पटना से मिट रहा 'अज़ीमाबाद', तूतू इमाम पैलेस सहित कई धरोहर खंडहर

पटना को पुलों और सड़कों का शहर बनाया जा रहा है. सुविधाएं बढ़ी लेकिन हमारा इतिहास भी मिट गया. अभी भो सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर सुल्तान पैलेस जैसे धरोहर को तोड़ने की बात होती है.

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रिज़वान कैसल

'अज़ीमाबाद', तूतू इमाम पैलेस

राजधानी पटना के सबसे व्यस्त चौराहों में से एक डाक बंगला चौराहा अपने इर्द-गिर्द कई ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे हुए है. डाक बंगला चौराहे का नाम भी खुद में इतिहास को समेटे हुए है. 80 के दशक के आसपास तक इस चौराहे पर ब्रिटिश अधिकारियों के लिए बनाया गया गेस्ट हाउस हुआ करता था जिसका नाम ‘डाक बंगला’ था.

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डाक बंगला के ठीक सामने हसन इमाम की एक बड़ी हवेली हुआ करती थी जिसका नाम ‘रिज़वान कैसल’ या तू-तू इमाम पैलेस था. यह पटना के विख्यात वकील हसन इमाम (1871-1933) का घर था. 20वीं सदी की शुरुआत में निर्मित, इस इमारत को स्कॉटिश ट्यूडर मॉडल की तर्ज पर डिजाइन किया गया था, जिसके कोनों पर बुर्ज और टेरेस पर क्रॉस-आकार के डिजाइन बनाये गये थे.

कितना जानते हैं हम मुस्लिम इतिहास को?

आज इस भवन की दुर्दशा का आलम यह है कि आपको डाक बंगला चौराहे से गुजरते हुए पता भी नहीं चलेगा कि यहां कोई आलिशान हवेली भी है. इसका सीधा कारण सरकार की उदासीनता है. हेरिटेज स्थल बनाई जा सकने वाली इस हवेली को समय के थपेड़ों ने जर्जर बना दिया है. वहीं हवेली के बाहरी परिसर में बने अवैध दुकान, कचरा डंपिंग और मवेशियों के तबेला (पशुओं का घर) ने इसकी सुंदरता को कम करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है. बाहरी परिसर की बाउंड्री जगह-जगह से टूट गयी है जिसके कारण आवारा पशुओं ने भी यहां अपना डेरा बना लिया है.

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इस समय रिज़वान कैसल में बिहार सरकार की बीएमपी (बिहार मिलिट्री पुलिस) यूनिट के साथ-साथ बिहार पुलिस की अन्य यूनिट के जवान रहते हैं. रख-रखाव के अभाव में यह हवेली भूतिया हवेली में तब्दील हो गयी है. जिस वक्त डेमोक्रेटिक चरखा की टीम पैलेस में गये वहां बिजली नहीं थी. पैलेस के प्रवेश द्वार के बगल में बने अंधेरे कमरे में तीन जवानों के रहने की व्यवस्था लग रही थी.

बिहार सरकार के ये जवान भी यहां जान जोखिम में डालकर ही रहते हैं हालांकि वे कुछ बताने से हिचकते हैं. रिज़वान पैलेस में पिछले छह महीने से रह रहे एक जवान हमें बताते हैं “हवेली किसकी थी, किसने बनाया हमें इसकी कोई जानकारी नहीं है. हम यहां बस छह महीने के लिए आते हैं उसके बाद हमारी पोस्टिंग बदल जाती है. लेकिन इस दौरान हमें कोई परेशानी नहीं हुई है.”

हालांकि कमरे की जर्जर हालत देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां रहना कितना मुश्किल है. इतनी सुंदर हवेली के बारे में आमलोगों को कितनी जानकारी है? हवेली को धरोहर के तौर पर बचाने के लिए सरकार की उदासीनता पर उनका क्या मत है, जैसे सवाल जब हमने वहां दुकान चलाने वाले लोगों से किया तो उनमें से ज़्यादातर का जवाब ना में मिला.

जर्जर हालत में रिजवान कैसल

फ्रेंच आर्किटेक ने किया था डिजाईन  

रिज़वान कैसल का निर्माण बैरिस्टर और स्वतंत्रता सेनानी सैयद हसन इमाम द्वारा 18वीं सदी में कराया गया था. हसन इमाम कुछ समय के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट में जज भी रहे थे. हालांकि वकालत के अलावा हसन इमाम अन्य राजनैतिक कार्यक्रमों में भी सक्रिय तौर पर काम करते थे. 1905 में बंगाल से बिहार के विभाजन की मांग करने वाले नेताओं में हसन इमाम भी शामिल थे. 1906 में ढाका में हुए मुस्लिम लीग की स्थापना में भी वो मौजूद थे. सैयद हसन इमाम की मृत्यु 1933 में हुई थी.

हेरिटेज टाइम्स के संस्थापक और रिसर्चर उमर अशरफ बिहार के भूले ऐतिहासिक धरोहरों पर काम करते हैं. रिज़वान पैलेस को लेकर दिए जानकारी में बताते हैं “राइटर फिलिप डेविस ने इंडो-ब्रिटिश आर्किटेक्चर पर बनी इमारतों पर बहुत काम किया है. इनकी एक किताब में रिज़वान कैसल का जिक्र मिलता है जिसमें उन्होंने इसका बेसिक सा जिक्र किया है. वे लिखते हैं कि यह कैसल गोथिक शैली में बना है. किताब में भवन के बाहर बने जलमीनार का भी जिक्र मिलता है. कहा जाता है इससे ना केवल रिज़वान कैसल में पानी पहुंचता था बल्कि आसपास के घरों में भी इससे पानी जाता था.”

अशरफ आगे कहते हैं “कई जगहों पर लिखा मिलता है कि 1912 में बांकीपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में आये राजनेता रिज़वान कैसल में रुके थे. हालांकि मेरा मानना है कि उस समय तक रिज़वान कैसल का निर्माण हुआ ही नहीं था. रिज़वान कैसल जिस जमीन पर बना है इसकी जानकारी हसन इमाम के पोते बुलु इमाम के ख़त से मिलता है. जिसमें लिखा है कि हसन इमाम ने यह जमीन मजहरुल हक़ से खरीदा था.”

महात्मा गांधी का धरोहर से जुड़ाव

हसन इमाम के भतीजे और वकील सैयद शाहिद इमाम कैसल के बारे में बताते हैं "मेरे पिताजी और बाकि लोग यहां रहते थे. मेरे चाचा हसन इमाम ने 1925 में मौलाना मज़हरुल हक से 126 कट्ठा जमीन खरीदा था. उनकी दूसरी पत्नी एक फ्रेंच लेडी थी इसलिए इस कैसल में क्रॉस और उस तरह की नक्काशी नज़र आती है. उन्होंने अपने अनुसार एक फ्रेंच आर्किटेक से इसे डिजाइन करवाया था. गांधी जी जब एक बार पटना आये थे तो उनके लिए हसन साहब ने इस कैसल में डिनर रखा था.”

इस कैसल में ऊपरी मंजिल पर सात कमरे और निचली मंजिल पर नौ बड़े-बड़े कमरे बने हुए हैं. ऊपर और निचली मंजिल को मिलाकर इस कैसल का सरफेस एरिया 40 हजार स्क्वायर फीट है जिसमें इटालियन मार्बल लगा हुआ था. नीचे से ऊपरी मंजिल पर जाने के लिए बने सीढियों में बर्मा टिक की लकड़ी लगी हुई थी. ये सारे मटेरियल इंग्लैंड से मंगाए गये थे. कैसल की दीवारों पर प्लास्टर की जगह जिंक प्लेट का इस्तेमाल किया गया था.

खंडहर हुआ तूतू इमाम पैलेस

बिहार शिया वक्फ़ बोर्ड कर रहा है दावा

हसन इमाम ने अपनी सभी संपत्तियों को 1929 में वक्फ कर दिया था. साल 1931 में इसकी रजिस्ट्री हुई, लेकिन उस समय शिया वक्फ बोर्ड वजूद में नहीं था. साल 1948 में बिहार शिया वक्फ बोर्ड का गठन हुआ. गठन के बाद बोर्ड ने अपनी संपत्तियों को रजिस्टर्ड करना शुरू कर दिया.

हालांकि पारिवारिक विवाद के बाद तूतू इमाम ने हजारीबाग सिविल कोर्ट में 1988 में टाइटल सूट दायर किया था. जिसके बाद कोर्ट ने नोटिस देकर वक्फ़ बोर्ड को बुलाया. 

पारिवारिक विवाद और उसमे शिया वक्फ़ बोर्ड के दावे पर शाहिद इमाम बताते हैं "हसन इमाम साहब ने अपने परिवार जनों के लिए 1929 में वक्फ़ बनाया था जो 1931 में रजिस्टर्ड हुआ. उस वक्फ़ के ऊपर बहुत विवाद हुआ और मुकदमा हुआ. जिसमें AIR 1975, पटना पेज 48 फैसले में कोर्ट ने कहा कि बिहार राज्य वक्फ़ बोर्ड का इस पर कोई अधिकार नहीं है." 

हसन इमाम के मौत के बाद उनके बहुत सारे वारिस इस पर अपना अधिकार जमाने लगे, कुछ बाहरी लोग भी इस पर अपना अधिकार जमाने लगे. उस संबंध में 1991 में पटना हाईकोर्ट में एक रिट दायर हुई जिस पर 1998 में कोर्ट का फैसला आया कि जब तक परिवार में संपत्ति का बंटवारा नहीं हो जाता तब तक यह संपत्ति डीएम पटना के देखरेख में रहेगी. 2011 में भी दुबारा पटना हाईकोर्ट ने 1998 में दिए फैसले को कायम रखा. हालांकि कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि डीएम मात्र 5 कांस्टेबल को रखकर इमारत की सुरक्षा करेंगे लेकिन कोर्ट के फैसले की अनदेखी करते हुए डीएम ने इसे जवानों का आवास बना दिया.

शाहिद इमाम कहते हैं "रिजवान कैसल में 1992 तक CDA का ऑफिस हुआ करता था. CDA ने जिस वक्त इसे खाली किया था यह बिल्डिंग बहुत अच्छी स्थिति में थी. लेकिन बिहार पुलिस के जवानों ने इसे खराब किया. हमने कई बार डीएम को ख़त लिखा था लेकिन इसपर कोई जवाब नहीं आया."

रिज़वान पैलेस जैसी कई ऐतिहासिक धरोहर बर्बाद

रिजवान पैलेस की तरह ही पटना के कई ऐतिहासिक स्थलों को बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया गया है. वीरचंद पटेल स्थित सुल्तान पैलेस के साथ भी यही हुआ. इंडो-सेरेमिक शैली में बनी इस इमारत का इस्तेमाल पहले बिहार सरकार ने परिवहन भवन के तौर पर किया. जब भवन जर्जर स्थिति में पहुंच गया तो इसे तोड़कर फाइव स्टार होटल बनाने की तैयारी होने लगी. जून 2022 की कैबिनेट मीटिंग में इस प्रस्ताव पर मुहर भी लग चुकी है.

साल 2008 में नीतीश सरकार ने ‘पटना: अ मौन्यूमेंटल हिस्ट्री’ नाम से एक किताब का अनावरण किया था, जिसमे पटना के ऐतिहासिक मौन्यूमेंट्स को शामिल किया गया था. इस किताब में सुल्तान पैलेस के साथ-साथ रिज़वान कैस्टल, महज़रुल हक आवास, सच्चिदानंद सिन्हा आवास, बादशाह मंजिल और हजाम साहेब कोठी सहित कई ऐतिहासिक इमारतों को शामिल किया गया था.

लेकिन आज डाक बंगला सहित उसके आसपास की सारी पुरानी इमारतें जैसे हसन मंजिल (हसन इमाम), अली मंजिल (अली इमाम) और नशेमन खत्म हो चुके हैं.

तूतू इमाम पैलेस

पटना से ख़त्म हुआ पाटलिपुत्र और अज़ीमाबाद का इतिहास

उमर अशरफ कहते हैं “अगर बाहर से आया कोई आदमी कहे कि दिखाओं तुम्हारे शहर में क्या पुराना है तो हमारे शहर में गोलघर के अलावा कुछ भी प्राचीन दिखाने को बचा नहीं है. एक एनशिएंट पार्क के नाम पर कुम्हरार पार्क का निर्माण किया गया है लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे हम प्राचीन पटना से जोड़ सकें.” 

पिछले कुछ सालों में हिस्ट्री री-राइट का चलन बहुत बढ़ा है. लोग कहते हैं सिलेबस में चीज़े हटा दी गयी हैं. लेकिन अगर आप किसी ढांचे को गिराकर उसकी जगह दूसरे भवन का निर्माण कर देंगे तो उसका अस्तिस्त्व ही खत्म हो जाएगा.

उमर अशरफ कहते हैं “हिस्ट्री इनमेकिंग कैसे होता है इसे पटना के पांच ऐतिहासिक इमारतों के उदहारण से आप समझ सकते हैं. पीएमसीएच का प्रिंस ऑफ़ वेल्स या उसके जैसे पुराने भवन, पटना कलेक्ट्रेट का डच भवन, अंजुमन इस्लामिया हॉल, गोल मार्किट और बांकीपुर जेल. नई पीढ़ी के लोग जानते भी नहीं है कि बांकीपुर जेल कहां था, इसमें कौन  लोग रहे, क्यों रहे, क्योंकि सब खत्म हो गया है. इसकी जगह अब बुद्द स्मृति पार्क ने ले लिया है और इसका  उद्घाटन किसने किया नीतीश कुमार ने.”

अंजुमन इस्लामिया हॉल साल 1885 से था जिसे ख़त्म कर दुबारा साल 2020 में नीतीश कुमार ने उद्घाटन किया. पीएमसीएच 1860 के आसपास से काम कर रहा है. लेकिन पुराने भवन समाप्त होते जा रहे हैं. उसकी जगह नये भवनों का उद्घाटन कौन कर रहे हैं नीतीश कुमार.

सरकार की लॉबी ने पटना म्यूजियम को भी बर्बाद किया है. यहां से ऐतिहासिक मूर्तियों को उठाकर बिहार म्यूजियम में रख दिया गया. सरकार आज ना कल पटना म्यूजियम की बिल्डिंग भी तोड़ देगी. पटना म्यूजियम को इसलिए खत्म किया जा रहा है क्योंकि ये पहले से लिखा है उसे किसी अंग्रेज या किसी दूसरे व्यक्ति ने बनाया है. इसलिए नीतीश कुमार ने दूसरा बिहार म्यूजियम बनाया और उसका उद्घाटन अपने हाथों से किया. ये है हिस्ट्री री-राइट का पैटर्न है जो पूरे बिहार और ख़ासकर पटना में किया जा रहा है. नीतीश कुमार अपने नाम की नई हिस्ट्री लिख रहे हैं.

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