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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में खाद्य तेल की खपत में 10% की कमी करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि अधिक तेल का सेवन मोटापा, मधुमेह और हृदय रोग जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है। इसलिए, तेल की खपत में कमी लाना आवश्यक है। इस अभियान को प्रभावी बनाने के लिए प्रधानमंत्री ने आनंद महिंद्रा, उमर अब्दुल्ला और मीराबाई चानू जैसी 10 प्रमुख हस्तियों को नामित किया है, ताकि वे तेल की खपत कम करने और मोटापे से लड़ने के संदेश को फैलाने में मदद करें।
भारत में मोटापे की वर्तमान स्थिति
शहरी क्षेत्रों में मोटापा और अधिक वजन तेजी से बढ़ रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019–21) के अनुसार, 24% महिलाएं और 23% पुरुष अधिक वजन/मोटापे से ग्रस्त हैं, जो NFHS-4 (2015–16) की तुलना में अधिक है। 5 वर्ष से कम उम्र के 3.4% बच्चे अधिक वजन वाले हैं।
सरकार की पहल किसी और दिशा में
भारत में पाम ऑयल की खपत पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है और यह अब देश के कुल खाद्य तेल उपभोग का लगभग 38% से अधिक हिस्सा बनाता है। भारत हर साल करीब 90 लाख टन पाम ऑयल आयात करता है, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा आयातक बन गया है। हालांकि, हाल के महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाम ऑयल की बढ़ती कीमतों के कारण भारत में इसका आयात प्रभावित हुआ है। उदाहरण के लिए, जनवरी 2025 में आयात 46% घटकर 2.72 लाख मीट्रिक टन रह गया, जो मार्च 2011 के बाद सबसे कम स्तर पर है।
इस स्थिति से निपटने के लिए, सरकार ने घरेलू उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से 'खाद्य तेलों का राष्ट्रीय मिशन - ऑयल पाम' शुरू किया है। इस योजना के तहत, 2025-26 तक 6 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर पाम ऑयल की खेती का लक्ष्य रखा गया है, जिससे आयात पर निर्भरता कम होने की उम्मीद है।
पाम ऑयल का दुष्प्रभाव
सरसों का तेल और पाम ऑयल दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं, लेकिन यदि स्वास्थ्य और पोषण के दृष्टिकोण से देखा जाए, तो सरसों का तेल पाम ऑयल की तुलना में बेहतर विकल्प माना जाता है। सरसों का तेल हृदय, पाचन और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण के लिए अधिक लाभकारी है। पाम ऑयल का उपयोग ज्यादातर तली-भुनी और प्रोसेस्ड चीजों (जैसे बिस्कुट, चिप्स, इंस्टेंट नूडल्स आदि) में होता है, जो लंबे समय तक हृदय और वजन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
सरसों: एक बेहतर विकल्प
ईएसआईसी अस्पताल, नई दिल्ली के योग प्रशिक्षक श्री कृष्ण कन्हैया के अनुसार, "पारंपरिक रूप से देखा जाए तो सरसों का तेल सबसे अच्छा है। सरसों का तेल कई बीमारियों में भी उपयोगी होता है। यदि सही मात्रा में इसका उपयोग किया जाए, तो यह काफी फायदेमंद रहता है। इसमें मैग्नीशियम, आयरन, कैल्शियम और जिंक की अधिक मात्रा पाई जाती है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।"
बिहार में सरसों की खेती
बिहार में सरसों की खेती किसानों के लिए महत्वपूर्ण आय का स्रोत है, लेकिन वर्तमान में वे कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
आर्थिक चुनौतियाँ: सीवान जिले में सरसों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, लेकिन किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। स्थानीय प्रसंस्करण इकाइयों की कमी के कारण, उन्हें अपने उत्पादों को कम कीमत पर बेचना पड़ता है।
मोटापे के खिलाफ सरकार के प्रयास
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): मोटापे से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य जांच।
नीतिगत उपाय और जागरूकता अभियान
FSSAI का "हार्ट अटैक रिवाइंड" अभियान: ट्रांस फैट को खत्म करने और स्वस्थ तेलों के उपयोग को बढ़ावा।
निष्कर्ष
भारत ने मोटापे और खाद्य तेल की खपत को नियंत्रित करने के लिए नीतिगत उपायों और जागरूकता अभियानों में प्रगति की है। हालांकि, सांस्कृतिक प्राथमिकताएँ, आर्थिक असमानताएँ और उद्योग का दबाव बड़ी चुनौतियाँ बने हुए हैं। सरकार को स्वस्थ तेलों जैसे सूरजमुखी और सरसों की खेती को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि आम जनता पाम ऑयल का सेवन कम करे और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो। इस तरह की पहल सभी के लिए लाभदायक होगी, अन्यथा यह भी केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित रह जाएगी और इसका असल लाभ किसी को नहीं मिलेगा।