DC Explainers Education

आखिर क्यों आईएएस-आईपीएस अधिकारी के बच्चे सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ते हैं?

Spread the love

सरकारी स्कूल में शिक्षा के स्तर को ठीक करने के लिए योजना बनायी गयी थी कि आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बच्चे भी अपने नजदीकी सरकारी स्कूल में पढ़ेंगे. लेकिन क्या इस योजना का पालन हो पाया है?

(सरकारी स्कूल में अधिकांश दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चे पढ़ते हैं)

बिहार में शिक्षा व्यवस्था की खराब हालत होने के पीछे कई कारण हैं. सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी से लेकर शिक्षकों के अभाव तक सब कुछ इसमें निहित है.

इस स्थिति के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार कौन है? इसका फैसला तो जनता खुद कर लेगी. लेकिन बिहार की शिक्षा व्यवस्था में मौजूद इन समस्याओं का सबसे अधिक दुष्प्रभाव उन गरीब बच्चों पर पड़ता है जिनकी प्राथमिक शिक्षा भी इन्हीं सरकारी स्कूलों के भरोसे पर टिकी है.

प्रजातंत्र की मजबूती देश के नागरिकों की सकारात्मक पहल पर निर्भर करती है, लेकिन यह सकारात्मक सोच बिना अच्छी शिक्षा के पैदा नहीं हो सकती.

सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी बिहार में प्राथमिक शिक्षा का स्तर वास्तविक रुप से कुछ खास नहीं बदला है. शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए किए गए प्रयासों में एक प्रयास आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाकर भी करने का भी था.

इसके तहत बिहार के आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बच्चे भी यदि सरकारी विद्यालयों में पढ़ें तो विद्यालय की स्थिति भी सुधरेगी और शिक्षा के स्तर में भी बेहतरी होगी लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हो पाया.

सबसे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश को लेकर सुनाया था यह फैसला

इस विषय पर सबसे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2015 में एक फैसला सुनाया था. कोर्ट ने राज्य के सभी सरकारी अधिकारियों को अपने बच्चों को प्राथमिक सरकारी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ाने को कहा था. ऐसा नहीं करने वाले अधिकारियों पर कार्यवाई करने तक के आदेश दे दिए थे.

हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया था कि सरकारी, अर्ध-सरकारी विभागों के सेवकों, स्थानीय निकायों के, जनप्रतिनिधि, न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन मानदेय या धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से राज्य सरकार बोर्ड द्वारा संचालित स्कूलों शिक्षा प्राप्त करेंगे.

इस विषय पर हमने शिक्षाविद् और वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद कुमार सिंह जी से बात की. इनके द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘बिहार में प्राथमिक शिक्षा (एक नागरिक घोषणा-पत्र)’ जिसके आधार पर यूपी में पीआईएल डाली गई थी. उन्होंने हमें बताया कि

“उस वक्त उत्तर प्रदेश में मैंने इस पर ट्रेनिंग दी थी.वहां मेरा लेक्चर हुआ था जिसके आधार पर उन लोगों ने इसे मुद्दा बनाकर पीआईएल किया और वहां इसको सफलता मिल गई. बिहार में भी हम इस पर पीआईएल करने जा रहे हैं.”

2021 में पटना हाईकोर्ट ने भी मांगी थी अधिकारियों के बच्चों की रिपोर्ट

15 जुलाई 2021 को पटना हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए बिहार की नीतीश कुमार सरकार के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले आईएएस, आईपीएस समेत क्लास वन और टू अधिकारियों के बच्चों का ब्यौरा मांगा था.

राज्य में सरकारी स्कूलों की बदहाली व पढ़ाई के स्तर को लेकर हाईकोर्ट में दायर एक याचिका पर हाईकोर्ट ने आदेश दिया था.

इस आदेश के बाद शिक्षा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव संजय कुमार ने हाईकोर्ट के आदेश पर सभी जिले के जिलाधिकारियों और एसपी को चिट्ठी भेज दी थी.

इसमें यह साफ तौर पर कहा गया था कि कितने आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ रहे हैं इसकी डिटेल रिपोर्ट सबमिट कीजिए.

पुस्तक में की गई है 7 तरह की सिफारिशें

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद कुमार सिंह के द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘बिहार में प्राथमिक शिक्षा (एक नागरिक घोषणा-पत्र)’ में 7 तरह की सिफारिशें की गई हैं.

इस विषय पर हमने इस पुस्तक के संकलन-संपादक सह वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद कुमार सिंह जी से बात की. उन्होंने हमें बताया कि इस पुस्तक में 7 तरह की अपेक्षाएं/ अनिवार्यताएं बताई गई हैं.

  • सभी स्कूली बच्चों के लिए समान प्रकार की शिक्षा प्रणाली लागू की जाए.
  • शिक्षक सहित सरकारी कर्मचारी व अधिकारी एवं जनप्रतिनिधियों के बच्चों के लिए बाध्यता होगी उनके बच्चे सरकारी प्राथमिक विद्यालय में ही पढ़ें.
  • शिक्षा सर्वेक्षण के दायरे में निजी विद्यालयों को भी शामिल किया जाए.
  • विद्यालय का पुनर्गठन कर प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत मात्र 3 स्तर के विद्यालय यथा 1-5 वर्गीय और 1-8 वर्गीय एवं 6-8 वर्गीय विद्यालय ही संचालित किए जाएं.
  • शहरी क्षेत्रों में केंद्रीय विद्यालय की तर्ज पर एक ही परिसर में 1-8 तथा 9-12 वर्गीय विद्यालय संचालित किए जाएं.
  • विद्यालयों के पुनर्गठन से खर्च में कटौती होगी जो संसाधन के विकास में सहायता प्रदान करेगा.
  • प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन किया जाए.
लगातार गिरते शिक्षा के स्तर को देखते हुए लिया गया था फैसला

पटना हाईकोर्ट के द्वारा 2021 में यह फैसला लगातार गिर रहे शिक्षा के स्तर और बदहाली को देखते हुए लिया गया था. दरअसल उस वक्त कौशल किशोर ठाकुर ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई लिखाई के इंतजाम पर सवाल उठाया था.

शिक्षकों की कमी से लेकर तमाम तरह की असुविधाएं जब सरकारी अधिकारियों के बच्चों को भी झेलनी पड़ेगी तो निश्चित ही सभी लोग इस समस्याओं को जल्द दुरुस्त करने की कोशिश करेंगे. इससे बाकिं बच्चों को भी लाभ मिलेगा.

इस बात में कोई संशय नहीं कि यदि आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ेंगे तो निश्चित ही शिक्षा के स्तर में सुधार होगा.

नहीं पढ़ता एक भी अधिकारी का बच्चा सरकारी विद्यालय में

बिहार में एक भी आईएएस या आईपीएस अधिकारी ऐसे नहीं हैं जिनके बच्चे बिहार के प्राथमिक या किसी सरकारी विद्यालयों में पढ़ते हों. इस विषय पर विस्तृत जानकारी के लिए हमने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास से बात की. उन्होंने हमें बताया कि

“देखिए इस विषय पर कोई सर्वेक्षण तो नहीं किया गया लेकिन मेरा अनुभव है कि एक भी बच्चे नहीं पढ़ते होंगे. हमने कभी देखा या सुना नहीं है कि किसी आईएएस का बच्चा या आईपीएस का बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ता हो. मेरी जानकारी के अनुसार तो एक भी अधिकारी ऐसे नहीं हैं. हो सकता है एक-दो लोग ऐसे निकल जाएं तो मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा.”

(दाहिने से तीसरे क्रम में अमिताभ कुमार दास, पूर्व आईपीएस अधिकारी)
अगर सही तरीके से यह लागू हो तो बेहतर हो सकती है शिक्षा व्यवस्था

पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने बताया कि

“अगर सरकार में इच्छाशक्ति रहे तब तो सरकारी स्कूलों में काफी सुधार हो सकता है. मैं दिल्ली की बात कर रहा हूं जहां सरकारी स्कूलों की हालत बेहद खस्ता थी. लेकिन मनीष सिसोदिया जो वहां के शिक्षा मंत्री हैं उन्होंने दिल्ली के स्कूलों का कायापलट कर दिया. सरकार में यदि इच्छाशक्ति रहे तो बिहार में भी यह काम हो सकता है.”

पढ़ाने के अलावा शिक्षकों को लगा दिया जाता है दूसरे कामों में

बिहार में शिक्षकों की बहाली तो सरकार यह कहकर करती है कि बहाल किए गए शिक्षक स्कूलों में बच्चों को पढ़ाएंगे. लेकिन पढ़ाने के अलावा उन्हें कई और तरह के कामों में लगा दिया जाता है.

इस वजह से विद्यालय में जो समय दिया जाना चाहिए था वह किसी और सरकारी कार्य में चला जाता है. इस विषय पर हमें पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास जी ने बताया कि

“सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को मिड-डे मील या फिर कह लीजिए भोजन वाली व्यवस्था में लगा दिया जाता है. वर्तमान में देख लीजिए बिहार में जातीय जनगणना हो रही है. सारे शिक्षकों को उस कार्य में झोंक दिया गया है. चुनाव आते हैं तो शिक्षकों को चुनाव कराने में लगा दिया जाता है. यह भी एक बहुत बड़ा कारण है कि बिहार के सरकारी स्कूलों की हालत काफी खस्ता है.”

स्टेटस सिंबल है एक बड़ी वजह

पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास बिहार में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों द्वारा अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में नहीं पढ़ाने की एक वजह स्टेटस सिंबल को भी मानते हैं. उन्होंने हमें बताया कि

“समाज में प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाना एक स्टेटस सिंबल है. आमतौर पर प्राइवेट स्कूलों की फीस ज्यादा होती है इसलिए वहां पढ़ाना थोड़ा मुश्किल है. स्टेटस सिंबल के चक्कर में अधिकारी उन सरकारी स्कूलों में जहां पढ़ाई अच्छी होती है, वहां अपने बच्चों को ना भेज कर महंगे स्कूलों में भेजना चाहते हैं.”

सरकार को उठाने होंगे ठोस कदम

बिहार सरकार यदि सचमुच शिक्षा व्यवस्था में सुधार चाहती है तो उसे इस विषय पर ठोस कदम उठाने होंगे. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अगर सचमुच बिहार के सभी आईएएस-आईपीएस के बच्चे कम-से-कम प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए भी सरकारी विद्यालयों में पढ़ें तो इससे निश्चित बाकिं बच्चों को लाभ मिलेगा.

समस्याएं भी जल्द दूर कर दी जाएगी. लेकिन सबसे जरूरी है कि राज्य सरकार इस विषय को गंभीरता से लें और समूचे बिहार में  इसे सख्ती से लागू करवाए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *