बिहार में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए कितनी सुगम है हमारी स्थल और इमारतें?

साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में दिव्यांग व्यक्तियों की संख्या 2.68 करोड़ है जो देश की कुल जनसंख्या का 2.21% है.

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पल्लवी कुमारी
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साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में दिव्यांग व्यक्तियों की संख्या 2.68 करोड़ है जो देश की कुल जनसंख्या का 2.21% है. वहीं राज्यवार आंकड़ों की बात की जाए तो बिहार में दिव्यांगो की संख्या 23,31,009 है. हालांकि यह आंकड़े वास्तविक जनसंख्या से काफ़ी कम हैं. क्योंकि अभी भी ये 12 साल पुराने हैं. दिव्यांग व्‍यक्तियों की श्रेणी में दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित, वाकबाधित, अस्थि विकलांग और मानसिक रूप से विकलांग व्‍यक्ति शामिल होते हैं.

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आरपीडब्लूडी (RPWD) एक्ट देता है समान अवसर का अधिकार 

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दिव्यांगजनों को रोज़गार और शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से आरपीडब्लूडी (RPWD) एक्ट 2016 बनाया गया था. 

इस एक्ट के तहत सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दिव्यांगों के लिए सीटें आरक्षित हैं. शिक्षा और रोज़गार के समान अवसरों के साथ ही इस एक्ट में दिव्यांगों के लिए सार्वजानिक स्थलों को सुगम बनाए जाने का भी प्रावधान है, जिससे उनका विकास और समाज में उनकी भागीदारी निर्बाध बनी रहे.

साथ ही इस कानून के तहत, सभी सरकारी इमारतों में रैंप, विकलांगों के लिए अलग शौचालय, विशेष पार्किंग आदि की व्यवस्था को अनिवार्य बनाया गया था. 

3 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिव्यांगजनों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर ‘सुगम्य भारत अभियान’ की शुरुआत की थी. इस अभियान का मुख्य उद्देश्य ही सरकारी कार्यालयों, रेलवे स्टेशन, एअरपोर्ट, बस स्टैंड, हॉस्पिटल, पार्क, शॉपिंग मॉल, सिनेमाघर, धार्मिक स्थलों जैसे सार्वजनिक स्थलों को दिव्यांगो के लिए सुलभ बनाया जाना है.  

दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक स्थलों पर मौजूद सुविधाएं आज भी नाकाफ़ी हैं. सार्वजनिक स्थलों पर दिव्यांग आज भी मुश्किलों का सामना कर रहें हैं.

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पेशे से आर्टिस्ट ममता भारती दिव्यांग हैं. अपने रोजाना के क्रियाकालापों के लिए ममता व्हील चेयर का इस्तेमाल करतीं हैं. ममता बताती हैं

घर में चीजें तो हम अपने हिसाब से व्यवस्थित कर लेते हैं लेकिन बाहरी स्थानों पर हम अपने ढंग से बदलाव नहीं ला सकते हैं. मुझे अपने काम के सिलसिले में अकसर इधर-उधर जाना होता है. लेकिन अगर मैं कहीं अकेले जाना चाहूं तो ये मेरे लिए संभव नहीं है. पटना रेलवे स्टेशन हो या कोई सरकारी भवन सब जगह असुविधा है. हाल ही में बने पटना स्थित इस्कॉन मंदिर में मैं कुछ दिन पहले दर्शन करने पहुंची. भव्य बने इस मंदिर में लिफ्ट की व्यवस्था भी है लेकिन आप लिफ्ट तक बिना तीन चार सीढियां चढ़े नहीं पहुंच सकते हैं, जो हमारे लिए अकेले संभव नहीं है.

ममता आगे कहती है

आर्ट एक्ज़ीबिशन के सिलसिले में जब मैं बाहर जाती हूं तो मुझे कई बार बहुत ज़्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पहला पब्लिक ट्रांसपोर्ट तो आज भी हमारे अनुकूल नहीं है. बैसाखी के सहारे चल रहा व्यक्ति तो बस में सफ़र कर लेता हैं लेकिन व्हील चेयर पर चलने वालों के लिए यह संभव नहीं है. वहीं सरकारी भवन या अन्य रोज़मर्रा में जाए जाने वाले स्थान हमारे अनुकूल नहीं है. पटना स्थित खादी मॉल या उसके जैसे कई परिसर दिव्यांगों के लिए सुगम नहीं है. अगर कोई भवन दिव्यांगों के अनुकूल बनाया भी गया हैं तो वहां इस बात की सूचना स्पष्ट रूप से नहीं लिखी रहती है.

पटना स्थित सार्वजनिक स्थल दिव्यांगजनों के लिए कितने सुगम्य?  

राजधानी पटना स्थित पटना जंक्शन स्टेशन, बिहार के सबसे प्रमुख और बड़े रेलवे स्टेशनों में से एक है. यहां रोज़ लाखों की संख्या में यात्री दूसरे राज्यों और बिहार स्थित जिलों के लिए ट्रेन लेते हैं. लाखों यात्रियों के लिए सुगम यह रेलवे स्टेशन क्या दिव्यंगों के लिए भी इतने ही सुगम हैं?

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किसी भी रेल यात्रा की शुरुआत सबसे पहले उस यात्रा के लिए निश्चित टिकट लेने के बाद होती है. दिव्यांग जनों को भी यात्रा से पहले टिकट लेना अनिवार्य है.

पटना जंक्शन पर दिव्यांगों के लिए अलग से टिकट काउंटर बनाया गया है. टिकट काउंटर तक दिव्यांगो के प्रवेश के लिए यहां रैंप बनाया गया है. यहां गेट नंबर 4 के सामने दिव्यांगों के लिए आरक्षित काउंटर है. इस आरक्षित हिस्से में दो काउंटर दिव्यांगो और बुज़ुर्गों के लिए है. वहीं 1 नंबर प्लेटफार्म से अन्य प्लेटफार्म पर व्हीलचेयर से जाने के लिए रैंप बनाया गया है. प्लेटफार्म पर दिव्यांगो के लिए अलग से शौचालय भी मौजूद है.   

बिहार में दिव्यांगजनों के अधिकारों के लिए काम करने वाली वैष्णवी कहती हैं

पटना जंक्शन पर टिकट लेने से स्टेशन पहुंचने तक के लिए सुविधा मौजूद है. लेकिन अगर कोई दिव्यांग स्टेशन से रिजर्वेशन टिकट काउंटर से लेना चाहें तो उन्हें फिर वापस जेनेरल काउंटर पर ही जाना होगा. साथ ही स्टेशन पर मजूद शौचालय में ताला लगा होने के कारण उसे उपयोग करने में परेशानी उठानी पड़ती है. वहीं अगर पटना जंक्शन को छोड़ दिया जाए तो बिहार के अन्य स्टेशनों पर दिव्यांगों के लिए कोई सुविधा मौजूद नहीं है. कहीं दूर जाने के बजाय आप राजेंद्र नगर ही देख लीजिए बाकि सुविधा तो ठीक है लेकिन सबसे बेसिक टिकट लेने की सुविधा ही यहां मौजूद नहीं है.

टर्मिनल पर अगर कोई विकलांग स्टेशन पर टिकट लेना चाहें तो उनके लिए कोई विशेष सुविधा की व्यवस्था नहीं की गयी है. क्या केवल रैंप और लिफ्ट की व्यवस्था कर देने भर से प्रशासन की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है?

राजेंद्र नगर टर्मिनल पर क्या सुविधा उपलब्ध है?

राजेंद्र नगर टर्मिनल के गेट नंबर 4 से दिव्यांग व्यक्तियों के प्रवेश के लिए स्लाइडर बनाया गया है. दिव्यांगों के लिए टिकट काउंटर तक पहुंचने के लिए केवल एक रास्ता बनाया गया है. इस रास्ते से होते हुए विकलांग टिकट काउंटर तक पहुंच सकते हैं. लेकिन यहां उनके लिए कोई विशेष काउंटर की सुविधा नहीं दी गई है. सामान्य  काउंटर के माध्यम से ही उन्हें अपने लिए टिकट खरीदना होगा. विशेष काउंटर नहीं बनाए जाने के कारण उन्हें टिकट खरीदने के लिए दूसरों के ऊपर आश्रित रहना पड़ता है.

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उप स्टेशन अधीक्षक से मिली जानकारी के अनुसार

विकलांगों के आने-जाने के लिए गेट नंबर 4 पर रास्ता बनाया गया है. विकलांग ऑनलाइन टिकट खरीद सकते हैं. अगर उन्हें स्टेशन पर टिकट लेना है तो उनके साथ आए परिजन या सहयोगी टिकट काउंटर पर जाकर टिकट ले सकते हैं. लेकिन उनके लिए कोई विशेष काउंटर नहीं है. वहीं जिनको व्हीलचेयर की आवश्यकता है वो यहां आधार कार्ड जमा करके व्हीलचेयर ले सकते हैं उसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है.

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वहीं एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म पर आने-जाने के लिए प्लेटफार्म पर तीन लिफ्ट लगाया गया है. यात्री इसका प्रयोग करके प्लेटफार्म पर आ जा सकते हैं.

दिव्यांग अधिकारों की बात करते हुए वैष्णवी कहतीं है

विकलांग कई श्रेणी के हैं. उनकी आवश्यकताएं अलग-अलग हैं. इसलिए केवल रैंप या एक आरक्षित काउंटर बना देने से काम नहीं चलेगा. किसी भी सरकारी भवन, रेलवे स्टेशन, बस स्टॉप, शॉपिंग कॉप्लेक्स, टूरिस्ट प्लेस या धार्मीक स्थल पर अलग-अलग श्रेणी के दिव्यांगों के लिए उनके सहूलियत के हिसाब से सुविधाएं मौजूद नहीं हैं.

सार्वजनिक स्थानों पर रैंप बनाने से समस्या के कुछ भागों का निदान होता है. नेत्रहीन या और बधिर जनों के लिए भी विशेष सूचना देने वाले बोर्ड लगाए जाने चाहिए.      

धार्मिक स्थलों पर हो विशेष व्यवस्था

धार्मिक स्थलों पर दिव्यांगों के लिए व्याप्त असुविधाओं के संबंध में वैष्णवी बताती हैं

पटना क्या बिहार के सबसे विख्यात मंदिरों में से एक हनुमान मंदिर में विकलांगों के लिए कोई सुविधा नहीं है. यह केवल एक मंदिर की बात नहीं है, मंदिर हो या मस्जिद, चर्च हो या गुरुद्वारा सभी जगह ये असुविधा व्याप्त है. मैंने हनुमान मंदिर में विकलांगों के दर्शन के लिए सुविधा दिए जाने की मांग की थी. इसके संबंध में मैंने आचार्य कुणाल किशोर से करीब तीन साल पहले बात भी किया था. उन्होंने इस पर सकारात्मक रिस्पांस भी दिया था. लेकिन कोविड आ जाने के बाद दोबारा इस संबंध में उनसे कोई बात नहीं हुई है.

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पटना रेलवे स्टेशन के उत्तर में स्थित हनुमान मंदिर उत्तर भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक है. रामनवमी के अवसर पर यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. सामान्य दिनों में भी मंगलवार और शनिवार को यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. समय-समय पर मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं बढ़ाई जाती रही है.

लेकिन इन सबके बीच दिव्यांग श्रद्धालुओं के लिए मंदिर परिसर में कोई सुविधा नहीं होने से उन्हें बहुत परेशानी होती हैं. कई बार सुविधाओं के आभाव में दिव्यांग श्रद्धालु चाह कर भी मंदिर दर्शन करने नहीं जा पाते हैं.

पिछले वर्ष बनकर तैयार हुए इस्कोन मंदिर में लिफ्ट की सुविधा तो है लेकिन लिफ्ट तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को सीढी चढ़ना पड़ता है.

मनोरंजन के साधन सीमित

लगातर काम करके दिमाग की थकान को दूर करने के लिए कहीं बाहर घूमने निकल जाना आम लोगों के लिए जीतना आसान है दिव्यांगों के लिए उतना ही दुष्कर (कठिन) है. सिनेमाघर, शॉपिंग मॉल, म्युजियम, पार्क, या चिड़ियाघर जैसी जगहों पर दिव्यांगों के लिए विशेष सुविधा नहीं होने के कारण अकसर दिव्यांग घरों में कैद होकर रह जाते हैं.  

दिव्यांग

वैष्णवी कहती हैं

सरकारी नीतियां या सामाजिक परिवेश दिव्यांगों को केवल सीमितअधिकार देना चाहती है. दिव्यांगों को पढ़ने-लिखने से लेकर नौकरी और रोज़गार के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है. ऐसे में उनके लिए मनोरंजन के साधन की मांग करना बेमानी है. कई बार जब हम मनोरंजन के साधन की मांग करते हैं तो लोग कहते हैं शिक्षा और रोज़गार की मांग करिए. आप कहां मनोरंजन की बात कर रहे हैं.

कुम्हरार पार्क, इको पार्क, पुराना पटना म्युजियम, सिनेमाघर या शॉपिंग कॉम्प्लेक्स दिव्यांगो के अनुकूल नहीं हैं. हालांकि नए बने कुछ भवनों जैसे न्यू म्युजियम, सिटी सेंटर मॉल, बुद्ध स्मृति पार्क, पटना ज़ू जैसी जगहों पर दिव्यांगों के घूमने और पहुंचने के सुगम साधन बनाए गये हैं. बुद्ध स्मृति पार्क में दिव्यांगों को निःशुल्क प्रवेश भी दिया जाता है. पटना ज़ू में भी प्रवेश निःशुल्क है लेकिन अंदर बने अन्य स्थानों में प्रवेश और बैटरी कार के लिए शुल्क लिया जाता है.  

वैष्णवी सभी दर्शनीय स्थलों को दिव्यांग जनों के लिए सुगम बनाये जाने के साथ-साथ निःशुल्क प्रवेश दिए जाने की मांग करती हैं.

वैष्णवी कहतीं हैं

पहली बात दिव्यांग लोगों के पास रोजगार के बहुत सीमित साधन होते हैं. जिससे उनकी आमदनी भी बहुत कम या नहीं के बराबर होती है. ऐसे में मनोरंजन के साधन पर पैसे खर्च करना उनके लिए संभव नहीं है.

कब हम 'सुगम्य भारत' बना पायेंगे?

हम अपनी रोज़ की परेशानियों को इतना बड़ा मान चुके हैं कि हमें अपने आसपास अन्य लोगों की परेशानियां  शायद छोटी लगती हैं. ख़ासकर दिव्यांग व्यक्तियों को रोज़मर्रा के कार्यों को पूरा करने में होने वाली परेशानियां. लोकल ट्रेन और सार्वजनिक वाहनों के उपयोग, सरकारी या निजी कार्यालयों में किसी काम के सिलसिले में आना जाना, रोज़मर्रा में इस्तेमाल होने वाले सामानों की खरीदारी करना या फिर जब मन हो कहीं घुमने निकल जाना,  हमारे लिए जितना आसान है. दिव्यांगजनों के लिए उतने ही मुश्किल है.

मुश्किल इसलिए नहीं क्योंकि उनकी क्षमताएं कम हैं. बल्कि इसलिए क्योंकि उनके उपयोग योग्य सुविधाएं सार्वजनिक वाहनों, सरकारी और निजी भवनों में आज भी मुहैय्या नहीं की गयी है. सार्वजनिक स्थलों पर दिव्यांगो के लिए मौजूद सुविधाओं को देखकर कहा जा सकता है कि ‘सुगम्य भारत’ का लक्ष्य अभी काफ़ी दूर हैं.       

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