बिहार, जिस राज्य का नाम लेते ही नालंदा व विक्रमशिला विश्वविद्यालय का जिक्र आता है, उस राज्य के छात्र अंजाने चिंता से त्रस्त हैं। दरअसल इन छात्रों की चिंता यह है कि राज्य की करीब करीब सभी यूनिवर्सिटी के सेशन देरी से चल रहे हैं लिहाजा ये छात्र एक ही क्लास में सालों पढाई करने को लेकर मजबूर हैं। विलंबित सत्र की वजह से लाखों छात्र-छात्राओं को कई अच्छे अवसरों से वंचित होना पड़ रहा है। जानकारी के अनुसार सरकार के सीधे नियंत्रण वाले 13 विश्वविद्यालयों में से कई लेटलतीफी के शिकार हैं। सूबे के कई ऐसे विश्वविद्यालय हैं जिनका सत्र पांच माह से 24 महीने पीछे चल रहे हैं। करीब एक साल पहले कुलाधिपति सह सह राज्यपाल फागू चौहान ने विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों के साथ हुई बैठक में यह फरमान भी जारी किया था और निर्देश दिया था कि पिछले साल 31 मई तक हर हाल में सभी परीक्षाएं और मूल्यांकन कराकर सेशन नियमित कर देना है।
राज्य के सबसे बड़े यूनिवर्सिटी में शुमार होने वाले मगध यूनिवर्सिटी की कहानी ही अलग है। जानकारी के अनुसार इस यूनिवर्सिटी में यूजी, पीजी की कौन कहे, वोकेशनल व प्रोफेशनल कोर्स भी वक्त पर नहीं हैं। मिली जानकारी के अनुसार पीजी का सेशन जहां दो साल की देरी से चल रहा है वहीं ग्रेजुएशन में 2018-21, 2019-22 तथा 2020-23 सत्र देरी से चल रहा है। इस यूनिवर्सिटी का विवादों के साथ गहरा नाता रहा है। सत्र में देरी की एक वजह पूर्णकालिक वीसी का नहीं होना भी है। दरअसल यहां वित्तीय अनियमितता व कई अन्य कारणों को लेकर वीसी राजेंद्र प्रसाद के बिहार के साथ ही यूपी के आवास पर एसवीयू द्वारा रेड मारा गया था। जिसके बाद यहां वीसी का पद प्रभार में है। जिसका सीधा असर सेशन पर पड़ रहा है।

राजधानी पटना में स्थित पूरब का ऑक्सफोर्ड के नाम से चर्चित पटना यूनिवर्सिटी में सत्र को पटरी पर लाने की कवायद तेज हो गयी है। पटना विश्वविद्यालय में नामांकन कार्य समाप्ति पर है और पीजी फर्स्ट सेमेस्टर की कक्षाएं 14 फरवरी से शुरू हो गई हैं। ग्रेजुएशन की कक्षाएं पहले ही प्रारंभ हो गयीं थी। इसके साथ ही पीजी सेकेंड (सत्र 2020-22) व फोर्थ सेमेस्टर (सत्र 2019-21) की परीक्षाएं 19 व 21 फरवरी से होंगी। वहीं विश्वविद्यालय की माने तो अब यूजी-पीजी की परीक्षाएं भी इस पर मई तक करा लिए जाने की तैयारी है ताकि जून में रिजल्ट देकर सत्र को नियमित कर दिया जायेगा।
पीयू के वीसी प्रोफेसर गिरीश कुमार चौधरी के अनुसार सत्र को वक्त पर करने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन पूरी तरह से तैयार है और इस वर्ष हर हाल में सत्र को नियमित कर लिया जायेगा।
प्रदेश के नये विश्वविद्यालय में शामिल पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय भी लेट लतीफ सत्र से अछूता नहीं है। इस विश्वविद्यालय में सत्र दो साल की देरी से चल रहा है। ताजा जानकारी यह है कि यहां पर परीक्षा कैलेंडर को जारी किया गया है और ऐसी तैयारी है कि अप्रैल से लगातार परीक्षाओं को आयोजित किया जाए। हालांकि परीक्षा पर नजर डाली जाए तो 2018-2020 सत्र की परीक्षाएं जो मई 2020 में ही हो जानी चाहिए थी, वह करीब दो वर्ष लेट है। हालांकि पीपीयू ने अपना परीक्षा कैलेंडर जारी कर दिया है और इसकी परीक्षा अप्रैल में ली जायेगी जिसके फॉर्म को 15 मार्च से भरा जाएगा। तैयारी यह भी है कि दो सत्रों की परीक्षा को एक साथ आयोजित किया जाए। इसके बाद अन्य परीक्षाओं को भी पहले शिफ्ट कर सत्र को पटरी पर लाने का प्रयास किया जा रहा है। अगर उक्त कैलेंडर को सही तरीके फॉलो किया गया तो पीपीयू में भी इस वर्ष सत्र को नियमित कर दिया जायेगा। गौर करने वाली बात यह है कि पटना विश्वविद्यालय समेत तमाम विश्वविद्यालय व कॉलेजों में अब परीक्षाओं का दौर शुरू होने वाला है।

सत्र को पटरी पर लाने की कोशिश में जुटे वीसी प्रो आरके सिंह कहते हैं, जल्द से जल्द सत्र को नियमित कर लिया जायेगा। इसी वजह से पूरा परीक्षा कैलेंडर तय कर उसे वेबसाइट पर भी डाल दिया गया है और उसे हर हाल में फॉलो किया जायेगा।
सूबे की अहम और राजधानी में स्थित नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी का भी सत्र लेट लतीफ है। बता दें कि नालंदा ओपेन यूनिवर्सिटी में सत्र 2020 की परीक्षाएं कुछ पहले हुई थीं। होमसाइंस व लाइब्रेरी साइंस की कुछ परीक्षाएं बच गयी थी, जिसका संचालन किया जा रहा है और यह जल्द की समाप्त भी हो जाएंगी। इसके तुरंत बाद 2021 की परीक्षाएं शुरू कर दी जायेंगी। विश्वविद्यालय प्रबंधन का मानना है कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो यहां भी इस वर्ष के अंत तक सत्र को नियमित कर लिया जायेगा। इसके लिए काउंसेलिंग क्लास का तेजी से आयोजन किया जा रहा है। विश्वविद्यालय के वीसी प्रो केसी सिन्हा कहते हैं, हमारी पूरी कोशिश सत्र को जल्द से जल्द पटरी पर लाने की है। स्टूडेंट राजेश कहते हैं, मेरा एडमिशन ग्रेजुएशन में है। हमारा रिजल्ट देरी से आया। उच्च क्लास के कई इंट्रेंस छूट गए। हम अपनी फरियाद किससे कहे।

राज्य के अहम विश्वविद्यालय में से एक मौलाना मजहरूल हक अरबी एवं फारसी विश्वविद्यालय में शुरू हुए परेशानी के बादल छंटने का नाम नहीं ले रहे हैं। इस विश्वविद्यालय में कुछ आंतरिक परेशानियां हैं जिसकी वजह से फिलहाल परीक्षाएं बाधित चल रही हैं। स्नातक की परीक्षाएं अभी हाल में स्थगित कर दी गयीं। इस विश्वविद्यालय का सेशन काफी लेट है, जिससे स्टूडेंट्स के चेहरे पर मायूसी है। अभी यहां वर्तमान सत्र (2021-2023) का नामांकन चल रहा है जबकि वहीं सेकेंड (2020-22) व फोर्थ (2021-23) सेमेस्टर की कक्षाएं चल रही हैं। विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार मोहम्मद हबीबुर्र रहमान का कहना है कि जैसे ही आंतरिक समस्याओं का हल होता है। वैसे ही परीक्षा का शेड्यूल जारी कर सभी पेंडिंग परीक्षाओं का करा लिया जायेगा।
लेट लतीफ सत्र से भागलपुर का तिलका मांझी यूनिवर्सिटी भी अछूती नहीं है। जानकारों की माने तो यह यूनिवर्सिटी का सत्र करीब दो साल लेट है। इसका सबसे अहम कारण यूनिवर्सिटी को नियमित वीसी नहीं मिलना बताया जा रहा है।
छात्र हित से जुडे कार्यों में सक्रियता से हिस्सा लेने वाले मोख्तार कहते हैं, सेशन देरी होगा तो इसका असर हर तरफ पडेगा। कोर्स की अवधि बढ जाएगी। वह कहते हैं, सत्र के संचालन में देरी का एक मुख्य कारण टीचिंग व नॉन टीचिंग स्टाफ की कमी भी है। छात्रों की जितनी संख्या है उस अनुपात में शिक्षक नहीं हैं। जब टीचर नहीं होंगे तो क्वालिटी एजुकेशन नहीं होगा। वह कहते हैं, हमने सर्वे किया था कि किस विषय के लिए कितने मान्य पोस्ट हैं। यह जानकारी सामने आई कि जहां पर जो भी टीचर रिटायर हुए, वहां पर भर्ती हीं नहीं हुई।

ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी का सत्र भी करीब एक से डेढ साल की देरी से संचालित हो रहा है। हालांकि यहां कोरोना में भी एग्जाम का आयोजन हुआ है लेकिन सत्र की देरी से परेशानी हो रही है। ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट संदीप कहते हैं, मेरा एडमिशन 2019-21 सत्र में हुआ है। मेरा सेशन लेट है। मेरा एग्जाम मार्च में आयोजित होगा, ऐसी जानकारी दी गई लेकिन मेरी परेशानी यह है कि तब तब नेट जैसा प्रतिष्ठित एग्जाम निकल जाएगा। कई पीजी इंट्रेंस भी निकल जाएंगे। क्योंकि जब तक मेरा रिजल्ट जारी होगा, तब तक मेरे सारे ऑप्शन निकल जाएंगे।
यहां सत्र में देरी का एक और अजीब कारण बताया जा रहा है। जानकारी के अनुसार यूनिवर्सिटी के जितने ऑनलाइन कार्य हो रहे थे, उस एजेंसी का करार खत्म हो गया था। जिसके बाद नयी एजेंसी को कार्य दिया गया था। नयी एजेंसी ने पुरानी एजेंसी से डाटा मांगा, जिसे देने से पुरानी एजेंसी ने इन्कार कर दिया। पुरानी एजेंसी का तर्क यह था कि नयी एजेंसी नये तरीके से अपना कार्य करे और डाटा एकत्र करे। मामला हाईकोट पहुंचा। जिसके बाद मामले का पटाक्षेप हुआ। इसके कारण भी सत्र के संचालन पर बुरी तरह से असर पडा। इसी प्रकार कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय का सत्र भी करीब एक से डेढ साल की देरी से चल रहा है।

मधेपुरा का बीएन मंडल यूनिवर्सिटी भी सत्र की देरी से अछूता नहीं है। जानकारी के अनुसार इस यूनिवर्सिटी में तीन सत्र एक साथ चल रहे हैं यानि 2018-20, 2019-21 तथा 2020-22 की स्टडी एक साथ हो रही है। इस यूनिवर्सिटी में पीजी का एक सत्र देरी से चल रहा है।
वित्तीय वर्ष 2021-22 में बिहार सरकार ने शिक्षा बजट में 8035 .93 करोड़ रुपये आवंटित किये गए थे। शिक्षाविदों को भरोसा था कि इससे बिहार में स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई पटरी पर लौट आएगी लेकिन बिहार में दूर-दूर तक ये होता नज़र नहीं आ रहा।