बिहार बना गैस चैम्बर, देश में सबसे अधिक वायु प्रदूषण बिहार में

जब गांव में रहता था तब यह बीमारी नहीं थी. पटना में रहते हुए 26 साल हो गए हैं. तब से लेकर अब तक यहां के हवा में बहुत बदलाव महसूस करता हूं. मेरी दुकान मेन मार्केट में है. इस कारण यहां गाड़ियों की भीड़भाड़ भी बहुत रहती है और उसके कारण धूल भी बहुत उड़ती है. एलर्जी के शुरुआत में मुझे खांसी रहती थी

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पल्लवी कुमारी
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"जब गांव में रहता था तब यह बीमारी नहीं थी. पटना में रहते हुए 26 साल हो गए हैं. तब से लेकर अब तक यहां के हवा में बहुत बदलाव महसूस करता हूं. मेरी दुकान मेन मार्केट में है. इस कारण यहां गाड़ियों की भीड़भाड़ भी बहुत रहती है और उसके कारण धूल भी बहुत उड़ती है. एलर्जी के शुरुआत में मुझे खांसी रहती थी. सबने कहा एसी से अंदर बाहर करने के कारण ऐसा हो रहा है. लेकिन धीरे-धीरे यह बढ़ते ही गया. डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने बताया कि गन्दी हवा के कारण यह परेशानी हो रही है. अब बताइय धूल से बचकर कहां जाएंगे? क्या घर में छिपने से हमारे परिवार का पेट भर जाएगा? " 

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वाहनों की बढ़ती संख्या भी प्रदूषण का एक कारण

शशिभूषण जैसी कहानी लाखों-करोड़ों लोगों की है जो गंदी और प्रदूषित हवा के कारण बीमार हो रहे हैं साथ ही लाखों लोगों की मौत का कारण भी यही प्रदूषित हवा रही है.

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नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) के आज के आंकड़ों के अनुसार पटना के राजवंशी नगर का एक्यूआई 164 दर्ज किया गया है. जो किसी भी स्वस्थ व्यक्ति के सांस लेने के लिए हानिकारक है. वहीं बेगूसराय बिहार का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा. यहां का एक्यूआई (AQI) सर्वाधिक 163 दर्ज किया गया, जो की खराब स्तर है. इसके बाद मुंगेर जहां 163 एक्यूआई दर्ज किया गया है. पटना के दानापुर में 154 एक्यूआई दर्ज किया गया. वहीं, सासाराम में भी हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है यहां एक्यूआई 163 के आंकड़े पर पहुंच गया.

प्रदूषित हवा का मुख्य अवयव इसमें शामिल पार्टिकुलेट मैटर(पीएम) है जो प्रदूषित हवा के साथ हमारे फेफड़े में पहुंच जाता है.

खतरनाक है पीएम 2.5 और पीएम 10 का फेफड़े में जाना

प्रदूषित हवा के साथ यदि पीएम 2.5 और पीएम 10 कण हमारे फेफड़े के अंदर जाने लगता है तो यह खतरे का कारण बन सकता है. पीएम का मतलब होता पार्टिकुलेट मैटर और 2.5 और 10 इस मैटर या कण का आकार होता है. दिखने वाली धूल हमारे नाक में घुसकर म्यूकस में मिल जाती है, जिसे धोकर साफ़ कर सकते हैं, लेकिन पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 का आकार इतना छोटा होता है कि यह धीरे-धीरे हमारे फेफड़ों के अंदर बैठता चला जाता है. और यह हमारी बॉडी के नेचुरल फिल्टरेशन प्रोसेस से भी नहीं निकलता है.

कहां से आते हैं पर्टिकुलर मैटर

पीएम 2.5 और 10 प्राकृतिक कारणों और ज़्यादातर मानवीय कारणों से फैलते हैं. प्राकृतिक कारण जैसे कि जंगल में लगी आग, ज्वालामुखी विस्फोट, रेतीला तूफ़ान आदि हो सकते हैं. वहीं मानवीय कारणों में उद्योगों से निकल रहा प्रदूषण, अपशिष्ट पदार्थों का अनुचित निस्तारण, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, आदि हैं. कभी-कभी हवा में मौजूद अलग-अलग गैसों के सम्मिश्रण के केमिकल रिएक्शन से भी ज़हरीले पार्टिकुलेट मैटर बन जाते हैं.

पटना मेडीकल कॉलेज एवं अस्पताल (PMCH) के डॉक्टर अक्षित बताते हैं

"वायु प्रदुषण में मुख्य कारक इसमें मिले यह छोटे कण है. यह इतने छोटे होते है जिसे हमारे फेफड़े भी फ़िल्टर नहीं कर पाते है. यही कण धीरे-धीरे फेफड़े के अंदर बैठते जाते हैं. जिससे फेफड़ों की बाहरी सतह क्षतिग्रस्त होती है. फेफड़े कमजोर होते जाते हैं और श्वसन रोग से जुड़ी कई समस्या हो सकती हैं. पार्टिकुलेट मैटर हमारे खून में भी घुल सकता है और अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, दिल की बीमारियों का कारण बन सकते हैं. शुरुआती लक्षणों में इसमें नाक, आंख में खुजली, दर्द और छींके आने जैसी समस्याएं आ सकती हैं. लगातार ऐसी स्थिति बने रहने पर इंसान किसी क्रोनिक बीमारी का शिकार भी हो सकता है"

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वहीं भारत के अन्य शहरों कि बात की जाए तो दिल्ली के हवा की गुणवत्ता हमेशा से चर्चा का विषय रही है. दिवाली में पटाखों पर बैन लगाना या फिर ऑड-इवन के तहत निजी वाहनों का परिचालन सुनिश्चित करना. लेकिन इन अस्थायी उपायों को उपयोग में लाने से हवा की गुणवत्ता में कोई सुधार देखने को नही मिल रहा है. दिल्ली के आनंद विहार में आज 255 एक्यूआई दर्ज किया गया है जो स्वास्थ के लिए बहुत ही ज़्यादा हानिकारक है.  

डॉक्टर अक्षित आगे बताते हैं

"वायु प्रदुषण के कारण खांसी और सांस फूलने जैसी तकलीफ़ें होती हैं. पर यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह सभी के साथ नहीं होती. यह उनके साथ होती है जिनकी इम्युनिटी कमज़ोर हो चुकी है जैसे बुजुर्ग या फिर जिनकी इम्युनिटी अभी विकसित हो रही है जैसे की छोटे बच्चे. यहां कुछ युवा भी अब इसकी चपेट में आ रहे हैं जिसका कारण कमजोर प्रतिरोधक क्षमता का होना हैं"

वहीं बिहार के पड़ोंसी राज्य उत्तरप्रदेश के भी शहरों में भी हवा की गुणवत्ता अपने खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है. लखनऊ शहर का एक्यूआई अंक 205 दर्ज किया गया है.

प्रदूषण बढ़ने का दूसरा कारण उत्तर भारत में सर्दियों के मौसम में लो प्रेशर बना होता है जिसके कारण हवा का बहाव धीमा होता है. इसलिए शहर में पैदा होने वाला प्रदूषण वहां से निकल नहीं पाता है और वहीं के वातावरण में जमा हो जाता है.  

डॉ अक्षित आगे कहते हैं

"हम सुनते है कि दिल्ली में किसानों द्वारा पराली जलाने से प्रदुषण बढ़ गया. लेकिन ऐसा नहीं है. यह कोई नई बात नहीं है. किसान पहले भी पराली जलाते थे. लेकिन आज पूरा दोष सीधे उनके ऊपर मढ़ दिया जाता है. जबकि इसका मुख्य कारण हमारे द्वारा बेतहाशा निजी वाहनों  का उपयोग और अन्य दूसरी तरह की आधुनिक चीज़ों का उपयोग है. किसानों के पास ख़रीफ़ फ़सल काटने के बाद मात्र 15 से 20 दिन ही शेष रहता जिसके अंदर उन्हें रबी फसल की बुवाई के लिए खेत तैयार करना होता है. इसलिए किसान खेत जल्द तैयार करने के लिए धान काटने के बाद बची पौध को खेत में ही जला देते हैं. क्योंकि इस पौध में सिलिका की मात्रा ज़्यादा होती है जिसे मवेशी भी नहीं खाते हैं. और बायो-डिकम्पोज़र का उपोग करने पर 15 से 20 दिन का समय लगता है. जो उनके लिए घाटे का सौदा है"  

वायु प्रदूषण

पटना के गांधी मैदान के पास लगा प्रदूषण डिस्प्ले
50 से ज्यादा एक्यूआई है घातक

एक्यूआई के अंक शहर की वायु गुणवत्ता का असर निर्धारित करते हैं. एक्यूआई को कई वर्गों में बांटा गया है और उसी के अनुरूप वायु गुणवत्ता पर क्या असर होगा इसका निर्धारण होता है. एयर क्वालिटी इंडेक्स द्वारा हवा की गुणवत्ता मापने का पैमाना बनाया गया है. इसके अनुसार 0 से 50 के अंक वायु की गुणवत्ता का सबसे अच्छा मानक बताया गया है. एक्यूआई अगर 100 से 200 अंक के बीच तो हवा सांस लेने के लिए ठीक-ठाक माना गया है. 201 से 300 के बीच  हो तो खराब 301 से 400 के बीच हो तो बहुत खराब और 401 से 500 के बीच हो तो खतरनाक माना गया है.

लेकिन यहां हैरान करने वाली बात यह है कि बिहार के कई शहरों में हवा की गुणवत्ता चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुकी है, लेकिन इस ओर सरकार का कोई विशेष ध्यान नहीं है.

साल 2021 के मार्च महीने में स्विस संगठन आईक्यूएयर की ओर से जारी वर्ल्‍ड एयर क्‍वालिटी रिपोर्ट में बिहार की राजधानी पटना दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल था. दुनिया की सबसे गंदी हवा बिहार के दो शहरों में पाई गई थी. विशेषज्ञों ने चेताया था कि अगर हालात नहीं संभले तो जल्‍द ही दो से चार शहर सबसे प्रदूषित हो जाएंगे और बिहार में स्वास्थ्य समस्या और जटिल हो जाएगी.

वर्ल्‍ड एयर क्‍वालिटी रिपोर्ट के अनुसार बिहार में पटना और मुज़फ्पुफ़रपुर दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित हवा वाले शहरों में शामिल थे. ये दोनों शहर 21वें और 27वें स्थान पर थे. पिछली रिपोर्ट में दोनों शहरों की रैंकिंग 28वीं और 32वीं थी. रिपोर्ट के अनुसार न केवल रैंकिंग में गिरावट आई है बल्कि पीएम 2.5 में भी वृद्धि हुई है.

दिल्ली से लेकर उत्तरप्रदेश और बिहार समेत भारत का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय से लगातार वायु प्रदूषण की चपेट में है. बारिश के महीनों को छोड़ दिया जाए तो हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में रहने वाले लोग लगभग पूरे साल प्रदूषण की मार झेलते हैं.

ठंढ के मौसम के शुरुआत के साथ ही प्रदुषण का असर मौसम के साथ नजर आने लगता है. ठंढ के मौसम में कुहासे के साथ धुल-भरी गंदी और प्रदूषित हवा मिलकर कुहासे के साथ मिलकर स्मॉग (smog) बनाती है. जो सांस लेने की परेशानी झेल रहे मरीज़ों के लिए बेहद खतरनाक हो जाता है.

दरअसल, स्मॉग (धूम कोहरा) धूल, धुएं और कोहरे का मिश्रण होता है. धुएं में खतरनाक नाइट्रोजन आक्‍साइड और अन्‍य जहरीली गैसों तथा कोहरे के मिश्रण से धूम कोहरा बनता है. इसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है. इससे बच्‍चे और वृद्ध लोगों को काफ़ी दिक्‍कत होती है. इससे दमा, खांसी और बच्‍चों को सांस लेने परेशानियां होती है.

पिछले वर्ष दिसम्बर में विमला देवी की मौत सांस लेने परेशानी के कारण हो गयी थी. विमला देवी मुंगेर जिले के खुटहा गांव की रहने वाली थी. उनकी उम्र 70 वर्ष के करीब रही होगी. विमला देवी के बेटे टुन्नू कुमार बताते हैं

"उन्हें दमा और खांसी था जिसके कारण उन्हें सांस लेने में परेशानी रहती थी. गंदी हवा या भीड़-भाड़ वाली जगहों पर हम उन्हें लेकर नहीं जाते थे. ठीक वैसे ही ठंड के दिनों में भी हमे उनकी सेहत का ज़्यादा ध्यान रखना पड़ता था. लेकिन पिछले साल उनकी तबियत अचानक ख़राब हुई. हम उनको पीएमसीएच लेकर गए. वहां से फिर हम उन्हें निजी अस्पताल ले गए जहां उनकी मौत हो गयी"

आईसीएमआर द्वारा ज़ारी एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में भारत में वायु प्रदूषण की वजह से 16.7 लाख लोगों की मौत हुई थी. इस रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण फेफड़ों से जुड़ी 40 फ़ीसदी बीमारियों के लिए ज़िम्मेदार हैं. वहीं इस्केमिक हार्ट डिजी,स्ट्रोक, डायबिटीज़ और समय से पहले पैदा होने वाले नवजात बच्चों की मौत के लिए भी वायु प्रदूषण 60 फ़ीसदी तक ज़िम्मेदार है.

क्या इन खतरनाक आंकड़ों के बाद भी क्या सरकार या आम लोग जागे हैं?

डॉ अक्षित का कहना है नहीं इसे बेहद गंभीरता से लेना होगा और लोगों को वायु प्रदूषण के ख़तरों के बारे में सचेत होना पड़ेगा. सरकार के भरोसे हमें नहीं बैठना है. यह हमारे, आपके, पूरे समाज और विश्व के स्वास्थ्य से ज़ुड़ा मुद्दा है. इसके लिए हमे युवा वर्ग को पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करने के लिए प्रेरित करना होगा. साथ ही हमे अपने जीवन शैली में बदलाव लाना होगा. कोविड के समय एक अच्छी आदत हम सब में यह आई कि हम सार्वजनिक स्थानों पर मास्क का उपयोग करने लगे. इसे हम वायु प्रदुषण से बचने के लिए भी अपना सकते हैं. जिससे कुछ हद तक हम अपने आप को सुरक्षित रख सकते हैं. साथ ही हम पौष्टिक खाना और योग के द्वारा अपनी रोग निरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाना होगा.

लेकिन जब तक इस विषय पर सरकार कोई ठोस उपाय या पालिसी नहीं बनाती है इसका समाधान मुश्किल है.

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