बिहार: क्षमता से अधिक कैदी हैं जेल में, सबसे ख़राब स्थिति अतिपिछड़ों की

बिहार राज्य के गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार राज्य के अधिकतर जेलों में बंद कैदियों की संख्या जेल की क्षमता से अधिक कैदी है.

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नाजिश महताब
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बिहार: क्षमता से अधिक कैदी हैं जेल में, सबसे ख़राब स्थिति अतिपिछड़ों की
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बिहार राज्य के गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार राज्य के अधिकतर जेलों में बंद कैदियों की संख्या जेल की क्षमता से अधिक कैदी है. बिहार में कुल जेलों की संख्या 59 है और उसकी क्षमता 49091 है. जबकि कैदियों की संख्या 57715 है. जिसमें 55316 पुरुष कैदी और 2435 महिला कैदी हैं.( ये आंकड़े 30.06.23 तक के हैं.)

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क्षमता से अधिक कैदी की वजह से मॉनिटरिंग में दिक्कत

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मानक से अधिक संख्या होने के कारण प्रशासन को मॉनिटरिंग में काफ़ी परेशानी होती है, जिसके वजह से जेल के अंदर अक्सर मोबाइल, खैनी, चाकू आदि चीज़ें बरामद होती हैं. बिहार के 59 जेलों में से 17 जेलों में कैदियों की संख्या क्षमता से डेढ़ से तीन गुना तक अधिक है साथ ही साथ बचे से 42 जेलों में भी बने कैदियों की संख्या मानक से अधिक है.

जेल में मानक से 8397 पुरुष और 435 महिला कैदी अधिक बंद हैं.

पटना सिटी में 37 कैदियों को रखने की क्षमता है वहीं  वहां 142 कैदी मौजूद हैं. बेऊर में 2360 कैदी रखने की क्षमता है तो वहां 5078 कैदी मौजूद हैं और बेऊर रेड ज़ोन में आता है.

वहीं बाकी के जेलों में क्षमता के अधिक कैदी मौजूद हैं.

क्षमता से अधिक कैदी -
जेलों की संख्या कैदी की क्षमता कुल कैदी
दानापुर जेल 87 157
बाढ़ जेल 173 482
भभुआ जेल 355 685
सीवान जेल 684 1087
छपरा जेल 931 1951
दरभंगा जेल 550 945
जहानाबाद जेल 220 441
सीतामढ़ी जेल 578 1310
पूर्णिया जेल 198 1831
सुपैल जेल 534 986
मधेपुरा जेल 182 627
सहरसा जेल 557 849
खगड़िया जेल 800 1234
बेगूसराय जेल 1026 1639
नवादा जेल 614 1020
कैदियों की क्षमता और उनके मौजूदा आंकड़े

“एक सेल में 55 कैदियों को रखा जाता है”: कैदी

जेल में कैदियों की बंद संख्या आधार पर जेलों को रेड, ऑरेंज, ग्रीन, पर्पल, और व्हाइट ज़ोन में बांटा गया है. 200% से अधिक होने पर रेड ज़ोन,150-200% पर ऑरेंज जोन,126- 150% तक पर्पल ज़ोन, 101-125% तक ग्रीन ज़ोन, 100% या उससे कम होने कैदियों की संख्या वाले जेल को व्हाइट ज़ोन. इस विभाजन के हिसाब से बिहार में 7 जेल रेड ज़ोन,10 जेल ऑरेंज जोन, 13 ग्रीन ज़ोन, 6 पर्पल ज़ोन, 23 व्हाइट ज़ोन में आते हैं.

क्षमता से अधिक कैदी

बिहार कारा हस्तक 2012 के अनुसार बिहार में रहने वाले पुरुष एवं महिला कैदियों को कॉटन, कुर्ता, पायजामा, गमछा कंबल, धोती, टॉवल, वूलन कोट, आदि चीज़ें मुहैया कराई जाएंगी.

2021 से 2022 तक बेऊर जेल में रहने वाले एक कैदी से जब हमने बात की तो उन्होंने हमें बताया कि

एक वार्ड में 20- 25 कैदी रखने की कैपेसिटी होती है. लेकिन वहां 55-57 कैदी ठूस ठूस कर रखे जाते हैं. वहां कैदियों को गाय बकरी के तरह रखा जाता है. हमें किसी तरह की सुविधा नहीं मिलती, पंखा तक नहीं मिलता ना ही ठीक से खाना.

जब हमने सवाल किया की प्रशासन का रवैया कैसा रहता है. तो उन्होंने बताया कि

सर सिर्फ़ दबे कुचले दलितों पर प्रशासन का रवैया सख्त रहता है. क्योंकि हम पैसे से कमज़ोर होते हैं पैरवी से कमज़ोर होते हैं.

बिहार के जेलों से सबसे अधिक पिछड़े और अतिपिछड़े समुदाय के लोग

प्रोहिबिशन इन बिहार: द फॉलआउट’ नाम से जारी इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की आठ केंद्रीय जेल, 32 जिला जेल और 17 सब जेल के आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं. साल 2016 के अप्रैल महीने से लागू शराबबंदी कानून के उल्लंघन के चलते गिरफ़्तार हुए लोगों में अनुसूचित जाति के 27.1 प्रतिशत लोग हैं, जबकि राज्य की कुल आबादी का वह महज़ 16 प्रतिशत हैं.

वहीं अनुसूचित जनजाति के 6.8 प्रतिशत लोग गिरफ्तार हुए हैं, जबकि कुल आबादी का वह केवल 1.3 प्रतिशत हैं.

अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से लगभग 34.4 प्रतिशत लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, जबकि राज्य की कुल जनसंख्या का वे 25 प्रतिशत हैं.

कैदी आगे बताते हैं कि

हमें वहां रहने सोने में बहुत परेशानी होती थी. क्योंकि एक वार्ड में 55 लोग से ज़्यादा रहते थे. जिसके वजह से कई बार बीमारियां फैल जाती हैं. वार्ड के बाथरूम में दलितों के लिए शौचालय करना मना रहता है, हमें बाहर फील्ड में जाना पड़ता है.

क्षमता से अधिक कैदी

मानवाधिकार अधिवक्ता विशाल बताते हैं कि

बिहार के जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों को रखने की समस्या लंबे समय से चली आ रही है. इस समस्या की ओर लोगों का ध्यान पहली बार कोविड के वक्त गया. इस ध्यान जाने का कारण यह था कि कोविड -19 के समय सोशल डिस्टेंसिंग पर बात शुरू हो गई थी. तब सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में स्वत: संज्ञान लेते हुए एक रिट याचिका की सुनवाई की थी. जिसमें भारत के हर एक राज्य से सरकार के द्वारा एक हलफनामा दायर करने का आदेश दिया गया. कि वह बताएं कि उनके राज्यों में जो जेल है उन में क्षमता से अधिक कैदी हैं या नहीं. यदि हैं तो फिर उनको अंतरिम रूप से रिहा करके जिलों को खाली किया जाए.

जेल सुपरिटेंडेंट नहीं कर रहे हैं बात

इन सारे मामलों पर जब हमने बेऊर जेल के सुपरिटेंडेंट रूपक कुमार से बात करने की कोशिश की तो हमारी उनसे बात नहीं हो पाई. बार-बार कॉल किए जाने के बावजूद सुपरिटेंडेंट रूपक कुमार ने कॉल रिसीव नहीं किया. हम लगातार कोशिश करेंगे की जल्द से जल्द उनसे बात हो सके.

अधिवक्ता विशाल आगे बताते हैं

पटना हाईकोर्ट के 2015 के निर्णय जो कि मानिक चंद्र राय वर्सेस स्टेट ऑफ़ बिहार केस में लिया गया था, उसमें यह कहा गया कि अदालतों को बेल इत्यादि के मामलों में शीघ्र अति शीघ्र सुनवाई करनी चाहिए. परंतु चाहे वह 2015 का निर्णय हो या 2020 का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय हो अभी तक कोई भी निर्णय जेलों में ओवरक्राउडिंग की समस्या को हल नहीं कर पाया है. 

जेल में दो प्रकार के कैदी रहते हैं एक अंडर ट्रायल और दूसरे सज़ायाफ्ता. चूंकि कई बार न्याय व्यवस्था जल्दी किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच पाती है. तो उसके कारण जेल में अंडर ट्रायल कैदियों की संख्या बढ़ते जाती है.

बिहार में 7 जेल रेड ज़ोन में आते हैं, 10 ऑरेंज और 13 ग्रीन ज़ोन जबकि 23 व्हाइट ज़ोन में. अब सरकार को चाहिए की वो ऐसे जेल को चिह्नित करें. जहां मानक से काम कैदी हैं और वहां रेड, ऑरेंज या ग्रीन ज़ोन से कैदियों को तबादला व्हाइट ज़ोन में कर देना चाहिए. 

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