बिहार सरकार राज्य में लगातार लड़कियों के समग्र विकास जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य और समानता के लिए काम कर रही है. राज्य सरकार इसके लिए कई योजनाएं भी राज्य में चला रही है. बिहार सरकार द्वारा साल 2007 में बालिकाओं के लिए ‘मुख्यमंत्री कन्या सुरक्षा योजना’ लाया गया था. ताकि राज्य में बच्चियों को समाज और परिवार में बोझ न समझा जाए. केंद्र सरकार भी कई योजनाए कन्याओं के उत्थान और विकास के लिए चला रहा है.
इसके बावजूद NFHS-5 के रिपोर्ट के अनुसार राज्य में लड़कों के मुकाबले लड़कियों का लिंगानुपात पिछले पांच सालों में 934 से गिरकर 908 हो गया है. राज्य के औसत में पिछले पांच सालों में 26 अंकों की गिरावट दर्ज कि गयी, जो चिंता का विषय है. वहीं राज्य में सबसे अधिक गिरावट मुज्जफरपुर में दर्ज कि गयी है. यहां चाइल्ड सेक्स रेशियो 930 से गिरकर 685 पर पहुंच गया है. सारण में 976 से 779, मधुबनी में 954 से 805, दरभंगा में 982 से 812 और अरवल में 932 से 815 के रेशियों में गिरावट दर्ज कि गयी है.
NFHS-4 के पिछले रिपोर्ट के अनुसार राज्य में एक हजार लड़कों पर जहाँ 934 लड़कियां थीं, लेकिन NFHS-5 के रिपोर्ट के अनुसार अब एक हजार लड़कों पर 908 लड़कियां हो गयी हैं.
वहीं राज्य कई जिले ऐसे भी हैं जहाँ लिंगानुपात में वृद्धि दर्ज किया गया है. वैशाली जिले में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज कि गयी है. यहाँ चाइल्ड सेक्स रेशियों 826 से बढकर 1118 हो गया है. जहानाबाद में 846 से 1066, मधेपुरा में 895 से 1058, बेगूसराय 955 से 1058 और सिवान में 983 से 1063 के रेशियों में बढ़ रहा है
समाजिक कार्यकर्त्ता निवेदिता जी का मानना है “सरकार के नारे और वादे सिर्फ कागजों और कहने के लिए होते हैं. अगर धरातल पर ‘बेटी बचाओं बेटी पढाओं’ का नारा बिहार में उतरा जाता तो लड़कियों कि संख्या में कमी क्यों आती? लड़कों के मुकाबले लड़कियों कि संख्या पहले से ही कम थी अब इसमें और कमी समाज को कहाँ ले जाएगी?”
लिंगानुपात में आई कमी का एक प्रमुख कारण अभी भी रुढ़िवादी सोच है. समाज कि यह सोच कि बेटा से वंश आगे बढ़ता है और बेटियां परायी होती है इस कारण भी लड़कियों को आज भी गर्भ में मार दिया जाता है. रुढ़िवादी सोच वाले परिवार में जब कोई महिला गर्भवती होती है. और उसके पहले से ही एक या दो बेटियां होने के कारण परिवार यह जानने के जुगार में रहता है आखिर इसबार गर्भ में लड़का है या लड़की. जैसे ही उन्हें लड़की का पता चलता है, परिवार गर्भपात कि दिशा में आगे बढ़ जाता है. बहुत सारे मामलो में गर्भवती महिला इसके लिए सहमत नही होती है. लेकिन कई मामलो में देखा गया है कि महिला भी बेटे कि चाहत में बार- बार गर्भपात करवाती है.”
सरकार को इस गंभीर समस्या को दूर करने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
इसका जवाब देते हुए निवेदिता जी का कहना है सरकार को तीन मुद्दों पर दृढ संकल्पित होकर काम करना होगा. पहला लड़कियों कि शिक्षा, दूसरा उनके स्वास्थ्य और तीसरा गर्भस्थ महिला और लड़कियों के लिए अलग से विशेष पोषण. अगर इन तीन मुद्दों पर क्रमवार ध्यान दिया जाए कन्या लिंगानुपात को बढ़ाया जा सकता है. साथ ही जिन इलाकों में कमी दर्ज कि गयी है उन इलाकों को चिन्हित कर पता लगाना चाहिय आखिर क्या कारण है कि वहां नवजात बालिकाओं कि संख्या कम हो रही है.
वहीं एनएमसीएच में सीनीयर प्रसूति और स्त्री रोग विशेसज्ञ डॉ रितु का कहना है “समाज में आज भी भ्रूण हत्या का काम निर्बाध ज़ारी है. और यह छोटे शहरों और गांवों में मोटी रकम लेकर किया जा रहा है. हमारे पास जब इस तरह के लोग आते है तो हम उन्हें समझाते हैं. लिंग जाँच करवाना क़ानूनी अपराध है इसके लिए आपको सजा भी हो सकती है. लेकिन अब हम उनके घर तक तो नही जा सकते. बहुत केस में लोग डॉक्टर ही बदल लेते है. ऐसे में उनलोगों कि मॉनिटरिंग नही हो पाती है. लिंगानुपात गिरने का कारण केवल भ्रूण हत्या नही है. इसका एक कारण उनकी अनदेखी भी है. नवजात शिशु को विशेष ध्यान देने कि आवश्यकता होती है. लेकिन छोटी सोच के लोग इन बच्चियों को दूध और दूसरी तरह कि सेवाएं नही देते हैं जिसके कारण भी उनकी मौत बहुत कम दिनों में हो जाती है.”
वैसे नवजात चाइल्ड सेक्स रेशियों में कमी के बावजूद राज्य में राहत कि बात यह है कि प्रदेश में नवजात शिशुओं की मृत्युदर में दो प्रतिशत की कमी आई है. NFHS-4 के सर्वेक्षण में यह आंकड़ा 36.7 फीसद था जो NFHS-5 में घटकर 34.5 प्रतिशत हो गया है. और इस सुधार का कारण शायद गर्भवती महिलाओं का अस्पताल में प्रसव का दर बढ़ना, टीकाकरण एवं मां के दूध के प्रति जागरुकता बढ़ना भी है. NFHS-5 के आँकड़ों के अनुसार संस्थागत प्रसव में 19.5 फीसद की बढ़ोतरी हुई है.
ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से 11 प्रतिशत वहीं शहरी क्षेत्रों में 14 फीसद अधिक महिलाएं अब प्रसव कराने अस्पताल जाने लगी हैं. NFHS-5 के आंकड़े बताते हैं कि अस्पतालों में डिलीवरी 76.2 प्रतिशत पर पहुंच गया है. वहीं 12 से 23 महीने के बच्चों के वैक्सीनेशन के मामले में राज्य जहां पहले 61.7 प्रतिशत पर था. वहीं NFHS-5 के रिपोर्ट में यह बढकर 71 प्रतिशत पर पहुंच गया है.
समाज में परिवार नियोजन कि जिम्मेदारी अभी भी महिलाएं ही अपने कन्धों पर लेकर चल रही हैं. राज्य में महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा परिवार नियोजन करवाने में ज्यादा सक्रिय हैं. विगत पांच वर्षों में महिला बंध्याकरण 21 प्रतिशत से बढ़कर 35 प्रतिशत हो गया है. गर्भ निरोध के अन्य तरीके अपनाने के मामले में भी पुरुष महिलाओं से पीछे हैं. वहीं अगर राज्य में कुल यहाँ कुल प्रजनन दर(TFR ) बात कि जाए तो 2015-16 के समय यह 3.5 था जो 2019-21 में घटकर 2.98 पर पहुंच गया है.
NFHS-5 से एक और आंकरा निकलकर सामने आया है कि महिलाएं कि समाज में धीरे-धीरे ही सही स्थिति में सुधार हो रहा है. केंद्र और बिहार सरकार द्वारा चलायी जाने वाली योजनाओं का असर अब इस समुदाय में दिखने लगा है. केंद्र सरकार कि सुकन्या समृधि योजना, बेटी बचाओं बेटी पढाओं या बिहार सरकार द्वारा लड़कियों को शिक्षित करने की विभिन्न सरकारी योजनाओं ने अपना असर दिखाया है. इनमें साइकिल, पोशाक व छात्रवृति जैसी योजनाएं हैं जिनकी वजह से बेटियों की शिक्षा में आठ फीसद का इजाफा हुआ है. पहले जहाँ लड़कियों में शिक्षा का दर 49.6 फीसद था जो बढकर अब 58 फीसद हो गया है. हालाँकि साक्षरता के मामले में अभी भी महिलाए पुरुषों के मुकाबले 21 प्रतिशत कम हैं. वहीं लड़कियों में शिक्षा दर शहरों के मुकाबले गांवों में ज्यादा बढ़ी है. शहरी क्षेत्र में जहाँ 4 प्रतिशत कि बढ़ोतरी हुई है वहीं ग्रामीण इलाकों में नौ प्रतिशत कि वृद्धि हुई है.
शिक्षित महिलाएं ही शिक्षित समाज का निर्माण करती हैं, यह सत्य है. साथ ही शिक्षित महिलाएं ही स्वस्थ्य समाज का भी निर्माण कर सकती हैं. इसके लिए सबसे पहले महिलाओं को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी आवश्यक है. अगर महिलाये खुद के स्वास्थ्य और साफ़ सफ़ाई का ध्यान रखेंगी तभी अपने परिवार के अन्य लोगों के भी स्वास्थ्य का ध्यान रख पाएंगी. NFHS-5 के आँकड़ों के अनुसार 15 से 24 वर्ष कि लड़कियों द्वारा सैनिटरी पैड का इस्तेमाल बढा है. अब 31 फीसद कि जगह 59 प्रतिशत महिलाएं इसका उपयोग कर रही हैं.