बाढ़ से परेशान रहने वाले बिहार में इस साल बाढ़ से निपटने की क्या तैयारी है?

author-image
पल्लवी कुमारी
एडिट
New Update

आज सुबह गलियों का नज़ारा था, लोग ऑफिस चप्पल में जाते दिखें. कोई अपने बच्चे को गोद में उठाकर रास्ता पार करा रहा था ताकि उसके जूते ना गीले हो जाएं, कुछ स्कूली बच्चे चिरैयांताड़ पुल के नीचे अपने जूते हाथों में लिए पानी भरे सड़क से गुजर रहे थे. बरसात के दिनों में पटना के सड़कों पर यह नजारा आम सा हो जाता है. हर तरफ पानी और कीचड़ उससे निकलने वाली दुर्गन्ध लोगों के लिए पूरे बरसात बारिश की सौगात सी लगती है. क्योंकि नगर निगम हर साल सिर्फ वादा करती ही नजर आती है कि हम पटना को डूबने नहीं देंगे.

Advertisment

पटना में मानसून की पहली बारिश के बाद ही गली-मोहल्लों में जलजमाव की समस्या शुरू हो गई है. हनुमान नगर, आदर्श कॉलोनी, इंद्रा नगर रोड नंबर-1, मलाही पकड़ी गांव, डॉक्टर्स कॉलोनी, योगीपुर, कंकड़बाग टेम्पू स्टैंड के कुछ गलियों में पानी लगा है, चिरैयांताड़ पुल के नीचे, जीपीओ गोलंबर के पास वाली गली और किदवईपुरी की कुछ गलियों में भी पानी लगा हुआ है. चिरैयांताड़ पुल के नीचे लगे पानी को देखकर ऑटो में बैठी दो महिला यात्री आपस में बात करते हुए बोलीं

अभी बारिश हुई ही कितनी देर है और यह देखिए. मान लीजिए दो-तीन दिन तक यही बारिश हो जाए तो फिर समझिए बुरा ही हाल हो गया पटना का. 2019 में में पटना के डूबने के बाद से अब जैसे ही बरसात आती है डर लगने लगता है. 

बिहार में दक्षिण पश्चिम मौनसून के आगमन को लेकर मौसम विज्ञानियों का अनुमान सटीक निकला. मानसून तय समय यानि 13 जून को पूर्णिया के रास्ते बिहार में दस्तक दे दिया था. इसका असर पूर्णिया, किशनगंज, अररिया और सुपौल में दिखने भी लगा था. मौसम विज्ञानियों का अनुमान था कि आने वाले 15 से 17 जून को बिहार के सारे जिलों में मानसून का असर दिखने लगेगा. मानसून के दस्तक देते ही लोगों ने राहत की सांसे ली थी. लोगों को भीषण गर्मी से राहत मिलने की उम्मीदें थीं. लेकिन मानसून एंट्री लेने के बाद भी कई जगहों पर कमजोर ही पड़ा है. उत्तरी और पूर्वी बिहार में लगातार बारिश हो रही थी. लेकिन दक्षिण और पश्चिम बिहार में अभी भी पर्याप्‍त बारिश होने का इंतजार था. लोग उमस से परेशान थे और बारिश का इंतजार कर रहे थे. 

Advertisment

मानसून बिहार में मंगलवार से पूरी तरह से एक्टिव हो गया है. बुधवार की सुबह से ही पटना सहित बिहार के अधिकतर जिलों में झमाझम बारिश हो रही है. बारिश से लोगों को गर्मी और उमस से राहत मिली है. अनुमान के अनुसार शाम तक मौसम ऐसा ही बना रहेगा. और कई जिलों के लिए तो रेड अलर्ट भी जारी कर दिया गया है.

publive-image

मंगलवार से ही बना था बारिश का आसार

पटना में मंगलवार की सुबह से ही आसमान में बादल छाए हुए थे. मंगलवार कि सुबह  फुहारों के साथ हल्की बारिश हुई थी लेकिन दोपहर में बारिश रुक गयी. लेकिन दोपहर बाद फिर से बादल छाए और शहर में हल्की बारिश हुई जिससे तापमान में कुछ गिरावट दर्ज की गयी. पटना शहर का अधिकतम तापमान सामान्य से एक डिग्री कम 33.4 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड दर्ज किया गया. 

बिहार के साथ मानसून में बाढ़ की भारी समस्या देखने को मिलती है. इसकी एक महत्वपूर्ण वजह है, सीवरेज सिस्टम का दुरुस्त ना होना. दरअसल बिहार के बाढ़ का अगर विश्लेषण किया जाए तो वो बाढ़ भी नहीं बल्कि जलजमाव से जूझता है. साल 2019 में पटना में काफी अधिक जलजमाव की स्थिति बन गयी थी. पटना की सड़कों पर नाव चलने लगी थी. बिहार का सीमांचल इलाका भी बाढ़ से काफी अधिक प्रभावित होता है.

उत्तर बिहार में बाढ़ के 4 बड़े कारण हैं:-

  1. प्राकृतिक छेड़छाड़
  2. नेपाल से आने वाली नदियां 
  3. बांध और,
  4. सरकारी रवैया

उत्तर बिहार के इलाकों में मानसून अच्छा रहने पर बिहार में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है. दरअसल जो नदियां यहां बाढ़ से तबाही मचाती हैं, उनमें ज़्रयादातर के ओरिजिन पॉइंट हिमालय के इलाकों के हैं. सभी गंगा की सहायक नदियां हैं. गंगा की सहायक नदियों की भी अपनी एक सहायक नदियां हैं; जैसे नेपाल में दाखिल होने वाली बागमती बिहार के कई जिलों से गुजरकर बूढ़ी गंडक से मिलती है उसके बाद बूढ़ी गंडक गंगा में. कमला और करछा बिहार आकर कोसी में मिलती है और बिहार में ही कोसी गंगा में मिलती है.

publive-image

गंगा तक पहुंचने वाली नदियां प्राकृतिक रूप से नेपाल में कई छोटी-बड़ी नदियों को अपने में समेटे हुए बिहार में दाखिल होती हैं. इनमें कुछ का ओरिजन प्वाइंट तिब्बत भी है. बिहार की बाढ़ पर जब भी बात होती है नेपाल से आने वाली नदियों को वजह मान लिया जाता है, लेकिन सिर्फ एक यही वजह नहीं है. किसी भी देश की सीमा को कभी भी बाढ़ जैसी आपदा के वजह से जस्टिफाई नहीं किया जा सकता है. नेपाल ने अपने आप को बाढ़ से बचाने के लिए बांध बनाए हैं. जब भी नेपाल अपने आप को बचाने के लिए पानी छोड़ता है तब बिहार में ज़्यादा बाढ़ का खतरा बना रहता है.

बिहार में बाढ़ आने की एक सबसे बड़ी वजह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करना भी है. ग्लोबल वॉर्मिंग होने की वजह से ग्लेशियर का बहुत ज़्यादा पिघलना, बहुत ज़्यादा बारिश, रास्ते में नदियों के बेसिन पर अतिक्रमण, नदियों पर बने बांध, पहाड़ों में बहुत ज़्यादा भूस्खलन और उत्खनन एक बड़ी वजह है कि बिहार का एक इलाका हर साल बाढ़ में डूबता रहता है. यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के साथ ओरिजन प्वाइंट से ही नदियों में पानी की मात्रा बढ़ रही है.

बिहार में हर साल सीतामढ़ी, शिवहर, मुज़फ्फ़रपुर, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, अररिया, दरभंगा, सुपौल और किशनगंज में सबसे ज़्यादा बाढ़ का सामना करना पड़ता है. यह इलाके नेपाल के बॉर्डर से भी सटे हुए हैं. लेकिन हर साल बिहार को बाढ़ में डूबने के लिए नेपाल की ज़रूरत नहीं पड़ती, बल्कि बिहार को हर साल डुबाने में सबसे बड़ा हाथ बिहार के राज्य सरकार का ही है. बाढ़ से बचने के लिए छोटे-छोटे नदियों के रास्तों में छोटे-छोटे तटबंध बनाए जा सकते थे, लेकिन फिर भी सरकार ने इन सारी चीजों पर ध्यान नहीं दिया. हालांकि बिहार में बाढ़ से बचने के लिए राज्य सरकार को विश्व बैंक की तरफ से भी मदद मिली थी, लेकिन फिर भी इस पर कोई खास काम नहीं किया गया.

वही गांव की बात कि जाए तो मानसून कि यह पहली बारिश किसानो के लिए अच्छा है. किसानों को इससे फायदा ही होगा. बेगुसराय के घाघरा-सिमरी गांव से डेमोक्रेटिक चरखा के पत्रकार रंजीत कुमार बताते है कि यहां दो दिनों से बारिश हो रही है. बारिश से अभी यहां कोई परेशानी नही है. यहां अभी इस बारिश से किसानों को फायदा ही होगा. हालांकि सब्जी जैसे- परवल, नेनुआ, खीरा, झिंगनी के किसानों को थोड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा. वहीं दैनिक मजदूरी करने वाले मजदूरों को बारिश के वजह से नुकसान उठाना पड़ रहा है.

publive-image

बेगूसराय के बखरी प्रखंड के घाघरा पंचायत के वार्ड नंबर 4 में बरसात के दिनों में हमेशा पानी लगा रहता है. यह टोला महादलितों का है. बखरी-गढ़पुरा मुख्य सड़क से महादलित बस्ती में जाने का यह मुख्य मार्ग है. इस टोले में प्रवेश करने के लिए मुख्य मार्ग पर ही आपको पानी लगा मिल जाएगा. यहां सड़क पर पानी की समस्या विगत चार-पांच सालों से हो रही है. यह सड़क  साल 2015-16 में बनकर तैयार हुई है. उसके बाद कई मकान भी आसपास बन गए. पूरे सिमरी गांव का पानी इसी महादलित टोले से होते हुए निकलता है. इसलिए बरसात में थोड़ी बारिश के बाद ही यहां जलजमाव की समस्या हो जाती है. बारिश का पानी लगभग बीस दिनों तक लगा रहता है जिससे कुछ दिनों के बाद उसमे कीड़े पनपने लगते हैं और उससे दुर्गंध भी आने लगती है. जिससे यहां से आने-जाने में लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है. ग्रामीणों का आरोप है कि महादलित बस्ती होने के कारण ना कोई जनप्रतिनिधि और ना ही कोई अधिकारी इस समस्या को हल करने में रूचि दिखा रहें हैं.

बेगूसराय के ही छौराही प्रखंड के किसान बारिश होने से खुश हैं. किसानों का कहना है कि हम बारिश होने का ही इंतजार कर रहे थे. बारिश होने के बाद अब हम धान की बुवाई कर सकते हैं. मानसून की पहली बारिश से काफी हद तक लोगों को राहत मिली है. खेतों में भी फसलों को लाभ मिलेगा. पेट्रोल-डीजल का दाम बढ़ने से किसानों को सिंचाईं पर ज्यादा खर्च हो जाता है लेकिन अब बरसात होने से किसानों की आर्थिक बचत होगी.

कटिहार में हुई भारी बरसात के बाद कई गांव टापू बन गए हैं. कटिहार के कन्हैरिया के रहने वाले सोनू रजक बताते हैं कि

हर साल हम लोग बाढ़ में ऐसी ही समस्या का सामना करते हैं. हम किसान लोग हैं हमारे लिए बारिश भी उतनी ही ज़रूरी है लेकिन सही सरकारी व्यवस्था नहीं होने की वजह से हमारी ज़मीन हमेशा डूब जाती है. ऐसे में हमारे लिए बारिश वरदान कम और अभिशाप ज़्यादा बन जाती है.

हर साल बिहार में बाढ़ आपदा के तौर पर आती है लेकिन कभी भी आपदा विभाग इसके लिए तैयार नहीं रहता है. इस साल की तैयारी को समझने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने आपदा प्रबंधन विभाग से संपर्क कर उनसे तैयारियों के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की. लेकिन आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से किसी ने भी बातचीत नहीं की.

Bihar NEWS Breaking news Current News Hindi News patna Patna Live patna news