राज्य के 14 जिलों में बाल कल्याण समितियों के भंग हो जाने के कारण बाल कल्याण समिति के अंतर्गत आने वाली संस्थाओं में रहने वाले बच्चों के भविष्य पर एक बार फिर से अंधेरा छाने वाला है.
दरअसल, राज्य के 14 जिलों में कार्यरत बाल कल्याण समितियों (CWC) का कार्यकाल छह महीने पहले ही पूरा हो चुका था. जिसके कारण 4 मार्च को इन समितियों को भंग कर दिया गया. वहीं राज्य के बाकि अन्य जिलों की समितियां भी आने वाले दो-तीन महीनों के बाद समाप्त हो जाएगी.
पटना के अलावा जहानाबाद, गया, नालंदा, भोजपुर, बेगूसराय, सीवान, औरंगाबाद, भागलपुर, मधुबनी, सहरसा, गोपालगंज, पूर्णिया और अररिया जिले में कार्यरत बाल कल्याण समितियां भंग कर दी गई हैं.
नई समिति के गठन के लिए आगामी 26 मार्च को परीक्षा आयोजित की जानी है. लेकिन नई समिति के गठन में अभी कुछ और महीनों का समय लगना तय है. ऐसे में ये सवाल बहुत ज़रूरी है कि आख़िर बाल श्रमिक, बाल तस्करी, पॉक्सो या फिर अपने घर से दूर हुए बच्चों की कानूनी संरक्षण एवं सुरक्षा कैसे सुनिश्चित किया जाएगा?
बाल कल्याण समिति एक्स ऑफिसों को दी गई है जवाबदेही
बाल कल्याण समिति (CWC) में चेयरपर्सन रहीं एक महिला अधिकारी नाम नहीं बताये जाने के शर्त पर बताती हैं
समिति तो पांच मार्च को ही भंग हो गई और अब जब तक नई कमिटी का गठन नहीं हो जाती तब तक इसकी जवाबदेही एक्स ऑफिसों को दे दी गई है. नई कमिटी अब बच्चों की काउंसिलिंग और मानिटीरिंग करेगी. लेकिन जिन अफ़सरों को निगरानी का ज़िम्मा दिया गया है उनके ऊपर पहले से ही कई प्रभार हैं. ऐसे में वैसे बच्चे जो बाल श्रम, बाल तस्करी या पॉक्सो के शिकार हुए हैं, उनकी काउंसिलिंग बाधित होगी. ये एक तरह से समाज कल्याण विभाग की विफलता को दर्शाता है.
महिला अधिकारीं आगे कहते हैं
समिति के कार्यकाल पूरा होने से पहले ही नई समिति गठन की प्रक्रिया को पूरा कर लेना चाहिए. साथ ही नई समिति के सदस्यों को पुरानी समिति के सदस्यों के साथ कम-से-कम 10 दिनों तक काम करके पूरी कार्य व्यवस्था को समझना बहुत ज़रूरी है. क्योंकि हमारा काम पेपर वर्क से ज्यादा बच्चों की मनोदशा पर आधारित है. अभी जो अधिकारी काम देख रहे हैं वो केवल पेपर के आधार पर काम कर रहे हैं जबकि हम ख़ुद बच्चों से मिलकर उनकी समस्या को समझते थे.
सीडब्ल्यूसी का बाल कल्याण समिति में काम क्या है?
ज़रूरतमंदों के लिए आवास, विकास एवं पुनर्विकास के समिति का गठन एवं पुनर्गठन किया जाता है. इसके लिए सरकार की दो गाइडलाइन मौजूद हैं. किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 27 और बिहार किशोर न्याय नियमावली 2017 के नियम 15 के अंतर्गत ये नियम आते हैं.
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के धारा 48 के आलोक में प्रत्येक जिलें में किशोर युवाओं को सुरक्षित स्थान देने का प्रावधान किया गया है.
समाज कल्याण विभाग के द्वारा बाल कल्याण समिति (CWC) और जुविनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) का संचालन किया जाता है. जिसमें ज़रूरतमंद बच्चों के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार सीडब्लूसी को ही है.
वहीं जेजेबी (JJB) का काम सात साल से ज्यादा और 18 साल के कम उम्र के नाबालिग बच्चे जो किसी अपराध में संलिप्त पाए गए हैं, उनको मदद और संरक्षण देना है.
बाल कल्याण समिति पटना कि महिला अधिकारी कहती हैं
समिति भंग करने के 15 दिन पहले ही जेजेबी को एक्सटेंशन दे दिया गया. ऐसे में प्रश्न उठता है की फिर सीडब्लूसी को एक्सटेंसन क्यों नहीं दिया गया?
सेव दी चिल्ड्रेन के प्रेसिडेंट राफ़े एजाज कहते हैं
सीडब्ल्यूसी का काम ही विपरीत परिस्थितियों से आए हुए बच्चों की सुरक्षा और देखभाल (Care and Protection) करना है. बिहार सरकार बच्चों कि सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संवेदनशील भी है. लेकिन कुछ मामलों में थोड़े सुधार और समय की महत्ता का ध्यान रखा जाना आवश्यक है. जैसे-बाल कल्याण समिति को छह महीने का एक्टेंसन दिया गया था, लेकिन इस बीच किन्हीं कारणों से नई समिति का गठन नहीं किया जा सका. साथ ही नियमों के अनुसार इससे ज्यादा एक्सटेंशन दिया भी नहीं जा सकता था.
यहां सरकार को नियमों में बदलाव लाने की आवश्यकता है. जैसे, नई बाल कल्याण समिति का गठन समय पर नहीं होने की स्थिति में पुरानी समिति को काम करने दिया जाए. अभी एक्स ऑफ़िसो के ज़िम्में समिति का काम है लेकिन उनके ऊपर पहले से ही कई ज़िम्मेवारियां हैं.
बाल कल्याण समिति भंग होने के बाद विभिन्न परिस्थितिओं से आने वाले बच्चों की निगरानी अब ज़िम्मेवारी किनकी होगी? इसके लिए हमने समाज कल्याण विभाग के निदेशक से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने हमारे कॉल का उत्तर नहीं दिया.