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बेगूसराय के बखरी प्रखंड का रामपुर गांव. सुबह सात बजे के करीब गांव के बाहर खेतों की ओर जाने वाला रास्ता शांत है. लेकिन खेतों में हलचल है. बुज़ुर्ग किसान रामपुकार सिंह अपनी खेत की मेड़ पर खड़े हैं, चेहरा चिंता से भरा हुआ.
“देखिए बाबू, यही खेत में धान बोया था, सरकारी बीज से. अब देख लीजिए, हरा भी नहीं हुआ. सड़ा, सूखा और खत्म हो गया,” वे जमीन की ओर इशारा करते हैं.
सरकार से मिले बीज के सहारे खेती करने वाले सैकड़ों किसानों की यही कहानी है. बीज बोया गया, लेकिन या तो अंकुर फूटे ही नहीं या कुछ दिन बाद ही पौधे मुरझा गए.
सरकारी गोदाम से मिली 'मौत' की थैली
रामपुकार सिंह को 30 किलो धान का बीज सरकारी केंद्र से मिला था — 'संकर धान, वैरायटी 6444 — नाम तो ऐसा जैसे सोना उगलेगा. लेकिन जब बोने के बाद खेत में 15 दिन तक कुछ नहीं उगा तो वे परेशान हो उठे.
“तीन बार गए कृषि विभाग में. बोले कि बारिश की वजह से बीज खराब हुआ होगा. अब बताइए, सब खेत में बारिश तो बराबर हुई थी, फिर बाकी लोगों की फसल क्यों ठीक है?” रामपुकार सवाल दागते हैं.
यही बीज जिले के सैकड़ों किसानों को दिए गए. गांवों के नाम बदलते हैं — पर कहानी एक-सी है: सरकारी बीज से बर्बाद फसल.
'कीटनाशक ने खेत को जला दिया' — बखरी से साहेबपुर तक की पुकार
बेगूसराय के साहेबपुर कमाल ब्लॉक में रहने वाले किसान सरफराज आलम ने मक्के की फसल पर कीटनाशक छिड़का. दवा सरकारी दुकानों से ली गई थी — कृषि विभाग की अनुशंसा वाली.
“दवा छिड़का और दो दिन में पूरा खेत पीला पड़ गया. पत्ते जल गए, पौधा मुरझा गया. पहले समझा की मौसम का असर होगा. लेकिन बाद में पता चला कि दवा की एक्सपायरी डेट बदल दी गई थी.”
जब सरफराज ने दवा की बोतल को पास के कृषि विशेषज्ञ को दिखाया, तो मालूम हुआ कि डिब्बे पर छपी जानकारी और असल डेट में फर्क है.
बर्बाद फसल का मुआवज़ा कौन देगा?
बेगूसराय के दर्जनों गांवों से किसान जिला मुख्यालय तक पहुंचे. कुछ ने एफआईआर कराई, तो कुछ ब्लॉक ऑफिस के चक्कर काटते रहे.
लेकिन जब रिपोर्टर ने जिलाधिकारी कार्यालय से संपर्क किया, तो वहां से यही जवाब मिला — “जांच कर रहे हैं.”
कब तक जांच चलेगी?
किसान को क्या मिलेगा?
बीज की जांच रिपोर्ट कौन देगा?
इन सवालों का जवाब आज तक किसी के पास नहीं है.
गारंटी फेल — बीज परीक्षण की क्या औकात?
बिहार के ही एक कृषि पदाधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, “बीज कंपनियों की लॉट पहले से तय होती है. कभी-कभी खराब बीज भी वितरण हो जाता है. ऊपर से दबाव भी रहता है — तय तारीख तक बीज बांटना है. परीक्षण की प्रक्रिया अधूरी रहती है.”
जब उनसे पूछा गया कि बीज वितरण से पहले परीक्षण क्यों नहीं होता, तो उन्होंने कहा, “समय की कमी, मानव संसाधन की कमी और राजनीतिक दबाव — ये तीन वजहें हैं.”
मतलब साफ है — किसान को जो मिल रहा है, वो प्रयोगशाला नहीं, सीधे खेत में टेस्ट हो रहा है.
पॉलिसी बनाम ज़मीनी हकीकत
सरकार हर साल प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, बीज वितरण योजना और कीटनाशक अनुदान योजना जैसे दर्जनों स्कीम चलाती है. कागजों में किसानों को बीज, खाद, दवा, ट्रेनिंग और बीमा — सबकुछ मिलता है.
लेकिन बेगूसराय के किसान छोटे लाल यादव हंसते हुए कहते हैं — “साहब, सरकार तो कहती है सब फ्री में मिलेगा. लेकिन पहले लाइन में लगिए, फिर घूस दीजिए, तब जाकर ‘फ्री’ में बीज मिलेगा. अब बीज भी ऐसा जो बीज नहीं, बर्बादी है.”
गांव की पंचायत में अब कृषि नहीं, आक्रोश है
चांदपुर पंचायत में 200 से अधिक किसान बीज व दवा घोटाले के विरोध में सड़क पर उतरे थे. ग्रामसभा में प्रस्ताव पास किया गया कि अगर 15 दिन में मुआवजा नहीं मिला तो मुख्यालय घेराव किया जाएगा.
“एक तरफ सरकार किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की बात करती है, दूसरी ओर खुद सरकारी बीज आत्महत्या का कारण बन रहे हैं,” युवा किसान अजीत कुमार कहते हैं.
“बीमा भी नहीं, बदला भी नहीं” — पीएम फसल बीमा योजना पर सवाल
राज्य सरकार और केंद्र, दोनों दावा करते हैं कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से नुकसान की भरपाई होती है. लेकिन बेगूसराय में अधिकांश किसानों ने शिकायत की है कि फसल नुकसान के बाद भी न तो सर्वे हुआ, न बीमा क्लेम.
“बीज खराब, फसल बर्बाद, बीमा नहीं — अब क्या करें? दिल्ली जाकर आत्महत्या करें?” — किसान रामेश्वर साह का ये सवाल एक चीख की तरह है.
जवाबदेही किसकी?
इस पूरे घटनाक्रम में जवाबदेही तय नहीं होती. जब कृषि विभाग से सवाल पूछा जाता है, तो वे बीज कंपनी पर दोष डालते हैं. बीज कंपनी कहती है — “सरकारी गोदाम से रिसाव हो गया होगा.” और जब किसान पूछता है कि “हमारा नुकसान कौन भरेगा?” — तो सब चुप हो जाते हैं.
समाधान क्या है?
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बीज व दवा की थर्ड पार्टी जांच अनिवार्य हो.
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किसानों को बीज/दवा की बिल और इस्तेमाल की विधि की जानकारी अनिवार्य रूप से दी जाए.
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एक जिला-स्तरीय हेल्पलाइन बने, जहाँ किसान फसल से जुड़ी शिकायत दर्ज कर सके.
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दोषी कंपनियों पर जुर्माना और लाइसेंस रद्द हो.
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मुआवज़ा देने की पारदर्शी और समयबद्ध व्यवस्था बने.
किसानों की मांग — “सरकारी मदद नहीं, इंसाफ चाहिए”
बेगूसराय के किसानों का दर्द साफ है — अब वे ‘राशन, बीज, अनुदान’ नहीं, बल्कि इंसाफ मांग रहे हैं. वे चाहते हैं कि अगर सरकारी गलती से उनका नुकसान हुआ है, तो जिम्मेदारों पर कार्रवाई हो.
किसानों की एकता अब धीरे-धीरे आन्दोलन का रूप ले रही है. अगली विधानसभा में यह मुद्दा उठेगा या नहीं, यह अलग बात है. लेकिन गांवों की मिट्टी में अब गुस्सा पल रहा है.
सरकारी बीज और कीटनाशक से फसल बर्बादी अब अपवाद नहीं, एक पैटर्न बन चुका है. इस रिपोर्ट के ज़रिये हमने बेगूसराय ज़िले के उन सैकड़ों किसानों की आवाज़ उठाई है, जिनकी ज़मीन तो है — पर नीति से न्याय नहीं.