बीते दिनों बिहार विधानसभा में एक निजी विधेयक पेश किया गया. बिहार विधानसभा के इतिहास में 44 साल बाद कोई निजी विधेयक पेश किया गया है. इससे पूर्व में वर्ष 1978 में पेश किया गया.
चर्चा में बना यह निजी विधेयक किस विषय पर है?
‘कृषि उपज और पशुधन विपणन एवं मंडी स्थापना कानून’ को विधानसभा में प्रस्तुत किया गया. इसे एक निजी सदस्य (गैर मंत्री) द्वारा पेश किया गया. बिहार जैसे कृषि आधारित राज्य के लिए ज़रूरी है कि यहां के किसानों के उत्पाद का मुनासिब मूल्य मिले.
खाद्यानों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पारदर्शी तरीके से मिले, इसके लिए ज़रूरी है कि कृषि उत्पादों के विपणन संबंधी मंडी, लघु मंडी एवं अन्य प्रकार की बाजार व्यवस्था उपलब्ध हो. एक मजबूत कृषि उपज और पशुधन विपणन एवं मंडी स्थापना संबंधी कानून विधानमंडल में पेश किया गया.
इस बिल को पेश करने के पीछे क्या मंशा है ?
बिहार सरकार के पूर्व कृषि मंत्री और रामगढ़ से सत्ताधारी दल राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के विधायक सुधाकर सिंह ने इस बिल को विधानसभा में प्रस्तुत किया है. वह कहते हैं
यह बात स्पष्ट है कि बिहार के कृषि व्यवस्था में एक व्यापक बदलाव की ज़रूरत है. इस बड़े बदलाव में अपनी एक छोटी भूमिका निभाते हुए मैंने महज़ एक प्रयास मात्र के तौर पर इस विधेयक के द्वारा किया है. विधानसभा में एक विधायक के तौर पर हमने एक गैर-सरकारी विधेयक बिहार विधानसभा में प्रस्तुत किया है, जिसका नाम होगा कृषि उपज और पशुधन विपणन एवं मंडी स्थापना विधेयक.
वह आगे कहते हैं कि
कृषकों, लघु उद्यमियों और मंडी संचालकों से विमर्श के आधार पर तैयार किया गया यह बिल बिहार राज्य के सभी वर्गों के लिए लाभकारी है. यह बिहार राज्य की कृषि एवं अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में एक मील का पत्थर साबित होगा.
दिल्ली में किसान आंदोलन की एक मांग मंडी व्यवस्था को लेकर भी थी
डेमोक्रेटिक चरखा से बात-चीत करते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि
बिहार में किसानों की स्थिति ठीक नहीं है. पिछले 17 सालों से मंडी व्यवस्था बंद पड़ी है. ऐसा लग रहा था कि सरकार बनने के बाद स्थिति बदल जाएगी. पिछले अगस्त से नीतीश कुमार महागठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. ये सरकार ज़ालिमों से दूर हुई है पर इन्हें काम करना होगा. भाजपा सरकार से अलग होने के बाद भी इस सरकार ने इस दिशा में काम नहीं की तो बड़ा आंदोलन होगा.
राजधानी दिल्ली में हुए किसान आंदोलन में यह मांग रही कि एम.एस.स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों को लागू किया जाए. आयोग की मुख्य सिफ़ारिशों में न्यूनतम समर्थन मूल्य को देश के स्तर लागू करना था.
किसानों का इस विधेयक पर क्या कहना है?
किसान नेता अशोक प्रसाद सिंह किसानों के मुद्दे पर कहते हैं कि
हम किसानों का सिर्फ एक ही मांग है कि सरकार एम एस स्वामीनाथन आयोग के सिफारिशों को मान ले. C-2 लागत के आधार पर फ़सल लागत का डेढ़ गुणा हम किसानों को दे दें.
अशोक आगे कहते हैं कि
1973 में जब तीसरा वेतन आयोग लागू किया गया तब चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी का वेतन 185 रुपए प्रति माह था और गेंहू का मूल्य 85 रुपए प्रति क्विंटल था. वहीं छठे वेतन आयोग में उनकी मानसिक आय 18000 हो गई और अब भी गेंहू का मूल्य 2500 रुपए प्रति क्विंटल के नीचे ही है. इन आंकड़ों से कृषि के उपेक्षा को बख़ूबी समझा जा सकता है.
सरकारी बिल से कैसे अलग होता है निजी विधेयक?
सरकारी बिल (Governmental Bill) और प्राइवेट मेंबर बिल (Private Member Bill) में अंतर है. निजी विधेयक किसी भी सांसद या विधायक द्वारा संसद और विधान सभा में पेश की जा सकती है. वहीं सरकारी बिल को मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है. कोई विधेयक सरकारी विधेयक है या नहीं, इसका फैसला विधानसभा अध्यक्ष करते हैं. निजी विधेयक के पास होने की काफ़ी कम संभावना होती है.
बिहार में निजी विधेयक का क्या है इतिहास?
आज़ादी के बाद कुल 123 निजी विधेयक पेश किए गए. बिहार विधानसभा में अब तक छ: निजी विधेयक पास किये गए हैं. वहीं पहले विधेयक का नाम बिहार दहेज निरोध विधेयक अधिनियम था. इसे विधानसभा सदस्य श्रीमती सुंदरी देवी ने पेश किया था.
अभी तक बिहार में निजी विधेयकों के पास करने की सूची इस प्रकार है:
- बिहार दहेज निरोध विधेयक, अधिनियम
- बिहार लाउडस्पीकर उपभोग एवं बजाना नियंत्रण विधेयक (1948)
- बिहार भिक्षावृति निरोध विधेयक (1948)
- बिहार वक्फ (संशोधन)1951
- बिहार वक्फ (द्वितीय संशोधन) 1951
- बिहार विधान मंडल के सदस्यों के वेतन एवं भत्ते (संशोधन) विधेयक 1970 .
सबसे अधिक 15 प्राइवेट बिल 1953 में पेश किया गया. 11-11 प्राइवेट बिल 1955, 1963 में पेश किया गया. आख़िरी बार 1978 में 2 निजी विधेयक पेश किया गया.