट को जारी किया जाए। इसके बाद तीसरी बार रिजल्ट निकला।

बांग्ला टीईटी वाले भी इंतेजार में

उधर बांग्ला टीईटी कर चुके अभ्यर्थियों की इन्तेजार की सांस लंबी हो रही है। टीईटी शिक्षक संघ से जुड़े मुंगेर के निरंजन गणेश कहते हैं, पांच साल हो गए, बांग्ला टीईटी वालों का क्या होगा ? कोई नहीं बता रहा। निरंजन बताते हैं, बिहार सरकार के वर्ष 2014-15 की रोस्टर की माने तो पूरे बिहार में बांग्ला टीईटी की 301 सीटें हैं। 2016 के बाद में 150 के करीब बहाली हुई। तब 251 अभ्यर्थियों को क्वालीफाई करने में सफलता मिली थी। दरअसल 2016 में बहाली की प्रक्रिया शूरु हुई थी और ये पूरी 2017 में हुई थी।

अबरार बताते हैं, सरकार की तमाम कोशिश के बाद भी अभी तक 11 से 12 हजार तक उर्दू शिक्षक बहाल हो पाए हैं। करीब तीन हजार शिक्षकों की काउंसिलिंग अभी हो सकी है। जबकि 14 हजार शिक्षकों की काउंसिलिंग होनी है। वह कहते हैं, 2013 के सरकारी नोटिफिकेशन का जिक्र करें तो इसमें 27 हजार उर्दू शिक्षकों की बहाली की बात कही गई है। स्कूली बच्चों व स्कूल के अनुसार करीब 70 हजार के करीब टीचर चाहिए लेकिन इसकी तुलना में अभी तक केवल 14 हजार की ही बहाली हो सकी है यानि 50 प्रतिशत बहाली भी अभी तक नहीं हो सकी है।

हजारों को किया गया फेल

मुफ्ती हसन रजा अमजदी बताते हैं, ताज्जुब यह कि इस तीसरे रिजल्ट में 26 में से 12 हजार परीक्षार्थी फेल घोषित कर दिए गए। सरकार द्वारा इन परीक्षार्थियों को कई बार इंसाफ दिलाने का आश्वासन दिया गया। इसी दौरान राज्य सरकार द्वारा इस विषय पर सरकारी वकील से ओपिनियन भी मांगा गया। वह अभ्यर्थीयों के पक्ष में आया। इस ओपिनियन पर कार्रवाई करते हुए शिक्षा विभाग द्वारा बोर्ड द्वारा पत्र  लिखकर पांच प्रतिशत नंबर कम कर के कटआफ जारी करने को कहा गया। वह कहते हैं, तब से लेकर आज तक इस बारे में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। हमें यह समझ नहीं आ रहा कि हमसब करें तो क्या करें।

उर्दू भाषा के विकास पर क्या असर पड़ेगा?

दरअसल नियुक्ति में इस लेट-लतीफी के कारण बिहार में उर्दू भाषा पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। शिक्षक नहीं रहने के कारण बिहार के शैक्षणिक संस्थानों में उर्दू पढ़ने वालों की संख्या में भी कमी आई है। अभी बिहार में 1 करोड़ सत्तर लाख (17,757,548) लोग उर्दू बोलते-पढ़ते हैं। लेकिन सरकार के उर्दू भाषा और उर्दू शिक्षकों के प्रति उदासीन रवैये की वजह से इस गंगा जमुनी भाषा की बुनियाद ही कमज़ोर हो रही है।

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