भारतमाला परियोजना एनएच-119डी के तहत पटना जिले के फतुहा और धनरुआ प्रखंड के किसानों की ज़मीन अधिग्रहित की जानी है. लेकिन प्रस्तावित ज़मीन के अधिग्रहण और दिए जाने वाली मुआवज़े की राशि का किसान पिछले तीन सालों से विरोध कर रहे हैं. विरोध कर रहे किसानों का कहना है कि सरकार बाज़ार रेट से कम मुआवज़ा दे रही है. वहीं दूसरी तरफ़ प्रशासन बिना भुगतान किये ही बलपूर्वक ज़मीन को सरकारी कब्ज़े में ले रही है.
फतुहा और धनरुआ दोनों प्रखंडों के 12 मौजा की 205.26 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया जाना है. जिसमें धनरुआ अंचल के 8 मौजा टरवां, पभेड़ा, छाती, विजयपुरा, बहरामपुर, पिपरवां, बघवर, नसरतपुर और फतुहा अंचल के 4 मौजा वाजितपुर, जैतिया, रबियाचक और भेडगावां के किसानों की जमीन ली जा रही है.
भारत माला सड़क परियोजना के तहत आमस (गया) से जयनगर (मधुबनी) तक प्रस्तावित एक्सस्प्रेस-वे परियोजना बिहार के आठ जिलों से होकर गुजरने वाली है. औरंगाबाद से शुरू होकर यह पटना, नालंदा, अरवल, जहानाबाद, वैशाली, समस्तीपुर होते हुए दरभंगा तक जाएगी. 2021 से प्रस्तावित यह योजना अब तक जमीन अधिग्रहण के मामले में ही फंसी हुई है.
व्यावसायिक भूमि का मुआवज़ा कृषि भूमि के दर पर
पटना जिले के तहत आने वाले फतुहा और धनरुआ प्रखंड में बीते कुछ वर्षों में ज़मीन के दाम में वृद्धि हुई है. कई विकास परियोजनाओं के इन प्रखंडों या इसके आसपास के क्षेत्रों से होकर गुजरने के कारण कृषि भूमि की कीमत भी व्यवसायिक भूमि के तौर पर हो गई है.
वहीं परियोजना के लिए अधिगृहित की जा रही कई अधिकांश भूमि आवासीय और व्यावसायिक है. सरकारी कागज़ों में भी इसकी पुष्टि व्यवसायिक के तौर पर की गयी है. ख़रीद-बिक्री के समय भी इसका मूल्य व्यवसायिक भूमि के मूल्य के तौर पर ही तय किया गया है. लेकिन मुआवज़े के समय सरकार इसे कृषि भूमि घोषित कर मुआवज़ा दे रही है. साल 2020 में स्थल निरीक्षण के दौरान दोनों प्रखंडों की ज़मीन को कृषि आधारित भूमि बताया गया जिसका किसान विरोध कर रहे हैं.
फतुहा प्रखंड के भेडगावां के रहने वाले मनीष कुमार के पास पांच बीघा जमीन है. जिनमें से चार बीघा भारतमाला परियोजना के लिए ली जा रही है. खेती कर अपने सात लोगों के परिवार का पोषण करने वाले मनीष कुमार इससे परेशान हैं. पिछले तीन सालों से उचित मुआवज़े के लिए मनीष समेत 200 से अधिक किसान विरोध कर रहे हैं.
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए मनीष कहते हैं “भेडगावां मौजा के थाना 73 के तहत आने वाली खेसरा संख्या 1783 की ज़मीन व्यावसायिक है. इसकी रजिस्ट्री 2013 के सरकारी दर से 90 हज़ार रूपए डिसमिल हुई थी. मेरे पास सरकारी रिकॉर्ड भी है, जिसमें इसके व्यवसायिक भूमि होने की पुष्टि है. लेकिन सरकार उसी ज़मीन को 2021 में कृषि भूमि बताकर साढ़े चौदह हज़ार रूपए डिसमिल के दर से लेना चाहती है. अंतर देखिए जब सरकार बेचेंगी तो 90 हज़ार और ख़ुद ख़रीदेगी तो 14 हज़ार. जबकि इसका बाज़ार रेट 10 से 12 लाख रुपये डिसमिल है.”
बाज़ार दर से चार गुना कीमत की है मांग
किसानों की मांग है कि सरकार ज़मीन का मूल्य बाज़ार दर से चार गुना के दर पर तय करे, तभी किसानों की ज़मीन ले. धनरुआ प्रखंड के पभेड़ा पंचायत से कुल 69 एकड़ ज़मीन ली जा रही है.
पभेड़ा पंचायत के टरवां गांव के रहने वाले सुरेश सिन्हा प्रभाकर की चार बीघा (15 कट्ठा) ज़मीन इस परियोजना के तहत जा रही है. मुआवजे की राशि तय करने में हुई असामनता की बात करते हुए सुरेश सिन्हा कहते हैं “मेरे पंचायत में 22 लाख रूपए बीघा मुआवज़ा तय किया गया. यानी मोटा-मोटी सावा लाख रुपए कट्ठा या उससे भी कम. जबकि बगल के ही पंचायत में 3 लाख 31 हज़ार रूपए कट्ठा रेट दिया गया. यानी 68 से 70 लाख रुपए बीघा. जबकि एक अलंग (खेत के बीच का विभाजन) का बंटवारा है.”
किसानों के भूमिहीन होने का खतरा
फतुहा प्रखंड के जैतिया पंचायत के अंडारी, ग्वासपुर, भेडगावां, काजीबिगघा, हुजरा चकरहिया जैसे गांवों के किसान भूमिहीन होने के कगार पर आ गए हैं. इन गांवों में भारतमाला परियोजना के साथ-साथ, लॉजिस्टिक्स पार्क, औद्योगिक क्षेत्र निर्माण, खेल स्टेडियम और रेलवे लाइन बिछाने के लिए किसानों की ज़मीन ली गई है.
केवल फतुहा प्रखंड के जैतिया पंचायत में सरकार ने भारतमाला एक्स्प्रेस-वे के लिए 69 एकड़, लॉजिस्टिक्स पार्क के लिए 105 एकड़, औद्योगिक क्षेत्र के लिए 250 एकड़, खेल का स्टेडियम के लिए 100 एकड़ और नेउरा से दनियांवा तक रेलवे बाइपास बनाने के लिए 55 एकड़ जमीन अधिग्रहित किया है.
किसानों का आरोप है कि राज्य में विकास के नाम पर केवल एक ही क्षेत्र पर दबाव दिया जा रहा है. जिससे किसानों के भूमिहीन होने का ख़तरा बढ़ गया है. आने वाले दिनों में उन्हें खाने के लिए भी अनाज नहीं मिलेगा, क्योंकि खेत ही नहीं रहेंगे.
भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों ने मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, नीतीन गडकरी, स्थानीय सांसद रविशंकर प्रसाद को इस संबंध में पत्र भी लिखा है. लेकिन सरकार और अधिकारी उनकी समस्या नहीं सुन रहे हैं. वहीं सरकारी कार्यालयों और हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने के बाद भी अब तक इस समस्या का कोई हल नहीं निकाला जा सका है.
क्या ये किसानों को ख़त्म करने वाला कदम है?
20 साल पहले नेउरा-बरबीघा रेलवे लाइन बिछाने के लिए जैतिया पंचायत के भेडगावां गांव के रहने वाले 58 वर्षीय विजय कुमार सिन्हा की एक एकड़ ज़मीन ली गयी थी. वहीं 2021 से प्रस्तावित भारतमाला परियोजना के लिए भी दो एकड़ जमीन ली जा रही है.
भूमिहीन होने और रोजी-रोटी समाप्त होने के ख़तरे पर बात करते हुए विजय कुमार कहते हैं “इस पूरे क्षेत्र में लोग खेती पर ही निर्भर हैं. लेकिन विकास परियोजनाओं के नाम पर गांव के गांव समाप्त किये जा रहे हैं. अभी दो दिन पहले क्षेत्र के मुखिया और कुछ किसानों ने डीएम को एक आवेदन देकर पूछा कि किस नियम के तहत एक ही गांव में सारी परियोजनाओं का बोझ डाला जा रहा है. इसके बाद सुनने में आ रहा है कि दो परियोजनाओं- खेल का मैदान और औद्योगिक क्षेत्र को कैंसिल किया है. लेकिन अबतक इसका कोई लिखित जवाब नहीं मिला है.”
क्षेत्र में पहले भी पीडब्लूडी सड़क, रेलवे लाइन, हाईवे, बिहटा-सरमेरा सड़क, मेट्रो यार्ड आदि योजनाओं के लिए किसानों की हज़ारों एकड़ ज़मीन ली गई है. लेकिन सरकार ने उसका उचित मुआवज़ा नहीं दिया.
किसानों ने नहीं लिया मुआवज़ा, कोर्ट में जमा
उचित मुआवज़े की राशि नहीं मिलने के विरोध में फतुहा प्रखंड के चार मौजा भेडगावां, राबियाचक, जैतिया और वाजिदपुर के किसानों ने मुआवज़ा लेने से इंकार कर दिया. भू-अर्जन विभाग ने किसानों को तीन बार नोटिस जारी कर राशि लेने की सूचना दी. लेकिन किसानों ने मुआवज़े के लिए दावा कागज़ जमा नहीं किए.
मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच गया. इसके बाद भू-अर्जन विभाग ने फतुहा प्रखंड के 264 किसानों के नाम की सूची अख़बार में प्रकाशित कर चार अप्रैल 2023 तक दावा कागज़ जमा कर मुआवज़ा रशि लेने का समय दिया.
भू-अर्जन विभाग ने सूचना में उच्च न्यायालय के आदेश CWJC 3020/2022 का भी जिक्र किया जिसके अनुसार 4 अप्रैल 2023 तक मुआवजा राशि नहीं लेने वाले किसानों की मुआवजा राशि विशेष भू-अर्जन न्यायाधीश, व्यवहार न्यायालय पटना में जमा कराने की बात कही गई.
इस सूचना के बाद भी फतुहा प्रखंड के मात्र छह से सात किसानों ने ही मुआवज़ा लिया. जबकि दोनों प्रखंडों से लगभग एक हज़ार किसानों की ज़मीन अधिग्रहित हुई है. जिनमें से अब तक लगभग 200 किसानों को ही मुआवज़ा मिला है.
इधर प्रशासन लगातार बलपूर्वक किसानों के ज़मीन पर अधिकार जमा रही है. जिसके कारण कई बार किसानों और पुलिस के बीच झड़प हो चुकी है. शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे किसानों पर पुलिस लाठियां बरसा रही है. वहीं मसौढ़ी अंचलाधिकारी द्वारा बीते वर्ष धनरुआ थाना में पांच किसानों पर नामज़द और 150 अज्ञात किसानों पर प्राथमिकी दर्ज कराई गयी है.
अपने हक़ की मांग कर रहे किसानों को भय है कि बक्सर के चौसा जैसी घटना यहां के किसानों के साथ भी हो सकती है.