अपना ख़ुद का घर होना हममे से प्रत्येक लोगों का सपना होता है. एक ऐसा ऐसा घर जिसमें हम आराम और सुकून के साथ अपने परिवार के साथ रह सकें. और वो घर मूलभूत सुविधाओं जैसे- पक्की छत, बिजली, पानी और शौचालय से युक्त हो. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि
"मेरा यह सपना है की देश जब अपना 75 वां स्वतंत्रता दिवस मनाये तब देश के गरीब से गरीब लोगों के पास अपना ख़ुद का पक्का मकान हो."
पैसे से संपन्न लोगों के लिए एक पक्का घर बनाना कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन वैसे लोग जिनकी आर्थिक स्थिति मज़बूत नहीं है उनके लिए पक्का घर होना एक सपना पूरा होने जैसा है. अब जब देश अपने आज़ादी के 75 वर्ष पूरे कर चुका है, तो क्या यहां रहने वाले उन गरीबों को भी अपने मन में दबे सपने को आज़ाद करने का मौका मिला है?
आज़ादी के 75 साल बाद भी लोग सड़क, फुटपाथ, नालों के किनारे बने झोपड़ियों या ऐसी ही किसी बदहाल जगहों पर रहने को मजबूर हैं. जहां ना बरसात में पानी से बचने की छत है, ना बच्चों के सोने और पढ़ने की जगह है, ना शौचालय और दूसरी तरह की सुविधाएं हैं. इन झोपड़ियों में रहने वाले लोग अपने परिवार की सुरक्षा को दरकिनार कर वहां रहते हैं. इन सबके बावजूद कब इनके घरों पर अतिक्रमण हटाने के नाम पुलिस की लाठियां और बुल्डोज़र चल जाए कहा नहीं जा सकता.
केंद्र सरकार आज़ादी के 75वें साल को आज़ादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रही है. सरकार ने 13 अगस्त से 15 अगस्त तक हर घर तिरंगा अभियान शुरू किया, जिसमें प्रत्येक देशवासियों को इसमें शामिल होने का आवाहन किया. जिसमें सभी लोग अपने घरों पर तिरंगा लगाकर अपनी देशभक्ति को दर्शा सकते हैं.
लेकिन वैसे लोगों का क्या जिनके पास अपना ख़ुद का घर नहीं है? जो लोग फूटपाथ पर रहे हैं? क्या उनमें अपने देश के प्रति गर्व और सम्मान का भाव नहीं है? देश में आज करीब 22 फ़ीसदी आबादी यानी तकरीबन 27 करोड़ लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी जीने को मजबूर हैं. तो ज़ाहिर है ऐसे लोगों के पास अपना खुद का पक्का क्या मिट्टी या खपरैल का भी घर नहीं होगा? आज़ादी के अमृत महोत्सव मना रहे हमारे देश के लिए यह स्थिति किसी बदनुमा दाग से कम नहीं है.
हालांकि प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण, भारत सरकार के वेबसाइट पर जारी आंकड़ों के अनुसार बिहार में 2016 से 2021 तक 36.78 लाख लोगों को आवास की मंज़ूरी मिली थी जिसमे से 29.83 लाख घरों का निर्माण पूरा हो चुका है. वहीं आवास के लिए 41.96 लाख लोगों ने आवेदन दिया था.
समाचार एजेंसी पीटीआई के आंकड़ों के अनुसार बिहार के 85 प्रतिशत जिलों में कार्य धीमी गति से हो रहा है. जिसमें सुपौल में 77 प्रतिशत, सारण में 78.65 प्रतिशत, मधेपुरा में 81.65 प्रतिशत, कटिहार में 82.64 प्रतिशत, मुंगेर में 83.14, बेगूसराय में 83.64 प्रतिशत, लखीसराय में 82.24 प्रतिशत धीमी गति से काम हो रहा है.
वहीं, अररिया, दरभंगा, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, पूर्णिया, समस्तीपुर, सुपौल, मधुबनी और बेगूसराय जिले में तत्कालीन इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) के तहत 2012 से आवासों का निर्माण लंबित है. बता दें कि एनडीए सरकार ने आईएवाई का नाम बदलकर पीएमएवाई-जी कर दिया था. 2016 में इसे दुबारा ‘2022 तक सभी के लिए आवास’ पहल के तहत फिर से लॉन्च किया गया. इसके तहत 2016-17 से 2021-22 तक देश भर में 2.71 करोड़ लोगों को घर मुहैया कराने का लक्ष्य तय किया गया था. जिसमें से कुल 2.44 करोड़ आवास आवंटित किए गए हैं. जिसमे से अभी तक 1.95 करोड़ घरों का निर्माण हो चुका है.
देश की आज़ादी के जश्न से एक दिन पहले जब मैंने सड़क किनारे रह रहें कुछ लोगों से पूछा कि कल देश अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है और सरकार ने लोगों को इसमें शामिल होने के लिए अपने घरों पर तिरंगा लगाने को कहा है. इसपर आपलोग क्या कहेंगे? तो उनका सीधा जवाब था
"घर तो नहीं है लेकिन हमलोग फुटपाथ पर रहते हैं तो तिरंगा भी यहीं लगा लेंगे. आज़ादी पर गर्व तो हमको भी है"
सड़क किनारे सोने की तैयारी कर रहे कैलाश सिंह का कहना है
"मैं दिहाड़ी मजदूर हूं. घर परिवार से दूर यहां अपना और परिवार का पेट पालने आया हूं. ख़ुद तो सड़क पर भी गुज़ारा कर लूंगा लेकिन परिवार को कहां रखूंगा. रही झंडा फहराने की बात तो हमसब मज़दूर भाई जो रोड पर रहते हैं वो अपने ठेले या शटर में तिरंगा लगा लेंगे"
वहीं पास में ही भूषण सिंह अपने परिवार के साथ सड़क पर रहते हैं. हमारे घर और झंडा फहराने की बात सुनकर भड़कते हुए कहते हैं
"गरीब आदमी के लिए सब दिन एक जैसा ही होता है. हमको भी आज़ादी की ख़ुशी है. लेकिन जब मेरे और मेरे बच्चों को आजतक सिर पर छत और पक्के रोज़गार का साधन नहीं मिला तो हम सरकार की बात क्यों सुनें. कोई सरकार आए जाए हम गरीबों का कोई भला नहीं करेगा"
भूषण सिंह यहां लगभग 25 सालों से रह रहे हैं. पटना जिले के मोकामा स्थित मोकाम टाल के रहने वाले भूषण की यहां तीन पीढ़ियां रह रही है. लेकिन आज तक पक्का मकान नहीं मिला. भूषण की बेटी सरिता का कहना है
"बहुत दिक्कत के साथ हम यहां रहते हैं. मेरे मां- बाप भाई मेरे बच्चे सब यहीं रोड पर रहते हैं. यहां बगल में ही पार्षद जी रहते हैं. वोट मांगने और अपनी रैली में ले जाने तो आते है लेकिन आज तक घर नही दिलवाएं हैं. जिनके घर के आगे हमलोग सोते हैं उनके घरों का काम बिना मजूरी के करना पड़ता है, नहीं करेंगे तो कल हटा देंगे. 5-6 बार आवास के लिए आवेदन किये थे लेकिन आज तक घर नहीं मिल पाया है"
इतिहासकार और गांधीवादी राम पुनियानी हर घर तिरंगा अभियान को दिखावे का खेल मानते हैं. उनका कहना है कि सरकार सड़क पर रहे लोगों का खुले तौर पर मज़ाक बना रही है. सरकार इस तरह का अभियान इसीलिए चलाती है ताकि लोगों का ध्यान मूलभूत सुविधाओं के मांग से हटाया जा सके. और ऐसे भी उनकी पार्टी का झंडे से कोई सरोकार नहीं है.
हालांकि आज़ादी के 75 साल पुरे होने पर हम आज़ादी के अमृत महोत्सव का जश्न मना रहे हैं, और यह उम्मीद करते है कि जल्द से जल्द आज़ादी का अमृत भारत के प्रत्येक तबके तक पहुंच जाएं.