अररिया की स्वास्थ्य व्यवस्था बिहार में सबसे ख़राब, ना एम्बुलेंस ना अच्छे अस्पताल मौजूद

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हमारे यहां ना एक भी अस्पताल मौजूद है और ना ही किसी तरह की स्वास्थ्य व्यवस्था मौजूद है. सरकार हम लोगों को मरने के लिए छोड़ चुकी है. अगर इन्हें हमारी परवाह होती तो ढंग का एक अस्पताल हमारे प्रखंड में बनवा देती.

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(अररिया का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र)

ये कहना है बिहार के अररिया जिले के पलासी प्रखंड के रामदीन सहाय का. अररिया का पलासी प्रखंड में अधिकांश आबादी दलित और अनुसूचित जनजाति की है. शायद यही वजह है कि विकास की रफ़्तार इस इलाके में कछुए से ज़्यादा धीमी है. पलासी प्रखंड में आबादी लगभग 10 हज़ार की है. यहां पर केवल एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ही उपलब्ध है जिसमें डॉक्टर मौजूद नहीं हैं.

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अररिया के सिविल सर्जन ने डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए जानकारी दी-

अभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पलासी) में डॉक्टर का पद रिक्त है. इस पर बहाली का काम बाकी है और जल्द ही इस पर डॉक्टर नियुक्त किये जायेंगे.

बिहार के जिला अस्पतालों में डॉक्टरों के 36% और अनुमंडल अस्पतालों में 66% पद खाली हैं. जिला अस्पतालों में डॉक्टरों के कुल स्वीकृत 1872 पदों में से 1206 पदों पर नियुक्ति हुई है और 688 पद खाली हैं. जबकि अनुमंडल अस्पतालों में 1595 स्वीकृत पदों में से 547 ही पदों पर नियुक्ति हुई है. यह आंकड़े केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी रूरल हेल्थ स्टैटिसटिक्स के हैं. इसके मुताबिक राज्य के जिला और अनुमंडल अस्पतालों में पैरामेडिकल स्टाफ के भी आधे से अधिक पद खाली हैं. जिला अस्पतालों में 8208 स्वीकृत पदों में से 3020 और अनुमंडल अस्पतालों में 4400 पदों में से 1056 पैरामेडिकल स्टाफ के पदों पर नियुक्ति की गयी है. वहीं बिहार के ग्रामीण इलाकों में जनसंख्या के हिसाब से 53% स्वास्थ्य उपकेन्द्र, 47% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 66% सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की कमी है.

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जुलाई 2022 तक के बिहार के ग्रामीण इलाकों के अनुमानित जनसंख्या 10.86 करोड़ बताई गई है. इस हिसाब से 21,933 स्वास्थ्य उप केंद्र, 3647 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 911 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए. स्वास्थ्य उपकेन्द्र हर 5 हज़ार की जनसंख्या पर 1 होता है और दुर्गम इलाकों में 3 हज़ार की आबादी पर होता है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 30 हज़ार की आबादी पर और दुर्गम इलाकों में 20 हज़ार की आबादी पर होता है. उसी तरह से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 1 लाख 20 हज़ार की आबादी पर होता है.

लेकिन अभी वर्तमान में इनकी संख्या काफ़ी कम है. बिहार में स्वास्थ्य उप केंद्र की संख्या 10,258 है. यानी 11675 अस्पतालों की कमी है. उसी तरह से 1932 स्वास्थ्य केंद्र और 306 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मौजूद है. जो कि अपने लक्ष्य से काफी अधिक कम है.

बिहार सरकार के साल 2022 के स्वास्थ्य बजट को अगर देखा जाए तो उसमें ग्रामीण स्वास्थ्य को 3071 करोड़ रूपए दिए गए हैं. ये राशि अगर 38 जिलों में विभाजित की जाए तो एक जिले को ग्रामीण स्वास्थ्य के लिए पूरे साल में केवल 80 करोड़ ही मिलेंगे. जबकि बिहार की अधिकांश आबादी गांव में ही निवास करती है.

UPHC Patna`

लेकिन ऐसा नहीं है कि बिहार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था सिर्फ़ गांव तक ही सीमित है. शहरी इलाकों में भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कम है. राज्य की अनुमानित शहरी जनसंख्या 1.5 करोड़ है. इस हिसाब से 301 पीएचसी होने चाहिए, लेकिन अभी 102 पीएचसी ही मौजूद है. यानी 66% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की कमी बिहार के शहरी क्षेत्रों में है.

लेकिन इस स्वास्थ्य व्यवस्था पर नज़र रखने के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है?

बिहार में स्वास्थ्य उपकेन्द्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की गुणवत्ता को ध्यान में रखने के लिए बिहार सरकार द्वारा रोगी कल्याण समिति का गठन किया जाता है जिसमें 9 सदस्य होते हैं. इन 9 सदस्यों में प्रखंड विकास पदाधिकारी को बतौर अध्यक्ष और  1 चिकित्सा पदाधिकारी को भी उस समिति में रहना है. लेकिन क्षेत्रीय मूल्यांकन समिति ने जब बेगूसराय का दौरा किया तो उसमें उन्होंने लिखा कि रोगी कल्याण समिति की बैठक नियमित तौर पर नहीं की जा रही है इसके कारण से स्वास्थ्य उपकेन्द्र और प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेन्द्रों की गुणवत्ता में काफ़ी गिरावट हुई है.

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(कमला नेहरू नगर UPHC में नियुक्त डॉक्टर और नर्स की लिस्ट)

 बिहार में हर UPHC में 1,30,000 (1 लाख 30 हज़ार रूपए) ख़र्च किया जाते हैं. जिसमें सरकारी नियमवाली के अनुसार

  • UPHC में OPD यानी मरीज़ों को देखने का समय सुबह 8 बजे से लेकर दोपहर 12 बजे तक और शाम 4 बजे से लेकर रात 8 बजे तक है.
  • मरीज़ों को देखने के लिए 100 स्क्वायर फ़ीट का एक कमरा, दवाइयों के डिस्ट्रीब्यूशन और स्टोर करने के लिए 120 स्क्वायर फ़ीट का एक कमरा, टीकाकरण और परिवार नियोजन के लिए 120 स्क्वायर फ़ीट का एक कमरा, मरीज़ों के इंतज़ार करने के लिए 300 स्क्वायर फ़ीट की जगह, महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग शौचालय और रिकॉर्ड रूम के लिए 120 स्क्वायर फ़ीट का एक कमरा होना चाहिए.
  • एक मेडिकल ऑफिसर जो 8 घंटे की ड्यूटी के लिए मौजूद हो, एक मेडिकल ऑफिसर 4 घंटे की ड्यूटी के लिए, 2 नर्स स्टाफ़ जो 8 घंटे की ड्यूटी करें और 1 स्टाफ़ अलग-अलग कार्यों के लिए मौजूद होना चाहिए.

लेकिन बिहार के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में ये स्थिति मौजूद नहीं है. ये समस्या केवल पलासी की ही नहीं है. अररिया जिले के ही कोश्कापुर पंचायत की आबादी 7 हज़ार की है. लेकिन वहां पर एक भी अस्पताल मौजूद नहीं है. यहां के स्थानीय निवासी मांडवी देवी बताती हैं:-

हमारे यहां 10 किलोमीटर में कोई भी अस्पताल नहीं है. यहां जिसकी भी तबियत बिगड़ती है तो हम उसे खाट पर बांध कर जिला अस्पताल लेकर जाते हैं जो यहां से 25 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां पर एम्बुलेंस की सुविधा भी मौजूद नहीं है.

बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति अत्यंत दयनीय है. इस वजह से बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरे देश में सबसे ख़राब मानी जाती है. इस पर टिप्पणी करते  जन स्वास्थ्य अभियान के संचालक और पॉलीक्लीनिक के चिकित्सक डॉ. शकील का कहना है कि

बिहार में मरीज़-डॉक्टर अनुपात, मरीज़-हेल्थ वर्कर अनुपात बहुत ख़राब है. यहां तक कि अगर बिहार में Per Capita Medical Expenditure यानी इलाज के दौरान दवाइयों पर होने वाले ख़र्च को देखा जाए तो वो भी देश में काफ़ी अधिक आता है. बिहार के आंकड़ों के अनुसार अगर कोई अपने इलाज में 100 रूपए की दवा लेता है तो उसमें सिर्फ़ 13 रूपए ही सरकार की ओर से मदद मिलती है. बिहार में पूरे स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की ज़रुरत है.