‘मुख्यमंत्री नल जल योजना’ के तहत बिहार के प्रत्येक निवासी के घर में पाइपलाइन के द्वारा साफ़ पानी पहुंचाने का लक्ष्य बिहार सरकार के द्वारा रखा गया है. इस योजना के तहत सुबह, दोपहर और शाम दो-दो घंटे पेयजल की आपूर्ति की जाती है. नीतीश सरकार ने सितंबर 2016 में आधिकारिक तौर पर इस योजना की शुरुआत की थी. 2018 में यूनीसेफ ने इस योजना की तारीफ भी की थी. अबतक इस योजना के तहत 90 प्रतिशत से ज्यादा घरों में नल के द्वारा पानी पहुंचाया जा चुका है.
दुनिया की आबादी का 17.5 फ़ीसदी हिस्सा भारत में रहता है, लेकिन यहां धरती के ताज़े पानी के स्रोत का केवल 4 फ़ीसदी है. देश में पीने के पानी की ज़रूरत का 85 फ़ीसदी भूजल से पूरा होता है.
पटना के कन्या मध्य विद्यालय, अदालतगंज के बगल में चाय की दुकान है. दुकान में आठ से नौ लोग चाय पीने के लिए बैठे हैं. चाय की उस दुकान के बगल में सप्लाई के नल से लगातार पानी बह रहा है. लेकिन वहां बैठे लोगों को इसमें कोई परेशानी नहीं दिख रही है. लोग चाय पीकर पैसे देकर आगे बढ़ जा रहे हैं, और यही यहां के लोगों की मानसिकता है.
अगर किसी दिन चार घंटे पानी की सप्लाई बंद हो जाए या फिर किसी दिन चार घंटे लाइट कट जाए तो लोग परेशान होने लगते हैं. पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगते हैं. लेकिन वहीं पानी अगर नियमित रूप से उन्हें मिले तो लोग उसे बेहिसाब बर्बाद करते हैं.
शहर में ऐसे कितने जगह हैं जहां सड़क पर पीने का पानी यूं ही लगातार बह रहा है. जिससे न तो आम आदमी और न ही संबंधित विभाग के अधिकारी को कोई लेना देना है. और ऐसा नही है की केवल कम पढ़े लिखे लोग ही इस तरह से पानी की बर्बादी कर रहे हैं. बल्कि पढ़े लिखे लोग भी खुलेआम पानी की बर्बादी कर रहे हैं.
प्रति व्यक्ति 70 लीटर सप्लाई, मानक से 30 लीटर ज्यादा
बिहार के 38 जिलों में स्थित 259 निकायों में पानी की सप्लाई हो रही है. लेकिन पानी की पहुंच लोगों तक जितनी ज्यादा हो रही है उसकी बर्बादी भी उतनी ही तेजी से हो रहा है. बिहार में जितना पानी हम इस्तेमाल नहीं कर रहे, उसके चार गुना से अधिक बर्बाद कर रहे हैं, और यह हकीकत है. सरकार की रिपोर्ट में इसका खुलासा हआ है. लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी) के मुताबिक रोज प्रति व्यक्ति पानी की खपत का मानक 40 लीटर है. जबकि, विभाग की ओर से प्रति व्यक्ति के हिसाब से हर दिन 70 लीटर पानी की सप्लाई की जाती है.
लेकिन, प्रत्येक व्यक्ति औसतन हर दिन 220 लीटर पानी खपत करते हैं. जो मानक 40 लीटर से 180 लीटर अधिक है यानी चार गुना से अधिक की बर्बादी. बिहार में अभी 1.85 करोड़ घरों में पानी की सप्लाई की जाती है. विभाग के अनुसार एक घर में औसत पांच व्यक्तियों को ध्यान में रख कर 350 लीटर पानी दिया जा रहा है. अनुमान के अनुसार, प्रदेश में रोज 16.65 अरब लीटर पानी यूं ही नालियों में बहा दिया जा रहा है.
कहां कितनी ज़्यादा बर्बादी?
शहरों में पानी के बर्बादी का आलम यह है कि यहां हम पीने के साफ़ पानी का उपयोग घर की सफ़ाई, गाड़ियों को धोने आदि में करते हैं. इसके साथ निजी मोटर से पानी की टंकी भरने के बाद भी उससे पानी लगातार सड़कों और नालियों में बहता है. पीएचईडी (PHED) के मुताबिक हर दिन लोग 40 लीटर पानी कपड़े धोने में बर्बाद कर देते हैं.
पानी बर्बाद करने पर लगेगा जुर्माना
पानी की बर्बादी को लेकर नगर निगम, नगर परिषद और पंचायत को पांच हजार रुपए तक जुर्माने के साथ ही पेयजल कनेक्शन काटने का अधिकार है.
नियम के मुताबिक, पेयजल की बर्बादी करते हुए पकड़े जाने पर पहली बार 150 रुपए, दूसरी बार चार सौ रुपए और तीसरी बार पांच हजार रुपए जुर्माना लगाया जा सकता है. लेकिन उससे पहले पीएचईडी विभाग लोगों को जागरूक करने का प्रयास करेगा. पीएचईडी विभाग के अधिकारी लोगों को राजस्थान और पहाड़ी क्षेत्रों में पानी की कमी का सामना कर रहे लोगों की परेशानी साझा करेंगे. ताकि लोग पानी का महत्व समझें और उसे यूं ही बर्बाद नहीं करें.
वहीं नगर निगम की पीआरओं स्वेता भास्कर का कहना है
हम पानी के बर्बादी को रोकने के लिए जुर्माना लगाने की योजना बना रहे हैं. लेकिन अभी कुछ पक्का नही हुआ है. वहीं अभी भी निगम के द्वारा निजी बोरिंग और व्यवसायिक बोरिंग के लिए लाइसेंस दिया जाता है. वहीं बात रही पानी की बर्बादी की तो इसका कारण लोगों में जागरूकता की कमी भी है.
पीएचईडी विभाग इतना देता है पानी
पीने के लिए 3 लीटर, स्नान के लिए 15 लीटर, घर के काम के लिए 15 लीटर, खाना बनाने के लिए 10 लीटर, कपड़ा धोने और साफ़-सफ़ाई के लिए 15 लीटर और पशुओं के पीने के लिए 12 लीटर पानी दिया जाता है.
बिहार सरकार पानी पर लेगा टैक्स जून में आया नोटिस
नल जल योजना के तहत प्रति माह प्रति परिवार से 30 रुपये लेना है. इसकी पूरी जिम्मेदारी वार्ड सचिव को दी गयी है. वार्ड सचिव लाभुकों से पैसा संग्रह करने के बाद राज्य सरकार के खाते में पैसे डालेंगे. इसकी पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन किया जायेगा. वार्ड में लगाया गया है सेंसर दोनों विभागों के लिए बनाय गये हैं संयुक्त कंट्रोल रूमब्लॉक अधिकारी, जनप्रतिनिधि ले रहे हैं फीडबैक वहीं पानी बर्बाद करने वालों का काटा जायेगा कनेक्शन.
हर घर नल का जल
जल जीवन मिशन की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, 12 नवंबर 2022 तक देशभर के कुल 19,35,25,838 ग्रामीण घरों में से 10,50,03,369 यानी करीब 54.26% ग्रामीण घरों में पाइपलाइन के द्वारा पानी का पहुंचाया जा चुका है. वहीं बिहार के कुल 1,66,97,201 घरों में से 1,59,77,364 यानि तकरीबन 95.69% घरों में नल के द्वारा पानी पहुंचाया जा चुका है.
हालांकि नल जल आने के बाद से ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की सहूलियत तो बढ़ी है लेकिन कई क्षेत्रों में पानी की बर्बादी भी बढ़ी है.
नालंदा जिले के अंतर्गत आने वाले सरगांव गांव में लगभग 100 घर हैं. नल जल योजना के तहत यहाँ के प्रत्येक घर में पाइपलाइन के द्वारा पानी का कनेक्शन दिया जा चूका है. हालांकि इस गांव में पानी की समस्या पहले भी नही थी. लेकिन जागरूकता की कमी के कारण नल जल योजना के तहत मिले पानी के कनेक्शन का यहाँ के निवासियों द्वारा दुरूपयोग किया जा रहा है. यहाँ लगभग 50 घरों में नल टूटे हुए हैं. इन नलों के द्वारा रोज हजारों लीटर पानी यूँ ही बर्बाद हो जाता है.
इसी गांव के रहने वाले रामनिवास सिंह बताते हैं
गांव में जब नल जल योजना के तहत नल का कनेक्शन दिया जाने लगा तब सभी घरों में नल दिया गया. लेकिन कुछ दिन बाद ही कई घरों के नल टूट गए और उनलोगों ने वापस नल भी नही लगाया. समझाने के बाद भी लोग नल नही लगाते हैं. जितने देर पानी की आपूर्ति ज़ारी रहता है उतने देर उन नलों से पानी बहता रहता है.
रामनिवास आगे कहते हैं
हमारे गांव में नाली का निर्माण नही हुआ है. गांव के मुख्य सड़क के पास ही खेतों में ही नाली का पानी जमा होता है. रोज गांव से निकलने वाले पानी के साथ टूटे नालों से बहने वाले पानी के कारण समस्या और बढ़ता जा रहा है.
पानी की रोज हो रही बर्बादी को रोकने का जिम्मा वार्ड सदस्यों को दिया गया है. साथ ही पानी बर्बाद करने पर जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है.
सरगांव गांव की वार्ड सदस्य अरुणा देवी का कहना है
हमको नहीं पता की पानी बर्बाद हो रहा है. यदि ऐसा है तो हम बात करेंगे. लेकिन जुर्माना लगाने का आदेश अभी हमलोग को नही मिला है. जबतक लिखित नही आएगा हमलोग कुछ नही कर सकते. हां, एक बात और है की गांव के लोग समझाने के बाद भी मानते नहीं है.
गांव के ही एक बुजुर्ग मुंद्रिका प्रसाद बताते है “हमलोग के समय पानी इतना सुविधा से नही मिलता था. चापाकल चलाओं तब पानी निकलेगा या रस्सी खींचों तब एक बाल्टी पानी मिलेगा. लेकिन आज तो बस हाथ घुमाओं पानी गिरने लगता है. जितना मेहनत कम कद्र भी उतना ही कम हो गया है.”
पानी की बर्बादी पर मुंद्रिका प्रसाद का कहना है “पहले हमलोग गाय-भैंस को पोखर और तालाब में नहलाते थें. लेकिन अब सब घर पर ही पाइप लगाकर धोते हैं तो पानी तो बर्बाद होगा ही. गांव में पहले दो-तीन पोखर था लेकिन अब एक ही बचा है उसमे भी गर्मी के दिन में पानी नही रहता है. हमारी भी मज़बूरी है कि अब हमे छोटी-छोटी जरूरतों के लिए बोरिंग के पानी का सहारा लेना पड़ता है.”
अगर हम खेती के लिए पानी की बात करें तो खेती करने में जितने पानी का उपयोग होता है उससे उपजे अनाज या सब्जी को केवल वहां की ही नहीं बल्कि दूसरे इलाक़ों की ज़रूरतों को भी पूरा करता है. जबकि दूसरे इलाक़े खेती के लिए पानी की ज़रूरतों को पूरा नहीं करते हैं.