बिहार: राज्य में भूजल स्तर चिंताजनक, सरकार का एक्शन प्लैन फ़ेल

New Update
बिहार: राज्य में भूजल स्तर चिंताजनक, सरकार का एक्शन प्लैन फ़ेल
Advertisment

बिहार की लगभग 80% आबादी खेती पर निर्भर है. यहां खेती के लिए अनुकूल वातावरण भी मौजूद हैं. जैसे- अच्छी बारिश, उर्वरक मिट्टी और सिंचाई के लिए पर्याप्त साधन. लेकिन इन सब पर्याप्त क्षमताओं के बावजूद बिहार के किसान सिंचाई के लिए भूजल का इस्तेमाल ज़्यादा करते हैं. यहां 80% सिंचाई भूजल से ही किया जाता है. 

publive-image

राज्य में सिंचाई के साथ-साथ घरेलू और औद्योगिक उपयोग में भी भूजल का उपयोग काफ़ी किया जाता है. भूजल पर बढ़ती निर्भरता और शहरों में बढ़ता दोहन, राज्य में गिरते भूजल स्तर का प्रमुख कारण बन गया है.  

Advertisment

हाल ही में जारी हुए राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2022-23 के अनुसार राज्य में पिछले दो सालों में भूजल स्तर में काफ़ी गिरावट आई है. इसके अलावा राज्य में पानी की गुणवत्ता भी ख़राब हुई है.

प्री-मानसून भूजल स्तर के आंकलन में औरंगाबाद, सारण, सीवान, गोपालगंज, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, खगड़िया, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार में भूजल स्तर में गिरावट दर्ज किया गया है.

गर्मियों में 10 मीटर नीचे चला जाता है भूजल स्तर 

सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के कई पहाड़ी इलाके, जैसे- राजगीर, गया, बोध गया और नवादा, में बारिश का पानी नहीं ठहरता है. इसलिए गर्मियों में यहां की नदियां, तालाब, और बोरवेल तक सूख जाते हैं. साल 2019-2020 से (सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड) सीजीडब्लूबी के आंकड़ों के मुताबिक राजगीर में गर्मियों में भूजल स्तर 10.93 मीटर तक पहुंच जाता है. जबकि यह बारिश के बाद नवंबर के महीने में 5.02 मीटर नीचे तक होता है. गर्मियों के दौरान इन शहरों में भूजल स्तर स्वाभाविक तौर पर नीचे चला जाता है.

बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में बिहार के अलग-अलग जिलों के गिरते भूजल स्तर का आंकलन किया गया है. औरंगाबाद में प्री-मानसून भूजल स्तर 2020 में 10.59 मीटर था जो 2021 में घटकर 10.97 मीटर रह गया है. अन्य जिलों जैसे- सारण (2020 में 5.55 मीटर से 2021 में 5.83 मीटर), सीवान (2020 में 4.66 मीटर और 2021 में 5.4 मीटर), गोपालगंज (2020 में 4.10 मीटर और 2021 में 5.35 मीटर), पूर्वी चंपारण (2020 में 5.52 मीटर और 2021 में 6.12 मीटर), सुपौल (2020 में 3.39 मीटर और 2021 में 4.93 मीटर) रह गया है.

इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि साल 2021 में प्री-मानसून के दौरान औरंगाबाद, नवादा, कैमूर और जमुई जैसे जिलों में भूजल स्तर जमीन से कम से कम 10 मीटर नीचे चला गया था.

publive-image

बिहार के कई जिले गंभीर जल संकट से गुज़र रहे हैं

सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने साल 2022 में देश के विभिन्न राज्यों के प्रत्येक जिलों और उसके प्रखंडों के भूजल स्तर में आए गिरावट के आधार पर चार श्रेणी (category) बनाये हैं. इस रिपोर्ट में वैसा क्षेत्र जहां भूजल स्तर बिलकुल ही नहीं बचा या बहुत ज़्यादा पानी निकाला जा चुका है, उसे अत्यधिक शोषित (over exploited).

वैसा क्षेत्र जहां भूजल बहुत नीचे जा चुका है उसे संकटमय (critical).

वैसा क्षेत्र जहां आने वाले कुछ दिनों में पानी बहुत नीचे जा सकता है, उसे अर्ध गंभीर (semi critical).

और जहां भूजल अभी भी अच्छी स्थिति में हैं, उसे सुरक्षित (safe) की श्रेणी में रखा गया है.

बिहार का जहानाबाद अत्यधिक शोषित जल क्षेत्र श्रेणी में

इस रिपोर्ट में बिहार के बेगूसराय जिले के बछवारा, बीड़पुर, खुदाबंदपुर और नावकोठी प्रखंड में अर्ध गंभीर भूजल स्तर वाले क्षेत्र में रखा है. वहीं भोजपुर जिले के कोइलवर प्रखंड में ग्राउंड वाटर, गंभीर यानि संकटमय स्थिति में पहुंच चुका है. भोजपुर के ही बिहिया और शाहपुर प्रखंड में ग्राउंड वाटर अर्ध गंभीर हालत में पहुंच चुका है. गया जिले का बेलागंज प्रखंड भी ग्राउंड वाटर की समस्या झेल रहा है. जहानाबाद जिले के रतनी फतेहपुर और काको प्रखंड में भू जलस्तर बहुत नीचे जा चुका है. इसे इस रिपोर्ट में अत्यधिक शोषित जल क्षेत्र वाले केटेगरी में रखा गया है.

मुजफ्फ़रपुर जिले का मुशहरी और मीनापुर अत्यधिक शोषित जल क्षेत्र वाले इलाकों में आता है. यहां भूजल का दोहन अत्यधिक किया गया है जिसके कारण भूजल गंभीर स्थिति में पहुंच चुका है. मुजफ्फ़रपुर जिले में 16 प्रखंड हैं जिनमें से आधे प्रखंड में जल संकट की समस्या उत्पन्न हो गयी है. बोचहां, गायघाट, कांटी, मुरौल (ढोली), सकरा और कुढ़नी प्रखंड आने वाले समय में गंभीर जल संकट से गुज़र सकता है.

मुख्यमंत्री का गृह जिला नालंदा भी पानी की समस्या से अछूता नहीं है. नालंदा का एक बड़ा इलाका भूजल की समस्या से गुज़र रहा है. नालंदा के नगरनौसा प्रखंड में भूजल अत्यधिक शोषित (over exploited) हो चुका है. वहीं कराई परसाई, नगरनौसा, गिरीयक और एकंगरसराय  में भी भूजल संकटमय स्थिति में पहुंच चुका है. बिंद, चंडी, हरनौत, हिलसा, परवलपुर और राजगीर में भी भूजल अर्ध गंभीर हालत में पहुंच चुका है.

नवादा जिले का अकबरपुर, हिसुआ, मेसकौर, नारदीगंज, नवादा और नरहट भी आने वाले समय में गंभीर जल संकट से गुजर सकता है. क्योंकि वर्तमान समय में यहां ग्राउंड वाटर अर्ध गंभीर हालत में पहुंच चूका है.

publive-image

राजधानी पटना की भी स्थिति सही नहीं

वहीं राजधानी पटना का पटना अर्बन प्रखंड भूजल शोषण के मामले अति गंभीर शोषित श्रेणी में आता है. इस प्रखंड में भूजल का स्तर बहुत गंभीर स्थिति में पहुंच चूका है. पटना जिले का ही अथमलगोला, मसौढ़ी और संपतचक प्रखंड में भी भूजल संकटमय (critical) स्थिति में पहुंच चूका है. धनरुआ, फतुहा, पटना सदर, फ़ुलवारी शरीफ़ और पुनपुन प्रखंड आने वाले समय में गंभीर जल समस्या से जूझने वाला है क्योंकि इन प्रखंडों में वर्तमान समय में भूजल अर्ध गंभीर हालत में पहुंच चुका है.

समस्तीपुर का दलसिंगसराय और ताजपुर, शेखपुरा जिले का बरबीघा प्रखंड गंभीर जल संकट वाले क्षेत्रों में आता है. समस्तीपुर का ही बिभूतिपुर, कल्यानपुर, उजियारपुर, विद्यापतिनगर और सारायरंजन अर्ध गंभीर जल संकट वाले क्षेत्रों में आता है.   

वैशाली जिले का हाजीपुर, जंदाहा, राजा पाकर और पातेपुर भी गंभीर जलसंकट वाले क्षेत्र है. वहीं चेहरा कालन, गोरौल, लालगंज और महनार प्रखंड अर्ध गंभीर जल संकट वाले क्षेत्रों में आता है.

साल 2050 तक प्रति व्यक्ति 6.35 लाख लीटर पानी ही होगा उपलब्ध  

भारत में साल 2025 तक प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1341 क्यूबिक मीटर/साल(Cu m/Yr) हो जाने की सम्भावना है जो साल 2050 तक 1140 क्यूबिक मीटर/साल(Cu m/Yr) ही रह जाएगी.

वहीं बिहार में साल 2025 तक प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 10.60 लाख लीटर हो जाने की संभावना है. अगर भूजल का दोहन इसी तरह किया जाता रहा तो साल 2050 साल तक यह प्रति व्यक्ति 6.35 लाख लीटर ही रह जाएगा.    

केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार बिहर की 99.74% आबादी पेयजल के रूप में भूजल का उपयोग करती है जबकि मात्र 0.26% आबादी ही शोधित सतही जल का उपयोग पीने के लिए करते है.

वहीं आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार में बड़े पैमाने में जल संसाधन है, इसके बावजूद हाल के वर्षों में भूजल की गुणवत्ता पर असर पड़ा है. साल 2021 तक, बिहार में कुल 968 नहरें, 26 जलाशय और बड़ी संख्या में राजकीय नलकूप थीं.

ग्राउंड वाटर रिचार्ज बढ़ाने को बनेंगे 1.61 लाख जगहों पर वाटर रिचार्ज सिस्टम

उचित प्रबंधन के अभाव में बिहार हर साल बरसात में बाढ़ और गर्मी में सूखे की समस्या झेलता है. गर्मियों में मुंगेर, बांका, मधुबनी, कैमूर, रोहतास, राजगीर, गया, औरंगाबाद, बेतिया, कैमूर सहित 18 जिले सूखे का सामना करते हैं. गर्मियों में यहां पानी का स्तर तीन से 28 फीट तक नीचे चला जाता है. इसको देखते हुए भूमिगत जल की स्थिति को सुधारने के लिए राज्य में रिचार्ज सिस्टम पर काम किया जा रहा है.

इसी प्रयास के तहत लोक अभियंत्रण विभाग राज्य में पेयजल के रूप में सतही जल के उपयोग को बढ़ाने का प्रयास करने वाली है. विभाग लोगों को अब 22 तालाब और डैम का शोधित पानी पेयजल के रूप में सप्लाई किया जाएगा. पीएचईडी (PHED) विभाग राज्य के 17 जिलों ख़ासकर पठारी क्षेत्रों में सतही जल के उपयोग को बढ़ाने का इंतज़ाम करेगी.   

publive-image

(क्रेडिट- www.indiawatertool.in)

चापाकल और कुंओं के पास बनेगा रिचार्ज सिस्टम

इसके साथ ही नगर विकास एवं आवास विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, पीएचईडी और पंचायती  राज विभाग मिलकर राज्य के 38 जिलों में स्थित 1.62 लाख जगहों पर रिचार्ज सिस्टम बना रही है. इसमें वैशाली में सबसे अधिक 23,371 जगहों पर वाटर रिचार्ज सिस्टम बनाया जा रहा है. जबकि पटना में 1873, मुज़फ्फ़रपुर में 6203, भागलपुर में 7428, दरभंगा में 3471, बेगूसराय में 8463, गया में 6,718 और अरवल में 3,071 में वाटर रिचार्ज के लिए काम किया जा रहा है.

1.62 लाख चयनित जगहों में से 1,39,072 जगहों पर काम पूरा हो चुका है. बचे हुए जगहों पर साल 2024 तक काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.

जल जीवन हरियाली योजना के तहत चलने वाली इस योजना में 1.62 लाख जगहों में से 1,30,498 चापाकल और 31,854 कुआं के आसपास रिचार्ज बनाया जा रहा है. बाकी अन्य जगहों पर नल या मोटर की जगहों पर रिचार्ज सिस्टम बनाया जा रहा है. इस रिचार्ज सिस्टम के द्वारा हर महीने 21.60 करोड़ लीटर पानी जमीन के नीचे पहुंचेगा.

जल संपदा का सही प्रबंधन बाढ़ के साथ सूखे से देगा निजात 

पटना यूनिवर्सिटी के जियोग्राफी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर मनीष भगत बताते हैं

बिहार सरकार को आज से करीब 10 साल पहले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने बाढ़ और भूजल संरक्षण के लिए एक कार्ययोजना बनाकर दिया था. इस योजना में नेपाल के रास्ते आने वाले बाढ़ के पानी को असंख्य कुओं में जमा किया जाना था. क्योंकि नेपाल ऊंचाई पर स्थित है इसलिए पानी को कुओं में रोका जा सकता है. बाद में इस पानी का उपयोग सिंचाई सहित अन्य कार्यों में किया जा सकता था. इससे न केवल उत्तर बिहार की बाढ़ की समस्या का समाधान हो सकता है, बल्कि दक्षिण बिहार के सूखा प्रभावित क्षेत्रों को भी निजात मिल सकता है.

मनीष जलसंरक्षण और भूजल संरक्षण के लिए वनक्षेत्र बढ़ाये जाने पर जोर देते हुए बताते हैं

बिहार में वनक्षेत्र अभी लगभग 7% के करीब है. जिसे बढ़ाकर कम से कम 15% किया जाना चाहिए. किसी भी भू-भाग के एक तिहाई हिस्से में वनक्षेत्र होना चाहिए. इस हिसाब से बिहार में 33% भूभाग पर वन होना चाहिए लेकिन अभी सरकार इसे 17% तक लाने का प्रयास कर रही है.

जल संचयन और जल संरक्षण पर काम करने वाले एमपी सिन्हा कहते हैं

गांव और शहर में जहां-तहां बोरिंग किया जा रहा है जिसके कारण पानी का बर्बादी बढ़ गयी है. गांव में जबसे बिजली पहुंची है, वहां पानी का बर्बादी बढ़ गयी है. सरकार को भूजल निकालने के लिए कानून बनाना होगा. साथ ही इसकी कड़ी निगरानी करनी होगी.

भूजल संचयन को बढ़ाने के लिए बरसात के पानी को आहर-पईन में रोकना होगा. इसके लिए आहर-पईन और तालाबों को अतिक्रमण मुक्त करना होगा. वहीं शहरों में वर्षा जल संचयन के लिए छत पर जमा होने वाले पानी को पाइप के माध्यम से वापस जमीन में डाल देने से शहरों में भी ग्राउंड वाटर रिचार्ज को बढ़ाया जा सकता है.

सरकार के प्रयासों के साथ ही आमलोगों को भी जल संरक्षण और भूजल संचयन के लिए सहयोग करना होगा. शहरों या गांवों में ग्राउंड वाटर के उपयोग के लिए कानून बनाये जाने की आवश्यकता है.