बिहार दिवस 2023: कैसे उर्दू सरकारी जगहों से गायब हो रही है?

बिहार के 111वें जन्मदिवस पर बिहार दिवस 2023 मनाया जा रहा है. इस बिहार दिवस में जानिये कैसे उर्दू सरकारी जगहों से गायब हो रही है.

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Asif Iqbal
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बिहार दिवस 2023: कैसे उर्दू सरकारी जगहों से गायब हो रही है?
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बिहार के 111वें जन्मदिवस पर बिहार दिवस 2023 मनाया जा रहा है. इस बिहार दिवस में जानिये कैसे उर्दू सरकारी जगहों से गायब हो रही है. उर्दू को हमेशा एक समुदाय की भाषा माना गया है. लेकिन सच्चाई ऐसी नहीं है. उर्दू हिंदुस्तान में जन्मी गंगा-जमुनी तहज़ीब की भाषा है. प्रेमचंद उर्दू में नवाब राय के नाम से लिखते थे. उनकी अनेकों कहानियां उर्दू में छपी हैं. कृष्ण चंदर भी हिंदी और उर्दू के लेखक थें.

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कैसे बिहार दिवस से गायब है उर्दू?

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22 मार्च  2023 को बिहार ने आपना 111 वां  सालगिरह मनाया. स्थापना दिवस के इस जश्न को बिहार के ऐतिहासिक गांधी मैदान में 22-24 मार्च के बीच मनाया जा रहा है. पर इसमें सबसे हैरान करने वाली बात यह है राजकीय भाषा उर्दू को इस जश्न से अछूता रखा गया है.

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(बिहार दिवस के मुख्य द्वार से उर्दू गायब)

हिंदी के साथ-साथ  उर्दू बिहार की राजकीय भाषा है. तीन दिवसीय होने वाले इस समारोह में हर जगह साइन बोर्ड पर केवल हिंदी में ही नाम लिखें गए हैं, उर्दू का कहीं नाम  निशान नहीं है.

 1972 में बिहार उर्दू अकादमी की स्थापना  की गई. इस संस्था का कार्य बिहार में उर्दू के कल्याण  के लिए काम करना  है. उर्दू भारतीय संविधान की आठवीं सूची में शामिल है.वर्ष 1981 में उर्दू  बिहार  की  द्वितीय सरकारी भाषा  बनी. अभी बिहार में 1 करोड़ सत्तर लाख (17,757,548) लोग उर्दू बोलते-पढ़ते हैं.

बिहार दिवस उर्दू

उर्दू अखबारों के विज्ञापन से भी उर्दू गायब

ऐसा नहीं है कि बिहार दिवस में ही उर्दू गायब है. बिहार दिवस के विज्ञापन, जो उर्दू अखबारों में छपे हैं, वहां भी उर्दू गायब है.

बिहार दिवस उर्दू

(कौमी तंज़ीम अखबार में भी विज्ञापन हिंदी में दिया गया)

उर्दू के साथ सरकार का ऐसा ही बर्ताव रहा तो, शायद ही आज के युवाओं के स्मृतियों में यह रह जाए कि उर्दू बिहार की राजकीय भाषा है. जश्न जब बिहार के स्थापना की हो रही हो तो एक राजकीय भाषा को भूला देना दुर्भाग्यपूर्ण है.जब मुख्य द्वार पर ही उर्दू नहीं लिखी गई है तो आज के युवा कैसे बिहार उर्दू के बारे में जानेंगे.

इस समारोह में लगा कृषि विभाग का पंडाल सबसे बड़े पंडालों में से एक है. यहां भी उर्दू में  लिखी कोई बोर्ड नहीं दिखी. इसी तरह आपदा प्रबंधन विभाग, जीविका दीदी के स्टॉल पर भी उर्दू में कोई बोर्ड नहीं है.

बिहार दिवस उर्दू

आजकल युवाओं में सेल्फी लेने का काफी उत्साह है. इस समारोह में सेल्फी के लिए विशेष स्थान चिन्हित किये गए हैं. जहां युवा इस समारोह की सेल्फी के साथ लुत्फ़ लेते दिखे. सेल्फी वाले जगह पर हिंदी और यहां तक इंग्लिश में बेहतरीन अंदाज़ में #बिहारदिवस2023 लिखा हुआ था. यहां पर भी उर्दू में कुछ नहीं लिखा गया.

सरकारी दफ़्तरों में भी उर्दू का इस्तेमाल नहीं

बिहार में उर्दू सार्वजानिक जगहों से लगातार अपनी वजूद खोती हुई नज़र आ रही है. इसे सरकारी दफ्तरों और  सड़कों के  लिखे नाम से समझ सकते हैं.

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(सार्वजनिक जगहों पर भी उर्दू का इस्तेमाल नहीं किया जाता है)

इन जगहों पर अधिकांश जगह इंग्लिश और हिंदी में ही लिखे नाम दिखते हैं. उदाहरण के तौर पर पटना उच्च न्यायालय के साइन बोर्ड पर केवल हिंदी और इंग्लिश में नाम लिखे हुए हैं.

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(उच्च न्यायलय के मुख्य द्वार पर भी उर्दू का नाम-ओ-निशान नहीं है)

बीते दिनों बिहार सरकार ने बिहार संग्रहालय को भव्य तरीके से बनाया.पर इस संग्रहालय के बोर्ड से भी उर्दू पूरी तरह से गायब है.

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खास तौर से नए बने मुख्य सड़क 'अटल पथ' पर भी उर्दू में नाम नहीं लिखी गई है. जवाहर लाल नेहरु मार्ग/बेली रोड जिस पर बिहार के अधिकांश सत्ता प्रतिष्ठान के कार्यालय हैं, यहां भी अधिकांश दफ्तरों के बोर्ड  से गायब है. बिहार में संचालित की जारी मदरसा बोर्ड की वेबसाइट में भी उर्दू का इस्तेमाल नहीं किया गया है.

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(मदरसा बोर्ड की वेबसाइट में भी कहीं उर्दू नहीं है)

उर्दू को हमेशा एक समुदाय की भाषा माना गया है. लेकिन सच्चाई ऐसी नहीं है. उर्दू हिंदुस्तान में जन्मी गंगा-जमुनी तहज़ीब की भाषा है. प्रेमचंद उर्दू में नवाब राय के नाम से लिखते थे. उनकी अनेकों कहानियां उर्दू में छपी हैं. कृष्ण चंदर भी हिंदी और उर्दू के लेखक थें. उर्दू के बिना भारत और उसकी संस्कृति की कल्पना कर पाना नामुमकिन है.

उर्दू की इस तरह से उपेक्षा बिहार के 111 वें सालगिरह को अधूरे तरीके से मनाने के समान है.

बिहार दिवस 2023