बेगूसराय से मक्का अनुसंधान केंद्र का स्थानांतरण और बिहार के किसानों के भविष्य पर संकट

2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के सात जिलों में मक्का की उत्पादकता 50 क्विंटल प्रति एकड़ हो गई थी, जो अमेरिका के इलिनोइस, आयोवा और इंडियाना जैसे उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्रों से भी अधिक थी

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नाजिश महताब
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बिहार, जो देश के प्रमुख कृषि राज्यों में से एक है, आज एक गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है. बेगूसराय स्थित मक्का अनुसंधान एवं बीज उत्पादन केंद्र को कर्नाटक के शिवमोग्गा में स्थानांतरित करने का निर्णय न केवल प्रशासनिक स्तर पर लिया गया एक फैसला है, बल्कि यह बिहार के लाखों किसानों की आजीविका और भविष्य से जुड़ा एक संवेदनशील मुद्दा भी है. यह स्थानांतरण सिर्फ़ एक संस्थान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की बात नहीं है, बल्कि यह बिहार के मक्का किसानों की मेहनत और वर्षों की प्रगति को कमजोर करने की प्रक्रिया है.  

 मक्का अनुसंधान केंद्र और उसकी अहमियत  

बेगूसराय का यह अनुसंधान केंद्र 1997 में स्थापित हुआ था. यह न केवल बिहार बल्कि पूरे पूर्वी भारत के मक्का किसानों के लिए अनुसंधान और बीज उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र रहा है. इसकी स्थापना के बाद से, इसने मक्का की उन्नत किस्मों के विकास और उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि हुई है. बिहार के खगड़िया, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, मधेपुरा, सहरसा और समस्तीपुर जैसे जिलों में मक्का उत्पादन किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत है.  

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2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के सात जिलों में मक्का की उत्पादकता 50 क्विंटल प्रति एकड़ हो गई थी, जो अमेरिका के इलिनोइस, आयोवा और इंडियाना जैसे उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्रों से भी अधिक थी. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा UPAg portal पर जारी किए गए कृषि वर्ष 2023-24 के अंतिम पूर्वानुमान के आंकड़े के अनुसार 57.09 लाख मक्का का उत्पादन कर बिहार ने देश में प्रथम स्थान प्राप्त किया है. इस तरह के परिणाम दिखाते हैं कि बिहार के किसानों ने मक्का उत्पादन में क्रांतिकारी बदलाव किया है और इस सफ़लता में बेगूसराय स्थित मक्का अनुसंधान केंद्र की अहम भूमिका रही है.  

स्थानांतरण का निर्णय और उसकी प्रतिक्रिया  

हाल ही में, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शिवमोग्गा के सांसद बीवाई राघवेंद्र को लिखे पत्र में इस स्थानांतरण की पुष्टि की. इस निर्णय के बाद बिहार के राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं. 

यह पहली बार नहीं है जब बिहार से महत्वपूर्ण संस्थानों को अन्य राज्यों में स्थानांतरित किया गया है. 1979 में, हाजीपुर में प्रस्तावित इलेक्ट्रॉनिक सिटी परियोजना को चुपचाप मोहाली, चंडीगढ़ में स्थानांतरित कर दिया गया था, जिससे राज्य के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था. अब, मक्का अनुसंधान केंद्र के स्थानांतरण से न केवल बिहार के किसानों की प्रगति प्रभावित होगी, बल्कि राज्य की कृषि अनुसंधान क्षमता भी कमजोर होगी.  

 किसानों के पर संभावित प्रभाव  

बिहार आज भी मक्का उत्पादन में देश में शीर्ष पर है, लेकिन इस अनुसंधान केंद्र के स्थानांतरण से राज्य के किसानों को उन्नत बीज और तकनीकी सहायता प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है, जिससे उनकी उत्पादकता और आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. इसके अलावा, यह कदम राज्य के कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को धीमा कर सकता है, जिससे कृषि में नवाचार और प्रगति बाधित हो सकती है.  

मक्का विशेषज्ञ से जब हमने इसके प्रभाव को लेकर बात की तो उन्होंने बताया कि “ पहला बड़ा प्रभाव यह होगा कि किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज प्राप्त करने में कठिनाई होगी. मक्का अनुसंधान केंद्र किसानों को जलवायु अनुकूल उन्नत किस्में और बीज उपलब्ध कराता था. इसके स्थानांतरण से बिहार के किसानों को अब उच्च गुणवत्ता वाले बीज प्राप्त करने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी, जिससे उनकी लागत बढ़ जाएगी और मुनाफा कम हो जाएगा. दूसरा प्रभाव यह होगा कि वैज्ञानिक और तकनीकी सहायता का अभाव होगा".

हमसे बात करते हुए आगे कहा की "अनुसंधान केंद्र केवल बीज ही नहीं, बल्कि किसानों को नई कृषि तकनीकों और मशीनरी की जानकारी भी देता था. यह उन्हें खेती के उन्नत तरीकों से परिचित कराता था, जिससे वे कम लागत में अधिक उत्पादन कर सकते थे. अब जब यह केंद्र बिहार में नहीं रहेगा, तो किसानों को ऐसी तकनीकी सहायता समय पर नहीं मिल पाएगी. तीसरा महत्वपूर्ण प्रभाव यह होगा कि किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाएगी. इस अनुसंधान केंद्र ने हजारों किसानों को सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार दिया था. इसके स्थानांतरण से न केवल स्थानीय स्तर पर रोज़गार कम होगा, बल्कि बिहार के कृषि क्षेत्र को भी नुकसान होगा.”

किसानों की प्रतिक्रियाएं  

बिहार के पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया और समस्तीपुर जैसे जिले मक्का उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र हैं. राज्य में लगभग 0.72 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर मक्का की खेती होती है, जो राष्ट्रीय उत्पादन का 14% हिस्सा है. बिहार में मक्का उत्पादन का महत्व केवल फसल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह किसानों की आय का प्रमुख स्रोत भी है. यहां के लगभग 15 लाख किसान मक्का उत्पादन से सीधे जुड़े हुए हैं.

बेगूसराय के एक मक्का किसान ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा, "यह सिर्फ़ एक अनुसंधान केंद्र का स्थानांतरण नहीं है, यह हमारी रोज़ी-रोटी पर हमला है. हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारी मेहनत से विकसित यह केंद्र हमसे छीन लिया जाएगा. अब हमें जो सुविधाएं मिलती थीं, वे नहीं मिलेंगी, और इसका आर्थिक प्रभाव भी बहुत गहरा पड़ेगा."  

दस वर्ष में उत्पादन बढ़कर तीन गुना

बिहार में वर्ष 2005-06 में मक्के का कुल आच्छादन क्षेत्र 6.48 लाख हेक्टेयर तथा उत्पादन 10.36 लाख टन हुआ. वर्ष 2016-17 में मक्के का रिकॉर्ड उत्पादन दर्ज किया गया. उस वर्ष 7.21 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मक्का का आच्छादन हुआ था तथा कुल उत्पादन 30.85 लाख टन हुआ. यानी दस वर्ष में उत्पादन बढ़कर तीन गुना हो गया. कमोबेश वही स्थिति आज भी बरकरार है. हाल के वर्षों में मौसम के दगा देने से कुछ उत्पादन गिरा है. लेकिन, उत्पादकता में कमी कभी नहीं आई.  

बेगूसराय के रहने वाले मुकेश जो मक्के की खेती करते हैं. जब हमने उनसे बात की कि अनुसंधान केंद्र को स्थानांतरित किया जा रहा है. उसपर उन्होंने बताया कि “ चुपके चुपके स्थानांतरित करना ये सरकार की मानसिकता को दिखाता है. स्थानांतरित करने के बाद हमें बहुत समस्या होने वाली है. हम बीज के लिए और कई सारी चीज़ों के लिए अनुसंधान केंद्र पर निर्भर रहते हैं, अगर सरकार उसे स्थानांतरित कर रही है तो हमारे ऊपर आर्थिक प्रभाव पड़ेगा. सरकार को चाहिए की बेगूसराय से केंद्र की स्थानांतरित नहीं करे और हमारे बारे में सोचे.”

बेगूसराय स्थित मक्का अनुसंधान केंद्र को कर्नाटक में शिफ्ट करने के मामले को केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अफवाह बताया है. गिरिराज सिंह ने मंगलवार को कहा कि ' मक्का अनुसंधान केंद्र कहीं शिफ्ट नहीं होगा, बेगूसराय में ही रहेगा.' हालांकि इसका कोई लिखित नोटिस नहीं है ये सिर्फ़ मौखिक बयान पर आधारित है.

इसी मामले पर जब हमने बेगूसराय जिले के जिला कृषि पदाधिकारी अजीत कुमार यादव से बात करने की कोशिश की लेकिन हमारी उनसे बात नहीं हो पाई. हम लगातार कोशिश करते रहेंगे की इनसे बात हो और समस्या का जल्द से जल्द निदान हो सके और सच लोगों के सामने आ सके. 

बेगूसराय का मक्का अनुसंधान केंद्र बिहार के लाखों किसानों की उम्मीदों का केंद्र है अगर इसका स्थानांतरित होगा तो किसानों को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. इसका स्थानांतरण केवल एक संस्थान का स्थानांतरण नहीं, बल्कि बिहार के किसानों की आत्मनिर्भरता पर एक गहरा आघात है. इसका असर बिहार के किसानों के आर्थिक स्थिति पर भी पड़ेगा जिसके कारण कृषिप्रधान राज्य और कृषिप्रधान देश के किसान का विकास नहीं हो पाएगा.

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