Education Investigation

बिहार सरकार ने transgender समुदाय के बच्चों को स्कूल में दाखिले से रोका, दाखिले में जगह नहीं

राज्य परियोजना निदेशक ने डीईओ को पत्र देकर आदेश दिया था कि बालिकाओं और ट्रांसजेंडर समुदाय के बच्चों की पहचान कर उनका विद्यालय में नामांकन कराया जाए. लेकिन इस आदेश के सात महीने बीतने के बाद भी ट्रांसजेंडर बच्चों को स्कूल में नामांकन लेने में परेशानी हो रही है.

यह आदेश आज से सात महीने पहले दिया गया था. लेकिन शिक्षा विभाग ने इस आदेश को गंभीरता से नहीं लिया. सरकार ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए कानून और नीतियों का निर्माण कर रही है. समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय को उचित अवसर और सम्मान मिलने के लिए उनका शिक्षित होना जरूरी है. ट्रांसजेंडर बच्चे अपनी पहचान के साथ स्कूल और कॉलेज में अपनी पढ़ाई कर सके.

ट्रांसजेंडर समुदाय को समान अवसर देने के लिए ‘ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन राइट एक्ट’ कानून बनाया गया है. जिसके तहत इस समुदाय के लोगों को सभी सरकारी सुविधाए दी जाती है. लेकिन बिहार में शिक्षा विभाग ने अभी तक ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन राइट एक्ट को विभाग में लागू नहीं किया है. जिसके कारण स्कूल में नामांकन की प्रक्रिया के समय लिंग के कॉलम में ट्रांसजेंडर विकल्प को नहीं जोड़ा गया है.

इससे राज्य के लगभग 30 हज़ार से अधिक ट्रांसजेंडर बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हो रहे हैं. राज्य में ट्रांसजेंडर समुदाय को जिला प्रशासन के तरफ से टीजी पहचान कार्ड निर्गत किया जा रहा हैं. टीजी कार्ड के आधार पर बच्चों को शिक्षा से जोड़ना है, लेकिन शिक्षा विभाग ने अबतक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए हैं.

स्कूल में नामांकन की प्रक्रिया के दौरान बच्चों के आधार और बैंक खाते की मांग की जाती है. लेकिन ट्रांसजेंडर बच्चों के साथ समस्या यह है कि उनके पास आधार कार्ड और बैंक खाता नहीं है. लेकिन कई बच्चों के आधार कार्ड हैं और उनके नाम और जेंडर में संशोधन टीजी कार्ड के आधार पर किया जाना है. केंद्र सरकार ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया है कि टीजी कार्ड के आधार पर ट्रांसजेंडर व्यक्ति के आधार कार्ड में संशोधित किया जाए. लेकिन इसके बावजूद आधार कार्ड में संशोधन नहीं हो पा रहा है.

नेशनल काउंसिल फ़ॉर ट्रांसजेंडर की मेंबर और दोस्ताना सफ़र की सचिव रेशमा कहती हैं

आप हमें कहते हो कि अपने पारंपरिक काम को छोड़कर हमे पढ़ाई-लिखायी करनी चाहिए. हमे शिक्षित होने का अधिकार है. लेकिन जब आप हमारे बच्चों को उनकी अपनी पहचान के साथ पढ़ने का अवसर ही नही देंगे तो वे कैसे पढ़ेंगे? अभी मै खुद चार बच्चों का नामांकन नौवी कक्षा में कराने का प्रयास कर रही हूं लेकिन अभी तक उनका नामंकन किसी भी स्कूल में नहीं हो पाया है. और इसके लिए मैं स्कूल को नहीं राज्य सरकार की शिक्षा व्यवस्था को दोषी मानती हूं जो अभी तक ये सिस्टम नहीं बना सके कि हमारे बच्चों को अपने पहचान के साथ नामांकन मिले. सरकार ने 2019 में ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन राइट एक्ट, बनाया जिसके तहत हमे अपनी पहचान के साथ शिक्षा और रोजगार पाने का अधिकार दिया गया है. लेकिन अभी तक हमारे बच्चों का इसका लाभ नहीं मिला है. डीईओ से भी मैंने बात की थी लेकिन किसी समाधान के बजाए वो हमसे ही डॉक्यूमेंट जमा करने के लिए कहते हैं, जबकि व्यवस्था में सुधार करवाने का काम उनका है.

शिवानी सोनी भी ट्रांसजेंडर समुदाय से आती हैं. आरा की रहने वाली शिवानी पढ़ाई पूरी कर अपने सपने को साकार करना चाहती हैं. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए शिवानी बताती हैं

मैं आगे पढ़ाई करना चाहती हूं लेकिन कॉलेज या हाईस्कूल में ट्रांसजेंडर का कॉलम ही नहीं दिया जा रहा है. तो हम फॉर्म ही नहीं अप्लाई कर सकते हैं. ऐसे में हम कभी भी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पायेंगे.

बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित होते हुए रेशमा कहती हैं,

अगर बच्चों का नामांकन नहीं हुआ तो उनका भविष्य क्या होगा. अभी वो नौवी में हैं और घर पर रहकर ही पढ़ाई कर रहे हैं. नौवी से पहले की पढ़ाई उन्होंने किसी और पहचान के साथ किया था लेकिन अब उन्होंने निर्णय किया है कि आगे की पढ़ाई वो अपने असली पहचान के साथ पूरी करेंगे. केंद्र सरकार ने ट्रांसजेंडर बच्चों को स्कॉलरशिप देने का नियम बनाया है, लेकिन बिहार से मात्र एक छात्र ने इसके लिए आवेदन किया है. जबकि जिस विश्विद्यालय में वो अभी पढ़ाई कर रहा है, वहां उन्हें अपनी पहचान के लिए अभी भी लड़ाई लड़नी पड़ रही है.

ज़ीनत परवीन गया जिले की रहने वाली हैं. फिलहाल ज़ीनत पटना के गरिमा गृह में रह रही हैं. ज़ीनत बताती हैं

सरकार ने लड़का और लड़कियों के लिए पढ़ने की सारी व्यवस्था की है. लेकिन उन्होंने हमारे पढ़ने के लिए क्या किया? कुछ भी नहीं. क्योंकि ये सरकार और समाज कभी चाहता ही नहीं है कि हम पढ़ें और आगे बढ़ें.

ट्रांसजेंडर समुदाय के बच्चों के स्कूल में नामांकन नही मिलने के सम्बन्ध में जानकारी के लिए हमने राज्य परियोजना निदेशक और डीईओ से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है.

ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन राइट एक्ट

साल 2019 में ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन राइट एक्ट बनाया गया जिसे साल 2020  में लागू किया गया. इस कानून के जरिए ट्रांसजेंडर आइडेंटिटी को पहचाना गया. यह कानून ट्रांसजेंडर्स को पहचान, शिक्षा, रोजगार, समानता आदि उपलब्ध करने का भी प्रावधान करता है. अगर कोई ट्रांसजेंडर्स के साथ बदसलूकी करता है तो कम से कम 6 महीने और ज्यादा से ज्यादा 2 साल की सजा होती है. ट्रांसजेंडर्स के साथ भेदभाव रोकने के लिए साल 2020 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने ‘नेशनल पोर्टल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन’ बनाया  जहां ट्रांसजेंडर्स को एक ट्रांसजेंडर कार्ड (टीजी कार्ड) मिलता है जिसके सहारे वे सरकारी सुविधाओं का लाभ ले सकते हैं.

दोस्ताना सफ़र की सचिव रेशमा का कहना है कि

ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन राइट एक्ट के तहत बच्चों को शिक्षा के अधिकारों से वंचित करना क़ानूनी अपराध है.

बिहार में ट्रांसजेंडरों की आबादी 2011 की जनगणना के मुताबिक़ 40827 है, जो कुल जनसंख्या की 0.039 फ़ीसद थी. जो अभी लगभग दो लाख के पास पहुंच गया है. जिसमे बच्चों कि संख्या लगभग 45 प्रतिशत है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *