आयुष्मान कार्ड बनाने की गति काफी धीमी, केवल 15% ही हुआ कार्य

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Sujit Srivastava
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केंद्र सरकार की अहम व महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक आयुष्मान भारत योजना या प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना बिहार में अपने लक्ष्य से दूर नजर आ रही है। दरअसल पूरे बिहार में इस योजना के तहत 5 करोड़ 55 लाख 62 हजार 406 लोगों के आयुष्मान कार्ड बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2022 तक केवल 71 लाख 23  हजार 553 लोगों के ही कार्ड बन पाए हैं। यानी अभी तक केवल 15% के आसपास लोगों का ही आयुष्मान कार्ड बन पाया है।

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आयुष्मान भारत योजना या प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, केंद्र सरकार की एक स्वास्थ्य योजना है। इस योजना को 1 अप्रैल 2018 में पूरे देश में लागू किया गया था। 2018 के बजट सत्र में तत्कालीन वित्त मंत्री अरूण जेटली ने इस योजना की घोषणा की थी। योजना का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर लोगों (बीपीएल धारक) को स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराना है। इसके अन्तर्गत आने वाले प्रत्येक परिवार को पांच लाख रूपये तक का कैशरहित स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जाता है।

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इस योजना का प्रत्यक्ष लाभ 10 करोड़ बीपीएल धारक परिवार (लगभग 50 करोड़ लोग) उठा सकेगें। हालांकि इसके अलावा बाकी बची आबादी को भी इस योजना के अन्तर्गत लाने की योजना है। इस योजना को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 14 अप्रैल 2018 को भीमराव अम्बेडकर की जयन्ती के दिन झारखंड के रांची जिले से आरम्भ किया था।

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पीएमसीएच के मेडिकल सुपरीटेंडेंट रह चुके और वर्तमान में आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी के डीन डॉक्टर राजीव रंजन प्रसाद कहते हैं,

ये निसंदेह एक अच्छी योजना है। बिहार में इसके तहत बनने वाले कार्डों की धीमी गति होने के कई कारण हैं। इनमें एक कारण सूबे में कॉरपोरेट हॉस्पीटल की कमी भी है। बिहार में इसकी कमी है। पारस हॉस्पीटल पहले से था। कुछ दिन पहले मेदांता की शुरूआत हुई है। रूबन को अब कॉरपोरेट मान लिया गया है। पहले हमारे डॉक्टर्स इंडीविजुअल प्रैक्टिस करते थे। सरकार के साथ सेटअप में कमी भी एक कारण है। इसके अलावा इसके इंप्लेमेंटेशन को लेकर कई एक्ट में भी संशोधन की जरूरत है।

राज्य के स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी नाम नहीं बताने के शर्त पर कहते हैं, कार्ड को पूरी तरह से बनाने में एक बड़ी दिक्कत डाटाबेस की है। यह बहुत अहम है। हालांकि इस बारे में केंद्र सरकार को सूचना दे दी गई है और केंद्र सरकार गंभीरता से इस पर कदम भी उठा रही है। इसे दूर करने से काफी तेजी से कार्ड को बनाया जा सकता है। जानकारों की माने तो इस कार्ड के बनने में तेजी नहीं पकडने का एक और कारण पिछले दो सालों से कोरोना का प्रसार है। इससे भी कार्ड बनने की गति में काफी कमी आई है।

बिहार के सहरसा जिले के पतरघट ब्लॉक के निवासी व राजधानी में नौकरी करने वाले आलोक कुमार कहते हैं,

इस कार्ड को बनवाने के लिए कई बार कोशिश किया, लेकिन कार्ड नहीं बना। पिछले दो साल से यह कार्ड इसलिए नहीं बना कि कोरोना अपने चरम पर था। एक-दो बार अपने ब्लॉक में बनवाने की कोशिश किया तो पैसे लगने की बात कही गई। सही सूचना क्या है? हमें नहीं बताया जाता।

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(आलोक कुमार ने कई बार कार्ड बनवाने की कोशिश की)

इसी गांव के रामबाबू साह बताते हैं, एक दो बार इस कार्ड को बनवाने के लिए कोशिश किए लेकिन सफलता नहीं मिली। रोज मजदूरी कर के खाते हैं, अब कार्ड बनवाएं या मजदूरी कर के परिवार को चलाएं।

डॉक्टर राजीव रंजन ये भी बताते हैं कि राज्य में निवासी करने वाली आबादी में से करीब 80 प्रतिशत आबादी, जो गरीबी रेखा के नीचे आती है, वह इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में जाती है। वो फ्री ईलाज और पेड ईलाज में अंतर नहीं समझ पाती है। सबसे अहम यह है कि इस कार्ड को बनवाने के लिए कोई थर्ड पार्टी नहीं है। राज्य सरकार खुद इसे मॉनिटर कर रही है। कुछ ऑपरेशनल दिक्कतें हैं। जिसे दूर करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।

केंद्र सरकार के आधिकारिक वेबसाइट पर दिए गए आंकडे के अनुसार सूबे में अब तक 1,08,95,571 परिवार इस कार्ड के पात्र हैं। राज्य स्तर पर देखा जाए तो पूरे बिहार में पांच करोड़ 55 लाख 62 हजार 406 लोगों के आयुष्मान कार्ड बनाने का लक्ष्य है। जिसमें से इस साल जनवरी माह तक 71 लाख 23 हजार 553 लोगों के ही कार्ड बन पाए हैं। ऐसे में कार्ड बनने की गति पर सवाल उठना लाजिमी है। राज्य की एक बडी आबादी अभी तक इस कार्ड के लाभ से वंचित है।

सीतामढी जिले के बाजपट्टी प्रखंड के मूल निवासी तथा पटना में कार्यरत नंदकिशोर चौधरी बताते हैं, इस कार्ड के बारे में मुझे पूरी तरह से जानकारी ही नहीं है कि यह क्या है और इसका लाभ क्या है?

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(नंदकिशोर चौधरी को आज तक इस योजना का लाभ नहीं मिला है)

वीकर सेक्शन की महिलाओं के उत्थान में वर्षों से कार्य कर रही दानापुर की सरोज सिंह कहती हैं, इस कार्ड के कई लाभ हैं।

मेरा काम ज्यादातर बिहार के दूसरे जिलों में होता है। मेरा काम महिलाओं को इस कार्ड के बारे में जानकारी देने का भी है। मैं खुद इसके लिए पहल करती हूं। अगर किसी के पास अनिवार्य दस्तावेज की कमी है तो उसे पूरा करने का प्रयास किया जाता है ताकि किसी प्रकार की दिक्कत न हो। वह बताती हैं, मधुबनी के अंधराठाडी ब्लॉक के निवासी रामबाबू राम का आयुष्मान भारत कार्ड उन्होंने बनवाया था। हाल ही में उसकी तबीयत खराब हुई थी। जिसका इलाज पटना के पारस हॉस्पीटल में चला। वह कहती हैं मेरी जानकारी में सैकड़ों ऐसे परिवार हैं, जिनकी मदद की गई है और उन्होंने अपना कार्ड बनवाया है।

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(ग्रामीण महिलाओं के साथ सुमन सिंह)

आयुष्मान भारत योजना केंद्र सरकार की एक अच्छी पहल होने के बाद भी जमीन पर नहीं दिख पा रही है। लागू करने में परेशानी और साथ में लोगों में जागरुकता की कमी को दूर करने के बारे में सरकार को विचार करने की जरूरत है।