बिहार को भाषा-संस्कृति-विकास के नाम पर कई हिस्सों में विभाजन की मांग उठ रही है. लेकिन इस मांग के पीछे की मंशा क्या है?
समय-समय पर भारत के अलग-अलग हिस्सों से किसी खास क्षेत्र के लोगों के द्वारा अपनी आवश्यकता और मांग की दृष्टि से पृथक राज्य बनाने की मांग होती रही है. हाल-फिलहाल में आंध्र प्रदेश से अलग होकर नया राज्य बना तेलंगाना इसका एक उदाहरण है. नया राज्य बनाने के पीछे किसी क्षेत्र के लोगों की अपनी मांगे होती हैं और इसके कई अपने आधार भी होते हैं. ऐसी ही कुछ मांग और आधारों की बुनियाद पर 1912 में बंगाल से अलग होकर एक राज्य बना, जिसका नाम था 'बिहार'.
आज भी बिहार के कई क्षेत्र कर रहे अलग राज्य की मांग
भाषा के आधार पर राज्य का विभाजन कोई नई बात नहीं है. भारत में पहले भी भाषा के आधार पर कई राज्यों का गठन किया गया है. आज बिहार को बंगाल से अलग हुए 110 साल से ज्यादा हो चुके हैं. परंतु बिहार के अंदर आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जो अलग राज्य बनाने की मांग करते हैं. उनकी मांगों के कई आधार है. कुछ भाषा के आधार पर अलग राज्य की मांग कर रहे हैं तो कुछ विकास के आधार पर.
वर्तमान में बिहार के अंदर तीन क्षेत्र ऐसे हैं जो अलग-अलग रूप से अपनी पहचान की मांग को लेकर आवाज उठा रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है कि बिहार में कई प्रकार की भाषाएं और बोलियां बोली जाती है. बिहार के अंदर कोई एक भाषा ऐसी नहीं है जिसके द्वारा पूरे बिहार को एक सूत्र में पिरोया जा सके. इसके परिणामस्वरूप बिहार के अलग-अलग भाषाओं और बोलियों वाले क्षेत्र अपने अनुकूल सरकार से अपेक्षा करते हैं और अपनी मांग उनके सामने रखते हैं. मिथिलांचल, सीमांचल, पूर्वांचल, मगध, अंग प्रदेश आदि ये सभी बिहार के अलग-अलग क्षेत्र हैं जिनकी अपनी-अपनी भाषाएं हैं. पूर्वांचल में ज्यादातर लोग भोजपुरी भाषा का प्रयोग करते हैं. अंग प्रदेश में लोग अंगिका बोलते हैं. तो वहीं दूसरी ओर मिथिलांचल में मैथिली भाषा बोली जाती है और मगध में मगही का प्रयोग किया जाता है.
इन तमाम भाषाओं और बोलियों के अपने-अपने मायने और महत्व हैं जिसके आधार पर वहां के लोग अपनी पृथक पहचान के लिए आवाज उठाते हैं और सरकार से अपेक्षा रखते हैं कि सरकार उन्हें स्पेशल आईडेंटिटी प्रदान करें.
सीमांचल और मिथिलांचल की हैं अपनी मांगे
मिथिलांचल से अभिप्राय उन क्षेत्रों से है जहां मैथिली भाषा बोली जाती है. आमतौर पर मिथिला को अलग राज्य बनाने की मांग वर्तमान में मिथिला के एक छात्र संघ 'मिथिला स्टूडेंट यूनियन' यानी मिथिला छात्र संघ से उठाई जा रही है. इसके अलावा स्थानीय नेताओं ने भी इस मांग को काफी तीव्र किया है. मिथिलांचल अपनी मांग मुख्यता भाषा के आधार पर तथा विकास के आधार पर करता है. हालांकि इसमें भाषा का आधार ही प्राथमिक वजह है. मिथिलांचल अपने अंदर जिन क्षेत्रों को समेट रहा है उसमें बिहार के 20 और एक झारखंड का जिला शामिल है.
इसमें बिहार के तिरहुत, दरभंगा, मुंगेर, कोसी जोन, सुपौल, पूर्णिया और भागलपुर प्रमंडल तथा झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल के साथ साथ नेपाल के तराई क्षेत्र के कुछ भाग भी शामिल हैं.
मिथिला राज्य की मांग का समर्थन डॉ लक्ष्मण झा और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने भी किया था. इसके लिए कई संगठनों का भी गठन किया गया. मैथिल महासभा और मिथिलांचल विकास कांग्रेस सहित कई संगठनों ने मिथिलांचल को एक एक अलग राज्य के रूप में गठित करने की मांग की थी जिसे दरभंगा राज से समर्थन मिला था.
वर्तमान में इसी मांग को मिथिला स्टूडेंट यूनियन पूरे जोर-शोर से उठा रहा है. हाल-फिलहाल में पटना और दिल्ली में भी इसके लिए हजारों की संख्या में आंदोलन किया गया था.
मिथिला स्टूडेंट यूनियन के मधुबनी नगर अध्यक्ष मयंक विश्वास जिनसे हमने इस विषय पर बात की. उन्होंने हमें बताया कि-
बिहार के मुखिया हैं नीतीश कुमार जी, वह 20 सालों से बिहार में राज कर रहे हैं. क्या उनको यह नहीं देखता कि मिथिलांचल भी उन्हीं के बिहार का एक क्षेत्र है. वह मिथिलांचल के भी मुख्यमंत्री हैं. लेकिन विकास के नाम पर आज तक मिथिलांचल को कुछ नहीं दिया गया. क्या कमी है मिथिला में? हम लोग सबसे ज्यादा बाढ़ की समस्या से पीड़ित रहते हैं. गया और वैशाली के तरफ इस प्रकार का बाढ़ नहीं आता जैसा हमारे मिथिला क्षेत्र में आता है. हम लोग तो सुखाड़ से भी उतने ही परेशान रहते हैं और बाढ़ से भी उतने ही परेशान रहते हैं.
मयंक विश्वास जी ने हमें आगे बताया कि-
हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि राजगीर में ग्लास ब्रिज बनाया जा रहा है. उसकी शोभा बढ़ाई जा रही है. लेकिन आज भी दरभंगा, मधुबनी और समस्तीपुर के लोग चचरी पुल पर चलने के लिए विवश हैं. और जब बाढ़ आती है तो उसको भी बहा ले जाती है.
मयंक आगे हमें बताते हैं कि
हमारे मिथिलांचल में स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत भी बेहद लचर है. 7 करोड़ लोगों पर एक दरभंगा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल है. लोग नीचे सोकर इलाज करवाते हैं. हम लोगों ने एयरपोर्ट के लिए 4 साल लड़ाई लड़ी. तब जाकर एयरपोर्ट बना. हमलोगों को एक मुद्दे पर लड़ते-लड़ते 4 साल लग गए तो सोचिए अभी तो हजारों मुद्दे हैं, जिन पर काम करना बाकी है. उनमें कितना समय लगेगा? इससे अच्छा है कि मिथिला राज्य अलग हो. इसके लिए अलग से पैकेज दिया जाए. हम खुद अपने क्षेत्र का विकास अपनी आवश्यकतानुसार कर लेंगे.
वहीं दूसरी ओर सीमांचल कि अपनी समस्याएं हैं. सीमांचल में अलग राज्य बनाने वाले दर्जे की मांग उतनी प्रबल नहीं है. सीमांचल वालों को स्पेशल स्टेटस चाहिए. सीमांचल के अंतर्गत 4 जिले आते हैं जिनमें अररिया, पूर्णिया कटिहार और किशनगंज शामिल है.
सीमांचल की सबसे महत्वपूर्ण समस्या बाढ़ के समय होने वाला व्यापक भूमि कटाव है. इसके अलावा स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी आवश्यकताओं के लिए भी सीमांचल के लोगों को काफी संघर्ष करना पड़ता है. सीमांचल की समस्या को समझने के लिए हमने किशनगंज के शाह फैजल जी से बात की. उन्होंने बताया कि-
हमारे एरिया में काफी बाढ़ की समस्या बनी रहती है. इस वजह से सड़के भी टूटती हैं. फिर सड़कों के बनने में दो 4 साल लग जाते हैं. ऐसे में लोगों को काफी परेशानी होती है. इसके अलावा एजुकेशन और हेल्थ के क्षेत्र में भी काफी सुधार होने की आवश्यकता है. इससे यहां के लोगों की जीवन शैली बदलेगी.
बाढ़ है सीमांचल की सबसे प्रमुख समस्या
बाढ़ की समस्या के विषय में शाह फैजल जी ने हमें बताया कि-
आप कटिहार को देख लीजिए वहां गंगा सैकड़ों एकड़ जमीन काट ले जाती है. वहीं बात अगर किशनगंज की करें तो दो-तीन नदियां ऐसी हैं जैसे बखरा, रेहु नदी, परमान और महानंदा जैसी नदियों के जलस्तर के बढ़ने घटने से काफी परेशानी होती है. सरकार बोल्डर पाइलिंग के जगह पर केवल फ्लड फाइटिंग इस्तेमाल करती है. इसका कारण है कि बोल्डर पाइलिंग में काफी ज्यादा खर्चा आता है. जबकि सरकार बाढ़ से बचाव के लिए केवल फ्लड फाइटिंग का इस्तेमाल करती है जिसमें किसी बैग में बालू डालकर बैंक बनाने की कोशिश की जाती है ताकि जलस्तर को रोका जा सके लेकिन इससे समाधान नहीं निकल पाता.
सीमांचल और मिथिलांचल में है काफी फर्क
कई लोग सीमांचल और मिथिलांचल को एक मानते हैं जबकि ऐसा है नहीं. सीमांचल की अपनी संस्कृति, भाषा और खान-पान के तौर तरीके हैं. जबकि मिथिलांचल के लोगों की अपनी जीवनशैली है. कई लोगों का मानना है मिथिलांचल और सीमांचल अलग नहीं है एक ही है. इस विषय पर काफी मतभेद हैं. इसे समझने के लिए हमलोगों ने इसके सभी पक्षों को जानने का प्रयास किया.
इस क्रम में हमने सीमांचल के अररिया जिले के निवासी सुमित कुमार झा से बात की. उन्होंने हमें बताया कि
सीमांचल और मिथिलांचल दोनों एक ही है. इनमें कोई फर्क नहीं है. केवल राजनीतिक दृष्टि से दोनों को अलग करके दिखाया जाता है. सभी मैथिली भाषा वाले क्षेत्र हैं.
इस विषय पर हमने मिथिला स्टूडेंट यूनियन के नेता और मधुबनी जिले के नगर अध्यक्ष मयंक विश्वास जी से बात की. उन्होंने इस बात को सिरे से खारिज करते हुए बताया कि
सीमांचल नाम की कोई चीज ही नहीं है. यह जो सीमांचल वाली बात हो रही है वह हमारे गृहमंत्री जब मिथिला की धरती पर आए थे तो उन्होंने गलती से सीमांचल कह दिया था. पूरा मिथिला एक ही क्षेत्र है. सीमांचल जैसी कोई चीज नहीं होती.
इस विषय पर जब हमने किशनगंज निवासी शाह फैजल जी से बात की. उन्होंने में बताया कि-
सीमांचल और मिथिलांचल सांस्कृतिक दृष्टि से और भाषा की दृष्टि से बहुत अलग हैं. मिथिला वालों के हिसाब से तो यह एक ही है जिसकी वे लोग मांग कर रहे हैं. लेकिन हम लोग खुद को मिथिलांचल का हिस्सा नहीं मानते. मिथिला का कल्चर भी हम लोगों से काफी अलग है. सीमांचल के अंतर्गत आने वाले 4 जिलों में मैथिली नहीं बल्कि सुरजापुरी बोली जाती है. हम सुरजापुरी लोग हैं. हां यह बात अलग है कि सीमांचल से कभी अलग राज्य के दर्जे की मांग नहीं की गई बल्कि केवल स्पेशल स्टेटस की मांग की गई है.
पूर्वांचल को भी अलग राज्य बनाने की उठती रही है मांगे
पूर्वांचल भाषा के आधार पर खुद को अलग राज्य बनाने की मांग करता है. इन क्षेत्रों को मुख्य रूप से भोजपुरी भाषी क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. पूर्वांचल को अलग राज्य बनाने की मांग जितनी बिहार से नहीं उठती उससे कई ज्यादा इसकी मांग उत्तरप्रदेश से उठती देखी गई है. लेकिन पूर्वांचल के हिस्से में बिहार के भी कई जिले हैं जैसे पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सिवान, सारण, भोजपुर, बक्सर, रोहतास.
ऐसे में पूर्वांचल को अलग राज्य बनाने वाले दर्जे की बात बिहार के लोगों से भी भावनात्मक रूप से जुड़ जाती है और यह मुद्दा जितना यूपी का, उतना ही बिहार का भी हो जाता है. पूर्वांचल के लोगों को भाषा के आधार पर तो अलग राज्य चाहिए ही साथ ही विकास के आधार पर भी वे लोग अलग राज्य बनाने की मांग कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के जो क्षेत्र पूर्वांचल में आते हैं उनमें बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बलिया, मऊ, गाजीपुर, जौनपुर, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर, आजमगढ़, कबीरनगर बस्ती, फैजाबाद, गोंडा, मिर्जापुर, इलाहाबाद, कौशांबी, चंदौली, सोनभद्र, वाराणसी, रविदास नगर, फतेहपुर और गोरखपुर शामिल हैं.
अलग राज्य की मांग है कितनी जायज़?
समय-समय पर किसी क्षेत्र को अलग राज्य बनाने की बात की जाती रही है. इसके अपने पक्ष और विपक्ष हैं. अलग राज्य की मांग तभी उठती है जब किसी क्षेत्र को उस राज्य की मुख्यधारा से इतर छोड़ दिया जाता है. इस उपेक्षा का परिणाम होता है- अलग राज्य की मांग.
अलग राज्य की मांग कई बार पहचान की लड़ाई भी बन जाती है, जहां एक प्रकार की संस्कृति के लोग खुद को अलग रूप में स्थापित कर अपनी जीवनशैली को एक नया आयाम देने की कोशिश करते हैं. हमने मिथिलांचल और सीमांचल वाले मुद्दे पर देखा कि किस प्रकार वहां अस्पताल से लेकर शिक्षा व्यवस्था की हालत बिहार राज्य की राजधानी के आसपास के जिलों से काफी खराब है. ऐसे में लोगों द्वारा उठाई जा रही अलग राज्य की मांग को पूरी तरह से गलत भी नहीं कहा जा सकता.
भारत में समय-समय पर इस तरह की मांगे उठी हैं और पहले भी भारत सरकार द्वारा अलग राज्य बनाने को लेकर मोहर लगाई जा चुकी है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी मिथिलांचल को अलग राज्य बनाने वाली मांग को लेकर समर्थन किया था.
उनसे पहले भी राबड़ी देवी ने हमेशा अलग राज्य बनाने की बात को जायज़ ठहराया है. उधर उत्तरप्रदेश में भी योगी सरकार कई बार पूर्वांचल को एक अलग हिस्सा बनाने के रूप में समर्थन करती दिखी है. लेकिन केवल राज्य सरकार इसके ऊपर फैसला नहीं ले सकती. यह मामला केंद्र सरकार के अधीन होता है.
नया राज्य बनाने की क्या है संवैधानिक प्रक्रिया
संविधान के अनुच्छेद- 3 के तहत केंद्र सरकार के पास यह अधिकार है कि वह किसी राज्य का गठन कर सकती है. इसके लिए आवश्यक है कि पहले विधानसभा नए राज्य के गठन का प्रस्ताव पास करे. फिर इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. इसके बाद यदि केंद्र सरकार चाहे तो मांग को जायज़ देखते हुए कदम उठा सकती है. केंद्र सरकार के पास यह भी अधिकार है कि वह किसी भी राज्य का क्षेत्र बढ़ा या घटा सकती है, सीमाएं बदल सकती है. केन्द्र सरकार राज्य का नाम भी बदल सकती है.