ज़हरीली शराब से मौत मामलों के बीच जानें कि क्या इसका कोई इलाज है?

author-image
पल्लवी कुमारी
एडिट
New Update
ज़हरीली शराब से मौत मामलों के बीच जानें कि क्या इसका कोई इलाज है?

सरकार बनने के बाद अप्रैल 2016 में बिहार में शराबंबदी का कानून लाया गया. 1 अप्रैल 2016 को बिहार देश का 5वां ऐसा राज्य बन गया जहां शराब पीने और बेचने पर प्रतिबंध लगाया गया. लेकिन ज़हरीली शराब आज भी लोगों के बीच है.

लेकिन इस सबके बावजूद आलम यह है कि बिहार में शराब की खपत महाराष्ट्र से भी ज़्यादा है, जबकि महाराष्ट्र में शराबबंदी नहीं है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5) के आंकड़े बताते हैं कि ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज़्यादा शराब की खपत होती है.

आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 15.5% पुरुष शराब पीते हैं. जबकि, महाराष्ट्र में शराब पीने वाले पुरुषों की तादात 13.9% है. हालांकि, 2015-16 की तुलना में बिहार में शराब पीने वाले पुरुषों की संख्या में काफ़ी कमी आई है. 2015-16 के सर्वे के मुताबिक, बिहार में करीब 28 फ़ीसदी पुरुष शराब पीते थे.

NFHS -5 के आंकड़े बताते हैं कि बिहार के ग्रामीण और शहरी इलाकों में महाराष्ट्र की तुलना में शराब पीने वालों की संख्या ज़्यादा है. बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8% और शहर में 14% पुरुष शराब पीते हैं. वहीं महराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में 14.7% और शहरी इलाकों में 13% पुरुष शराब पीते हैं.


और पढ़ें:- “मैं अमृत मोहत्सव में झंडा कहां लहराऊं, मुझे आज तक आवास ही नहीं मिला”


ये आंकड़े बिहार में शराबबंदी की कहानी बताने के लिए काफ़ी हैं. शराबबंदी के नाम पर यहां शराब के तस्करों का धंधा ख़ूब जम गया है. शराब तस्कर शराब बेचकर मोटी कमाई करने में लगे हैं. अगर आपके जेब में पैसे हैं तो आप आसानी से किसी भी ब्रांड का शराब यहां रहते हुए भी पी सकते हैं. लेकिन बात अब उन लोगों की जिनकी आमदनी उतनी नहीं है. लेकिन शराब की चाह या लत कहे उतनी ही है. इस वर्ग में हम मज़दूरों या इनके ही जैसे दूसरे इसी तरह का अन्य कम आय वाले काम करने वाले लोगों को ले सकते हैं. ज़्यादातर इसी वर्ग के लोग देसी और ज़हरीली शराब के चंगुल में फंस जाते हैं. कम पैसों में मिलने वाले इस देसी या कच्ची शराब को और नशीला बनाने के चक्कर में व्यवसायी इसमें यूरिया और ऑक्सिटोसिन जैसे केमिकल पदार्थ मिलाते हैं. जसके वजह से यह शराब मिथाइल अल्कोहल बन जाता है. इसी से ज़हरीली शराब बनती है. इस ज़हरीली शराब को पीकर ही लोग अपनी जान जोखिम में डालते हैं. 

publive-image

अभी हाल ही में छपरा में ज़हरीली शराब पीने से हुए 13 लोगों की मौत हो गयी है और लगभग 20 लोग गंभीर रूप से बीमार हो गए थे. जबकि प्रशासन 10 लोगों की मौत की पुष्टि कर रहा है. ग्रामीणों के अनुसार गांव में गवई पूजा के बाद लोगों ने शराब पी थी. जिसके बाद एक-एक करके लोगों की तबियत खराब होनी शुरू हो गयी थी.

ग्रामीणों का आरोप है कि गांव में देसी शराब बनाई जाती थी और ग्रामीणों ने वहीं से लायी गई शराब पूजा के बाद पी थी.  

वहीं इससे कुछ समय पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में ज़हरीली  शराब पीने की वजह से 13 लोगों की मौत हो गई थी. पिछले साल दीपावली के एक दिन पहले भी यहां कुछ लोगों की मौत ज़हरीली शराब पीने से हुई थी. इसके बाद से सिवान, गोपालगंज, बेतिया, मुजफ्फरपुर, भागलपुर जैसे जिलों से भी ज़हरीली शराब से मौत की खबरें सामने आयीं थी.

ज़हरीली शराब पीने से बीमार हुए व्यक्ति को तीन घंटे के अंदर एंटीडॉट देना ज़रूरी होता है. ज़हरीली शराब पीने के बाद यदि पीड़ित व्यक्ति को जल्द से जल्द इलाज न मिले तो उसकी मौत हो सकती है. डॉक्टरों का कहना है ज़हरीली शराब पीने से बीमार हुए व्यक्ति को एंटीडॉट ड्रग्स ‘फ़ोमिपिजाल’ दिया जाता है. साथ ही एक और ड्रग इथाइल अल्कोहल जो मुख्यत शराब बनाने के काम आती है इसका प्रयोग किया जाता है. मरीज की उम्र और वजन के हिसाब से इसकी डोज़ तैयार की जाती है. फिर उसे मरीज को पिलाया जाता है. वहीं कुछ मरीजों को आईवी के ज़रिए खून में दिया जाता है. वैसे शराबबंदी वाले इस राज्य में इथाइल अल्कोहल असली है या नकली ये बताना मुश्किल है.

पीएमसीएच में नही है एंटीडॉट 

बिहार के सबसे बड़े मेडिकल हॉस्पिटल पीएमसीएच में एंटीडॉट ड्रग फ़ोमिपिजाल मौजूद नहीं है. बिहार में जहां आए दिन जहरीली शराब पीने से लोगों के बीमार होने की खबरें आती रहती हैं. ऐसे में एंटीडॉट ड्रग फ़ोमिपिजोल का अस्पताल में मौजूद नहीं होना चिंता का विषय है. पीएमसीएच में  एमडी (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन) जेनरल मेडिसिन विभाग के डॉक्टर ऐश्वर्य कहते हैं

हम मरीज के एलोक्ट्रोलाइट और शुगर की जांच करते हैं और उसी के अनुसार मरीज को सपोर्टीव इलाज देते है. हम मरीज को डेक्सट्रोजऔर दूसरी दवा देते हैं. अस्पताल में फ़ोमिपिजाल नहीं है, मरीज को यह एंटीडॉट ड्रग बाहर से लाना होता है.

ज़हरीली शराब शरीर के अंदर जाने के बाद शरीर पर कैसे असर करता है?

पीएमसीएच के डॉक्टर अक्षित कहते हैं

सामान्य शराब इथाइल एल्कोहल होती है जबकि ज़हरीली शराब मिथाइल एल्कोहल कहलाती है. कोई भी एल्कोहल शरीर में लीवर के ज़रिए एल्डिहाइड में बदल जाती है. लेकिन मिथाइल एल्कोहल फॉर्मेल्डाइड नामक ज़हर में बदल जाता है. ये ज़हर सबसे ज़्यादा आंखों पर असर करती है. अंधापन इसका पहला लक्षण है. किसी ने बहुत ज़्यादा शराब पी ली है तो इससे फॉर्मिक एसिड नाम का ज़हरीला पदार्थ शरीर में बनने लगता है. मिथाइल शरीर में पहुंचते ही दिमाग की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है. इससे शरीर में सुन्नपन की समस्या हो सकती है. पीड़ित व्यक्ति का दिमागी संतुलन बिगड़ सकता है. ये दिमाग के काम करने की प्रक्रिया पर असर डालता है.

हैरानी की बात ये है कि ज़हरीली शराब का इलाज भी शराब से ही होता है

डॉक्टर अक्षित कहते हैं,

शराब में मिले मिथाइल अल्कोहल एक तरह का ज़हर है और इसका  इलाज इथाइल अल्कोहल है. ऐसे जब कोई मरीज़ शराब पीने से बीमार होने की बात कहता है तो सबसे पहले हम उसका पल्स, ब्लड प्रेशर, शुगर और ऑक्सीजन लेवल जांचते हैं. फिर हम उसका एल्डिहाइड टेस्ट करते है जिससे पता चलता है की उसने जो शराब पी है उसमे क्या है? अगर मेथनॉल रहता है तो हम उसे इथेनॉल की डोज देते हैं. ज़हरीली शराब के एंटीडॉट के तौर पर टैबलेट्स भी मिलते हैं लेकिन भारत में इसकी उपलब्धता कम है.

क्या बिहार में एंटीडॉट ड्रग की कमी है ?

इस सवाल पर बिहार केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष परसन कुमार सिंह कहते हैं

मुझे इस बात की जानकारी नहीं है. संभवतः बाजार में इस दवा की मांग कम है. इसलिए बाज़ार में उपलब्ध नहीं है. लेकिन जिस क्षेत्र में ज़हरीली शराब की घटनाएं होती हैं संभवतः वहां ये दवा मौजूद हो.”

सिर्फ़ गिरफ्तारियां और केस

4 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया था कि 26 नवंबर से 2 जनवरी के बीच बिहार में 13,013 केस दर्ज किए गए हैं. इनमें 2.31 लाख लीटर देसी और 3.55 लाख विदेशी शराब जब्त किया गया था.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2016 से दिसंबर 2021 तक बिहार में शराबबंदी कानून के तहत 2.03 लाख मामले सामने आए हैं. इनमें 3 लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

मुख्यमंत्री केवल गिरफ्तारियां और शराब पकड़े जाने का गुणगान गाते नज़र आते हैं. लेकिन ये शराब आती कहां से हैं इनको अवैध रूप से बना कौन रहा है, जरा इसपर भी रौशनी डाल देते तो कितने ही बेवजह हुई मौते रोकी जा सकती थीं. जहरीली शराब पीने से आए दिन होती मौतों को रोकने और पीड़ित के इलाज की क्या व्यवस्था है उसपर संबंधित अधिकारीयों को ध्यान देने का निर्देश देते तो ज़्यादा बेहतर रहता.