बिहार सरकार ने पीरियड्स लीव को बंद करके एक महिला विरोधी फ़ैसला लिया है. बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 10 मार्च को जारी आदेश में संविदा और आउटसोर्सिंग माध्यम से सरकारी कार्यालयों में कार्यरत महिला कर्मियों को मिलने वाले पीरिएड्स लीव को बंद कर दिया गया है.
संविदा और आउटसोर्सिंग कर्मी की पीरियड्स लीव समाप्त
सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी इस आदेश में कहा गया है कि नियमित महिला कर्मचारियों को मिलने वाला विशेष अवकाश जारी रहेगा. जबकि संविदा और नियोजन के साथ-साथ बेल्ट्रॉन और आउटसोर्सिंग के माध्यम से कार्यरत महिला कर्मियों को मिलने वाला विशेष अवकाश अब देय नहीं होगा. संविदा महिला कर्मियों को मिलने वाला विशेष अवकाश दिसंबर 2022 को जारी अंतिम आदेश से निरस्त किया गया है.
महिला संविदाकर्मियों के पीरियड्स लीव बंद करने का मामला मंगलवार, 21 तारीख को विधानसभा में भी उठाया गया. प्रतिपक्ष नेता भाजपा के विजय कुमार सिन्हा ने सदन में विशेष अवकाश का मुद्दा उठाया. उन्होंने सरकार से इस मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए संविदा महिला कर्मचारियों को 2 दिन की पीरियड्स लीव देने की मांग की.
विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि
महिला तो महिला है. ऐसे में स्थायी और संविदाकर्मी के लिए नियम अलग-अलग क्यों? किसी भी स्थिति में उनके बीच या उनके साथ भेदभाव करना सही नहीं है. ये जाति, धर्म या स्थान का मामला नहीं है. बिहार की सभी महिलाएं समान हैं.
डेढ़ लाख से ज़्यादा महिला कर्मियों की पीरियड्स लीव पर रोक
राज्य में संविदा पर कार्यरत कर्मियों की संख्या साढ़े चार लाख है, जिसमें महिलाओं के लिए 35% सीट आरक्षित रखा गया है. इस हिसाब से राज्य में अभी डेढ़ लाख से ज़्यादा संविदा महिला कर्मचारी काम कर रहीं हैं. लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश के बाद इसका सीधा असर संविदा महिला कर्मचारियों पर पड़ने वाला है.
पंचायती राज विभाग, सुपौल में संविदा पर कार्यरत नेहा कुमारी बताती हैं
पीरियड्स के दौरान किसी महिला को ज़्यादा तो किसी को कम लेकिन परेशानी तो होती ही है. ऐसे में 2 दिनों का विशेष अवकाश हमारे लिए बहुत राहत देने वाला होता है. हमे छुट्टी के लिए किसी बहाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है. अगर सरकार इसे बंद करने वाली है तो यह बहुत गलत हैं.
नेहा आगे कहती हैं
मैं यहां से पहले किसी अन्य विभाग में काम करती थी लेकिन वहां हमे पीरियड्स के दौरान मिलने वाली छुट्टी की जानकारी नहीं थी. आज भी महिलायें पीरियड्स के नाम पर छुट्टी लेने से झिझकती हैं, जिनको बहुत ज़्यादा ज़रूरत होती है वही इस अवकाश का लाभ लेती हैं.
महिलायें अभी भी अपने अधिकारों से वंचित
पिछले कुछ वर्षों में झिझक और शर्म को पीछे छोड़ते हुए महिलाएं कार्यस्थल पर अपने अधिकारों को लेकर सजग हुईं थी. लेकिन विभाग के इस आदेश के बाद एक ही कार्यस्थल पर काम करने वाली नियमित महिला कर्मचारियों को विशेष अवकाश का लाभ मिलेगा जबकि संविदा महिलाकर्मी को नहीं.
आशा कर्मियों के लिए काम करने वाली शशि यादव विभाग के इस फैसले के लिए केंद्र की मोदी सरकार को दोषी मानती हैं. उनका कहना है
भले ही अभी महागठबंधन की सरकार है लेकिन ये फ़ैसले केंद्र में बैठी मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों का नतीजा है. कोई भी नियम एक दिन में नहीं बनाए जाते. महागठबंधन की सरकार बने अभी कुछ ही महीने हुए हैं. सरकार भले बदल गयी है लेकिन ब्यूरोक्रेसी आज भी भाजपा और महिला विरोधी ढर्रे पर काम कर रही है.
वेतन में भी है अंतर
शशि यादव आगे कहती है
संविदा कर्मी और नियमित कर्मी के वेतन में बहुत अंतर है. लेकिन काम तो दोनों समान ही करते है. यहां तक की संविदा कर्मियों से ज़्यादा ही काम लिया जा रहा है. महिलाओं को मिलने वाले विशेष अवकाश को बंद करना श्रमिकों को मिले अधिकारों को कम करने की एक चाल है. संविदा कर्मी अभी बहुत ही कठिन परिस्थितियों में हैं. उन्हें नियमित किए जाने की आवश्यकता है न की उनके अधिकारों और सहूलियतों को बंद करने की.
संविदा महिला कर्मियों में नियम को लेकर दुविधा
सुपौल के लोक सेवा अधिकार (RTPS) में कार्यरत कार्यपालक सहायक, श्रीमेघा नियमों में हुए बदलाव को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं. उनका कहना है कि
नियम में बदलाव की जानकारी को लेकर हमलोग अभी असमंजस में हैं. समान्य प्रशासन विभाग का एक लेटर ग्रुप में शेयर किया गया है जिसमें अवकाश रद्द किए जाने का आदेश है. लेकिन हमें अभी विभागीय आदेश का पत्र नहीं मिला है.
श्रीमेघा आगे कहती हैं
समान्य प्रशासन विभाग से जारी आदेश के बाद भी मेरे साथ काम करने वाली महिला सहकर्मी को विशेष अवकाश दिया गया है. वहीं मेरी एक परिचित बिजली विभाग में कार्यरत हैं. उन्हें भी छुट्टी मिली है. लेकिन मौखिक रूप से उन्हें कहा गया कि छुट्टी बस इसी महीने तक मिलेगी.
केसरिया विधानसभा क्षेत्र से जेडीयू विधायक शालिनी मिश्रा कहती हैं
हो सकता है मुख्यमंत्री इस फैसले से अनभिज्ञ हों. हम तो सरकार से संविदा महिला कर्मियों के साथ-साथ प्राइवेट सेक्टर में काम कर रही महिलाओं के लिए भी पीरियड्स लीव दिए जाने की मांग करते हैं. किसी भी सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं की समस्यां एक समान है, इसलिए इसमें विभेद करना सही नहीं है.
देश में सबसे पहले पीरियड्स लीव की शुरुआत बिहार में
बिहार कई मामलों में भले ही देश के अन्य राज्यों से पिछड़ा हुआ है. राज्य की साक्षरता दर अन्य राज्यों से भले ही कम हो लेकिन महिलाओं को पीरियड्स के दौरान होने वाली समस्या सबसे पहले इसी राज्य ने समझा था.
भारत में जब किसी भी राज्य ने कामकाजी महिलाओं को पीरियड्स के दौरान विशेष अवकाश देने जैसा कोई प्रावधान नहीं बनाया था तब बिहार सरकार ने सरकारी कार्यालयों में काम करने वाली नियमित और संविदा कर्मियों को हर महीने दो दिनों का अवकाश देना सुनिश्चित किया था.
साल 1991 के नवंबर महीने में बिहार राज्य में एक अनिश्चितकालीन हड़ताल हुई थी. हड़ताल कर रहे सरकारी कर्मचारियों की मांग थी कि केंद्र सरकार की तर्ज़ पर राज्य में जो वेतनमान लागू किया गया है उसमें हुई विसंगतियों को दूर किया जाए. इस हड़ताल में धीरे-धीरे महिला कर्मचारियों ने भी भाग लिया और अपनी कुछ मांगे रखी. जिसमें एक प्रमुख मांग मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अवकाश दिया जाना भी था.
लालू यादव के कार्यकाल में महिलाओं को मिला पीरियड्स के लिए 'विशेष अवकाश'
उस समय राज्य के मुख्यमंत्री रहे लालू यादव ने अपनी सहमती दी थी. जिसके बाद 2 जनवरी 1992 से सरकारी कार्यालयों में कार्यरत महिला कर्मचारियों को 2 दिन की पीरियड्स लीव दी जाने लगी.
बिहार में हुए इस सकारात्मक बदलाव को देखते हुए केरल जैसे कुछ अन्य राज्यों ने भी इसी तरह की नीतियां पेश की, जहां महिला कर्मचारी प्रति माह एक दिन का मासिक धर्म अवकाश का प्रावधान हैं.
साल 2021 में दिल्ली, यूपी और महाराष्ट्र सरकार ने भी महिला कर्मचारियों को पीरियड्स लीव देने की शुरुआत की है.
हालांकि, तीन दशक पहले महिलाओं के लिए विशेष अवकाश का नियम बनाकर देश में मिसाल पेश करने वाले राज्य में समान कार्यस्थल पर काम कर रहीं महिलाओं, के अधिकारों में विभेद करना बिल्कुल उचित नहीं है.