बिहार: बदलते मौसम का किसानों पर क्या पड़ रहा है असर?

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कुणाल कुमार शांडिल्य
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बिहार: बदलते मौसम का किसानों पर क्या पड़ रहा है असर?
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लगातार बदलते मौसम से बिहार के किसान काफ़ी चिंतित हो गए हैं. वास्तव में चिंता बढ़ाने वाली बात है भी. मौसम का परिवर्तन फसलों को काफी प्रभावित करता है. यदि प्रभाव अच्छा है तो उपज अच्छी होती है. परंतु यदि मौसम का दुष्प्रभाव फ़सलों पर पड़ गया तो इससे उपज भी प्रभावित होती है.

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कुछ दिनों पहले बिहार के कई जिलों का तापमान सामान्य से काफ़ी अधिक बढ़ गया. लू और हीटवेव जैसी स्थिति बन गई. यह सिलसिला लगभग 1 हफ्ते तक लगातार यूं ही चलता रहा.

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फिर मौसम अचानक बदला, तापमान में गिरावट आई और बिहार के कई स्थानों पर बारिश और आंधी भी चली.

बदलते मौसम का अलग-अलग फ़सलों पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव

बिहार की 77% आबादी खेती के कामों से जुड़ी हुआ है. राज्य की जीडीपी में कृषि का योगदान लगभग 18-19 फ़ीसद है. लेकिन कृषि का अपना ग्रोथ रेट लगातार कम हुआ है. साल 2005-2010 के बीच ये ग्रोथ रेट 5.4 फ़ीसद था, 2010-14 के बीच 3.7 फ़ीसद हुआ और अब 1-2 फ़ीसद के बीच है.

तेज़ी से बदलते मौसम का बिहार की फसलों पर एक जैसा प्रभाव नहीं है. कुछ फसलों पर तापमान में वृद्धि होने से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और कुछ फसलों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इस विषय पर मौसम वैज्ञानिक आशीष चौरसिया ने हमें बताया कि

फ़सलों के लिए क्लाइमेट चेंज के जो पैरामीटर हैं चाहे वह हाई टेंपरेचर हो, बाढ़ हो, सूखा या फिर हीटवेव हो हर स्थिति का इफेक्ट अलग-अलग फसलों पर अलग-अलग रूप से होता है.

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तापमान बढ़ने से गेहूं और मूंग की फसल को होता है नुकसान

इस विषय पर हमें मौसम वैज्ञानिक आशीष चौरसिया ने बताया कि

यदि तापमान अधिक हो जाता है इससे गेहूं की फ़सल प्रभावित होती है. गेहूं का साइज़ सिकुड़ जाता है. गेहूं की फ़सल भी ऐसी स्थिति में जल्दी पक जाती है. दाना सिकुड़ जाने की वजह से छोटा हो जाता है और उसका वज़न भी कम हो जाता है. आमतौर पर गेहूं के 100 दाने का वजन 28 ग्राम होता है लेकिन इस स्थिति में वह 20 ग्राम ही हो पाता है. इसके अलावा जिन किसानों ने बारिश में मूंग को बोया होगा वह भी अधिक तापमान होने के कारण उसके अंकुरण में समस्या आ सकती है. यदि बारिश ना हो तो वह अंकुरित होने के तुरंत बाद मर जाता है तो इससे मूंग के उत्पादन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

बदलते तापमान का फलों पर भी पड़ता है सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव

तापमान में वृद्धि से फलों पर भी सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. कई फल ऐसे हैं जो तापमान के बढ़ने से मीठे हो जाते हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ फल ऐसे हैं जो तापमान के बढ़ने से प्रभावित होते हैं. इस विषय पर विस्तृत जानकारी देते हुए मौसम वैज्ञानिक आशीष चौरसिया बताते हैं कि

तरबूज़, खरबूज़ और खीरा जैसे फल तापमान के बढ़ने के साथ इनमें उतना ही मीठापन आता है यदि ज्यादा बारिश हो जाए तो इनका स्वाद फीका हो जाता है जिसे आम भाषा में पनियाहा  कहते हैं.

आम और लीची पर सबसे ज़्यादा बुरा प्रभाव

देश के प्रमुख आम उत्पादक राज्यों में बिहार चौथे नंबर पर है. इस मामले में लीची उत्पादन में भी बिहार का दबदबा पूरे भारतवर्ष में कायम है. लेकिन बदलते मौसम के कारण आम और लीची की खेती पर भी काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ा है.

कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में आम का उत्पादन लगभग 13 से 15 लाख टन प्रति वर्ष होता है जबकि लीची का उत्पादन 4 से 6 लाख टन तक होता है. इस विषय पर हमने किसान नेता अशोक से बात की. उन्होंने में बताया कि

इस मौसम का बहुत बुरा प्रभाव फलों और फ़सलों पर पड़ रहा है. जो लीची है और आम है. सभी फल का साइज छोटा हो जाएगा या फिर सड़ जाएगा. फलों का वज़न कम होने की वजह से उत्पादन में कमी होगी.

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समशीतोष्ण मौसम किसानों के लिए फायदेमंद- किसान

इस विषय पर किसान नेता अशोक ने हमें बताया कि

अभी कायदे से मौसम समशीतोष्ण रहना चाहिए यानी कि हल्की ठंड और गर्मी हो तो आम और लीची जितना बड़ा होना चाहिए उतना होगा. उस पर पुरवा का असर भी होगा और पछिया का असर भी होगा. इससे न सिर्फ फलों को फायदा होगा बल्कि मक्का की खेती करने वाले किसानों को भी फायदा होगा. जो फसल वर्तमान मौसम के कारण अभी पक रहा है वह समय पर पकता.

खरीफ़ की फसल को कोई नुकसान नहीं

इस विषय पर हमने खेती करने वाले किसान ताहिर अंसारी जी से बात की. उन्होंने में बताया कि

फ़र्क तब पड़ता है जब कटाई खरीफ़ की कटाई हो चुकी हो. पहले अगर बारिश हो जाएगा तो बहुत नुकसान हो जाएगा. उधर धान कटने से पहले अगर बारिश हो गयी तो भी किसानों को बहुत नुकसान हो जाएगा. अभी के मौसम से खरीफ़ फ़सल की किसानों को कोई दिक्कत नहीं है.

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नहीं मिलता सरकार की तरफ से कोई मुआवजा

मौसम की वजह से किसानों को होने वाले नुकसान को लेकर उन्हें सरकार की ओर से कोई मुआवज़ा नहीं मिलता. किसान नेता अशोक कुमार बताते हैं

कोई मुआवज़ा नहीं देती है सरकार. सबसे पहले तो बिहार में फ़सल बीमा योजना है ही नहीं. इस तरह के मौसम से होने वाले नुकसान का कोई मुआवज़ा किसानों को नहीं दिया जाता. हां यदि ओला गिरता है तो उससे होने वाले नुकसानों का मुआवज़ा किसानों को मिल जाता है. लेकिन इस मौसम का नहीं.

कृषि विभाग से नहीं मिल पाया कोई सत्यापित डेटा

बिहार सरकार के कृषि विभाग से किसानों को बाढ़ सूखा, ओलावृष्टि तथा किसी भी प्रकार के जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान का डेटा हमें नहीं मिला.

इसके लिए हमारी टीम ने सबसे पहले मीठापुर स्थित कृषि भवन जाकर जानकारी लेने का प्रयास किया. वहां मौजूद संयुक्त निदेशक शंकर चौधरी जी से हमने बात की. उन्होंने हमें बताया कि

बिहार में बाढ़, सुखाड़ या किसी भी प्रकार के अन्य जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से फसलों पर प्रभाव तो पड़ता ही है, लेकिन हम केवल आपको इतना बता सकते हैं कि कितना नुकसान हुआ है और हमने इस पर क्या अनुदान दिया है. इससे ज्यादा हम आपको कुछ नहीं बता पाएंगे. अगर आपको डाटा चाहिए तो आप रूम नंबर 108 में सुशील कुमार जी से मिल लीजिए वह आपको डाटा उपलब्ध करा देंगे.

इसके बाद हमारी टीम सुशील कुमार जी से मिलकर उनसे डेटा देने की बात कही तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि

मैं इसके लिए ऑथराइज व्यक्ति नहीं हूं जो आपको आंकड़ें दे सकूं. मेरे पास डेटा है ज़रूर, लेकिन मेरी सीमाएं हैं. इसलिए मैं आपको आंकड़ा नहीं दे सकता. आप विकास भवन जाइए और वहां सूचना प्रकोष्ठ से कहिए वह हमें फोन करें तभी आपको डेटा यहां से मिल सकता है.

फिर हमारी टीम सुशील कुमार के बताए न्यू सचिवालय स्थित विकास विभाग के सूचना प्रकोष्ठ में पहुंची जहां यह कहते हुए आंकड़ा नहीं दिया गया. हमें बताया गया कि आंकड़ा तो कृषि विभाग के पास ही है. इसमें हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते.

ऐसे में ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब एक पत्रकार को सरकारी विभाग से डेटा इकट्ठा करने में इतनी मशक्कत करनी पड़ती है तो सोचें कि किसानों को अपने नुकसान और उसकी भरपाई के लिए मुआवज़े की मांग को लेकर कितने सरकारी विभागों के चक्कर लगाने पड़ते होंगे.

आने वाले समय में क्या असर पड़ेगा?

यदि बिहार के किसानों की स्थिति ऐसे ही बनी रही तो इससे किसानों का मनोबल तो गिरेगा ही, इसके साथ ही बिहार के उत्पादन में भी गिरावट आएगी जिसका प्रभाव बिहार के आर्थिक क्षेत्र पर भी पड़ेगा.

यदि सरकारी तंत्र किसानों को होने वाले नुकसान और उन्हें अब तक दिए जाने वाले अनुदान की जानकारी देने में इतना हिचक रहा है तो यह न सिर्फ किसानों के लिए चिंताजनक स्थिति है बल्कि यह जय जवान, जय किसान के उस नारे को भी तार-तार कर रहा है जो कभी किसानों के श्रम और उनके दृढ़ विकास के लिए लगाया गया था.