बिहार: क्या महिला मज़दूरों को पुरुषों के बराबर में मज़दूरी मिलती है?

वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की ताज़ा जेंडर गैप रिपोर्ट  2022 में भारत 146  देशों में 135वें नंबर पर है. भारत में पुरुष और महिलाओं को मिलने वाले वेतन यानि जेंडर वेज गैप 34% पूरे देश में 15.02 करोड़ महिला मज़दूर मौजूद

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पल्लवी कुमारी
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  • वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की ताज़ा जेंडर गैप रिपोर्ट  2022 में भारत 146  देशों में 135वें नंबर पर है.
  • भारत में पुरुष और महिलाओं को मिलने वाले वेतन यानि जेंडर वेज गैप 34%
  • पूरे देश में 15.02 करोड़ महिला मज़दूर मौजूद
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सामान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 के अनुसार एक कार्य के लिए बिना किसी भेदभाव के पुरुष और महिला कामगारों को समान पारिश्रमिक का भुगतान किए जाने तथा भर्ती के बाद प्रमोशन, ट्रेनिंग और ट्रांसफर का प्रावधान है.

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महिला श्रमिकों के हितों के लिए कई श्रम कानून बनाए गए हैं, लेकिन अधिकतर महिला श्रमिकों को इन कानूनों की कोई जानकारी नहीं है. अधिकांश महिला मज़दूरों के मामले में इस नियम का पालन होते बहुत ही कम देखा जाता है.

अंतर्राष्ट्रीय संस्था ILO (International Labour Organisation) के जेंडर वेज गैप रिपोर्ट के अनुसार 2015 के वैश्विक औसत 23% की तुलना में अनुसार भारत में पुरुष और महिलाओं को मिलने वाले वेतन यानि जेंडर वेज गैप 34% था.

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मज़दूरों की तादाद में बिहार देश में दूसरा सबसे बड़ा राज्य

देश में इस समय 28.51 करोड़ मज़दूर निबंधित हैं जिनमें 15.02 करोड़ (52.81%) महिलाएं हैं और 13.45 करोड़ (47.19%) पुरुष हैं.

पूरे देश में 15.02 करोड़ महिला मज़दूर मौजूद हैं जो असंगठित क्षेत्र में रोजगार कर रही हैं. इन अस्थाई महिला श्रमिकों को कई समस्याओं जैसे कम वेतन, घरेलु और सामाजिक उत्पीड़न, कार्यस्थल पर सुविधाओं के अभाव जैसी कई समस्याओं को झेलना पड़ता है.

भारत में उत्तरप्रदेश के बाद बिहार दूसरा सबसे ज्यादा मजदूरों वाला राज्य है. श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, भारत सरकार के वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बिहार में 2.85 करोड़ मज़दूर यहां निबंधित हैं.

जिनमें महिला कामगारों की संख्या 1.59 करोड़ (55.99%) हैं और पुरुष कामगारों की संख्या 1.25 करोड़ (44.01%) है. राज्य में ज्यादा सबसे ज्यादा 1.41 करोड़ (1,41,33,487) मज़दूर कृषि कार्य से जुड़े हुए हैं.

इन आंकड़ों से यह साफ़ पता चलता है कि राज्य में महिला मजदूरों की संख्या पुरुषों से ज़्यादा है. लेकिन श्रमबल में अपनी बढ़ती भागीदारी के बाद भी महिलाओं को उनके मेहनत के अनुरूप पारिश्रमिक नहीं दिया जा रहा है.

खेती में महिला मजदूरों की भागीदारी ज़्यादा

कटिहार के भतौरिया गांव में रहने वाली बुनिया देवी अपनी दिनचर्या डेमोक्रेटिक चरखा को बताते हुए कहती हैं

मेरा दिन 4 बजे से शुरू हो जाता है. सुबह उठकर घर का काम निपटाकर हम 8 बजे खेत पर पहुंचते हैं. मेरे पति भी मेरे साथ खेत में काम करते हैं. खेत से शाम में 4 बजे वापस घर आते हैं. 8 घंटे काम करने के बाद मात्र 150 रुपया हमको मिलता है. लेकिन मेरे पति को 300 रुपया मिलता है.

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क्या कभी आपने अपने पति के समान पारिश्रमिक की मांग की है? इसपर बुनिया कहती हैं

यहां पर सब महिला इतना पैसा पर ही काम कर रही हैं तो हम अकेले ज़्यादा कैसे मांगेंगे.

बुनिया देवी के चार बच्चे हैं जिनमें से दो बेटियां भी हैं. बुनिया बताती हैं

एक बेटी का शादी कर दिए हैं लेकिन अभी एक का ब्याह (शादी) करना अभी बाकि है. बेटा अभी इंटर में पढ़ता है.

भतौरिया की रहने वाली मंगो देवी की कहानी भी बुनिया देवी कि ही तरह है. मंगो देवी कटिहार जिला के भतौरिया गांव की रहने वाली हैं. मंगो खेतों में कटनी और रोपनी का काम करती हैं. अपनी परेशानियों का ज़िक्र करते हुए कहती हैं,

हमारे पास अपने खेत नहीं हैं दूसरों के खेतों में काम करके ही गुज़ारा होता है. हमें 8 घंटे काम के बदले 150 रुपये मिलते हैं. पूरे दिन धूप में काम करना पड़ता है. मेरे तीन बच्चे हैं उनको पढ़ाना है इसलिए मेरे पति बाहर कमाने गए हैं और हम यहां खेत में काम करते हैं.

कटिहार जिला में मजदूरों के लिए काम करने वाली संस्था ‘जन जागरण शक्ति संगठन’ में महिला मजदूरों के लिए काम करने वाली फूल कुमारी बताती हैं

हमारी संस्था में 800 के करीब मज़दूर जुड़े हुए हैं. जिनको हम खेत, मनरेगा जैसी जगहों पर काम दिलवाते हैं. लेकिन जहां पारिश्रमिक की बात है तो मनरेगा में तो महिला और पुरुष को समान वेतन मिल जाता है. लेकिन निजी खेत के मालिकों या ठेकेदारों के यहां मज़दूरी में अंतर रहता है.

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फूल कुमारी आगे कहती हैं

कई बार महिलाओं के समूह ने समान मजदूरी की मांग रखी है लेकिन खेत मालिक और ठेकेदार देने में असमर्थता जताते हैं. क्योंकि ज़्यादातर महिलाएं गरीब हैं इसलिए ज़्यादा दिन तक काम से दूर नहीं रह सकती हैं.

वहीं इसपर बुनिया देवी कहती हैं

हम काम पर नहीं जाएंगे लेकिन मेरे जगह पर दूसरी महिला जाने को तैयार रहती है. मालिक उसको लेकर चला जाता है और ज्यादा पैसा की मांग करने वाली मज़दूर बैठीं रह जाती हैं.

महिला किसानों की जगह महिला खेतिहर मज़दूरों की संख्या बढ़ी

2011 की जनगणना के अनुसार, 2001 से 2011 तक महिला किसानों की संख्या में कमी आई है और महिला खेतिहर मजदूरों की संख्या में वृद्धि हुई है. 2001 में महिला किसानों की संख्या 2.33 करोड़ थी, जबकि 2011 में यह घटकर 2.28 करोड़ हो गई. इसका मतलब है कि लगभग 25 लाख महिला किसानों ने कृषि छोड़ दी है. इनमें से या तो महिलाएं खेतों में मजदूर बन गईं या किसी और तरह का काम करने चली गईं.

कृषि में काम करने वाली अनुमानित 52 से 75 फीसदी महिलाएं अशिक्षित या केवल साक्षर (नाम लिखना जानती हैं) हैं. यही कारण है कि ज़्यादातर महिलाएं बिना वेतन या कम वेतन में खेतों में काम करती हैं. कृषि कार्य में, पुरुष किसानों की मज़दूरी महिला श्रमिकों से दोगुना होता है. ग्रामीण महिलाएं दुनिया की कृषि आबादी का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा बनाती हैं. कृषि में महिलाओं की भूमिका को ध्यान में रखते हुए, हर साल 1 अक्टूबर को महिला किसान दिवस मनाया जाता है.

सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) के अनुसार, बिहार में 70 फीसद ग्रामीण महिलाएं कृषि, बागवानी, वानिकी और मत्स्य पालन जैसे कार्य कर रही हैं.

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समान काम के लिए असमान वेतन

समान कार्य के लिए पुरुषों और महिलाओं को दिए जाने वाले असमान वेतन पारिश्रमिक हमारे समाज में सबसे प्रमुख लिंग आधारित मुद्दों में से एक रहा है. बहुत सारे डेटा हैं जो लिंग आधारित वेतन असमानता की समस्या को उजागर करते हैं.  

विश्व असामनता रिपोर्ट (World Ineqality Report) में कहा गया है कि भारत में महिलाओं को मिलने वाला श्रम आय दो आयामों पर निर्भर करता है. पहला पुरुषों की तुलना में उनकी श्रम शक्ति की भागीदारी और दूसरा उनका लिंगानुपात. 

विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, भारत में महिला श्रम भागीदारी दर 2005 में 26% से अधिक से गिरकर 2019 में 20.3% हो गई थी. सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार कोविड  महामारी के बाद महिला श्रम भागीदारी दर में भी गिरावट आई है, जो जुलाई-सितंबर 2020 की तिमाही के दौरान 16.1% तक गिर गई.

जन जागरण शक्ति संगठन से जुड़कर बिहार के ग्रामीण इलाकों के मजदूरों के लिए काम करने करने वाले आशीष रंजन कहते हैं

मूल रूप से जेंडर पे गैप का मामला बहुत बड़ा है और इसमें कई छोटे-छोटे कारक है. वेतन में अंतर का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं होता है. क्योंकि कोई भी निजी संस्था अपने कर्मचारियों को क्या वेतन दे रहा है यह केवल नियोक्ता और कर्मचारी को पता होता है.

आशीष आगे कहते हैं

समान काम का समान वेतन नियम केवल सरकारी क्षेत्रों तक सीमित है. निजी क्षेत्रों के कॉर्पोरेट कंपनी, मीडिया कंपनी या दुकानों में भी महिला और पुरुष के वेतन में अंतर है. वहीं बड़े स्तर पर महिला पुरुष के वेतन का अंतर आप फ़िल्मी कलाकारों में भी देख सकते हैं. जहां पुरुष कलाकार को ज्यादा और महिला कलाकार को कम वेतन दिया जाता है.

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वहीं वरिष्ठ पत्रकार नासिरुद्दीन हैदर खान का कहना है कि

कार्यस्थल पर महिलाओं को मिलने वाले कम वेतन का पहला कारण हमारे पितृसत्तात्मक समाज की सोच है और यह मानना कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले शारीरिक तौर पर कमजोर होती हैं तो कम काम करेंगीं, जबकि असल में ऐसा होता  नहीं है. इसका दूसरा कारण महिलाओं का अपने अधिकारों के प्रति कम जागरूकता भी है.

न्यूनतम मज़दूरी नहीं देने पर सज़ा का है प्रावधान

अगर किसी व्यक्ति द्वारा न्यूनतम मज़दूरी दर नहीं दिया जाता है तो उस पर जुर्माने सहित एक साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है. अगर किसी मज़दूर को उनके नियोक्ता या मालिक के द्वारा न्यूनतम मज़दूरी नहीं दिया जा रहा है तब वो स्वयं या प्रखंड के श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी के माध्यम से न्यूनतम मज़दूरी के लिए आवेदन कर सकते हैं.

कृषि कार्य में लगे मज़दूर सीओ (CO), उप समाहर्ता या श्रम अधीक्षक से संपर्क कर सकते हैं. वहीं गैर कृषि कार्य में लगे मज़दूर सहायक श्रमायुक्त अनुमंडल या श्रम न्यायालय में आवेदन कर सकते हैं.

इस पर नासिरुद्दीन हैदर खान जी कहते हैं

ऐसा नहीं है कि प्रशासन को स्थिति की जानकारी नहीं, लेकिन जो कानून हैं उन्हें लागू करवाने के प्रति प्रशासन का रवैया चिंताजनक है. समान पारिश्रमिक कानून का उल्लंघन करने वाले नियोजकों के विरुद्ध न्यायालयों में शिकायतें दायर की जा सकती है. लेकिन ज्यादातर महिलाएं और यहां तक की पुरुष भी कम वेतन के लिए शिकायत नहीं करते हैं. महिलाओं के परिपेक्ष्य में यह मसला थोड़ा ज्यादा गंभीर है. अपने अधिकारों के लिए महिलाओं को संगठित होना होगा और एक साथ होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठानी होगी.

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भारत का नीति आयोग हर साल सतत विकास लक्ष्यों (SDG) में भारतीय सूचकांक का डेटा प्रकाशित करता है. साल 2022 में जारी आंकड़ों के मुताबिक लैंगिक बराबरी के मामले में भारत का स्कोर 48 है.

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