18वीं लोकसभा में लोकसभा सदस्यों के तौर पर शपथ ग्रहण का कार्यक्रम चल रहा है. इसके साथ ही लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए भी बुधवार को सुबह 11:00 से वोटिंग हो रही है. इसी बीच विपक्ष के नेता के लिए भी चर्चा चल रही थी. बीते 10 सालों से विपक्ष बिना किसी नेता के चल रहा था, ऐसे में मंगलवार को राहुल गांधी को लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद दिया गया. मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर इंडिया गठबंधन की मीटिंग में यह फैसला लिया गया.
राहुल गांधी(Rahul Gandhi) को पहली बार लोकसभा विपक्ष के नेता के तौर पर चुना गया है. राजनीतिक जीवन में राहुल गांधी ने पहली बार संविधैनिक पद संभाला है. गांधी परिवार से राहुल गांधी तीसरे ऐसे सदस्य हैं, जिन्हें विपक्ष का नेता बनाया गया है. इसके पहले राजीव गांधी 1989 से 1990 तक, सोनिया गांधी 1999 से 2004 तक इस पद पर रह चुकी हैं. बीते 10 सालों से (2014-24) तक यह पद खाली रहा था. आखरी बार (2009-14) के बीच सुषमा स्वराज विपक्ष की नेता रही थी.
राहुल गांधी ने 2004 से चुनावी सफर किया शुरू
बीते 10 साल के अलावा 1980 और 1989 में भी विपक्ष के नेता के पद पर कोई नहीं रहा था. दरअसल विपक्षी पार्टी के पास लोकसभा की कुल संख्या का कम से कम 10 फीसदी सांसद होना जरूरी होता है. यानी 54 सांसद होने पर ही विपक्ष का पद मिलता है. इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटें हासिल की है, जिसकी वजह से कांग्रेस के खाते में यह पद गया है.
राहुल गांधी को इस पद पर तैनात कराने के लिए कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने प्रोटेन स्पीकर को पत्र भी भेजा था.
विपक्ष के नेता बने राहुल गांधी को अब कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलेगा. सरकारी सचिवालय में उनके पास एक ऑफिस होगा, वेतन और भत्ता मिलाकर हर महीने उनको साढ़े तीन लाख रुपए मिलेंगे. इसके अलावा राहुल गांधी अब लोकपाल, सीबीआई के मुख्य चुनाव आयुक्त और कई महत्वपूर्ण नियुक्तियों के पैनल में शामिल होंगे. राहुल गांधी अब सरकार के आर्थिक फैसलों की समीक्षा, सरकार के फैसलों पर अपनी टिप्पणी कर सकेंगे. साथ ही सरकार के खर्चों की जांच और उनके समीक्षा भी कर सकेंगे.
मालूम हो कि राहुल गांधी ने 2004 में अपने चुनावी सफर की शुरुआत की थी. 2004 के बाद वह चार बार सांसद रहे हैं, पहले तीन बार अमेठी और एक बार वायनाड सीट से उन्होंने जीत हासिल की है. राहुल गांधी पहले किसी संसद या सरकार में पद पर नहीं रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी के उपाध्यक्ष और अध्यक्ष का पद संभाला है. 2013 में उन्हें कांग्रेस से उपाध्यक्ष बनाया गया था और 2017 में पार्टी के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया था. 2019 में लोकसभा चुनाव के हार के बाद उन्होंने अपने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और भारत जोड़ो यात्रा, भारत जोड़ो न्याय यात्रा, संविधान बचाओ यात्रा का नेतृत्व संभाला था.